Thursday 26 July 2012

धरती बचाने आंदोलन का आगाज़


- एशिया का सबसे बड़ा जैविक प्लांट दुर्ग जिले में
-रसायनों से बंजर जमीन बनेगी फिर उपजाऊ


दुर्ग। रासायनिक खादों के दुष्प्रभाव न सिर्फ धरती को बंजर बना रहा है, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी सबसे बड़ा खतरा साबित हो रहा है। इस दिशा में किसान यदि समय रहते सचेत नहीं हुए, तो आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी। इन हालातों में जैविक खाद के जरिये धरती को बचाने हर एक आदमी को आंदोलन छेडऩा जरूरी है। दुर्ग जिले के फुंडा(पाटन) के रहने वाले दो सगे भाईयों ने अपने पिता के राष्ट्रवादी सपने को साकार करने इस स्वदेशी अंादोलन की नींव रखी है, जो अब पूरे राज्य में नए आध्ुानिक आंदोलन का आगाज बन चुका है। क्षेत्र के किसान अब इस आंदोलन से जुडऩे लगे हैँ।
दुर्ग जिले के उन्नत किसान स्व. बसंत भाई टांक ने रासायनिक खाद से मुक्त धरती का कभी सपना देखा था। उनका मानना था कि रासायनिक खाद के बेहिसाब इस्तेमाल ने धरती को बांझ बना दिया है। नए पैदा होने वाली पीढ़ी इसके चलते नपुंसकता के शिकार हो रहे हैँ।
विदेशों से आयातित रासायनिक खाद दरअसल उस अंतर-राष्ट्रीय साजिशों की कड़ी है, जो इस देश की धरती को बंजर कर मिटा देना चाहते हैँ, लेकिन वर्तमान भारत भी अब अंगे्रजों के समय का भारत नहीं रहा है। आजादी के 65 बरसों में किसी भी विदेशी षडयंत्र का मुंहतोड़ जवाब देने में भारत सक्षम हो चुका है। विदेशों से आयातित रासायनिक खादों के हमले का तगड़ा जवाब है जैविक खाद। इससे जमीन फिर से उपजाऊ तो बनेगा ही, स्वास्थ्य व प्रदूषण की समस्या भी हल हो रही है।
 शिशिर भाई टांक एवं राजेश भाई टांक के स्वर्गीय पिता बसंत भाई टांक ने 80 के दशक में ही अनुमान लगा लिया था कि रासायनिक खादों के अंधाधुंध इस्तेमाल से न सिर्फ हमारी जमीनें अपनी उर्वरा क्षमता खो देंगे, बल्कि मानव समाज भी भयावह बीमारियों का शिकार होगा। परिवारिक संस्कार को असली पंूजी मानने वाले दोनों भाईयों ने अपने पिता की प्रेरणा से इस क्षेत्र में ढाई दशको ंसे कार्य कर रहे हैँ। 20 सालों के अनुसंधान के बाद गोमूत्र व गोबर के प्रयोग से जैविक खेती व औषधी बनाने के सपने को एसआरटी के रूप मे ंसाकार किया है।


कैसा बनता है जैविक खाद
 दुर्ग से करीब 30 किलोमीटर दूर ग्राम फुंडा(पाटन) में टांक  भाइयों ने अपने पिता बसंत भाई टांक की प्रेरणा से बंजर जमीनों को जैविक खाद के जरिये फिर से उपजाऊ बनाने का बीड़ा उठाया है। 110 एकड़ जमीन के चार एकड़ हिस्से पर प्लांट डालकर बायो पेस्टीसाईट कीटनाशक एवं गोबर खाद आधुनिक तरीके से बनाया जा रहा है। जैविक खाद बनाने वाली यह एशिया की सबसे बड़ी कंपनी है। बायो पेस्टीसाईट का बेस मटेरियल गो मूत्र एवं गोबर है। जो कि गिर प्रजाति के गायों से प्राप्त किए जा रहे हैँ। इन गायों को भी सिर्फ बायो चारा एवं रियका जिसमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होती है, खिलाया जाता है। इनसे एकत्र गोबर एरोबिक कंडीशन में सड़ाकर अर्क निकालते हैँ। फिलटर प्लांट में सलरी एवं गोबर अलग-अलग हो जाता है। फिर इसंलरी में 15 दिन तक मिक्स कर अलग-अलग कर 120 डिग्री तापमान में दो किलो प्रेशर से डिपफिल्टर से गुजारा जाता है। इससे बैक्टिरिया मर जाता है। किंतु मित्र कीट जिंदा रहते हैँ। इसके पखवाड़े भर के अंतराल में मल्टीवेशन प्रोससर के बाद पैकिंग की जाती है। जैविक खाद बनाने की इस प्रक्रिया में तीन महीने का समय लगता है। फफुंदी नाशक क्रीमी नाशक, जड़ की बीमारी, जीवाणु इल्ली जैसे बीमारियों को दूर करता है।
आज इस बायोफार्टिलाइजर कीटनाशक का इस्तेमाल कृषि करने वाले प्रमुख 12 राज्यों में हो रहा है। जिसमें छत्तीसगढ़़ भी शामिल है। किसान इसके प्रयोग से आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो रहे हैँ। और उत्पादन क्षमता भी बढ़ रहा है।

रासायनिक खाद के दुष्परिणाम से चिंतित बेलचंदन
केंद्रीय सहकारी बैंक, दुर्ग के अध्यक्ष प्रीतपाल बेलचंदन कई सालों से रासायानिक खाद व कीटनाशक के प्रयोगों से होने वाले दुष्परिणामों पर चिंता जताते आ रहे हैं। श्री बेलचंदन का मानना है कि रासायनिक खाद के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैँ। एक ओर धरती की उर्वरा शक्ति खत्म हो गई है, वहीं उत्पादित फसल मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचा रहा है।
फुंडा स्थित एसआरटी के कांसेस्प्सड् को सकारात्मक अभिव्यक्ति देते हुए श्री बेलचंदन ने अपने 182 सहकारी समितयों के सभी अध्यक्षों के जरिये पूरे जिले को इसका लाभ दिलाने की कोशिशें शुरू कर दी है। इस कड़ी में सारे 182  सोसायटी अध्यक्षों को बारी-बारी से एसआरटी की गतिविधियां देखने फुंडा भेज रहे हैँ। फुंडा स्थित एसआरटी ने विषैले रासायनिक खादों के खिलाफ जैविक खाद बनाकर धरती बचाने का जो आंदोलन छेड़ रखा है, उसे किसानों का स्वस्फूर्त समर्थन मिल रहा है। जिसमें समिति के अध्यक्षों ने भी इस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाने संकल्प ले रहे हैँ।

 गिर नस्ल के 270 गायों से चल रहा प्लांट
गुजरात के गिर प्रजाति के गाय में छत्तीसगढ़ के वातावरण अनुसार ढलने की पूर्ण क्षमता है। इनके बछड़ों की मृत्यु दर कम है। यह देशी गाय का ही रूप हैं।  गिर नस्ल के 270 गायों के गोबर-मूत्र  से 80 दिन की प्रोसेसिंग के बाद अर्क तैयार होता है। इन गायों को नैपियर ज्वार व वहीं उपजाया गया हरा घास आहार में दिया जाता है। इनके रहने के लिए कनाडा से डनलप का गद्दा मंगाया गया है। गायों की चिकित्सा के लिए एक पशु चिकित्सक व औषधालय की भी व्यवस्था की गई है। आसपास के गांवों के पशुपालकों को कृत्रिम गर्भाधान का लाभ भी संस्था द्वारा किया जा रहा है। ताकि छत्तीसगढ़ में भी देशी नस्ल का गो पालन हो सके।
बंजर जमीन उगलेगी सोना
दुनिया मान चुकी है, सबसे अच्छी गुणवत्ता जैव उर्वरक की है। एसआरटी द्वारा निर्मित जैव उर्वरक 100 फीसदी प्राकृतिक है। पेड़-पौधों को समुचित आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के साथ यह प्राकृतिक सूक्ष्मजीवों के बढऩे में सहयोग करता है। इससे वातावरण के साथ मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ता है। जैविक खाद एक शक्तिशाली प्राकृतिक कार्बनिक तरल उर्वरक है।
 एसआरटी के एमडी शिशिर भाई टांक एवं डायरेक्टर रोजश भाई टांक ने संयुक्त रूप से बताया कि उनका उद्वेश्य बंजर हो चुके मिट्टी में सुधार और किसानों की खेती के तरीकों में सुधार लाना है। दोनों भाईयों का मानना है कि देश में किसानों की चिंता किसी को नहीं है। सच्ची नीयत व ईमानदारी से मेहनत करे और किसानों को आगे बढ़ाये तो धरती सोना उगलेगी। उन्होंने अपने पिता से सीख लिया था कि अच्छा करना है और देश के लिए करना है। उन्होंने विश्वास दिलाया कि विषाक्त रासायन मुक्त अनाज, सब्जियों और फलों का उत्पादन कर प्रदूषण और स्वास्थ्य के खतरों को कम करने की दृष्टि से जैव खाद के उपयोग को बढ़ावा देने यह संस्था प्रतिबद्व है। जैव कीटनाशकों के संंबंध में कृषि, सार्वजनिक स्वास्थ्य और मानव कल्याण पर जनता के बीच जागरूकता पैदा करने संस्था द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है।
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3 comments:

  1. ye to aapne ekdam sahi bat likhi hai pawan bhaiya aaj rasaynik khad ke karan se hi hamare kheto ki utpadan kam ho gaya hai aur mitra kit yani kenchua khatam ho gaya hame is sab system ke liye sakaratmak kadam uthana hoga

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  2. मित्र कीट को ट्रैक्टर से कुचल देते हैं और बैल बेरोज़गार हो गए इसलिए उन्हें शूक़र बेच देते हैं जिन्हें मुसलमान ले जा कर काट कर खा जाते हैं

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