Tuesday 16 April 2013

दक्षिणापथ 15- 30 april 2013

विकास की डगर, परिवर्तन की तैयारी -चुनावी यात्रा का दौर शुरू - दक्षिणापथ डेस्क परिवर्तन और विकास, दो अलग-अलग ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर राज्य के मतदाताओं को निर्णय करना है। कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा और भाजपा की विकास यात्रा, दोनों को आम चुनाव में सत्ता की यात्रा की शुरूआती तैयारी के तौर पर देखा जा रहा हैं। जहंा कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के लिए कमर कस लिया है, वहीं सत्तारूढ़ भाजपा अपनी उपलब्धियों को राज्य के मतदाताओं तक पहुंचाकर हैट्रिक के लिए तैयार है। राज्य निर्माण के बाद छत्तीसगढ़ प्रदेश मे सिर्फ दो दफा विधानसभा के आम चुनाव हुए हंै। पहली और दूसरी बार मतदाताओं ने भाजपा पर भरोसा जताया। सत्तारूढ़ भाजपा उस भरोसे को तीसरी बार भी कायम रखना चाहता हैं, तो विपक्षी कांग्रेस एंटी इनकंबेशिंग फैक्टर के अंडर करंट को असरदार बनाने में जुटी है। दोनों ही पार्टियों के अपने-अपने दावें हैं। अलबत्ता, नवंबर 2013 में होने वाले राज्य के तीसरे विधानसभा चुनाव के नतीजें ही उनके दावों की कसौटी बनेगी। छत्तीसगढ़़ के मतदाताओं में परिवर्तन की ललक तो है, पर विकल्प पर अत्यधिक भरोसा भी नहीं। यद्यपि, छत्तीसगढ़ का हर आम आदमी भाजपा के 9 सालों में प्रसन्न व खुशहाल हो गया हो, ऐसी बात नहीं है। पर इसके बावजूद छत्तीसगढ़ के रमन सरकार के पास बताने के लिए कई उपलब्धियां है। देश के प्रमुख भाजपा शासित राज्य गुजरात के उदाहरणों को छत्तीसगढ़ की भाजपा अपने लिए सुखद संकेत मान रही है। इसी तरह मध्यप्रदेश में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की स्थिति भी राजनीतिक हलकों में सालिड मानी जा रही है। इन सबके चलते मुख्यमंत्री डा रमन सिंह व उनकी पार्टी पर आगामी चुनाव में बेहतर परिणाम देने का दबाव स्वाभाविक रूप से बन गया है। इधर छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी भी आम चुनाव में आर-पार का दांव खेलने तैयार हैं। अभी कांग्रेस में सर्वाधिक ध्यान खींचने वाली बात उनकी एकजुटता है। राजनीतिक प्रेक्षक लंबे समय बाद प्रदेश कांग्रेस को एकजुट होकर चुनावी रणनीति तय करते देख रहे हैं। कांग्रेस का यह प्रदर्शन आम मतदाताओं का ध्यान खींचने में भी सफल होता दिख रहा है। दोनों ही पार्टियों ने यात्राओं के बहाने चुनावी यात्रा की शुरूआत कर दी है। छ: महीने बाद होने वाले चुनाव में तय होगा, कि छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ भाजपा की विकास के दावों में ज्यादा दम है, या फिर कांग्रेस पार्टी के परिवर्तन की सुखद बयार के वादे पर भरोसा? भाजपा अपनी उपलब्धि बताएगी, तो कांग्रेसी उनकी नाकामी बताकर सत्ता की यात्रा तय करना चाहती है। चुनावी शतरंज बिछ चुका है। सियासी नेताओं ने मोहरे बिठाना शुरू कर दिया हैं। अलग-अलग मीडिया सर्वेक्षण में भाजपा के लिए जहां बस्तर, दुर्ग व सरगुजा जिलों में अपनी सीट बचाए रखने की चुनौती है तो वहीं कांग्रेस अपने इन परंपरागत सीटों को वापस पाकर सत्तासीन होने को बेकरार है। एक ओर जहंा भाजपा घर-घर जाकर अपनी उपलब्धियां गिना रही है तो दूसरी ओर कांग्रेसी उन उपलब्धियों की पोल खोलने हर घर जा रही है। बीते 2008 के चुनाव में भाजपा को अपनी विकास यात्राओं में जो सफलता मिली है, वह विगत पांच सालों से सत्तारूढ़ रमन सरकार की अहम उपलब्धियां थी, पहले पंचवर्षीय कार्यकाल के दम पर डा रमन उक्त चुनाव में एक प्रमुख चुनावी फैक्टर बन कर उभरे थे। जिसका लाभ 2008 के आम चुनाव में मिली, और वे दुबारा सत्तासीन हुए। पर बीते पांच सालों में राजनैतिक व जमीनी हालात् काफी बदल चुके है। रमन के पिछले कार्यकाल के इतर इस दूसरे कार्यकाल में जनता रूष्ट नजर आ रही है। चुनाव में विकास व परिर्वतन जैसे मुद्दो के बजाए सामाजिक राजनीति हावी हो रही है। राज्य का हर सामाजिक वर्ग किसी न किसीकारणों से सरकार से नाराज है। आरक्षण में कटौती के चलते सतनाम नाराज है, तो लाठीचार्ज के दर्द को आदिवासी भुला नहीं पाए हैं। 27 प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर सर्व पिछड़े समाज ने सरकार के खिलाफ चरामा से रायपुर तक एक लंबी यात्रा निकाली। सामाजिक समीकरणों के इतर स्वयं सरकार के अंग माने जाने वाले सरकारी कर्मचारी भी असंतुष्ट दिख रहे है। पिछले चुनाव में गरीबों को चावल बांटकर पुन: सत्ता की डगर करने वाले रमन सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना पर खाद्य सुरक्षा अधिनियम का परिपालन भारी पड़ सकता है। चुनाव के ठीक पहले प्रदेश में 42 लाख नए राशन कार्ड बनाने है। किंतु नए राशन कार्ड बनाने में हितग्राहियों को बेतरह परेशानी उठानी पड़ रही है। राशन कार्ड संबंधी हितग्राहियों की यह परेशानी रमन सरकार के लिए बड़ी कठिनाई का सबब बन सकता है। नए प्रावधान के तहत आधे से अधिक एपीएल हितग्राहियों को राशन कार्ड से वंचित होना पड़ेगा। राशन कार्ड नहीं बनने से व्यापक जन आक्रोश पनप रहा है। रमन सिंह को उन्हीं के मुद्दे पर घेरने की कांग्रेसी राजनीति को बकायदा केंद्र से सपोर्ट मिल रहा है। इन हालातों में भाजपा के लिए मिशन 2013 की डगर लोहे के चने चबाने जैसा होगा। एकजुटता व बगावत, चुनाव की असली सिरत छोटा राज्य होने की वजह से छत्तीगढ़ में 10-12 सीटों के अंतर से सरकार बनता बिगड़ता है। 90 सीटों में से लगभग 35-35 सीटें कांग्रेस व भाजपा के परंपरागत हैं। शेष सीटों में जीत-हार का फैसला प्रत्याशियों के चेहरे व सरकार का परफार्मेंस का प्रभाव पड़ता है। मौजूदा वक्त में कांग्रेस की एकजुटता दिख रही है। टिकट वितरण तक यह एका बरकरार रही तो बहुत हद तक कांग्रेस अपने परिवर्तन की यात्रा में मुकम्मल हो जाएगी। इसी तरह भाजपा को अपने विधायकों व मंत्रियों के प्रदर्शन के लिहाज से करीब दो दर्जन चेहरे बदलने होंगे। पिछले चुनाव की तरह भाजपा में प्रत्याशियों का चेहरा बदलना इस बार इतना आसान नहीं। यदि टिकट से वंचित लोग बगावत पर उतर आए, तो राह और भी कठिन हो जाएगी। आगजनी के बाद उखाड़ रहे गड़े मुर्दे ! - ग्रामीणों के खिलाफ प्रशासन व कंपनी एक साथ दुर्ग। जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी मलपुरी खुर्द में आगजनी की घटना के बाद ग्रामीणों के उस आक्रोश के गड़े मुर्दे बाहर निकल रहे हैं, जिन पर सरकारी मशीनरी ने पहले गंभीरता नहीं दिखायी। कम्पनी ने कानूनों का उल्लंघन करते हुये जितनी अनिमितताएं की है, सही मायनों में घटना के लिए वही प्रमुख दोषी है। साथ ही यदि प्रशासन ने कंपनी की गल्तियों पर पर्दा डालने के बजाए नियमपूर्वक कार्य किया होता तो इतनी बड़ी घटना सामने नही आती। कंपनी ने कदम-दर-कदम सरकार को धोखा देने का काम किया है, तो दूसरी ओर प्रशासन कदम मिला कर कंपनी के साथ चलता रहा है। कंपनी ने सस्ती जमीन के लिए सीमेंट प्लांट की जगह ही बदल दी। पहले यह प्लांट सेमरिया व नंदनी खुंदनी में लगना था। किंतु जमीन की कीमत अधिक होने के कारण मलपुरी में शिफ्ट कर दिया गया। इसी तरह प्लांट लगाने के लिए मलपुरी में कोई जनसुनवाई नहीं की गई। राज्य सरकार और कंपनी के बीच हुए एमओयू में हस्ताक्षर भी सेमरिया में प्लांट लगाने के नाम पर हुई थी। पर्यावरण मंत्रालय से कंपनी ने जो स्वीकृति हासिल की थी, उसमें भी मलपुरी का कहीं नाम ही नहीं था। प्रदेश की कृषि जमीनों को कंपनी ने इतने बेखौफगी से हथियायी, जैसे उसे किसी नियम कानून की कोई परवाह ही नही हो। जहां जमीन सस्ती मिली, कंपनी ने वहीं अपनी मर्जी से प्लांट लगा लिया। हादसे के बाद नक्सली टच देकर पुलिस ने मामले को दूसरा मोड़ दे दिया। नक्सली वारदात के नाम पर पुलिस प्रशासन व सरकार ने अपनी नाकामी भली-भांति छिपा ली। जिस वीरेंद्र कुर्रे को नक्सली बताकर जेल भेज दिया गया, वह ग्रामीणों के आंदोलन का अगुवा था। हाल के कुछ बरसों में जनहित के जुड़े कई जनआंदोलनों का उन्होंने अगुवाई की थी। यदि वह नक्सली था, तो अब तक खुला कैसे घूम रहा था। स्थिति ऐसे है कि औद्योगिक माफियाओं के खिलाफ लड़ाई लडऩे वाले को नक्सली ठहरा दिया जा रहा है। जानकारों के मुताबिक वीरेंद्र कुर्रे जुझारू ट्रेड लीडर हैं। बीएसपी में काम करते हुए कई बार श्रमिकों के हितों में अधिकारियों से वह उलझा है। मलपुरी के पीडि़त ग्रामीणों की जब सारे जनप्रतिनिधि, राजनेता व आला अधिकारियों ने नहीं सुनी, तब वीरेंद्र कुर्रे ईमानदारी से ग्रामीणों के साथ खड़े हुए और ग्रामीणों के दिल में जगह बनायी। कृषि भूमि का औद्योगिक डायवर्सन ? सीमेन्ट-पॉवर प्लाण्ट स्थापित करने वाली कम्पनी ने औद्योगिक प्रयोजन दर्शाकर जमीन खरीदने के बजाय कृषि प्रयोजन दर्शाकर जमीन खरीदी। पंजीयन शुल्क कम पटाकर राजस्व की क्षति पहुंचाई। जबकि प्रशासन का काम था कंपनी के कथनी व करनी पर नजर रखना तथा गलत होने पर शासन को उसकी सूचना देना। राज्य में कृषि जोत अधिकतम सीमा अधिनियम के प्रावधान प्रभावशील हैं, जिसके अनुसार कृषि भूमि धारण करने की अधिकतम सीलिंग निर्धारित है जो, 18, 36 एवं 54 एकड़ है, इसका उल्लंघन करते हुये, कम्पनी से सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि खरीदा, रजिस्ट्रार ने बयनामा का पंजीयन किया, पटवारी तथा तहसीलदार ने नामांतरण किया, किसी ने भी अधिनियम का पालन नहीं किया। कृषि जोत अधिकतम सीमा अधिनियम के अंतर्गत एक व्यक्ति/परिवार/संस्था द्वारा 54 एकड़ से अधिक भूमि धारित नहीं किया जा सकता। तब तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी क्यूए खान ने 405 एकड़ कृषि भूमि का औद्योगिक डायवर्सन कैसे कर दिया? .छ.ग. भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा-172 के अंतर्गत शासन द्वारा अधिसूचित सक्षम अधिकारी ही, कृषि भूमि का अन्य प्रयोजन हेतु डायवर्सन कर सकता है। सक्षम अधिकारी के लिये शासन द्वारा भूमि की अधिकतम सीमा भी निर्धारित की जाती है, अनुविभागीय अधिकारी को कृषि भूमि का डायवर्सन औद्योगिक प्रयोजन हेतु करने का अधिकार ही नहीं था। उनके द्वारा किया गया डायवर्सन अवैधानिक है। यह बात तत्कालीन कलेक्टर रीना कंगाले की जांच में प्रमाणित भी हुआ है। इसके बावजूद राज्य शासन ने अवैध डायवर्सन को डेढ़ वर्ष तक रद्द क्यों नहीं किया? फर्जी जनसुनवाई में ली स्वीकृति जेके लक्ष्मी सीमेन्ट-पॉवर प्लाण्ट ने ग्राम सेमरिया में उद्योग स्थापित करने के लिये पर्यावरण की स्वीकृति प्रदान करने का आवेदन किया था, केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के लिये राज्य प्रदूषण निवारण मण्डल ने जनसुनवाई का आयोजन किया। जनसुनवाई प्रस्तावित निर्माण स्थल पर ही होना था किन्तु मण्डल ने 7 जनवरी 2008 को निर्माण स्थल से 20 किमी.दूर धमधा में सुनवाई किया। जानबूझकर इसका प्रचार-प्रसार भी नहीं किया गया और फर्जी जनसुनवाई के आधार पर पर्यावरण मंत्रालय ने ग्राम सेमरिया में सीमेन्ट-पॉवर प्लांट के निर्माण के लिये 13 मई 2009 को स्वीकृति प्रदान किया। 13 मई 2009 को पर्यावरण स्वीकृति प्राप्त करने के मात्र 20 दिन बाद ही 5 जून 2009 को जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी ने ग्राम सेमरिया के स्थान पर ग्राम मलपुरी खुर्द में सीमेन्ट-पॉवर प्लांट के निर्माण की बात कहते हुये पर्यावरण स्वीकृति को तदानुसार संशोधित करने का आवेदन किया, जिसे स्वीकार करते हुये, केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने दुबारा पर्यावरण जनसुनवाई आयोजित किये बिना ही 27 फरवरी 2010 को स्वीकृति को संशोधित कर दिया। जबकि केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के परिपत्र 22 जनवरी 2010 के अनुसार जनसुनवाई के बाद उद्योग का स्थान परिवर्तन करने की स्थिति मेें पुन: जनसुनवाई आयोजित किया जाना था। लेकिन केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने स्वयं इसका पालन नहीं किया और13 मई 2009 के पर्यावरण स्वीकृति को ग्राम मलपुरी के ग्रामीणों को अपना पक्ष रखने का अवसर दिये बिना ही, संशोधित कर दिया। कम्पनी ने उद्योग का स्थान परिवर्तित करने की सूचना केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को 5 जून 2009 को दिया था और राज्य शासन के साथ 28 जुलाई 2010 के एमओयू. में हस्ताक्षर किया है, जिसमें उद्योग स्थापित करने का स्थान ग्राम सेमरिया में दर्शाया गया है, जबकि पर्यावरण मंत्रालय से संशोधित पर्यावरण स्वीकृति 27 फरवरी 2010 को जारी की गई है, फिर स्थान परिवर्तन की बात राज्य शासन से क्यो छिपाई गई? उद्योग के निर्माण का स्थान ग्राम सेमरिया से मलपुरी में स्थानांतरित करने की अनुमति किस अधिकारी ने कब दी? राज्य शासन के निर्देशानुसार, कृषि भूमि का औद्योगिक डायवर्सन करने पर निर्णय लेने के लिये जिलास्तरीय साधिकार कमेटी का गठन किया गया है, जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी द्वारा, कृषि भूमि का औद्योगिक डायवर्सन करने के लिये जिला साधिकार कमेटी के समक्ष आवेदन ही प्रस्तुत नहीं किया गया और जिला साधिकार कमेटी की मंजूरी के बिना ही, तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी द्वारा डायवर्सन कर दिया गया। ग्राम सभा का अनुमोदन नहीं ग्राम मलपुरी खुर्द में सीमेन्ट-पॉवर प्लांट के निर्माण की अनुमति ग्राम पंचायत से भ्रष्ट तरीका अपनाकर प्राप्त किया गया। पंचायती राज अधिनियम के प्रावधान के अनुसार, ग्राम पंचायत द्वारा प्रदत्त अनापत्ति प्रमाण-पत्र का अनुमोदन संबंधित ग्राम सभा में किया जाना आवश्यक है, किन्तु दो साल में भी ग्राम सभा का अनुमोदन नहीं लिया गया है। जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी द्वारा भवन निर्माण की अनुज्ञा किसी भी सक्षम अधिकारी से नहीं ली गई है, वैध अनुज्ञा के बिना ही, कम्पनी द्वारा पिछले तीन वर्ष से प्लांट का अवैध निर्माण किया जा रहा है।18 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले निर्माण के लिये हाई राईज कमेटी से अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य है। सीमेन्ट प्लांट की उंचाई 18 मीटर से अधिक होने के बावजूद इसकी अनुमति हाई राईज कमेटी से नहीं ली गई है। इस प्रकार निर्माण अवैध है। जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी ने मंदिर श्री रामचन्द्र जी के नाम की भूमि, खसरा नं. 36 रकबा 2.69 हेक्टेयर जिनके सर्वराकार राम प्रकाश माखन दास वैष्णव वगैरह और व्यवस्थापक कलेक्टर है, पर अवैध कब्जा कर लिया है। जिसे आज तक बेदखल नहीं किया गया है। आम रास्ते पर कब्जा जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी द्वारा निस्तार की भूमि ग्राम मलपुरी, गिरहोला, रास्ता जिसका खसरा नं. 1 रकबा 1.08 हेक्टेयर है पर अवैध कब्जा किया गया है और इसी भूमि पर प्लांट के एक भाग का निर्माण कर लिया है। वह भूमि राजस्व रिकार्ड और निस्तार पत्रक में वर्तमान में भी रास्ता के रूप में ही दर्ज है। ग्रामीणों के व्यापक विरोध के बावजूद, पटवारी एवं तहसीलदार ने, छ.ग. भूराजस्व संहिता 1959 की धारा-131 से 134 के अंतर्गत बेदखल करने, दण्डित करने की कार्यवाही करने के बजाय एक परिवर्तित रास्ते का निर्माण करा दिया। रास्ता अवरूद्ध करना दण्डनीय अपराध है। मलपुरी के ग्रामीणों ने 11 फरवरी 2012 एवं 2 मार्च 2013 को थाना नन्दनी नगर में लिखित में शिकायतें दर्ज कराया है, जिस पर पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही नहीं किया गया। जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी द्वारा अपने माईनिंग लीज क्षेत्र में ग्राम सेमरिया से ग्राम नन्दनी खुन्दनी, मार्ग पर भी अवैध कब्जा किया गया है। कम्पनी द्वारा माईनिंग लीज क्षेत्र और प्लांट क्षेत्र के ग्राम नन्दनी खुन्दनी, पिटौरा, धिकुरिया, सेमरिया, मलपुरी और खासाडीह में अनेक आदिवासियों की भूमि पर अवैध कब्जा कर लिया है। कम्पनी द्वारा जल शुल्क पटाये बिना ही भूजल का अवैध रूप से उपयोग किया गया है। कम्पनी द्वारा ग्राम मलपुरी खुर्द के खसरा नं. 1, 2, 5, 6, 9, 18, 19, 25, 26, 27, 30, 35, 40 रकबा 1.53 हे. शासकीय निस्तार/घास/रास्ता की भूमि पर अवैध कब्जा किया गया है। इसी प्रकार ग्राम खासाडीह के खसरा नं. 56/1, 56/2, 56/3, 76/1, 76/8, 84, 108, 109, 458/2, 12/1, रकबा 12.53 पर भी अवैध कब्जा किया गया है। शासन-प्रशासन द्वारा शासकीय भूमि को कब्जा मुक्त कराने का कोई प्रयास नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय एवं कानूनी अड़चनों के कारण, शासकीय निस्तार/घास/रास्ते की भूमि को लीज पर आबंटित नहीं किया जा सकता। अत: जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी को लाभांवित करने के लिये, कम्पनी के अवैध कब्जे वाली भूमि को, जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र को औद्योगिक प्रयोजन हेतु आबंटित करने के लिये, अर्जित किया जा रहा है। न्यायालय नायब तहसीलदार धमधा के समक्ष यह प्रकरण रा.प्र.क्र. 1-अ-19 वर्ष 2011-12 के रूप में दर्ज है। छीनी जमीन, लगी बद्दुआ फेक्ट्री एक्ट 1948 के प्रावधानों के अनुसार सुरक्षा की दृष्टि से यह आवश्यक है कि फेक्ट्री के ड्राईंग-डिजाईन का अनुमोदन सक्षम अधिकारियों से कराया जाये। कम्पनी द्वारा इसका पालन नहीं किया गया है। कम्पनी द्वारा ग्राम मलपुरी में शासन द्वारा 9 भूमि हीनों को आबंटित 5.17 हेक्टेयर भूमि पर और ग्राम खासाडीह में 25 भूमिहीनों को आबंटित 10.37 हेक्टेयर आबंटित भूमि और श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर की 19.44 हेक्टेयर भूमि पर अवैध कब्जा किया गया है। चूंकि आबंटित भूमि तथा मंदिर की भूमि का क्रय-विक्रय नहीं किया जा सकता है, अत: जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी को लाभांवित करने के लिये शासन ने अनिवार्य भूअर्जन अधिनियम 1894 के अंतर्गत भूअर्जन करने की कार्यवाही शुरू कर दिया है। कम्पनी द्वारा माईनिंग क्षेत्र के ग्राम सेमरिया में लगभग 65 एकड़ शासकीय घास/चारागाह की भूमि पर अवैध कब्जा किया गया है। जे.के.लक्ष्मी सीमेंट कम्पनी को लाभांवित करने के लिये राज्य शासन ने कृषि जोत अधिकतम सीमा अधिनियम को संशोधित करके सीलिंग की सीमा को ही समाप्त कर दिया है। प्रबंधन के इशारे पर चल रही पुलिस छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी मलपुरी खुर्द में आगजनी के लिए गिरफ्तार ग्रामीणों को निर्दोष ठहराते हुए रिहा करने की मांग की है। मंच ने कहा कि जमीन की खरीदी बिक्री में हुये धोखाधड़ी और कम्पनी में स्थाई नौकरी की मांग को लेकर आक्रोशित ग्रामीणों के आंदोलन की आड़ में कम्पनी के वाहनों मशीनरी और उपकरणों में आग प्रबंधन के इशारे पर उन्हीं के लोगों द्वारा लगाई गई है। आगजनी में कम्प्यूटर में दर्ज सभी रिकार्ड भी नष्ट हो गये हैं या नष्ट करा दिया गया है। आशंका है कि कम्पनी में करोड़ों की हेरा-फेरी और घोटाला हुआ है, जिनमें प्रबंधन के जिम्मेदार लोग लिप्त हो सकते हैं, जिनके सबूतों को मिटाने के लिये ही सारे रिकार्ड जलाये गये हैं। पुलिस ने जिन ग्रामीणों को अभियुक्त बनाया है, उनमें से कुछ आगजनी की घटना के चश्मदीद गवाह भी है, जिन्हें प्रबंधन के निर्देश पर पुलिस ने गिरफ्तार किया है। ताकि वे आगजनी की घटना के लिये दोषी के खिलाफ न्यायालय में गवाही न दे सकें। शासन-प्रशासन पर उक्त आरोप लगाते हुये छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने आगाह किया है कि यदि निर्दोष ग्रामीणों को शीघ्र ही रिहा नहीं किया गया तो मलपुरी एवं आस-पास के अन्य गांव के ग्रामीण सहित मंच के कार्यकर्ता जबरदस्त प्रदर्शन करेंगें। मंच के केन्द्रीय प्रवक्ता राजकुमार गुप्त ने कहा कि जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी प्रबंधन ने प्लांट में स्थानीय बेरोजगारों को नौकरी देने की जिम्मेदारी से स्पष्ट रूप से इंकार करके ग्रामीणों के आक्रोश को बढ़ाने का कार्य किया है। प्लांट के निर्माण कार्य के लिये 800 श्रमिक अन्य प्रांत से लाये गये हैं। इसे कम्पनी प्रबंधन ने स्वयं स्वीकार किया है। आगजनी की घटना स्थल का सर्वे करने के बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह ने अपने बयान में स्वयं कहा है कि छत्तीसगढ़ के लोग शांतिप्रिय हैं और घटना में बाहरी लोगों का हाथ है। पुलिस ने प्लांट परिसर के अंदर ही रहने वाले 800 बाहरी लोगों के घरों की तत्काल तलाशी क्यों नहीं लिया? महिला मंच की प्रदेश अध्यक्ष रीति देशलहरा एवं किसान मंच के हेमू साहू पीडि़त ग्रामीणों के सतत संपर्क में हैं और उन्हें ढाढस बंधाने का कार्य कर रहे हैं, ग्रामीणों ने उन्हें घटना की सच्चाई से भी अवगत कराया है। बाहरी हाथ तो स्थानीय अंदर क्यों? -कांग्रेस ने उठाए सवाल जे.के. लक्ष्मी सीमेन्ट मामले में स्थानीय लोगो के हितो की उपेक्षा, प्रशासन की लापरवाही और जमीन दलालों को सरकारी संरक्षण को घटना के लिये जिम्मेदार ठहराते हुये प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल और कांग्रेस विधायक दल के नेता रविन्द्र चौबे ने मांग की है कि जब मुख्यमंत्री रमनसिंह स्वयं बयान दे चुके है कि इस घटना में बाहरी लोगो का हाथ है इसलिये गिरफ्तार सारे स्थानीय लोगो को तत्काल रिहा किया जायें। राज्य सरकार के मुख्यमंत्री के बयान के बाद एक भी स्थानीय व्यक्ति को गिरफ्तार रखने का पुलिस को कोई अधिकार नहीं है। जब एडीजी स्तर के अधिकारी को जांच सौपी गयी है तो गिरफ्तारियां छोटे पुलिस अधिकारी कैसे कर रहे है? किसके कहने से कर रहे है? रात को तीन-तीन बजे घरो से गांव वालों को मारते हुये घसीट कर ले जाया गया। गांव वाले भाग गये है। दुध मुंहे बच्चों वाली मातायें और नव युवतियां तक पुलिस के दुव्र्यवहार का षिकार हुई है। अत्याचार, प्रताडऩा और बदजुबानी में भाजपा सरकार की पुलिस ने जनरल डायर को भी पीछे छोड़ दिया है। नेताद्वय ने कहा कि जे.के. लक्ष्मी सीमेन्ट के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर चौकसे द्वारा यह कहा जाना कि दलालों के माध्यम से खरीदी गयी जमीन के मालिक रहे किसानों को नौकरी नहीं दी जायेगी। जेके लक्ष्मी सीमेन्ट के डायरेक्टर चौकसे का यह बयान इस बात का जीता-जागता प्रमाण है कि भदौरा की तरह और छत्तीसगढ़ में स्थापित हो रहे अन्य उद्योगों की तरह जे.के. लक्ष्मी सीमेन्ट के प्लांट के लिये भाजपा सरकार का राजनैतिक संरक्षण प्राप्त दलालों ने किसानों की जमीन औने-पौने दामों मे हड़पी। मलपुरी की घटना के बाद जेके लक्ष्मी सीमेन्ट कंपनी द्वारा लगातार भड़काऊ वाले बयान दिये जा रहे है। डायवर्सन घोटाला जेके लक्ष्मी सीमेंट की जमीन को डायवर्सन के मामले में जमकर लेन-देन और भारी गड़बडिय़ों का आरोप लगाते हुए कांग्रेस ने कहा है कि जेके लक्ष्मी सीमेंट को जमीन का डायवर्सन गैर कानूनी है। जे.के लक्ष्मी सीमेंट की जमीन के डायवर्सन के मामले मे हर सरकारी कानून तोड़ा गया है। जेके लक्ष्मी सीमेन्ट मामले में जमीनों की खरीद में सीलिंग एक्ट का उल्लंघन खुलेआम हुआ है। प्लांट के गलत निर्माण के लिये जिम्मेदार कंपनी के मालिको, डायरेक्टरो और अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिये। छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा कानून राशन कार्ड न बन जाए जी का जंजाल - तीन रंग के बनेंगे कार्ड रायपुर/ दक्षिणापथ छत्तीसगढ़ सरकार अपनी जिस सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पूरे देश में रोल मॉडल होने का दंभ भर रही है, कहीं ऐसा न हो कि आगामी चुनाव में वही पीडीएस सरकार पर भारी पड़ जाए। क्योंकि वर्तमान जमीनी हालात में लोगों को कार्ड बनवाने के लिए कई तरह के पापड़ बेलने पड़ रहे हैं। विभाग द्वारा पिछले वर्ष कार्ड सत्यापन के नाम पर नया कार्ड बनाने और स्मार्ट कार्ड जारी करने को लेकर हितग्राही साल भर से परेशान हैं।... और अब खाद्य सुरक्षा कानून की रोशनी में राशन कार्ड के लिए सरकार ने नया फंडा तय कर दिया है, जिससे हितग्राहियों की परेशानी और भी बढ़ गई है। लिहाजा हितग्राहियों में नाराजगी बढ़ी हुई है। कार्ड बनाने के लिए तय किये गए नए मापदंड से एपीएल सहित ऐसे बहुसंख्य परिवार अलहदा रह जाएंगे, जो सही मायनों में राशन कार्ड के लिए पात्र हैं और जिन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। लेट-लतीफी और सरकार द्वारा निर्धारित क्राईटेरिया के चलते कार्ड से वंचित तबकों में सरकार के प्रति गुस्सा फूटना तय है। चुनाव के ठीक पहले विरोधी दल सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में राशन कार्ड के मसले का असरदार ढंग से इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि दुष्प्रचार की हवा बह पड़ी तो सरकार को लेने के देने पड़ जाएंगे। ज्ञातव्य है, छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा कानून के अंतर्गत जारी किए जाने वाले नए राशन कार्ड तीन रंग के होंगे। अंत्योदय परिवारों के लिए गुलाबी, प्राथमिकता वाले परिवारों के लिए नीला एवं सामान्य परिवारों को भूरे रंग का राशन कार्ड जारी किया जाएगा। नए राशनकार्ड बनाने के लिए नगरीय क्षेत्रों में वार्ड तथा ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों में आवेदन लिए जा रहे हैं। आवेदन पत्र 30 अप्रैल तक लिए जाएंगे। विभागीय सूत्रों के मुताबिक नए राशन कार्ड बनाने के लिए सभी जिलों में दल गठित कर शिविर लगाए जा रहे है। नगरीय संस्थाओं के हर वार्ड एवं ग्रामीण क्षेत्रों में सभी ग्राम पंचायतों में आवेदन लिए जा रहे हैं। अंत्योदय परिवारों को गुलाबी राशन कार्ड अंत्योदय परिवारों को गुलाबी रंग का राशन कार्ड जारी किया जाएगा। इस समूह में बैगा, पहाड़ी कोरबा, बिरहोर, कमार, अबुझमाडिय़ा जनजाति के समस्त परिवार। परिवार का मुखिया जो लाइलाज बिमारी जैसे कैंसर, एड्स, कुष्ठ रोग, सिकलसेल एनीमिया और टीबी से पीडित हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में इंदिरा आवास सर्वे सूची में या शहरी क्षेत्रों में शासकीय योजनाओं के आवासहीन के रूप में दर्ज परिवार। इसके साथ ही परिवार का मुखिया यदि नि:शक्त है, मुखिया की आयु 60 वर्ष या उससे अधिक तथा उसके पास आजिविका के साधन नहीं हैं, विमुक्त बंधुवा मजदूर ऐसे परिवार जिसकी मुखिया विधवा या एकांकी महिला है शामिल किया गया है। नीला व भूरा राशन कार्ड प्राथमिकता वाले समूह में भूमिहीन मजदूर, सीमांत 2.5 एकड तक के भू-स्वामी अथवा लघु कृषक परिवार (पांच एकड़ के भू-स्वामी परिवार), असंगठित कर्मकार समाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008 के रूप में पंजीकृत अथवा सन्निर्माण कर्मकार अधिनियम 1996 के तहत पंजीकृत श्रमिक होना चाहिए। इस समूह को नीला रंग का राशनकार्ड जारी किया जाएगा। सामान्य परिवारों को भूरे रंग का राशन कार्ड जारी किया जाएगा। सामान्य परिवार के लिए आवश्यक है कि ऐसे परिवार का मुखिया या परिवार का कोई सदस्य आयकरदाता न हो, ऐसे परिवार जिनके पास गैर अनुसूचित क्षेत्र में 4 हेक्टेयर से अधिक सिंचित भूमि या आठ हेक्टेयर से अधिक असिंचत भूमि न हो। ऐसे समस्त परिवार जो नगरीय क्षेत्रों में ऐसा पक्का मकान नहीं है जो एक हजार वर्ग फ ीट से अधिक क्षेत्रफल का हो। साथ ही दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी मानदेयी तथा चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को छोड़कर केन्द्र एवं राज्य सरकार के विभागों तथा सार्वजनिक उपक्रमों निगम मंडलों व स्वशासी संस्थाओं तथा स्थानीय निकायों में स्थायी अथवा संविदा कर्मचारी न हो। महिला मुखिया के नाम से बनेंगे कार्ड नए राशन कार्ड परिवार में 18 वर्ष या उससे अधिक आयु की महिला मुखिया के नाम से जारी किए जाएंगे। परिवार में महिला सदस्य नहीं होने या 18 वर्ष की कम आयु के महिला सदस्य होने पर पुरूष मुखिया द्वारा आवेदन पत्र भरा जाएगा। राशन कार्ड शिविर में आवेदकों को भरे हुए आवेदन पत्र, आवश्यक दस्तावेज और वर्तमान में यदि कोई राशनकार्ड जारी हुआ है तो उसे लेकर दल के समक्ष उपस्थित होना होगा। राशन कार्ड हेतु परिवार का अर्थ गृहस्थ है जिसमें पति पत्नि एवं अनके अविवाहित बच्चे (वयस्कों सहित) तथा जिनका घर एवं रसोई घर एक है। ०००००

Thursday 4 April 2013

1-15 अप्रैल 2013

नया जिला, नया खेल! भूमिहीन होते आदिवासी गुनाहगार कौन?  

दक्षिणापथ/बालोद जिस उम्मीद व भावनाओं के साथ बालोद को जिला बनाने का सपना क्षेत्र के लोगों ने देखा था, सवा साल बीतते-बीतते वह टूट गया। खनिज संसाधन से भरपूर एवं आदिवासी बाहुल्य वाले बालोद को आदिवासी जिला बनाने की मांग भी उठी थी। यद्यपि आदिवासी जिले का दर्जा तो नहीं मिला, मगर उसी समाज के अमृत खलको को बालोद जिले का पहला आदिवासी कलेक्टर बनाकर शासन ने क्षेत्रीय जनभावनाओं का मान रखा। किंतु इन्हीं सवा सालों में बालोद जिले की जो दुर्गती हुई, शायद वह कई सालों के इतिहास में नहीं हुआ था। आंखफोड़वा कांड व आमाडूला के सरकारी आश्रम में बच्चियों से यौन शोषण के बाद षडयंत्र रचकर आदिवासियों के जमीन बेच देने का मामला इसकी ताजा कड़ी है। प्रदेश भर में बालोद संभवत: अकेला ऐसा जिला होगा, जहंा सिर्फ 11 महीने में 14 आदिवासियों की जमीन बिक्री के प्रकरण स्वीकृत किए गए। अन्य जिलों में जबकि आदिवासियों की जमीन खरीदने का आवेदन सालों-साल गुजर जाते हंै, पर स्वीकृत नहीं होते। फिर बालोद में एकमुश्त स्वीकृति कैसे मिली? क्या जमीन खरीदने वाले सारे लोगों के रसूखदार व सत्ता से जुड़े होने की वजह से दबाव अथवा प्रलोभन में प्रशासन ने स्वीकृति दे दी। हालांकि खरीदी-बिक्री को नियमपूर्वक होना बताकर प्रशासन अपना पल्ला झाड़ रही है, मगर असली सवाल अभी भी वही है। क्या इसीलिए आदिवासी बाहुल्य बालोद को जिला बनाया गया था ताकि प्रशासन पर प्रभाव डालकर आदिवासियों से जमीन खरीद सकें। उधर विधानसभा में मामला उठाकर विपक्ष ने भी अपने कत्र्तब्यों की इतिश्री कर ली है। आदिवासियों को भूमिहीन करने के इस साजिश में जिस तीखे तेवर से लड़ाई की दरकार थी, विपक्ष ने उसे कहीं पूरा नहीं किया। ऐसा लगता है कि एक जैसे हितों को लेकर सारे धनिक व रसूखदार वर्ग एक ओर हो गए हैं, और बहला-फुसला कर या सहिष्णुता का प्रलोभन देकर आम आदिवासी की जमीन छीनने के फेर में जुटे हैं। श्रेष्ठि वर्ग में शामिल आदिवासी कलेक्टर भी इस कड़ी में उनका साथ निभा रहे हैं। सत्ताधारी दल से जुड़े नेता एवं रायपुर, धमतरी, गुंडरदेही के कारोबारी ज्यादा से ज्यादा आदिवासियों की जमीन खरीदने की कवायद में लगे हैं। सूत्रों के मुताबिक बालोद जिले में 2 अप्रैल 12 से जनवरी 2012 के बीच कलेक्टर के सम्मुख आदिवासियों की जमीन विक्रय के 29 आवेदन मिले हैं। इनमें से 14 प्रकरणों को कलेक्टर ने मंजूरी दी। इनमें से 8 आदिवासियों की जमीन उच्च वर्ग से जुड़े लोगों ने खरीदी है। खरीदारों में गुंडरदेही के भाजपा नेता प्रमोद जैन की पत्नी अलका जैन व पुत्र अंकित जैन भी शामिल हैं। उनकी पत्नी व पुत्र के नाम पर कुल 1.90 करोड रूपए में गुडरदेही के वार्ड चैनगंज के पटवारी हल्का 23 में .50 हेक्टेयर जमीन खरीदी गई। यह जमीन धीरपाल पिता गेंद सिंह से खरीदी गई। गुरूर व गुंडरदेही, चिचबोड़, रेंगाकठेरा, बरबसपुर, दुधली, चंदन बिहरी, सतमरा, पेरपार, कांदुल, धोना, अछोली, डौंडीलोहारा, मर्री, बघेली आदि गांवों की जमीन विक्रय का आवेदन कलेक्टर के समक्ष लगाया गया है। विक्रय के सभी प्रकरणों में रायपुर, धमतरी, गुंडरदेही के ही कारोबारियों ने जमीन क्रय की है। जमीन विक्रय में जिस ढंग से ताबड़तोड़ स्वीकृति दी गई, वह संदेहास्पाद है। हालांकि इस मामले में अभी बड़े पैमाने पर घोटाले का खुलासा नहीं हुआ लेकिन नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे द्वारा विधानसभा में उठाए जाने यह मामला सुर्खियों में आ गया है। विधानसभा में सरकार द्वारा रखे गए जवाब पत्रक के अवलेाकन से स्पष्ट है कि जमीन के विक्रेता एक ही परिवार के हैं। कलेक्टर द्वारा विक्रय के लिए स्वीकृति किए गए प्रकरणों के अनुसार विक्रय के लिए भले ही आदिवासियों ने अपने हस्ताक्षर से आवेदन दिए हैं, लेकिन उनके आवेदन स्वीकृत कराने के लिए भाजपा के बड़े नेताओं ने ऐड़ी-चोटी का जोर लगाया। अन्यथा गरीब आदिवासी के आवेदन प्रकरण पर इतनी जल्दी सुनवाई कम से कम इस राज्य में तो नहीं हो सकता। गुरूर व गुंडरदेही के आदिवासियों की विक्रित जमीन का आकार .02 हेक्टेरयर से लेकर 2.01 हेक्टेयर तक है, जिसकी कीमत तीन से 50 लाख रू तक है। बहरहाल इस मामले की जांच गहरायी से की जाती है तो किसी बड़े जमीन घोटाले का खुलासा हो सकता है। इन्होंने खरीदी जमीन आदिवासियों की जमीन खरीदने वालों में अंकित जैन पिता प्रमोद जैन, अल्का जैन पत्नी प्रमोद जैन गुंडरदेही, सुनीता अग्रवाल पति गुलाब सिंह अग्रवाल रायपुर, पवन गोयल पिता प्रभाती गोयल धमतरी, वृषभ जैन पिता मोहनलाल जैन धमतरी, कामन जैन पति दीपक जैन धमतरी, सपन कुमार पिता उत्तम जैन गुंडरदेही, जयंती जैन पति उत्तम जैन गुंडरदेही, मनोज कुमार पिता माधोलाल खंडेलवाल गुंडरदेही, अजय किरी पिता मोहन लाल धमतरी, सुनील कुमार पिता श्याम लाल चिचबोड़ एवं अब्दुल सलाम पिता अब्दुल सत्तार रायपुर शामिल हैं। इनके अलावा गुंडरदेही के हरीश कुमार सोनकर व कमल किशोर सोनी भी खरीदारों में शामिल हैं। 11 महीनें, 29 प्रकरण आदिवासियों की जमीन विक्रय के मामले की शुरूआत दुर्ग से अलग होकर बालोद जिला बनने के एक-दो महीने बाद ही हो गई। इस मामले में पहला आवेदन चैनगंज गुंडरदेही निवासी मौती सिंह पिता कपिल सिंह ठाकुर का था। जिसने बालोद जिला बनने के कुछ समय बाद फरवरी- मार्च 12 में आवेदन जमा किया। जिसे कलेक्टर ने 4 अप्रैल 12 को स्वीकृति दी। अब तक 11 महीने में 29 आवेदन मिले हैं, जिनमें से 14 स्वीकृत हो गए हैँ। सरकारी कानून जमीन बचाने नाकाफी... हाल के बरसों में तेजी से भूमिहीन होते गए आदिवासी वर्ग को जमीन से वंचित होना न पड़ जाए, इसलिए सरकार ने आदिवासियों की जमीन खरीदी-बिक्री की प्रक्रिया सख्त बना रखी है। निरक्षर, पिछड़े व विकास की धारा से दूर रह रहे आदिवासी वर्ग दूसरों के बहकावें में या अन्य प्रलोभन में आकर औने-पौने दाम में अपनी जमीन बेच देते हैें। बाद में वह भले ही भूमिहीनों की श्रेणी में आ जाते और अपनी ही जमीन पर मजदूरी करने बाध्य हो जाते है। तमाम सरकारी सख्तियों के बावजूद आज भी आदिवासियों की जमीनें खरीदी जा रही है और यह वर्ग अपनी ही जमीन पर भूमिहीन होता जा रहा है। संभवत- आदिवासियों की जमीन बिक्री का सरकारी कानून उनकी जमीनें बचाने के लिए काफी नहीं है। इसीलिए आदिवासियों की हित व उनकी जमीन को बचाने की मंशा से ही पेशा कानून का क्रियान्वयन करने की मांग लम्बे समय से की जा रही है। टुकड़ों में विक्रय की आशंका कलेक्टर के सम्मुख रखे गए अधिकांश मामलों में ऐसा लगता है कि जमीनों का विक्रय टुकड़ों में किया गया। इसके लिए संभवत: नामांतरण की प्रक्रिया अपनाई गई। गुरूर ब्लाक के ग्राम चिटौद में 0.21 व 0.28 हेक्टेयर जमीन क्रमश: मंकुंदी बाई पति मिलऊ गोड़ व धनमत पिता मिलऊराम एक ही परिवार की हैं। जिसे संभवत: नामांतरण के माध्यम से विक्रय किया गया। इसी तरह के कुछ और प्रकरण भी सामने आए हैं। इसके पीछे मकसद राजस्व नियमों से बचना हो सकता है। 

 विधायकों का वेतन और आम आदमी की तकलीफ दक्षिणापथ /भिलाई छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा विधायकों के वेतन आठवीं बार बढ़ाए जाने पर राज्य के आमलोगों में तल्ख प्रतिक्रिया है। आम लोगों का मानना है कि राज्य में शिक्षाकर्मी, मितानिन, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मध्यान्ह भोजन कर्मी, स्वास्थ्य कार्यकर्ता श्रमिक, कर्मचारी और किसान, उचित पारिश्रमिक एवं वेतन के लिये संघर्ष कर रहे हैं, उनकी जायज मांगों को पूरा करने के बजाय सरकार ने दमन का रूख अपनाया। इससे स्पष्ट होता है कि विधायक आम जनता के जीवन स्तर में सुधार करने का प्रयास न करके अपने सुख सुविधा की चिन्ता कर रहे हैं। वेतन बढ़ाने संबंधी सरकारी फैसले पर विपक्षी कांग्रेस के विधायकों ने भी कोई विरोध नहीं जताया, बल्कि टेबल बजाकर तुरंत हर्षित ध्वनि से इसकी सहमति दे दी। अपना वेतन एवं अन्य भत्ते बढ़ाने का फैसला लेने में विधायकों ने चंद मिनट का वक्त भी नहीं लिया। पांच साल विधायक रहने के उपरांत हजारों रूपए पेंशन का पात्र बना देने का नियम सविंदा में काम कर रहे राज्य के उन हजारों कर्मचारियों के मुंह पर तमाचा है, जो ताउम्र संविदा नौकरी करते रहेंगे और नौकरी के बाद पेंशन भी नसीब नहीं होगा। इस मुद्दे पर दक्षिणापथ ने जब समाज के विविध वर्गों से चर्चा कर उनकी प्रतिक्रिया पूछी, तो किसी ने भी सरकारी निर्णय का समर्थन नहीं किया। बल्कि अपनी ओर से कई ज्वलंब सवाल भी उठा दिये। 16 सालों से शिक्षाकर्मी की नौकरी कर रहे पाटन निवासी सुनील नायक का कहना है कि सरकार को सिर्फ अपनी चिंता है। सरकार के एक विधायक परेश बागबहरा ने विधायकों के वेतन वृद्धि को नाकाफी निरूपित करते हुए यह भी कहा कि उनके 50 हजार रू हर महीने लोगों को चाय पिलाने में ही खर्च हो जाते हैं। श्री नायक ने सवाल उठाया कि विधायक बन जाने के बाद उनकी चाय इतनी महंगी क्यों हो जाती है? आरक्षण कटौती के मसले पर अछोटी की महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता सुरेखा साहू कहती है कि सरकारी नौकरियों की धूमिल संभावनाओं के बीच सरकार आरक्षण का कार्ड खेल कर अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग को बेवजह उलझा रही है। निजीकरण और ठेकेदारी के इस युग में वैसे भी आरक्षण का वास्तविक लाभ किसी भी वर्ग को नहीं मिलेगा। जल, जंगल, जमीन और खनिज के बेतहाशा दोहन से आमजनता का ध्यान भटकाने के लिये आरक्षण का मुद्दा उछाला गया है। टीए का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद जब बीएसपी ने नौकरी नहीं दी, तब जीवन गुजारने के लिए मुरमुंदा (धमधा) में पान का दुकान लगा लेने वाले मोहन चंदेल इस बार भी खूद को छला हुुआ महसूस कर रहा है। उनका कहना है कि भिलाई इस्पात संयंत्र में श्रमिकों के सभी पदो पर स्थानीय रोजगार कार्यालयों के माध्यम से नियुक्ति देना चाहिए। इस बार भर्ती नियम को बदल कर बीएसपी ने स्थानीय लोगों से छल किया है। जगदलपुर में इलेक्ट्रिक दुकान चलाने वाले महेंद्र ठाकुर ने नगरनार बस्तर में एनएमडीसी के प्रस्तावित स्टील प्लांट की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी निजी क्षेत्र को बेचे जाने का विरोध करते हुए कहा कि निजीकरण से स्थानीयों की उपेक्षा तय है। सरगुजा निवासी दिनेश कुशवाहा ने कहा कि उत्तरप्रदेश के सोनभद्र जिला, झारखण्ड के बाराडीह में कनहर नदी में और बिहार के पलामू रोहतास जिलों के बीच सोन नदी में इन्द्रपुरी जलाशयों के निर्माण के कारण सरगुजा संभाग के सैकड़ों गावों के डूबान से प्रभावित होने हजारों आदिवासियों के विस्थापन होगा। यही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के आरक्षित वनों और कोलियारी में गंभीर नुकसान होगा। रायगढ़ के आरटीआई एक्टिविस्ट प्रदीप खंडेवाल कहते हैं कि दीर्घकालीन हितों के बजाए राज्य सरकार वोट के तत्कालिन लाभ-हानि पर ज्यादा गौर कर रही है। उनका कहना है कि राज्य सरकार को पड़ोसी राज्यों पर बांधों की उंचाई कम करने के लिये दबाव बनाना चाहिए। नहीं तो छग को भविष्य में भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। बहुत सारी खेती की जमीन डूबान में चली जाएगी, और उस पानी पर भी राज्य का अधिकार नहीं होगा। सरकारी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण का विरोध करते हुए गंडई(कवर्धा) निवासी रितेश अग्रवाल कहते हैं कि निजीकरण के बूते आम जनता का जीवन स्तर उपर नहीं उठा सकता। गंडई में मेडिकल स्टोर्स चलाने वाले रितेश अग्रवाल स्वयं एमकाम तक शिक्षित हैं। जीईसी, रायपुर में आठवें सेमेस्टर की छात्रा प्रणीति जैन ने स्थाई प्रकृति के सभी कार्यो में श्रमिकों-कर्मचारियों को स्थाई नियुक्ति पर बल देते हुए कहा कि इससे रोजगार बढ़ेगा। गिरौदपुरी ग्राम पंचायत में पंच विजय देशलहरे अनुसूचित जाति के आरक्षण कटौती को व्यर्थ निरूपित करते हुए कहते हैं कि वर्तमान समय में आरक्षण का लाभ कुछ लोगों को ही मिल पाता है। देखा गया है, अब तक जिन लोगों ने इसका लाभ लिया भी है, उन लोगों ने समाज के बजाए अपनी निजी स्वार्थों को तवज्जों दिया। कई लोगों ने आरक्षण के चलते नौकरी पाने के बाद समाज से नाता तोड़ लिया और अपने लिए पत्नी दीगर समाज से लाया। श्री देशलहरे का कहते हैं- लगभग 32 सालों से राजनीति से जुड़ा हूं। अपनी जाति के लिए हम लोगों ने संघर्ष किया, मगर जिन्हें फायदा मिला.. उन लोगों ने ही हमारे समाज को त्याग दिया। ऐसे में संघर्ष का क्या मतलब रहा। अपने एक निकटवर्ती रिश्तेदार का उदाहरण देते हुए श्री देशलहरे ने बताया कि दुर्ग से 32 किलोमीटर की दूरी पर जामगांव रोड पर स्थित छोटे से गांव गाड़ाडीह में ससुराल गई उनकी एक बहन ने बड़ी मुश्किल से अपने छोटे बेटे को पालीटेक्निक की शिक्षा दिलायी। छग विद्युत मंडल में जूनियर इंजीनियर के पद पर उसकी नौकरी भी लगी। मगर आज उस बेटे ने एक स्वर्ण युवती से शादी कर ली, और अपने परिवार को भूल गया। यहंा तक अपनी एकमात्र बहन की शादी में भी वहंा शामिल होने नहीं आया। आरक्षण का लाभ उठा कर बड़ा आदमी बन जाने वाले समाज के लोग ही समाज को भूल जाते हैं। फिर ऐसे आरक्षण का क्या लाभ... ? राज्य में तीसरे विकल्प की दरकार व्यक्त करते हुए ग्राम पंचायत मर्रा के सरपंच होरीलाल वर्मा कहते हैें अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये 27 प्रतिशत आरक्षण और राज्य में संविधान की 5वीं अनुसूची, पेसा कानून और वनाधिकार अधिनियम के प्रावधानों का पालन जरूरी है। ---------------------------

दक्षिणापथ 1 से 15 april 2013

कहां जाए भाजपा-कांग्रेस से नाराज मतदाता? - दूर की कौड़ी तीसरा मोर्चा दक्षिणापथ डेस्क छत्तीसगढ़ के लोगों ने पिछले दस सालों से सत्ता बदल कर जो परिवर्तन किया था, दूसरे कार्यकाल के अंतिम बरस में वह कच्चा घड़ा साबित होने लगा है। अभी नहीं तो कभी नहीं की तर्ज पर प्रदेश के प्रमुख जाति वर्ग सरकार पर दबाव बनाने का उपक्रम शुरू कर दिए हैं। किंतु यूं लगता है कि सरकार को मतदाताओं के विभिन्न वर्ग तबकों से मिल रहे घुड़कियों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। चुनाव से आठ-दस महीने पहले से ही सरकार ने ऐसा चुनावी चश्मा पहन लिया है, जिसमें हर मूवमेंट उसे राजनीति प्रेरित प्रतीत होती है। 65 सालों के गणतंत्र ने भारतीय मतदाता वर्ग की राजनीति करने वाले लोगों को इतना होशियार बना दिया है कि चुनावी वर्ष में हर कोई बंदर घुड़की देने पर उतर आता है। लेकिन सरकार चलाने वाले उनसे भी अधिक चालाक हो गए, जो चुनावी बरस में आंख मूंद कर बैठ जाना ज्यादा मुनासिब समझते हैं। छत्तीसगढ़ में आरक्षण एवं सत्ता में भागीदारी के मसले पर चले रहे वर्ग विक्षोभन का आंदोलन बंटे हुए समाज की मुश्किल परिणति की बानगी है। चाहे वह राज्य के पिछड़े वर्ग हो, या आदिवासी या फिर अनुसूचित जाति,.. सभी समाजों में सरकार के खिलाफ नाराजगी का माहौल तो जरूर बन गया है मगर वह सरकारी निर्णयों के स्तर को छूने की स्थिति में अभी भी नहीं पहुंचा सका है। कारण सीधा है, बंटा हुआ समाज...। समाज चाहे किसी भी वर्ग का हो, मुश्किलें एक है। लब्बोलुआब यह है कि सारे वर्ग एक ओर, और स्टेट दूसरी ओर। समाज के विविध तबको में तालमेल दरअसल हमारे सिस्टम का डिस्कनेक्शन है। अक्सर सरकारों ने यही प्रयास भी किया है। सामाजिक वर्गों में तालमेल अब तक तो नहीं था, लेकिन एक जैसे हितों को लेकर उनमें सरकार के खिलाफ अनायास एका बनते दिख रहा है। हालांकि हर कोई एक-दूसरे के प्रति संदेहों से भरा हुआ है और आपसी भरोसा अभी दूर की कौड़ी है। इस राज्य में जहां मुख्यमंत्री और आला अफसरों के तरंगों से भरे निर्णय लिये जाते हैं, वहंा समाजवाद की कल्पना बेमानी है। असल समस्या से मुंह मोड़ती राजनीति के इस युग में समाज का भी राजनीतिकरण हो गया है। तरंग का मतलब, वक्त का ऐसा दौर, जहंा सिर्फ मनमानी सूझती है। एक ओर सामाजिक नेता हल्ला करते हुए मोर्चा निकालते हैं तो दूसरी ओर राज्य सरकार एक जिद्दी बच्चे की तरह ना-ना की करती रहती है। जनता सरकार को कोई सुधारवादी कदम उठाने मजबूर नहीं कर सकने की स्थिति में है। मजबूर हालात् इधर भी है, उधर भी है। घटना चाहे नक्सली हो, जाति आरक्षण का हो अथवा कुछ और हो, वोट की नजर से देखना सत्तानवीसों की मजबूरी है। जनता भी मजबूर है। यहंा नहीं तो वहंा वोट देना पड़ेगा। अन्य ठोस विकल्प ही नहीं है। जनता के सामने मुश्किल यह है कि किसे सत्ता सौपें। दोनों बड़ी पार्टियों से जनता नाराज है, और विकल्प कहीं नजर नहीं आता। चुनावी सरगर्मियों के साथ ही छत्तीसगढ़ में भी तीसरा मोर्चा की चर्चा चल निकली है। निश्चित तौर पर विकल्प की दरकार तो है, मगर तीसरे मोर्चाे के रूप में स्वार्थी, भ्रष्ट्र, धर्म व जाति को भुनाने वाले पिटे मोहरे और डरपोक नेताओं की खिचड़ी नहीं चाहिए। किंतु गंभीर और मजबूत तीसरा मोर्चा अभी भी प्रदेश में दूर की कौड़ी नजर आता है। विधायकों का वेतन और आम आदमी की तकलीफ दक्षिणापथ /भिलाई छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा विधायकों के वेतन आठवीं बार बढ़ाए जाने पर राज्य के आमलोगों में तल्ख प्रतिक्रिया है। आम लोगों का मानना है कि राज्य में शिक्षाकर्मी, मितानिन, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मध्यान्ह भोजन कर्मी, स्वास्थ्य कार्यकर्ता श्रमिक, कर्मचारी और किसान, उचित पारिश्रमिक एवं वेतन के लिये संघर्ष कर रहे हैं, उनकी जायज मांगों को पूरा करने के बजाय सरकार ने दमन का रूख अपनाया। इससे स्पष्ट होता है कि विधायक आम जनता के जीवन स्तर में सुधार करने का प्रयास न करके अपने सुख सुविधा की चिन्ता कर रहे हैं। वेतन बढ़ाने संबंधी सरकारी फैसले पर विपक्षी कांग्रेस के विधायकों ने भी कोई विरोध नहीं जताया, बल्कि टेबल बजाकर तुरंत हर्षित ध्वनि से इसकी सहमति दे दी। अपना वेतन एवं अन्य भत्ते बढ़ाने का फैसला लेने में विधायकों ने चंद मिनट का वक्त भी नहीं लिया। पांच साल विधायक रहने के उपरांत हजारों रूपए पेंशन का पात्र बना देने का नियम सविंदा में काम कर रहे राज्य के उन हजारों कर्मचारियों के मुंह पर तमाचा है, जो ताउम्र संविदा नौकरी करते रहेंगे और नौकरी के बाद पेंशन भी नसीब नहीं होगा। इस मुद्दे पर दक्षिणापथ ने जब समाज के विविध वर्गों से चर्चा कर उनकी प्रतिक्रिया पूछी, तो किसी ने भी सरकारी निर्णय का समर्थन नहीं किया। बल्कि अपनी ओर से कई ज्वलंब सवाल भी उठा दिये। 16 सालों से शिक्षाकर्मी की नौकरी कर रहे पाटन निवासी सुनील नायक का कहना है कि सरकार को सिर्फ अपनी चिंता है। सरकार के एक विधायक परेश बागबहरा ने विधायकों के वेतन वृद्धि को नाकाफी निरूपित करते हुए यह भी कहा कि उनके 50 हजार रू हर महीने लोगों को चाय पिलाने में ही खर्च हो जाते हैं। श्री नायक ने सवाल उठाया कि विधायक बन जाने के बाद उनकी चाय इतनी महंगी क्यों हो जाती है? आरक्षण कटौती के मसले पर अछोटी की महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता सुरेखा साहू कहती है कि सरकारी नौकरियों की धूमिल संभावनाओं के बीच सरकार आरक्षण का कार्ड खेल कर अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग को बेवजह उलझा रही है। निजीकरण और ठेकेदारी के इस युग में वैसे भी आरक्षण का वास्तविक लाभ किसी भी वर्ग को नहीं मिलेगा। जल, जंगल, जमीन और खनिज के बेतहाशा दोहन से आमजनता का ध्यान भटकाने के लिये आरक्षण का मुद्दा उछाला गया है। टीए का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद जब बीएसपी ने नौकरी नहीं दी, तब जीवन गुजारने के लिए मुरमुंदा (धमधा) में पान का दुकान लगा लेने वाले मोहन चंदेल इस बार भी खूद को छला हुुआ महसूस कर रहा है। उनका कहना है कि भिलाई इस्पात संयंत्र में श्रमिकों के सभी पदो पर स्थानीय रोजगार कार्यालयों के माध्यम से नियुक्ति देना चाहिए। इस बार भर्ती नियम को बदल कर बीएसपी ने स्थानीय लोगों से छल किया है। जगदलपुर में इलेक्ट्रिक दुकान चलाने वाले महेंद्र ठाकुर ने नगरनार बस्तर में एनएमडीसी के प्रस्तावित स्टील प्लांट की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी निजी क्षेत्र को बेचे जाने का विरोध करते हुए कहा कि निजीकरण से स्थानीयों की उपेक्षा तय है। सरगुजा निवासी दिनेश कुशवाहा ने कहा कि उत्तरप्रदेश के सोनभद्र जिला, झारखण्ड के बाराडीह में कनहर नदी में और बिहार के पलामू रोहतास जिलों के बीच सोन नदी में इन्द्रपुरी जलाशयों के निर्माण के कारण सरगुजा संभाग के सैकड़ों गावों के डूबान से प्रभावित होने हजारों आदिवासियों के विस्थापन होगा। यही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के आरक्षित वनों और कोलियारी में गंभीर नुकसान होगा। रायगढ़ के आरटीआई एक्टिविस्ट प्रदीप खंडेवाल कहते हैं कि दीर्घकालीन हितों के बजाए राज्य सरकार वोट के तत्कालिन लाभ-हानि पर ज्यादा गौर कर रही है। उनका कहना है कि राज्य सरकार को पड़ोसी राज्यों पर बांधों की उंचाई कम करने के लिये दबाव बनाना चाहिए। नहीं तो छग को भविष्य में भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। बहुत सारी खेती की जमीन डूबान में चली जाएगी, और उस पानी पर भी राज्य का अधिकार नहीं होगा। सरकारी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण का विरोध करते हुए गंडई(कवर्धा) निवासी रितेश अग्रवाल कहते हैं कि निजीकरण के बूते आम जनता का जीवन स्तर उपर नहीं उठा सकता। गंडई में मेडिकल स्टोर्स चलाने वाले रितेश अग्रवाल स्वयं एमकाम तक शिक्षित हैं। जीईसी, रायपुर में आठवें सेमेस्टर की छात्रा प्रणीति जैन ने स्थाई प्रकृति के सभी कार्यो में श्रमिकों-कर्मचारियों को स्थाई नियुक्ति पर बल देते हुए कहा कि इससे रोजगार बढ़ेगा। गिरौदपुरी ग्राम पंचायत में पंच विजय देशलहरे अनुसूचित जाति के आरक्षण कटौती को व्यर्थ निरूपित करते हुए कहते हैं कि वर्तमान समय में आरक्षण का लाभ कुछ लोगों को ही मिल पाता है। देखा गया है, अब तक जिन लोगों ने इसका लाभ लिया भी है, उन लोगों ने समाज के बजाए अपनी निजी स्वार्थों को तवज्जों दिया। कई लोगों ने आरक्षण के चलते नौकरी पाने के बाद समाज से नाता तोड़ लिया और अपने लिए पत्नी दीगर समाज से लाया। श्री देशलहरे का कहते हैं- लगभग 32 सालों से राजनीति से जुड़ा हूं। अपनी जाति के लिए हम लोगों ने संघर्ष किया, मगर जिन्हें फायदा मिला.. उन लोगों ने ही हमारे समाज को त्याग दिया। ऐसे में संघर्ष का क्या मतलब रहा। अपने एक निकटवर्ती रिश्तेदार का उदाहरण देते हुए श्री देशलहरे ने बताया कि दुर्ग से 32 किलोमीटर की दूरी पर जामगांव रोड पर स्थित छोटे से गांव गाड़ाडीह में ससुराल गई उनकी एक बहन ने बड़ी मुश्किल से अपने छोटे बेटे को पालीटेक्निक की शिक्षा दिलायी। छग विद्युत मंडल में जूनियर इंजीनियर के पद पर उसकी नौकरी भी लगी। मगर आज उस बेटे ने एक स्वर्ण युवती से शादी कर ली, और अपने परिवार को भूल गया। यहंा तक अपनी एकमात्र बहन की शादी में भी वहंा शामिल होने नहीं आया। आरक्षण का लाभ उठा कर बड़ा आदमी बन जाने वाले समाज के लोग ही समाज को भूल जाते हैं। फिर ऐसे आरक्षण का क्या लाभ... ? राज्य में तीसरे विकल्प की दरकार व्यक्त करते हुए ग्राम पंचायत मर्रा के सरपंच होरीलाल वर्मा कहते हैें अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये 27 प्रतिशत आरक्षण और राज्य में संविधान की 5वीं अनुसूची, पेसा कानून और वनाधिकार अधिनियम के प्रावधानों का पालन जरूरी है। रमन की हैट्रिक में सीएम सरोज ? दक्षिणापथ/रायपुर

सरोज पांडेय

  बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ की टीम में दुर्ग सांसद सरोज पांडेय को महिला मोर्चा अध्यक्ष बनाकर राष्ट्रीय राजनीति में उनके बढ़ते प्रभाव की झलक दिखा दी है। सरोज पांडेय छत्तीसगढ़ की एकमात्र भाजपा नेता हैं जिन्हेें भाजपा के राष्ट्रीय संगठन में अहम स्थान दिया गया है। छत्तीसगढ़ के सभी 11संसदीय सीटों में से दस सांसद भाजपा की झोली में जाने के बावजूद सिर्फ सरोज पांडेय को चुने जाने के खास मायने हैं। रायपुर सांसद रमेश बैस को पांच-पांच बार सांसद बनने के बाद भी राष्ट्रीय संगठन में वह स्थान नहीं मिल सका, जो सरोज पांडेय ने पहली दफा सांसद बनने के बाद हासिल कर लिया। राजनाथ सिंह के दुबारा भाजपा अध्यक्ष बनने के साथ ही सरोज पांडेय का कद बढऩा तय हो चुका था और उनकी टीम में विशेष स्थान मिलेगा। इन हालातों में यदि भाजपा प्रदेश की सत्ता में तीसरी बार भी आई तो सरोज पांडेय छत्तीसगढ़ की सत्ता की सर्वोच्च प्रतीक बन सकती हैं। दुर्ग सांसद सरोज पांडेय ने जब से राजनीति में कदम रखा है, पीछे मुड़ कर नहीं देखा। दुर्ग में लगातार दस साल महापौर रहकर उन्होंने लिमका बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में अपना नाम शामिल करवा लिया। एक ही समय में वे दुर्ग की महापौर, वैशाली नगर की विधायक एवं दुर्ग लोकसभा सांसद रहने का अनोखा रिकार्ड उनके नाम है। महापौर के उनके कार्यकाल को दुर्गवासी कभी नहीं भुल सकते। बुनियादी विकास के साथ शहर सौंदर्यीकरण का उन्होंने जो जज्बा जगाया, वह इस शहर के लिए अभिनव था। उनकी सक्रियता व विकास के लिए प्रतिबद्धता देखकर शहर की जनता लगातार उनके साथ जुड़ते गई, और दूसरी बार भी रिकार्ड मतों से उन्होंने जीत दर्ज की। दूसरे कार्यकाल खत्म होने तक सरोज पांडेय की ख्याति पूरे राज्य में एक ऐसी विकास वीरांगना के रूप में बन चुकी थी, लगातार विकास कार्य जिनका धर्म हो। एक औसत परिवार में जन्म लेकर राष्ट्रीय राजनीतिक क्षितिज में मुकाम बनाने का ऐसा उदाहरण छत्तीसगढ़ में बिरले ही मिलता है। अपने दम पर राजनीति की शीर्ष पायदान तक पहुंचने में इसके पहले कांग्रेस की मिनी माता ही सफल हुई थीं। अपनी कर्मठता, कार्यशैली व सेवाभाव के चलते सरोज पांडेय पूरे राज्य में अपने समर्थकों की अच्छी टीम बना चुकी हैं। इंटरनेट पर बाकायदा सरोज पांडेय प्रशंसक फोरम भी बना हुआ, जिसमें हर दिन सैकड़ों की संख्या में उनके प्रशंसक जुड़ रहे हैं। वर्तमान में सरोज पांडेय प्रदेश के शीर्ष भाजपा नेताओं में भी अग्रणी बन चुकी हैं। केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें महिला मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर स्पष्ट कर दिया है कि रमन की हैट्रिक में सरोज पांडेय सीएम की भूमिका निभाने में सक्षम विकल्प हैं। 

आखिर यह क्या हो रहा है रमन राज में! छत्तीसगढ़ राज्य के अलग-अलग तीन बाल आश्रमों में रहने वाले बालक-बालिकाओं से यौन शोषण की घटना सरकारी मशीनरी की वास्तविकता का द्योतक है। आमाडूला आश्रम में सात साल पहले ही यौन शोषण का भंडाफोड़ हो चुका था। आश्रम की जिस वार्डन अनिता ठाकुर ने पीडि़त छात्रा का हाथ पकड़ कर बलात्कारियों के हवाले कर दिया था, वह इसके पांच साल बाद तक भी सम्मान पाते रही। जिसे जेल में होना चाहिए था, वह मुख्यमंत्री के साथ मंच में खड़ी नजर आती थी। झलियामारी आश्रम की घटना भी लंबे समय से सतह पर आ चुकी थी, मगर आश्रम से जुड़़े लोगों व सरकारी मशीनरी ने अपनी झूठी इज्जत के खातिर उसे दबाए रखा। यौन शोषण की सभी घटनाओं के पीडि़त अधिकांशत: गरीब आदिवासी वर्ग से वास्ता रखने वाले बच्चे हैं। बिहड़ जंगल के गांव-खेड़ों में रहने वाले जिन आदिवासी परिवारों ने अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर नई जिंदगी देनी चाही थी, उनकी बस यही गलती थी कि उन्होंने रमन सरकार के आश्रमों पर भरोसा किया। घटना के बाद पीडि़त परिवार सोचते होंगे, इससे तो अच्छा उस बिहड़ जंगल में रहकर जीना ज्यादा बेहतर है। कम से कम वहंा पढ़े-लिखे और सरकार से जुड़े लोग उनकी अस्मत पर धावा बोलने तो नहीं जाते। अभी हाल ये कि पीडि़त छात्राओं की जिंदगी नर्क बनी हुई है और परिवार वाले उस वक्त को कोस रहे हैं, जब उन्होंने सरकार पर भरोसा कर अपनी बेटियों को जीते जी वहां भेज दिया। और अब राजधानी से महज 40 किलोमीटर के फासले पर अवस्थित दुर्ग के बेथेल चिल्ड्रन होम में बच्चों से दुष्कृत्य की घटना ने सरकारी तंत्र की चूलें हिला कर रखी दी है। बेथेल चिल्ड्रन होम में बच्चों से न केवल यौन शोषण किया जा रहा था, बल्कि धर्म परिवर्तन की सुगबुगाहट भी सुनाई पड़ रही थी। दुर्ग की घटना से जुड़े कई रसूखदारों के नाम आने अभी बाकी हैं। इतना सब होने के बाद भी यदि सरकार गरीब आदिवासियों के हितों की दंभ भरती हो, तो उसे जमीन पर उतर कर स्थिति देखनी चाहिए। छत्तीसगढ़ के आश्रमों में बच्चों से यौन शोषण की घटना ने पूरे देश में सूर्खियां हासिल कर ली है। यूं प्रतीत होता है कि राज्य की पहचान सरकारी संरक्षण में सर्वाधिक बाल यौन शोषण वाले राज्य की बन गई हो। छत्तीसगढ़ के छात्रावास बने यौन शोषण के अड्डे दक्षिणापथ । रमन राज में राज्य के छात्रावास व अनाथालय यौन शोषण के अड्डे बनते जा रहे हैं। पहले कांकेर फिर डौंडीलोहारा और अब दुर्ग। इन जगहों पर यौन शोषण के मामले उजागर होने के बाद राज्य में जीत की हैट्रिक बनाने का सपना संजो रही भाजपा सरकार के मंसूबों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। मुख्यमंत्री डा रमन सिंह को मिशन 2013 फतह करने के लिए जनता के बीच फिर से स्वच्छ छबि कैसे बनाएंगे, यह देखनी वाली बात होगी। पहले चुनाव में राज्य निर्माता अटल बिहारी के नाम पर भाजपा सत्तासीन हुई। 2008 का चुनाव बेशक चाउर वाले बाबा के विकास के नाम रहा। लेकिन इन 9 सालों में रमन राज में भाजपा की असलीयत जनता के सामने उजागर हो चुकी है। किंतु अब उक्त घटनाओं ने सरकारी कामकाज की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। इस बार जनता का विश्वास जीतना सरकार के लिए इतना आसान नहीं होगा। दुर्ग स्थित बेथेल चिल्ड्रन होम के आधा दर्जन बच्चों के साथ यौन शोषण का मामला राज्य की भाजपा सरकार की पुंगी बजाने के लिए काफी है। तितुरीडीह स्थित बेथेल चिल्ड्रन होम (अनाथालय) में बच्चों के साथ यौन शोषण तो किया ही जा रहा था, उसके अलावा बच्चों के साथ मारपीट कर उनका धर्म परिवर्तन करने दबाव भी बनाया जाता था। मामले की तफ्तीश के बाद मोहन नगर पुलिस ने बेथेल चिल्ड्रन होम के संचालक सहित तीन कर्मचारियों के खिलाफ धारा 377, 506 तथा 3, 4 धर्म स्थानांतरण अधिनियम के तहत अपराध दर्ज कर लिया है। तीनों आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। मामले का खुलासा होने के बाद जिला प्रशासन ने अनाथालय में ताला जड़कर बच्चों को महिला बाल विकास विभाग के सुपुर्द कर दिया है। सीएसपी राकेश भट्ट ने बताया कि तितुरीडीह स्थित ईसाइ मिशनरी द्वारा संचालित बेथेल चिल्ड्रन होम की संदिग्ध गतिविधियों के बारे में चाइल्ड लाईन के केन्द्र समन्यवक सुरेश कापसे से मिली जानकारी के बाद पुलिस की तफ्तीश में अनाथालय में पिछले दो साल से यहां रह रहे बच्चों के साथ यौन शोषण की घटनाएं होने का खुलासा हुआ है। यहां के एक 14 वर्षीय छात्र ने केयरटेकर दिलीप कुमार पर तीन-चार माह पूर्व उसके साथ यौन शोषण करने की बात का खुलासा किया। इसके अलावा बच्चों ने अनाथालय के संचालक रेवेन्द्रु पी स्वामी नाडलू तथा कर्मचारी बी इराफूक पर मारपीट और दबाव डालकर धर्म परिवर्तन करने का आरोप लगाया। पुलिस ने अनाथालय के केयरटेकर दिलीप कुमार के खिलाफ यौन शौषण तथा संचालक रेवेन्द्रु पी स्वामी नाडलू व बी इराफूक के खिलाफ 3, 4 धर्म स्थानांतरण अधिनियम के तहत अपराध दर्ज की है। गौरतलब है कि घटना का खुलासा उस वक्त हुआ जब 26 मार्च को अनाथालय की चार छात्राएं मारपीट से तंग आकर यहां से भाग गई थी। इन चारों छात्राओं को रायपुर नाका क्षेत्र में रात 11.30 बजे संदिग्ध हालत में घूमते हुए एसडीओपी पाटन निवेदिता पाल ने पकड़ा था। बाद में पुलिस ने छात्राओं को चाइल्ड लाईन के हवाले कर दिया था। चाइल्ड लाईन ने इन छात्राओं को बाल संरक्षण समिति से सहमति लेकर रायपुर स्थित महिला गृह भेज दिया था। इसके पश्चात चाइल्ड लाईन के केन्द्र समन्यवक सुरेश कापसे तथा महिला बाल विकास की टीम ने अनाथालय जाकर यहां चल रही गतिविधियों की तफ्तीश की थी। इसके बाद ही यहां बच्चों के साथ यौन शोषण व उनका धर्म परिवर्तन करने का खुलासा हुआ। --- आरोपी बख्शे नहीं जाएंगे: यशवंत जैन बेथेल चिल्ड्रन होम में चल रही संदिग्ध गतिविधियों का खुलासा होने के बाद बाल संरक्षण आयोग छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष यशवंत जैन ने पत्रकारों से कहा कि घटना के संबंध में कुछ शिकायतें मिली है। इसके आधार पर जांच जारी है। जांच के पश्चात पाए गए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। आरोपी बख्शे नहीं जाएंगे। यद्यपि उन्होंने आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की बात तो की है, लेकिन साथ में यह भी कहा कि नए कानून लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 के तहत फिलहाल कानून को समझने की जरुरत है। इसके लिए पृथक से वकील नियुक्त किया जाएगा। यशवंत जैन ने अधिकारियों की बैठक लेकर जिले में चल रहे समस्त बाल गृह की जांच करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि बच्चों से पूछताछ सिविल ड्रेस में की जाए। जिससे बच्चे सहज रह सके। बजरंग दल ने किया विरोध प्रदर्शन जैसे ही बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष यशवंत जैन, महिला बाल विकास विभाग परिसर पहुंचे वैसे ही बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने जोरदार नारेबाजी करते हुए उनका घेराव कर दिया। जिला मंत्री रतन यादव ने घटना पर तीव्र विरोध जाहिर करते हुए यशवंत जैन से पूछा कि मामले में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई कब होगी। जिस पर श्री जैन ने उन्हें आश्वस्त करते हुए आरोपियों के खिलाफ शीघ्र कार्रवाई का भरोसा दिलाया। इस अवसर पर रतन यादव ने कहा कि बेथेल चिल्ड्रन होम में रह रहे गरीब बच्चों को डरा-धमकाकर उनका धर्म बदलने मजबूर किया जा रहा है। बच्चों को गैस सिलेंडर के पाइप व छड़ीे से मारा जाता है। गर्भवती अर्पणा कहां गायब? करीब एक साल पहले अर्पणा नामक (परिवर्तित नाम) 14 वर्षीया नाबालिग छात्रा को बेथेल चिल्ड्रन होम में लाया गया था। उसे यहां वार्डन के पद पर रखा गया था। जानकारी के अनुसार उक्त छात्रा आश्रम में रहते हुए गर्भवती हो गई थी। बाद में उसने एक बच्चे को जन्म भी दिया था। आश्रम संचालक पी स्वामी नडालू द्वारा छात्रा को किसी से मिलने नहीं दिया जाता था। जानकारों की माने तो छात्रा की अनुमति के बगैर उसके बच्चे को बाहर ले जाकर बेच दिया गया। मामले के उजागार होने के डर से आश्रम संचालक नडालू ने छात्रा को आश्रम से निकाल कर ऐसे स्थान पर भेज दिया, जिसका पता आज तक किसी को नहीं लग सका है। --------

चौपट हो गए राज्य के आईटीआई - मेन्स पावर तैयार करने की योजना खटाई में दक्षिणापथ डेस्क रायपुर। एक वक्त था, जब आईटीआई उत्तीर्ण होने के उपरांत प्रशिक्षार्थी तकनीकी क्षेत्र का एक कामयाब चेहरा बन जाता था, बीएसपी समेत सरकारी एवं अन्य निजी उपक्रमों में अच्छी नौकरी मिलती थी। रेलवे व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में बेहतर प्रदर्शन करते थे। क्योंकि तब सरकारी आईटीआई में प्रशिक्षणार्थियों को कठोर प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता था। अनुभवी अनुदेशकों की देखरेख में प्रशिक्षणार्थी अपने ट्रेड में निष्णात होते थे। मगर आज राज्य की सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं में हालात् बिलकुल विपरीत हैं। प्रशिक्षण के नाम पर महज खानापूर्ती चल रहीं है। प्रशिक्षण पूरी तरह से खत्म हो गया है । राज्य के 118 आईटीआई में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले प्रशिक्षणार्थियों का भविष्य चौपट हो गया है । डीजीईटी ने राज्य के 118 आईटीआई के मान्यता को छिनने की चेतावनी दी है। किसी तरह इन संस्थाओं से उत्तीर्ण हो जाने वाले प्रशिक्षणार्थी खुली प्रतियोगी परीक्षाओं में टिक नहीं पा रहे हैं। लिहाजा रेलवे व अन्य उपक्रमों में नौकरी नहीं मिल रही है। इन सबके पीछे जवाबदार है प्रदेश का रोजगार एवं प्रशिक्षण संचालनालय। जो अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारी के बूते पर युवाओं में मेन्स पावर तैयार किया जा रहा है। कौशल विकास के अभाव में गुजरात की तरह छत्तीसगढ़ में युवा कौशल संवद्र्धन की योजना धूल फांकते रह जाएगी। अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारी सीधी भर्ती के तहत 723 पदों पर जब से संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण द्धारा अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारियों की भर्ती की गई हैं तभी से यह अव्यवस्था का आलम व्याप्त हो गया हैं । अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारियों को अपने ट्रेडों(व्यवसायों) का किसी तरह का अनुभव नहीं हैं जिसके चलते किसी भी तरह का प्रशिक्षण नहीं कराया जा रहा है। प्रेक्टिकल की जानकारी नहीं होने से प्रेक्टिकल व प्रशिक्षण महज खानापूर्ती बन गया हैं । मापदंडों की अवहेलना महानिदेशालय रोजगार एवं प्रशिक्षण (डीजीईटी) के प्रशिक्षण मापदंडों के अनुसार पूरे भारत में एक प्रशिक्षण व्यवस्था लागू हैं। जिसमें प्रशिक्षण मैनुअल का पालन अनिवार्य किया गया हैं । जिसके अनुसार थ्योरी व प्रायोगिक का मापदंड निर्धारित हैं। परंतु इन मापदंडों का संचालनालय रोजगार एंव प्रशिक्षण के अधिकारियों ने मजाक बना रखा हैं। इन संस्थानों में प्रेक्टिकल नहीं हो रहा हैं । क्योंकि संचालनालय द्धारा प्रशिक्षण अधिकारियों की भर्ती की गई हैं इन्हें प्रेक्टिकल का वृहद अनुभव ही नहीं हैं तो वे छात्रों को कहां और कैसे प्रेक्टिकल करायेंं । अनुदेशकों को अधीक्षकों का प्रभार डीजीईटी, नई दिल्ली ने प्रशिक्षण के सुचारु रुप से चलने व प्रशिक्षण की लगातार देखरेख के लिए प्रशिक्षण अधीक्षक पद का सृजन किया है । परंतु छत्तीसगढ़ राज्य में ऐसा नहीं हो रहा हैं संचालनालय द्धारा प्रशिक्षण अधीक्षकों को ही अधीक्षकों का प्रभार दे दिया गया हैं। साथ में तृतीय वर्ग कर्मचारियों को आहरण संवितरण(डीडीओ) का प्रभार दे दिया गया हैं लिहाजा उक्त कर्मचारी प्राचार्य की कुर्सी में बैठकर दिनभर बजट बराबर कर रहें हैं। कार्यालय में सहायक ग्रेड-3 के साथ बैठकर तथाकथित फर्जी बिल बनाने में सराबोर रहते हैं । सूत्रों ने इनके बारे में यहॉं तक बताया हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के समय यही प्रशिक्षण अधिकारियों ने विगत 12 सालों से अपने-अपने व्यवसायों में किसी भी तरह का प्रशिक्षण नहीं कराया हैं । इन पर छत्तीसगढ़ सरकार बड़ी मेहरबान हैेंं इन्हीं भ्रष्ट व प्रशिक्षण नहीं कराने वाले कर्मचारियों को प्रशिक्षण अधीक्षक पद नवाजा गया हैं। समझा जा सकता है कि कैसा प्रशिक्षण दिया जा रहा होगा। प्रशिक्षण अधीक्षक को मात्र प्रशिक्षण कार्य कराना है। सिविल सेवा अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार आहरण संवितरण का प्रभार मात्र राजपत्रित अधिकारी से ही कराने का प्रावधान हैं, अन्य दीगर कार्य नहीं। किनारे लग गये संविदा व मेहमान प्रवक्ता नवंबर 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन किया तब संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण तथा सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं का सेटअप तैयार नहीं था। तब छत्तीसगढ़ राज्य को मध्यप्रदेश से मात्र 45 सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं को संचालन की मान्यता मिली थी। वह भी बहुत कम व्यवसायों के साथ। तब संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण द्धारा संयुक्त संचालक(प्रशिक्षण) के माध्यम से प्रशिक्षण कार्य के लिए प्रशिक्षण अधिकारी के पदों पर तीन वर्षीय अनुभवी मेंहमान प्रवक्ताओं की भर्ती की गई व आईटीआई के प्रशिक्षण चलाया गया। सूत्रों ने बताया है। 2002 से 2005 के बीच में लगभग 400 मेंहमान प्रवक्ताओं की भर्ती संयुक्त संचालक(प्रशिक्षण) के माध्यम से की गई । परंतु जनवरी 2013 में 723 पदों पर अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारियों की भर्ती करके इनकी सेवाऐं समाप्त कर दी गई हैं । मेहमानों के भरोसा मान्यता राज्य निर्माण के समय सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती थी कि सरकारी आईटीआई की संख्या को कैसे बढ़ाया जाये व प्रत्येक जिला मुख्यालय व ब्लाकों में आईटीआई किस तरह खोला जाय, जो इतना आसान नहीं था। क्योंकि सभी जानते हैं कि सन् 2004-2005 में जब सरकार ने संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण के सेटअप को मंजूर किया, तब कहीं नये आईटीआई खोलने व ट्रेडों के मान्यता लेने का सिलसिला शुरू हुआ। तब संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण ने इन्ही 400 मेंहमान प्रवक्ताओं को नियमित प्रशिक्षण अधिकारी बताकर महानिदेशालय रोजगार एवं प्रशिक्षण (डीजीईटी) से ट्रेडों की मान्यता लिया था। । एनेक्सर-थ्री में भी गोलमाल ट्रेडों (व्यवसायों) की डीजीईटी नई दिल्ली से मान्यता लेने के लिए एनेक्सर-3 का निर्माण किया जाता हैं जिसमें आईटीआई में उपलब्ध संसाधनों के साथ-साथ संबंधित ट्रेडों की मान्यता के लिए संबंधित ट्रेड के प्रशिक्षण अधिकारी का नाम शैक्षणिक व तकनीकी योग्यता व अनुभव के मापदंडों का पूरा होना जरूरी हैं। चूकिं संयुक्त संचालक (प्रशिक्षण) द्धारा तीन वर्षीय अनुभव के मापदंडों को पूरा करने वाले अनुभवी मेंहमान प्रवक्ता प्रशिक्षण अधिकारियों की भर्ती की गई थी इसी को ध्यान में रखकर महानिदेशालय रोजगार एवं प्रशिक्षण डीजीईटी नई दिल्ली द्धारा राज्य के सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं में खुलने वाले नये ट्रेडों की मान्यता दी थी। किंतु आज वे अपने अस्तित्व की लड़ाई लडऩे मजबूर हैं । नेतागिरी व नुराकुश्ती का संस्थान सरकारी आईटीआई पावर हाउस भिलाई व दुर्ग पूरी तरह से नेतागिरी के संस्थान बन गये हंै। आईटीआई के विभागीय सूत्रों के अनुसार दुर्ग आईटीआई में प्रशिक्षण अधीक्षक स्तर के कर्मचारी ने तो बाकायदा अपने आप को तकनीकी संघ का प्रांताध्यक्ष घोषित कर रखा हैं दिनभर कर्मचारियों की नेतागिरी की क्लास ली जाती हैं । प्रशिक्षण देने में उनकी रूचि नहीं हैं । दुर्ग आईटीआई के सूत्रों ने यह भी बताया कि इन अधिकारियों के आने-जाने का कोई समय सीमा तय नहंी हैं। अपनी मर्जी से आते-जाते हैं । इसी तरह आईटीआई पावर हाउस भिलाई के प्रशिक्षण अधीक्षक ने तो अपने आप को संचालनालय में अटैच करा लिया है । उन्हें आईटीआई में रहकर प्रशिक्षण कार्यो के मानीटरिंग करने से तकलीफ होती हैं। अलबत्ता स्वास्थ्यगत कारण बताकर छुट्टी ले ली जाती हैं। जिससे प्रशिक्षणरत् छात्रों का लगातार नुकसान हो रहा हैं। सूत्रों ने बताया हैं दुर्ग आईटीआई के कुछ नांन ईंजीनियरिंग ट्रेडों(व्यवसायों) के प्रशिक्षण अधिकारी जो कि प्रशिक्षण अधीक्षक नहीं बन पा रहें हैं। प्रशिक्षणार्थियों को अपने घर में ट्यशन के लिए बाध्य करते हैं। इससे प्रतिभावान प्रशिक्षणार्थियों का भविष्य चौपट हो रहा हैं। 118 आईटीआई की मान्यता छिछने की चेतावनी स्ंाचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण के विभागीय सूत्रो से मिली जानकारी अनुसार 723 पदों पर अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारियों की भर्ती के संबंध में महानिदेशालय रोजगार एवं प्रशिक्षण(डीजीईटी) के महानिदेशक ने विभागीय सचिव जनशक्ति नियोजन व संचालक संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण को फटकार लगाई हैं व राज्य के जिन-जिन ट्रेडों में अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारी कार्यरत् हैं उन सभी ट्रेडों की एनसीव्हीटी की मान्यता रद्द करने की चेतावनी दी हैं । महानिदेशक बहुत जल्द एक टीम केंद्र से राज्य में भेजने की बात भी कहीं हैं । दर्जन भर पर गिर चुकी है गाज महानिदेशक रोजगार एवं प्रशिक्षण (डीजीईटी) के अनुसार 28 जून 2012 को छत्तीसगढ़ राज्य के 12 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं में अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारियों की भर्ती के कारण एनसीव्हीटी मान्यता नहीं दी हैं । किंतु अब नये नियमों के अनुरुप ही मान्यता लेनी होगी, वह भी क्यूसीआई (क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया) के शैक्षणिक,तकनीकी व अनुभव के मापदंडों व संसाधनों के आधार पर हीं ट्रेडों को एनसीव्हीटी की मान्यता प्राप्त हो सकेगी। प्रत्येक 5 साल बाद फिर क्यूसीआई से मान्यता लेनी होगी। नियम में यह भी शामिल हैं कि पूर्व से एनसीव्हीटी मान्यता प्राप्त ट्रेडो को दुबारा क्यूसीआई के मापदंडों में खरा उतरना होगा। छत्तीसगढ़ राज्य में तीन बार क्यूसीआई व एटीआई कानपुर की टीम ने 723 पदों पर प्रशिक्षण अधिकारियों की भर्ती को देखते हुए दौरा करने से इंकार कर दिया। एटीआई कानपुर के निदेशक का कहना हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य की सारी आईटीआई को तत्काल एनसीव्हीटी की संबद्वता रद्द कर डिएफिलेटेड़ कर दिया जाए, क्योकि प्रशिक्षण की गुणवत्ता दोयम दर्जे की हैं जो प्रशिक्षण व स्किल्ड मैन पावर के लिए खतरे की घंटी हैं । जिन प्रशिक्षण अधिकारियों के पास अनुभव नही हैं वे ट्रेडों में किस तरह का प्रशिक्षण कराएंगे? मशीन में फंसा हाथ नवगठित जिला बालोद मुख्यालय में अवस्थित सरकारी आईटीआई के वेल्डर ट्रेड(व्यवसाय) के अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारी ने प्रशिक्षण के दौरान अपना हाथ वेल्ंिडंग मशीन में फंसा लिया, जिसे मुश्किल से बचाया गया। जो अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारियों के चलते ऐसी घटनाएं घटित हो रही हैं । परीक्षा करीब, पढ़ाते नहीं 20 जुलाई से अखिल भारतीय दस्तकारी परीक्षा (एनसीव्हीटी) हैं । प्रशिक्षणार्थियों ने बताया कि 723 पदों की भर्ती से आये प्रशिक्षण अधिकारी न क्लास लेते हैं और न हीं प्रशिक्षण देते हैं । किंतु आईएमसी के सर्पोटिंग स्टाफ व प्रशिक्षण अधीक्षकों पर उंगली उठाना वाला कोई नहीं। बेतुके बोल बताया जाता है कि संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण के अधिकारी अनुभवहीन प्रशिक्षकों की भर्ती पर कहते हैं कि दो-तीन वर्षों में ये लोग सीख जायेगें, अभी जैसा भी हो काम चलाना पड़ेगा। संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण में विभाग के संचालक कभी भी अपने कार्यालय में नहीं रहते हैं । पीए से पूछने पर बताया जाता हैं कि साहब अभी दिल्ली गये हैं । संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण के सूत्रों ने तो यहॉं तक बताया हैं कि संचालक हमेशा गायब रहते हैं । छत्तीसगढ़ सिविल सेवा अधिनियम के प्रावधानों व संचालनालय के सेटअप में संचालक के बाद अतिरिक्त संचालक का पद सृजन हैं । इसके बावजूद संयुक्त संचालक कैसे अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर उस पद पर काबिज हो गए। इससे तो यह साबित हो रहा हैं कि संचालनालय में अतिरिक्त संचालक का पद समाप्त हो गया हैं । जिनसे मिली मान्यता, वही हुए बेरोजगार इसे मेहमान प्रवक्ता व संविदा प्रशिक्षण अधिकारियो का दुर्भाय ही कहा जाये कि इनके अनुभव का कोई लाभ छत्तीसगढ़ सरकार व संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण नहीं ले रही । जिनके नामों का उपयोग करके डीजीईटी नई दिल्ली से एनसीव्हीटी की मान्यता ली गई हैं उन्हीं लेागों को आज सरकार बेरोजगार करने पर उतारु हो गई हैं । जनशक्ति नियोजन विभाग की सचिव ने मेंहमान प्रवक्ता संविदा प्रशिक्षण अधिकारियों को नियमतिकरण का आश्वासन दिया था । परंतु आज तक सचिव ने इनका नियमितीकरण नहीं किया । अलबत्ता इन संविदा कर्मियोंं को नौकरी से निकालने का इंतजाम जरुर कर दिया। -----------------------े

 
 

Sunday 17 March 2013

16 to 31 march 2013 dakshinapath

          विकास पर भारी जातिगत समीकरण !

            यूपी, बिहार की सियासी हवा अब छत्तीसगढ़ की ओर

दक्षिणापथ डेस्क
 रायपुर । इस विधानसभा चुनाव में पहली दफा सामाजिक संक्रमण का समीकरण छत्तीसगढ़ की राजनीतिक $िफज़ा पर हावी हुआ है। इस किस्म के राजनीतिक प्रयोग उत्तरप्रदेश व बिहार की राजनीति में कई दशकों से होता आया है, मगर छत्तीसगढ़ में राज्य सत्ता के परिपेक्ष्य में सामाजिक ध्रुवीकरण की यह वृत्ति नयी है। 21 करोड़ जनसंख्या वाले यूपी व 18 करोड़ जनसंख्या वाले बिहार में भले ही अगड़े-पिछड़े की राजनीतिक बंदी सत्ता की डगर बनती हो, पर सिर्फ ढाई करोड़ की आबादी वाले छत्तीसगढ़ में जातिगत विभेदन की राजनीति कितनी कारगार होगी, यह समय ही बताएगा?
 छत्तीसगढ़ की आबादी में करीब 50 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग, 32 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति एवं 12 प्रतिशत अनुसूचित जाति वर्ग से हैं। राज्य के चुनावी इतिहास में यह पहला मौका है, जब राज्य सरकार के प्रति इन वर्गो की इतनी नाराजगी आरक्षण के मसले पर सामने आयी हो।
प्रदेश के 50 फीसद आबादी पिछड़ा वर्ग से हैं। राज्य में सरकार बनाने और बिगाडऩे के लिहाज से यह तबका बेहद महत्वपूर्ण है। पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को साधने के लिए चुनाव में अगड़ा-पिछड़ा का कार्ड कांग्रेस व भाजपा बखूबी ख्ेालती आयीे हैं, मगर उसकी प्रासंगिकता सिर्फ चुनाव जीतने तक सीमित रही। पिछड़ा वर्ग से वास्ता रखने वाले दर्जनों लोग बड़े राजनेता भी बन गए, मगर पिछड़े वर्ग के हितों पर ध्यान देने की जहमत इन्होंने नहीं उठायी। अभी पिछड़ा वर्ग को राज्य में 14 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है, जिसे 27 करने के लिए पिछड़े वर्ग सर्व समाज ने चरामा से राजधानी रायपुर तक वृहत पैदल यात्रा की। 30 हजार से अधिक महिला-पुरूष इसमें शामिल हुए। इन नेताओं ने राज्य का मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग से होने की मांग भी रखी है। दूसरी ओर पिछड़ा वर्ग आरक्षण पर चुनावी गेम खेलते हुए कांग्रेस ने विधानसभा में सरकार से बयान देने की मांग करते हुए जोरदार हंगामा भी किया। चुनाव के ऐन पहले प्रदेश में पिछड़ा वर्ग आरक्षण पर उठे घमासान को अपने पक्ष में करने के लिए मुख्यमंत्री डा रमन सिंह ने भी पिछड़े वर्गों के समग्र विकास को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बता रहे हैं।
हालांकि, इसके पूर्व राज्य सरकार ने पूरी कोशिश की कि पिछड़ा वर्ग की यह रैली राजधानी तक न पहुंचे। सरकार के दो मंत्री चंद्रशेखर साहू व केदार कश्यप कुरूद पहुंच कर रैली में शामिल लोगो को मनाने का प्रयास किये। मगर पिछड़ा वर्ग रैली की अगुवाई कर रहे सामाजिक नेताओं ने रायपुर पहुंच कर ही रैली थमने का फैसला सुना दिया। पिछड़ा वर्ग सर्व समाज के नेताओं का कहना है कि राज्य की कुल जनसंख्या में से 50 फीसदी हिस्सा होने के बावजूद पिछड़ा वर्ग से सिर्फ 7 फीसदी लोग सरकारी सेवाओं में हैं। ओबीसी नेताओं का यह भी कहना है कि बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद पर्याप्त राजनीतिक भागीदारी देने में राजनीतिक दलों द्वारा कोताही बरती जाती है। कांग्रेस हो चाहे भाजपा, उत्तर भारतीय नेताओं ने छत्तीसगढ़ में हमेशा सवर्ण समाज से जुड़े नेताओं को सामने लाया। पिछड़े वर्ग के नेताओं की जानबुझकर उपेक्षा की गई। नतीजतन् पिछड़ा वर्ग समाज को अपने अधिकारों के लिए सड़क पर उतरने मजबूर होना पड़ा।

अपने नेताओं से नाराजगी

आरक्षण में कटौती से अनुसूचित जाति सर्वाधिक नाराज हुआ है।  राज्य की राजनीति में अक्सर निर्णायक भूमिका अदा करते आया यह समाज रमन सरकार से इतना अधिक रूष्ट है कि गिरौदपुरी में सत्ता के किसी भी प्रतीक के आने पर पाबंदी लगा रखी है। दरअसल यह समाज अपने समाज एवं प्रदेश के सियासी खिलाडिय़ों से खुद को छला हुआ महसूस कर रहा है। जिन्हें चुनकर समाज ने सरकार में भागीदार बनाया, वे ही अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के फेर में समाज के हितों को परे रख दिये। इस समाज की पीड़ा है कि विधानसभा में पर्याप्त संख्या में प्रतिनिधित्व होने के बावजूद जब अनु.जाति के आरक्षण में कटौती का अंतिम फैसला हुआ, समाज से जुड़े किसी भी विधायक ने आपत्ति नहीं उठायी। अपने समाज के जनप्रतिनिधियों के रवैय्ये से छला हुआ महसूस कर रहे इस समाज का राजनीतिक कथानकों से विश्वास उठ गया है। गिरौदपुरी के मेले में यह समाज सबको बर्दाश्त करने को तैयार है, बशर्ते प्रदेश सरकार से जुड़ा कोई भी प्रतिनिधि यहंा न आए।

साधने का भी प्रयास

मुख्यमंत्री ने राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण मंच के प्रतिनिधि मंडल से मुलाकात मेें कहा कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों सहित पिछड़े वर्गों का समग्र विकास भी राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है।
पिछड़े वर्गों के विद्यार्थियों को विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग केन्द्रों में सीटों की संख्या बढ़ाने, जिला स्तर पर  सुसज्जित छात्रावास स्थापना कर उनमें पिछड़े वर्गों के बालक-बालिकाओं को पर्याप्त स्थान देने, बस्तर और सरगुजा आदिवासी विकास प्राधिकरणों के जिलों में पिछड़े वर्गों की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी वाले गांवों और नगरीय निकायों के वार्डों को राज्य ग्रामीण विकास प्राधिकरण में शामिल करने का निर्णय लिया गया है। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने पिछड़े वर्गों के परिवारों को वन अधिकार मान्यता पत्र देने के लिए 75 वर्ष के दस्तावेज की अनिवार्यता को शिथिल कर दस वर्ष निर्धारित करने के लिए केन्द्र सरकार को पत्र लिखने का निर्णय लिया गया है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का दुरूपयोग रोकने पुलिस को निर्देश दिए जाएंगे। मुख्यमंत्री ने पिछड़े वर्गों की अन्य मांगों पर उच्च स्तरीय समिति गठित करने का भी निर्णय लिया है।

पिछड़ों पर जाल, रमन की चाल

छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के प्रवक्ता राजकुमार गुप्ता के मुताबिक चारामा से राजधानी रायपुर तक 28 फरवरी से 4 मार्च तक पिछड़ा वर्ग द्वारा पदयात्रा और आमसभा का आयोजन स्वयं मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह के इशारे पर किया गया था। श्री गुप्त ने एक वक्तव्य में कहा है कि उक्त पदयात्रा पिछड़ा वर्ग कल्याण मंच चारामा द्वारा किया गया था, जिसके प्रधान संरक्षक स्वयं मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह और संरक्षक पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष सोमनाथ यादव हैं।
उन्होंने कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग जिनकी आबादी राज्य में 52 प्रतिशत है के मतदाताओं को रिझाने के लिये पिछड़ा वर्ग आयोग से ओबीसी के लिये शिक्षा और नौकरी में 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश कर, चुनावी ब्रम्हास्त्र के रूप में ओबीसी कार्ड का उपयोग किया  है। मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह अन्य पिछड़ा वर्ग को अपने चुनावी मोहरे के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, इसी लिये विधानसभा चुनाव के पूर्व आयोग से 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश कराई और यह भी अंदेशा है कि आचार संहिता लागू होने के पूर्व आरक्षण सहित छोटी-बड़ी उन सभी मांगों को पूरा कर देंगे, जो राज्य शासन के अधिकार क्षेत्र हैं।
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त्तीसगढ में विकास की रंगहीन धुंधली तस्वीर

                                                      हैट्रिक को लेकर भय व उत्साह
रायपुर। छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी दूजे किस्म के संक्रमण के दौर से गुजरते दिख रहा है। खासतौर पर गुजरात विजय और नरेंद्र मोदी को पीएम का दावेदार व्यक्त किए जाने का रमन सरकार के हैट्रिक पर  पडऩे वाले असर को लेकर यद्यपि भाजपाई उत्साहित हैं, मगर दूसरी ओर एक अंजाना सा भय भी नजर आ रहा है। इसकी पृष्टभूमि भाजपा के दिल्ली अधिवेशन में उन तस्वीरों के बीच बनी, जहंा छाए नमो मंत्र  के बीच मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भी पुख्ता प्रमाण पेश  करने में सफल रहे। लेकिन छत्तीसगढ़ के सीएम डा रमन सिंह के विकास की धुंधली तस्वीर उन $िफज़ाओं में पूरी तरह रंगहीन नजर आयी।
      इधर छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की अंदरूनी सियासत आगामी चुनाव की रणनीतियों पर के्रद्रित हो गई है। पिछले चुनाव में 18 विधायकों के टिकट कटे थे, इस बार वह आंकड़ा 28 तक जाने  का अंदेशा है। इसके बावजूद प्रदेश में भाजपा की स्थिति संशयपूर्ण मानी जा रही है। सारा खेल अब विपक्षी कांग्रेस पर टिक गया है। आशय है कि कांग्रेस यदि माद्दा दिखाती है तो रास्ते कठिन नहीं। भाजपा के हेट्रिक पर रोड़ा लगाने अथवा नहीं लगा पाने के पीछे कांग्रेस के आंतरिक गुण ही जिम्मेदार होंगे।
    गुजरात में नरेंद्र मोदी की सफलता की तुलना छत्त्तीसगढ़ से नहीं की जा सकती। दोनों ही राज्यों में भाजपा की सरकार होने के बावजूद दिशा व दशा में गुणात्मक अंतर है। नरेंद्र मोदी जहां युवा आबादी को कौशल व हुनरमंद बनाने की बात कहते हैं, वहीं छग में रमन सरकार उनके बेरोजगारी भत्ते में इजाफे की घोषणा करते हैं। गुजरात सरकार गरीबों को आर्थिक संबलता मुहैया कर राज्य के विकास में भागीदार बना रहा है, तो छग की भाजपा सरकार गरीबों को सस्ते दर पर अनाज और नमक देकर संतुष्ट कर रही है। 6 करोड़ लोगों के साथ गुजरात अपने संसाधनों के जरिये विश्व क्षितिज पर मुकाम बनाने के सपनों का साकार करने का प्रयास कर रहा है, तो छग में स्थानीय संसाधनों का दोहन सिंडीकेट बनाकर अन्यत्र राज्यों के उद्योगपति कर रहे हैं, राज्य के ढाई करोड़ लोग खामोश देखने विवश हैं।
    गुजरात से तुलना छोड़ दें, तो मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार को छत्तीसगढ़ के समचीन पूरा देश मानता है। केंद्रीय एवं क्षेत्रीय दोनों ही स्तर पर हुए सर्वे रिपोर्ट में शिवराज सिंह की स्थिति अच्छी बतायी गई है। भाजपा के लिए चिंता का सबब सिर्फ छत्तीसगढ़ है। ठोस विकास के बजाए प्रलोभनपूर्ण चुनावी योजनाओं के चलते विकास के मामले में राज्य कई बरस पीछे छूट गया है।
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      आदिम युग में जी रहे थुआपानी के आदिवासी



 


           ज्ञानेश तिवारी       
गरियाबंद । राज्य के अन्तिम छोर में बसे ग्राम थुआपानी के निवासी अपने लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ लघुवनों से प्राप्त करते हैं, आजादी के बाद भी यहां के रहवासियों को मूलभूत सुविधाओं के लिए भटकना पड़ रहा हैं। गोड़ आदिवासी व भुंजिया जिनकी आबादी 80 के लगभग है। यहंा दो मोहल्लों में बंटे हुए हैं, जिने लिए शासन ने एक प्रायमरी स्कूल, आंगनबाड़ी, दो हैन्डपम्प खोद कर गांव को भुल गए हैं।
 जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर ओडिसा सीमा से लगे  ग्राम पंचायत डुमरबाहरा के आश्रित गांव थुआपानी पगडंडी से नदी नालों व पहाड़ों को पार कर 3 घंटों मेें बड़ी मुश्किल से पहुंचा जा सकता हैं।
ग्रामवासियों ने बताया कि दो साल पहले राहत कार्य के अंतर्गत कुछ किसानों की भुमि सुधार कार्य हुआ था। उसके बाद इस गांव में कुछ भी नहीं हुआ। किसी बड़े अधिकारी का पहुंचना  तो दूर की बात है गांव का सचिव व महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी महीने में दो-तीन बार से ज्यादा आने की जरूरत नहीं समझते।
    थुआपानी के ग्रामीण प्रकृति के सहारे अपने आप को ढालकर जीवन गुजार रहे हैं। आसमानी वर्षा के सहारे यहां के किसान खेती करते हैं। चार माह की मेहनत से जितना पैदावार होता हैं, उसे बेचते नहीं, बल्कि अपने खाने के लिए रख लेते हैं। बाकि आठ माह वनों से प्राप्त होने वाले महुआ, तेन्दुपत्ता, सरई बीज, लाख आदि लघुवनों उपज के भरोसे निर्भर रहते हैं, जिसे बेचने के लिए 15 किमी दूर डुमरबाहरा, पिपरछेड़ी, लीटीपारा, रसेला या गरियाबंद आते हैं, और उससे प्राप्त पैसों से सप्ताह भर के लिए किराना व सब्जी तथा जरूरत की खरीदारी अपने परिवार के लिए करते हैं। आज भी इस गांव में किराने की एक दुकान नहीं। आज भी यहां के  लोग झरने के पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं, वैसे तो शासन की ओर से गांव में दो हेन्डपम्प लगाए गए हैं, पर उसमें एक खराब हैं। पानी की समस्या को देखते हुए, समाजसेवी संस्था एकता परिषद व गांव के लोगों के सहयोग एक कुअंा को खोदा गया था, जिसके पानी का उपयोग गांव के लोग करते हैं, वही ग्रामीण नाले के किनारे झरिया का सहारा लेते हंै। गांव में बच्चों के लिए मनोरंजन का किसी प्रकार का साधन नही हैं, बच्चों को जब मोबाईल से फिल्मी गीत का विडियो दिखाया तो वहां मौजुद सभी बच्चें उसे चकित होकर सवाल कर बैठे कि यह क्या हैं, और इसने छोटे इस वस्तु में इतने बड़े-बड़े लोग कैसे समॅा गए ?
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          चुनावी रंजिश ने किया हुक्का पानी बंद

                                  - रमन के सुराज में यह कैसा झोल

शिवकुमार साहू के परिवार का हुक्का-पानी बंद
ग्राम पंचायत कोडिय़ा
 दक्षिणापथ डेस्क
दुर्ग।  सार्वजनिक मंच पर हो रहे नाचा में फूहड़ता व अश्लील कार्यक्रम का विरोध करना एक परिवार को इतना भारी पड़ा कि पंचायत ने गांव में उनकी पौनी-पसारी बंद कर दी। गांव में न केवल उस परिवार से कोई बातचीत कर रहा है, बल्कि बात करने वालों पर भी हजारों रूपय का दंड घोषित कर रखा है। हरियाणा के खाप पंचायतों की तर्ज पर ग्राम सभा का उक्त तुगलकी फरमान बेटी की शादी में भी रोड़ा बन गया है। पीडि़त परिवार ने 22 फरवरी को पुलिस से न्याय की गुहार लगायी थी, किंतु आज तक उन्हें न्याय नहीं मिल पाया। गांवों में सुराज का दंभ भरने वाली डा रमन की भाजपा सरकार जिला मुख्यालय से चंद दूरी पर पंचायत प्रतिनिधियों के इन कारगुजारियों पर नियंत्रण नहीं रख पा रहा है, तो सुदूर बिहड़ अंचलों के गांव-खेड़ों के सामाजिक हालात् क्या होंगे, अंदाजा लगाया जा सकता है?
 दुर्ग जिला मुख्यालय से 22 किमी दूर स्थित ग्राम कोडिय़ा (धमधा तहसील) के पंचायत ने उसी गांव के शिवकुमार साहू के परिवार का हुक्का-पानी बंद कर तमाम कठिनाइयों में डाल दिया है। पीडि़त परिवार ने जिला पुलिस अधीक्षक को पत्र सौंपकर अपनी व्यथा सुनाते हुए न्याय की फरियाद लगायी है। पुलिस को लिखे पत्र में बीएसपी कर्मी शिवकुमार साहू ने बताया कि ग्राम पंचायत कोडिय़ा की महिला सरपंच परमिला साहू, झुमुकलाल साहू, ईश्वरलाल देशलहरे, मनोहर लाल साहू, पूनाराम यादव, देवलाल साहू, खेम बंधे, डेहर साहू समेत अन्य लोगों ने उनके परिवार का हुक्का पानी बंद कर दिया है। अप्रैल में निर्धारित उनकी भतीजी की शादी में भी अंड़ग़ा डालने का फरमान सुना दिया है। इतना ही नहीं, बल्कि गांव के स्कूल में पढऩे वाले परिवार के दो बच्चों को स्कूल से निकलवाने का भी प्रयास सरपंच पति द्वारा किया गया। शिवकुमार साहू के पुत्र वीरेंद्र साहू ने विगत पंचायत चुनाव में सरपंच के विरोध में काम किया था। बस तब से उक्त परिवार के प्रति महिला सरपंच परमिला साहू के पति झुमुकलाल साहू ने रंजिश रखना शुरू कर दिया है। मौके का इंतजार कर रहे सरपंच पति को आखिर उस समय मौका मिल गया, जब गांव में नाचा का सार्वजनिक आयोजन हुआ, नाच के दौरान कुछ महिला एवं असभ्य लोग मंच पर आकर अश£ील शब्दों का प्रयोग करते हुए नृत्य करने लगे, जो पीडि़त परिवार के पुत्र वीरेंद्र साहू को नागवार गुजरा और उसने वहीं उसका विरोध भी किया। इसके बाद से सरपंच पति को उक्त परिवार के प्रति गांव वालों को भड़काने का अवसर मिल गया। तब से यह परिवार ग्राम सभा के तुगलकी फरमान का दंश भोगने विवश है। पीडि़त परिवार ने किसी तरह समझौता करना चाहा तब भी सरपंच पति ने हालात् को जानबुझकर मुश्किल बना दिया। ताकि गांव में वह परिवार शांति से जीवन न गुजार सके। बताया गया कि सरपंच पति की पहल पर ग्राम सभा की बैठक में पुत्र वीरेंद्र साहू पर गलत आरोप लगाकर 26 हजार रू दंड अर्थदंड दिया गया, नहीं देने पर अगली बैठक में दंड की राशि दुगुना कर 52 हजार रू कर दिया। सरपंच एवं सभापति ने यह भी कहा है कि गांव का जो भी व्यक्ति उस परिवार से बात करेगा, उसे 10 हजार रू दंड भरना पड़ेगा। साथ ही इस संबंध में सूचना देने वाले को एक हजार रूपए ईनाम भी घोषित कर रखा है। बीते 18 फरवरी से यह परिवार गांव से अलग-थलग पड़ चुका है। नाई, धोबी से लेकर किराना स्टोर्स एवं चरवाहे भी न तो उनसे बातचीत करते हैं और न ही उनका काम कर रहे हैं। हैरत की बात यह है कि इसी पंचायत में पीडि़त परिवार शिवसाहू की पत्नी स्वयं भी पंच है। इसके बावजूद गांव में परिवार को अपमानित किया जा रहा है। परिवार के घर में आने वाले दैनिक समाचार पत्र को भी पंचायत ने बंद कर दिया है। दूसरी ओर इस संबंध में पूछे जाने पर सरपंच परमिला साहू का कहना है कि परिवार का हुक्का-पानी बंद नहीं किया गया है, यदि ग्राम सभा ने ऐसा कुछ किया भी होगा, तो उसकी मुझे जानकारी नहीं है।
                                                               नंदनी पुलिस भी नहीं सुनी
एक ओर साहू परिवार को ग्राम सभा ने बहिकष्कृत कर रखा है, तो दूसरी ओर नंदनी थाना पुलिस की भूमिका भी लचर है। सरपंच पति एवं ग्रामसभा अध्यक्ष की दबंगई गांव में ही नहीं, बल्कि पुलिस थाने में भी चलती है। उन्हीं के दबाव में नंदनी पुलिस न तो इस परिवार की फरियाद सुन रही है और न ही सुरक्षा का बंदोबस्त कर रही है। स्थानीय पुलिस की रवैय्ये से हताश परिवार ने जिला पुलिस अधीक्षक से गु़हार लगायी है।

Monday 4 March 2013

1 march 2013

900 के कूपन में ओव्हरलोडिंग का लायसेंस  

-दाऊ और राजू बने आरटीओ के ....डान दक्षिणापथ टीम 

 दुर्ग। ओव्हर लोड के नाम पर वाहन चालकों से अवैध वसूली कर अधिकारी किस तरह करोड़ों रूपए की काली कमाई कर रहे हैं, इसका ज्वलंत उदाहरण आरटीओ के दुर्ग डिविजन में साक्षात् देखा जा सकता है। राजनांदगांव, कवर्धा, बालोद, बेमेतरा और दुर्ग जिले के हजारों वाहनों को चालानी कार्रवाई का डर दिखाकर इस गोरखधंधे को बदस्तूर अंजाम दिया जा रहा है। आरटीओ विभाग का यह कारनामा रमन सिंह के हैट्रिक के सपने पर भी पानी फेर सकता है। विभाग से पीडि़त हर शख्स इस लूूट खसोट के लिए सीधे-सीधे सरकार को जवाबदार मानता है। दरअसल, कथित विभागीय अधिकारी इसके पीछे चुनावी चंदा जुगाडऩे की वजह बता देते हैं। राज्य निर्माण के साथ ही छत्तीसगढ़ लिखी हुयी वाहन जब राज्य के साथ देश की सड़कों पर दौडऩे लगे तो प्रदेश की नयी पहचान मिलने लगी। किन्तु राज्य को पहचान दिलाने वाला परिवहन विभाग ही जब लुट-खसोट करने लगे, तो समझो जनता की शामत आ गयी। उच्च अधिकारियों के साथ छोटे-मोटे धंधा करने वाले भी आज आरटीओ की धौंस दिखाकर वाहन चालकों को लूटने लगे हैं। दुर्ग जिले से गुजरने वाली हर गाडिय़ों में आरटीओ का कमीशन बंधा हुआ है। अधिकारियों के सरंक्षण में हर महीने करोड़ों का गोलमाल किया जा रहा हैं और सरकार आँख पर पट्टी बांधे हुए हैं। ये सब हो रहा है दुर्ग स्थित आरटीओ कार्यालय में। कमोबेश सभी अधिकारियों ने अपने निजी एजेंट पाल रखे हैं, जो शहर में ओव्हर लोड के नाम पर चालान की गई वाहनों को छुड़ाने का ठेका लेते हैं। बड़े-बड़े वाहनों में नजर आने वाले ओव्हर लोडिंग का सीधा मतलब वाहन मालिक व आरटीओ का सांठगाँठ है। अब विभाग ने एक नया सिस्टम चालू कर रखा है, एंट्री पास के नाम पर 600 व 900 रू कीमत वाले विशेष कूपन चलाए जा रहे हैं, जिसके पास कूपन है उसे बिंदास ओव्हरलोडिंग करने की जैसे परमिशन मिल गई है। कूपन नहीं लेने वाले वाहन मालिक अनाप-शनाप चालानी कार्यवाही से बेमौत मारे जा रहे हैं । बताया जाता है कि चालानी कार्यवाही के तहत ओव्हर लोडिंग के नाम पर 25 हजार से एक लाख रू तक फाइन ठोंक दी जाती है। विडंबना यह है कि फाइन वसुलने वाले शख्स खुद आरटीओ के कर्मचारी नहीं होते हैं और चालानी शुल्क न्यायालय में जमा कराने के बजाए इनके निजी दफ्तर में तथाकथित फर्जी रसीद के जरिये जमा होता है। सवाल उठाना लाजि़मी होगा कि माइनिंग, आबकारी सहित अन्य विभागों में चालानी कार्यवाही और दंडित राशि की जानकारी अखबारों के दफ्तरों तक पहुंचायी जाती है, किंतु आज तक आरटीओ विभाग ने की गई कार्रवाई और वसूली गई राशि का विवरण किसी अखबार तक नहीं पहुंचायी है। क्योंकि पूरा खेल ही यहंा गोरखधंधे का चल रहा है। क्या है कूप कूपन का रंग और छाप हर माह बदलते रहता है, जिसे हर अधिकारी और कर्मचारी पहचानते हैं। एक कूपन की कीमत 6 सौ से 9 सौ है, जो प्रत्येक भारी वाहनों के लिए होता है। कूपन लेना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि फ्लाईंग स्क्वाड के कार्यक्षेत्र में दुर्ग के अलावा बेमेतरा , बालोद राजनांदगाव और कवर्धा जिले भी आते है। सभी जिलों को मिलाकर वाहनों की संख्या लाखों में है। हर महीने उडऩदस्ता की काली कमाई का आंकड़ा करोड़ों पार कर जाता है जिसका सरकारी रिकार्ड में नामों-निशान नहंी होता । अवैध वसूली की ये मलाई सब बांटकर खाते हैं और शासन को करोड़ों का चूना लगाया जा रहा है। दुर्ग से होकर गुजरने वाली वाहनों को भी इसकी बाध्यता है चाहे वो महीने में एक बार ही दुर्ग क्यो न गुजरे। कूपन दिखाओ, खुद जान जाओ वाहन मालिकों को शासकीय नियमानुसार निर्धारित वजन के साथ ही गाड़ी चलाने की अनुमति है किन्तु मुनाफे के चक्कर में मालिक और ऊपरी कमाई के लालच में अधिकारी खुलकर सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाते है। कूपन लगे वाहनों में चाहे जो भी हो और जितना भी ओव्हरलोडिंग हो, रोकने वाला कोई नही। वाहनों में चस्पा कूपन दर्शाता है कि मलाई दे दी गयी है। कौन है राजू और दाऊ उडऩदस्ता की टीम में राजू यादव और सर्वेश सिंह उर्फ दाऊ नामक दो बाहरी व्यक्ति, जो विभाग में न होकर भी विभाग के सरकारी दस्तावेज के साथ दिन भर खेलते रहते है ।् अधिकारी सिर्फ फाइलों में हस्ताक्षर करते हैं बाकी का काम दाऊ और राजू करते हैं। दाऊ नामक यह व्यक्ति उडऩदस्ता के आदर्श नगर स्थित कथित कार्यालय में चौबीसों घंटे बैठता है। गैर विभागीय व्यक्ति किस हैसियत से सरकारी दस्तावेज को मेंटनेंस करता है और कूपन देता है यह आरटीओ अधिकारी ही जाने। दाऊ ही वाहन मालिकों को कूपन बेचता है जो सरकारी रसीद या दस्तावेज नहीं, बल्कि आरटीओ की अवैध वसूली का सर्टिफिकेट माना जाता है। दाऊ द्वारा वसूला गया पैसा आरटीओ के अदने से लेकर बड़े अधिकारी तक पहुंचता है। दाऊ ऑफिस के अन्दर चालानी की फर्जी कार्रवाई करता है और राजू सड़क पर आरटीओ टीम के साथ वसूली करता है। ओव्हर लोडिंग वाहनों पर कार्रवाई की रसीद काटने के बाद आरटीओ के अधिकारी तयशुदा योजना के तहत ऐसे गायब हो जाते हैं, जैसे गधे के सिर से सिंग। वाहन संचालक जब चालान की राशि पटाने आदर्श नगर स्थित कार्यालय जाते हैं, तब वहंा राजू और दाऊ ही मिलते हैं। जबकि चालान कटने के बाद की सारी कार्यवाही अदालत में होना चाहिए। आरटीओ विभाग आदर्श नगर में किस तरह समानांतर अदालत चला रहा है, पूछने वाला कोई नहीं?
 राजू का खुलासा  
राजू आरटीओ में किस पद पर है, आरटीओ कार्यालय में निरीक्षक रहे विवेक शर्मा से पूछा गया तो उन्होंने राजू को ही आरटीओ बताया। राजू आरटीओ में नहीं है, बल्कि अपने आप में पूरा आरटीओ ही है। साहब का काम फ ाईलों में दस्तखत करना है और राजू ऊपरी वसूली देखता है । आरटीओ निरीक्षक विवेक शर्मा के अनुसार विभाग में चल रहे कूपन सरकारी रसीद या दस्तावेज नहीं है, पर विभाग में धड़ल्ले से दौड़ रहा है, जिसकी जानकारी विभागीय अधिकारी और मंत्रियों तक को है। इसके बावजूद भी ओव्हरलोड के नाम पर अवैध कमाई पर लगाम नहीं लगाना कई संदेहों को जन्म दे रहा है, इससे स्पष्ट होता है कि इस गोरखधंधे के हमाम में सभी नंगे होकर माल कूटने में लगे हैं। 
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 राऊत नाचा महोत्सव 
  योद्धा नर्तन के जरिये युद्ध नृत्य  
दुर्ग। यादव संघ मित्र कल्याण मंडल व छग शासन के संस्कृति विभाग के सहयोग से उरला में आयोजित राऊत नाचा महोत्सव में योद्धा नर्तन के जरिये युद्ध नृत्य का आयोजन किया गया। बांसुरी की माधुर्य और लाठियों का शौर्य अद्भूत दृश्य उपस्थित कर रहा था। हरेक हाथ में लाठी लहरा रहे थे और जुबान से दोहे की तान निकल रही थी। योद्धा नर्तन में आयोजित छत्तीसगढ़ के सामाजिक शुभंकर राऊताईन हाथा में 45 प्रतियोगी दलों ने शिकरत की। चित्रकला स्पर्धा में 55 महिलाओं प्रतियोगी शामिल हुए। आयोजन में सांसद सरोज पांडेय, केबिनेट मंत्री हेमचंद यादव, पूर्व विधायक अरूण वोरा, प्रकाश यादव, पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष सोमनाथ यादव, पार्षद खुमान साहू, ललिता यादव, रेखा यादव, स्वाभिमान मंच के नेता राजेंद्र साहू ने आयोजन में उपस्थिति दी। गोपिका दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति मर्या., दुर्ग की महिला सदस्यों ने सांसद सरोज पांडेय, सोमनाथ यादव व मंत्री हेमचंद यादव को तलवार भेंट किये। आयोजन को सफल बनाने में राजेश यादव, गोकुल यादव, कमलेश यादव, हर्षहिंद , राजदीप, ललित यादव, बृजेश यादव एवं ग्राम उरला के गोविंद यादव, पवन यादव, सुरेश यादव, विष्णु यादव समेत अन्य लोगों का अच्छा सहयोग रहा। 
कलात्मकता व पौराणिकता का प्रतीक है राऊताईन हाथा
 
 राऊताईन हाथा मनुष्य जाति की कलाप्रियताव पौराणिकता का प्रतीक है। यह कार्तिक मास में दीपावली के समय अमावस्या, दवऊठनी व पूर्णिमा के दिन बनाया जाता है। यह एक तरह का लोकचित्र शैली है जो दीवार पर बनायी जाती है। इसे राऊत जाति की महिलाओं द्वारा प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर बनाया जाता है। उसमें वे सेमी, तरोई पत्ता का रस, महूर, आलता, नील, टहर्रा आदि रंगों से चौकोर गोल, षष्टकोण, अष्टकोणीय या पहाडऩुमा हाथा बनाती है। हाथा का सीधा अर्थ हाथ से निर्माण है। राऊताईन महिलाएं दीपावली के समय सुबह से ही टोकरी में रंग, कुची व रूई लेकर अपने मालिक के घर में जाती है। रसोई घर, गौशाला, अन्न भंडार कोठिया में कई आकार व रंगों का उपयोग कर हाथा बनाती है। यों तो हाथ अन्य कई अवसरों पर भी बनाए जाते हैं, मगर नए निर्मित भवनों में बहन-बुआ, चावल आटे के घोल से हाथा बनाती है जो हथेलियों की छाप होती है। चूंकि इसे राऊताईन महिलाएं बनाती है इसलिए राऊताईन हाथा कहा जाता है। इसके पीछे रोचक कारण बताए जाते हैं। पहली यह कि हाथ बनाकर महिलाएं अपने-अपने मालिक के घरों की पहचान करती है। राकि राऊत लोग जब सोहई बांधने े लिए गांव की गलियों में निकले तो पहचान जाए कि यह उनके मालिक का घर है। दूसरी वजह पौराणिक है। हाथा को राऊताईन महिलाएं गोवद्र्धन पर्वत का प्रतीक मानती है। साजा ग्राम की 70 वर्षीया महेतरीन बाई व दीपक नगर दुर्ग की राधा बाई यादव का कहना है कि यह गोवद्धत्र्रन पर्वत का नमूना है। इसी पर्वत को भगवान श्री कृष्ण ने अपनी बायें हाथ की छिनी उंगली में उठाकर ग्वाल बाल गोधन व नगर वासयिों की इंद्र के कोप से रक्षा की थी। इसके बाद से लोगों ने गोवर्धन त्यौहार मनाना शुरू किया। इसी दिन राऊताईन हाथा बनाने की शुरूआत हुई थी। आज तक विभिन्न परिवर्तनों के बाद भी हाथा बनाने की परंपरा कायम है। इसे बनाना महिलाएं परंपरा से सीखती हैं। अपनी मांश् बहन, बुआ के साथ कुंवारी कन्याएं हाथा बनाना सीख जाती है। जब महिलाएं हाथा बनाकर वापस लौटती है तब मालकिन उन्हें शेर-सीधा, रूपया व नए कपड़े भेंट करती है। महलाएं कई महीने पहले अपने मस्तिष्क में हाथा गढऩे की कल्पना कर लेती है। फिर जिस दिन बनाना होता है उस दिन तो वे अपनी पूरी कलाधर्मिता का परिचय देती हैं। पूरे सौंदर्य बोध क ेसाथ रंगों का समायोजन देखते ही बनता है। पहले कूची के सहारे रेखाएं खिंचती है फिर मनचाहा रंगों से सजाती है। कई महिलाएं इसमें सुआ, पड़की व मोर का चित्र भी अंकित करती है। हाथ दरअसल अभिव्यक्ति की बेहद प्राचीन रेखाए हैं। गुफाकालीन शैल चित्रों से इनका निकटतम संबंध है। जिस प्रकार से भीमबेटका, कबरा पहाड़ी, रामगढ़ की गुफाओं में चित्र मिले हैं, उसमें संपूर्ण कला संस्कृति की झलक मिलती है। हाथ में महिलाएं अपने मन में विद्यमान कला सौदर्य का रेखओं के माध्यम से दीवारों पर उकेरती है। गोल, चौकार, त्रिकोण जैसे ज्योमितीय आकारों में समानांतर खीची जाने वाली रेखांए मन को सहज रूप से आकर्षित करती है। ये रेखाएं कहीं उलझती नहीं है। जिन महिलाओं का हाथा बनाने में महारत हासिल होती है, समाज में उनका सम्मान बढ़ जाता है। शाम होते-होते राऊत लोग गाजे-बाजे के साथ मालिक के घर सोहई बांधने निकलते हैँ। तब वे बड़े उत्साह के साथ गौशाला जाकर मालकीन द्वारा सूपे में दिए गए धान से गोबर की लोंदी लिटा कर हाथा पर थाप देते हैँ। इसे सुखधना कहा जाता है। यहंा पर राऊत निश्चल मन से मालिक के सुखी व दीर्घायु होने की कामना करता है। पान खाये सुपाड़ी मालिक, सुपाड़ी के होये दो कोर रंग महल में बैठो मालिक राम-राम लेव मोर आवत देव गारी गुटा, जावत देव अशिष देधे खांव पूत बिहाव, जूम जियो लाख बरिस अन्न धन्न भंडार भरे मालिक, जीयों लाख बरिसा जइसन जइसन दिहौ मालिक , तइसन लियो असीसा गौशाला में सुखधना देने के साथ ही राऊत गायों-भैसों को सोहई बांधते हैँ। फिर रसोई घर या कोठी पर बने हाथा में भी सुखधना दिया जाता है। घर मालकीन शेर-सीधा, रूपया व नई धोती देकर राऊत का सम्मान करती है। इस दिन राऊत का आर्शिवाद मालिक के लिए बड़ा अनमोल होता है। वह उचित भेंट पाकर गदगद हो जाता है। मनुष्य के भीतर का निष्छल प्रेम इस दिन परस्पर प्रकट होता है। इस तरह हाथा जहंा कलात्मकता का अनुपम प्रतीक है वहीं अनेक कथा-प्रसंगों को अपने में समेटा हुआ है। सदियों से इसकी निरंतरता ने इसके महत्व को और भी बढ़ा दिया है। वर्तमान में इसे पूरे समुदाय के बीच फिर से स्थापित करने की जरूरत है। इसे सिर्फ राऊत जाति विशेष की कला कहकर नकारा नहीं जा सकता, बल्कि संपूर्ण मानव जाति की कला कहना उचित होगा। इसमें पौराणिक कथा-प्रसंगों के साथ ही कई पीढिय़ों की कलाप्रियता व सौंदर्यबोध का अनूपम संगम है।
 संकलनकर्ता 
 श्रीमती करूणा राऊताई यादव
 सचिव महिला प्रकोष्ठ यादव संघ मित्र कल्याण मंडल
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ब्राउन शुगर के नाम पर चूहा मार दवाई !
 दक्षिणापथ डेस्क 
राजनांदगांव। हाल के दिनों में राजनांदगांव से रायपुर तक ब्राउनशुगर पकड़ाने का जो क्रम चल रहा है, दरअसल वह ब्राउनशुगर ही नहीं है। बल्कि ब्राउनशुगर का फ्लेवर मिला चूहे मारने की दवाई है। रेटाल, रैक्ट्स व रिट मार्पिंन जैसे चूहे मारने की साधारण दवाओं को बारिक पीस कर एसेंस तैयार किया जाता है, फिर उसी एसेंस में ब्राउन शुगर की थोड़ी मात्रा छिड़क कर नशेडिय़ों को बेचा जा रहा है। ब्राउन शुगर के नाम चलाए जा रहे गोरखधंधे में पुलिस भी चकमा खा गई है। ब्राउन शुगर तस्करी के नाम पर दर्जनों लोगों को पुलिस ने माल सहित दबोचा है और नारकोटिक्स एक्ट के तहत मुकदमा भी चलाया है, मगर जब जब्त समान ब्राउन शुगर ही नहीं है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कैसी तस्करी और कैसा मुकदमा। सूत्र बताते हैं कि आरोपी से बरामद ब्राउन शुगर लैब में बकायदा जांच कराया जाता है और उसी जांच की वह कापी न्यायालय में पेश होती है। हर साल दर्जनों मामले पुलिस में आने के बावजूद ब्राउन शुगर तस्करी के आरोप में फिलहाल किसी भी आरोपी को सजा नहीं हुई है। इन कथित ब्राउन शुगर तस्करों को पकड़कर प़ुलिस भले ही अपनी पीठ थपथपा लेती है और अखबारी सूर्खियां भी हासिल कर लेती है, मगर न्यायालय में ट्रायल के दौरान उस मामले का क्या नतीजा निकला, पुलिस यह नहीं बताती। ऐसा नहीं है कि पुलिस द्वारा बरामद सारे ब्राउन शुगर नकली हो, मगर जानकारों की माने तो 80 से ज्यादा प्रतिशत मामलों में नकली माल बरामद होते हैं। यह भी जानकारी मिली है कि असली और नकली दोनों तरह के ब्राउन शुगर के तार महाराष्ट्र से जुड़े हैं। लोकल धंधा करने वाले निचले स्तर के तस्करों को भी शायद यह $गुमान नहीं कि वे ब्राउन शुगर के नाम पर चूहे मारने का पाउडर बेच रहे हैं। वहीं दूसरी ओर जिस ब्राउन शुगर का नशा कर नशेड़ी लोक-परलोक की स्वर्गिक आनंद यात्रा करते हैं, सही मायनों में भी वह भी मन का वहम है। जब ब्राउन शुगर ही नकली है, तो उसका असर असली कैसे हो सकता है? मालूम हो कि ट्विनसिटी में एक ग्राम ब्राउन शुगर डेढ़ सौ से दो सौ रूपए की कीमत पर बेची जाती है। जबकि इतने रूपयों में पाव भर चूहे मारने की दवा बाजार में उपलब्ध है। चंूकि चूहा मार दवाई की मात्रा एसेंस के जरिये कई गुणा बढ़ा लिया जाता है, अत: अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस गोरखधंधे में लगे लोग कितना मुनाफा कमा रहे हैं। भिलाई के लाल बहादूर शास्त्री अस्पताल में संचालित ओप्यार्ड सब्टीट्यूशनल थरेपी (ओएसटी) सेंटर में भी ब्राउन शुगर के नशे का आदि हो चुके कुछ युवाओं के परीक्षण रिपोर्ट में चौकाने वाले रिपोर्ट ( अनौपचारिक) मिले हैं। वे युवा जो अब तक खूद को ब्राउन शुगर का एडिक्ट मानते थे, उनके परीक्षण में ब्राउन शुगर सेवन के लक्षण नहीं थे, अलबत्ता चूहा मारने की दवा जैसे घटिया किस्म के एलीमेंट ब्लड में पाए गए। जानकार बताते हैं कि पांच-सात दफे भी यदि किसी ने ब्राउन शुगर का सेवन किया है तो अंोट व दांत में उसके निशान बन जाते हैं। हालांकि नकली ब्राउन शुगर का इस्तेमाल करने का तरीका पीडि़त युवक वैसे ही बतलाते है जैसे असली का किया जाता है। समझना कठिन नहीं कि नशे के नाम पर मन को कमजोर बना चुके उक्त युवक चाहे तो थोड़े सीे डाक्टरी मदद के बाद फिर से नार्मल लाइफ जी सकते हैं।  ------
 चोरी-छिपे भू्रण परीक्षण!  
 
 
।। दक्षिणापथ डेस्क।। शहर में चोरी-छिपे भू्रण परीक्षण करने वालों पर शिकंजा कसने की पूरी तैयारी कर ली है। इसके तहत छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा नयी योजना बनायी गयी है। दरअसल, यह निर्णय प्रदेश के शहरों में चोरी छिपे भ्रूण परीक्षण होने की खबर आने की बाद लिया गया है। निर्णय में ध्यान रखा है कि इसमें बेटियों को परेशानी नहीं हो। कुछ दिनों पहले तिल्दा नेवरा, बिलासपुर और सरगुजा के कतिपय सोनोग्राफी सेंटरों में भ्रूण परीक्षण एवं कन्या भू्रण हत्या करने की अपुष्ट जानकारी सामने आ रही थी। इस अपराध में कुछ सफेदपोश चिकित्सकों के संलिप्त होने की बात भी कही जा रही थी। हर हाल में कन्या भ्रूूण हत्या पर रोक लगाने शासन ने सभी सोनोग्राफी केंद्रों को जांच के दायरे में लिया है। स्वास्थ्य विभाग ने गर्भ निर्धारण केंद्रों और सोनोग्राफी केंद्रों की नियमित जांच के निर्देश दिए हैं। जिलों में भी इसका पालन करने की हिदायत स्वास्थ्य अधिकारियों को दी गई है। साथ ही हर महीने 5 केस बनाने के आदेश जारी किए गए हैं। इस संबंध में राज्य स्तरीय कार्यशाला आयोजित करने पर भी विचार किया जा रहा है। फैसले की सराहना सामाजिक सरोकार संस्था की सदस्य कुमुद गुप्ता ने स्वास्थ्य विभाग के फैसले की सराहना करते हुए कहा कि इससे लोग चोरी-छिपे भू्रण परीक्षण नहीं करा सकेंगे। परीक्षण कराने वाले केंद्रों पर भी अब लगाम कसी जा सकेगी। यह बेटी बचाने का प्रशंसनीय कदम है। सोनोग्राफी मशीन शासन की अनुमति से रखना जरूरी है, लेकिन अब इन केंद्रों में शासन ने भू्रण परीक्षण कराने वालों पर कड़ी नजर रखी है। इससे निश्चित ही बेटियां बचाई जा सकेंगी। -- ----------- 
 डेढ़ दशक में टूट गए सात जन्मों के रिश्ते दक्षिणापथ डेस्क पति-पत्नी के बीच अनबन की समस्या कमोबेश सभी युगों में विद्यमान रही है। सात जन्म साथ रहने की कसमें खाने वाले लोग एक जन्म भी ईमानदारी से साथ नहीं रह पा रहे हैं। अधिकांश लोग शादी के 15 वर्ष बाद रिश्ता तोड़ रहे हैं। फैमिली कोर्ट में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ी है, जो आधा जीवन साथ बिताने के बाद तलाक की अर्जी दे रहे हैं। इनके ऐसा करने की मुख्य वजह पति या पत्नी का दूसरे से रिश्ता जोडऩा है। विवाह के बाद अवैध संबंध और दोस्ती के चलते अधिकांश लोग हंसता-खेलता परिवार तोड़ रहे हैं। प्रदेश के फैमिली कोर्ट में तलाक लेने वालों की तादात बढ़ी है। अर्जी लगाने वाले अधिकांश लोग 40 से 55 वर्ष की उम्र के हैं। कोर्ट में पहुंचने वाले प्रकरणों में से लगभग मामले इसी तरह के हैं। महीने में दर्जन भर से ज्यादा केस तीसरे की मौजूदगी के चलते तलाक लेने के आते हैं, जिसमें से करीब पांच प्रकरणों में तलाक हो रहा है। परामर्श दाताओं की मानें तो तलाक बढऩे की कई वजह हैं, जिसमें परिवार में पति को बराबर का सम्मान नहीं मिलना, बच्चों के चलते पति की उपेक्षा होना, टीनएजर्स बच्चों को पिता से बात नहीं करने देना और परिवार में पिता की भूमिका कम होना है। फैमिली कोर्ट में दर्ज प्रकरणों में समझाइश की गुंजाइश रखी जाती है। तलाक की अर्जी लगाने वालों की काउंसलिंग की जाती है। अदालत की कोशिश रहती है कि परिवार नहीं टूटे। इस तरह के प्रकरणों में एक-दो केस टूटने से बचा पाते हैं। अधिकतर लोग अलग होने पर निर्णय लेकर ही अदालत पहुंचते हैं। केस-1 : शादी के 14 वर्ष साथ बिताने के बाद संजीव गुप्ता (परिवर्तित नाम) ने फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी लगाई है। उनका आरोप है कि पत्नी के पास उनके लिए वक्त नहंीं है। वे बच्चों को बड़ा करने में उनकी ओर ध्यान नहीं दे रही हैं। वहीं पत्नी मंजु (परिवर्तित नाम) का कहना है कि पति का किसी दूसरी महिला से प्रेम संबंध है। इसलिए वे साथ नहीं रहना चाहते। केस-2 : 16 वर्ष का सफल वैवाहिक जीवन बिताने के बाद सुपेला , भिलाई निवासी आकाश (परिवर्तित नाम) पत्नी दीपा (परिवर्तित नाम)से अलग होना चाहते हैं। धमतरी से ब्याह कर आई दीपा का कहना है कि वह अपने दो बेटियों व परिवार पर पूरा ध्यान दे रही हैं। पर पति को और क्या चाहिए, वह जानना नहंी ही चाहतीं। वहीं पति आकाश के इन वजहों को बहाना बता रहे हैं। उनका कहना है कि पति किसी और से शादी करना चाहते हैं। इसलिए ऐसी बात कर रहे हैं। केस-3: बीएसपी कर्मचारी अशोक बिजौर की पत्नी शादी के 17 साल बाद पति से इसलिए तलाक ले ली, क्योंकि वह अपनी छोटी बहन के पति के साथ परिवार बसाना चाहती है। इस क्रम में उसने अपनी छोटी बहन को भी उसके पति से तलाक दिलवा दिया, अब वह अपनी 16 साल की बेटी के साथ रायपुर में सेटल हो गई हैं। उसने मायके से संबंध पूरी तरह खत्म कर लिया है। उम्र के आधे पड़ाव में आशिनाई की प्रवृत्ति ने दो परिवारों को भी बर्बाद कर दिया। 000 
जमीन बिकने का चेहरे पर झलकता दर्द  
गांवों की खुशहाली को निगलती महुए की गंध सुविधाओं को तरसते ग्रामीण भिलाई। सूरज के बादलों में लुका छिपी खेलते खुशनुमा मौसम के बीच कच्चे, पक्के, टेढे-मेढ़े रास्ते से गुजरती स्पेशल बस..... दोनों ओर विधवा की मांग की तरह सूने ज्यादातर खेत, तो कुछ में लहलहाती गेंहू, चने, मक्के की फसलें और बसंत के आगमन का संदेश देती सरसों..... इनसे लगे छानी, छप्पर और बाड़ी-बखरी वाले गांव... बस के रूकते ही उत्सुकता और खुशी से ग्राम्य बच्चों, युवाओं, बूढों और महिलाओं का लगता मजमा.... तरिया के पार खड़ा दिललगी कर बरदी चराते गाना गाता लड़का-ये छत्तीसगढ़ हे सुन ले भईया एखर राम कहानी...... पेट हे पिचके हाथ हा खाली कईसे बीत ही जिंदगानी...... गांव मा बहीथे मंद के नदिया पर पिए बर नई हे पानी.... इस गीत में एक आम ग्रामवासी का दर्द बयां हो रहा। यह दर्दनाक सच्चाई जिले के आधा दर्जन गांवों में बिखरी हुई थी। देश के दीगर गांवों की तरह ये वे गांव है जिनके दिन बहुरने का सपना बापू, विनोबा और चंदूलाल चंद्राकर ने देखा था। लेकिन वक्त के साथ सरकारें, नेता और अफसर बदलते रहे पर नहीं बदली तो इन अभागे गांवों की तस्वीर। सुविधाओं के लिए तरसते और विकास की बाटे जोहते इन गांवों को जब करीब से देखा तो सरकार के रहनुमाओं के खुशहाल, समृद्ध और विश्वसनीय छत्तीसगढ़ से जुदा एक अलग ही दृश्य दिखाई दिया। यह दृश्य जितना पीड़ादाई है उतना ही निराश कर देने वाला भी है। इन गांवों में छत्तीसगढिय़ां सबले बढिय़ा आज भी शोषित, पीडि़त और उपेक्षित है। हाड़तोड़ मेहनत कर जांघर चलाने वाले खेतिहर मजदूरों, छोटे किसानों, युवकों का पसीना और पैसा शराब दुकानों में शराब और आंसुओं के रूप में बह रहा है। खेतिहर मजदूर नहीं मिलने से बेबस किसान अपने खेत औने-पौने दाम पर सेठ-साहूकारों को बेच रहे है। किसी गांव में खाद बीज खरीदने सोसायटी नहीं है, तो किसी गांव में पेयजल निस्तार व सिंचाई का टोटा है। कहीं स्कूल व अस्पताल तथा डाक्टर व शिक्षक नहीं है तो कहीं गरीब कंडरा आदिवासी वर्षो से बांस नहीं मिलने से रोजी-रोटी के संकट से जूझ रहें है। इन भयावह दृश्यावलियों के बीच दूर किसी गांव में आयुर्वेद, गौशाला और उन्नत कृषि तकनीकों से अपनी जमीन, संस्कृति और जीवन को बचाने संघर्ष करता एक उम्रदराज अस्वस्थ्य व हौसलामंद किसान अंधेरो में उम्मीद की किरण दिखाई देता है। न्यू प्रेस क्लब आफ भिलाई द्वारा आयोजित ग्राम्य अध्ययन यात्रा के तहत पत्रकारों के दल ने दुर्ग जिला के पाटन विकासखंड के ग्रामों का दौरा कर वहां के जन जीवन और समस्याओं को करीब से देखा। जिला मुख्यालय दुर्ग से मध्य 30-35 किमी की दूरी पर स्थित पाटन, अखरा, अमेरी, सावनी, कुरूदडीह, फुंडा व उतई के गांवों से रूबरू होते हुए जो समस्याएं दिखाई दी उनके बारे में शहरों में बैठकर कल्पना करना भी मुश्किल है। आजादी के 67 वर्षो बाद भी विकास का सूरज इन गांवों तक नहीं पहुंचा है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद लोगों ने सोचा था कि यह राज्य तेजी से तरक्की करेगा और विकास की गंगा उनके गांवों तक भी पहुंचेगी। किंतु 12 वर्षो बाद भी उनका यह सपना पूरा नहीं हुआ। सियासी रहनुमाओं ने वोटों और वादों की फसल तो खूब लहलाई पर खेतों में फसल लहलहाने में रूचि नहीं दिखाई। खाद, बीच, ऋण, सिचाई की किल्लत और अब सिमटते खेतों से किसानों के चेहरे मुरझाए है। युवा खाली हाथ है। पानी, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी समस्याओं बहुतेरी दिक्कते ग्राम सुराज अभियान और जनदर्शनों की कलई खोल रही है। राजधानी और भिलाई-दुर्ग जैसी चमचमाती चिकनी-चौड़ी सड़के, सतरंगी फूलों और फौव्वारों के आकर्षक चाक-चौराहे तो इन गांवों के लिए जैसे सपना है। समस्याग्रस्त इस ग्राम्य अंचल में सुविधाओं के अभाव में नारकीय जीवन गुजार रहे हताश ग्रामीणों का जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों के प्रति गुस्सा पत्रकारों को देखते ही फूट पड़ता है। पाटन में आदिवासियों को रोजी रोटी के लाले पाटन कहने को तो ब्लाक और तहसील मुख्यालय है यहां दिया तले अंधेरा जैसी स्थिति है। सर्वाधिक उपेक्षित मोहल्ले कंडरापारा में समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। सबसे बड़ी समस्या आदिवासी कंडरा जाति के लोगों की है। जिन्हें बांस की किल्लत से जूझते हुए रोजी-रोटी के लाले पड़े हुए है। मोहल्लेवासियों ने तल्ख लहजे में बताया कि शासन से कंडरा जाति के एक परिवार को हर साल 15 सौ बांस प्रदान करने का नियम है। किंतु भाजपा के शासन में 9 वर्षो से 2 से 4 सौ बांस ही वन विभाग द्वारा दिया जा रहा है। आदिवासी कंडरा समाज मजदूर कल्याण समिति के अध्यक्ष राजकुमार ने बताया कि मुख्यमंत्री को भी ज्ञापन देकर नियमित व पर्याप्त बांस दिलाए जाने की गुहार की गई है, पर अब तक कोई ध्यान नहीं दिया गया। पार्षद रेखा मरकाम, मीना सोनवान, उषा व केजा बाई ने बताया कि सुपा, टोकनी व पर्रा आदि बनाकर गुजारा करते हंै किंतु 2-3 सौ बांस ही मिलने से एक जून खाकर जीना पड़ रहा है। संसदीय सचिव विजय बघेल व सांसद सरोज पांडे को समस्या बताने के बाद ही डीएफओ रेंजर ने कच्चा व पतला बांस भिजवा दिया जिससे सामान नहीं बनता। रामबती ने कहा कि का हमरे मोहल्ला बर बांस के दुकाल पड़े हे, गरीब मनके कोई सुनइया नइ हे। यादवराम ने बताया कि मोहल्ले में बिजली, पानी, नाली व गंदगी की समस्या को लेकर चक्काजाम करने के बाद भी नगर पंचायत निदान नहीं कर रहा है। बुद्धु तरिया में सिवरेज का पानी डालने से हम प्रदुषित पानी में नहाने मजबूर है। प्यासे खेत और सुखे कंठ ग्राम सावनी और फुंडा में सिंचाई और पेयजल समस्या को लेकर ग्रामवासियों में जनप्रतिनिधियों के प्रति भारी रोष देखा गया। सावनी के निवासियों ने बताया कि भूजल संरक्षण विभाग द्वारा ग्रामवासियों की मांग 33 लाख लागत से 3 वर्ष पूर्व बांध बनाया गया था पर अब तक पोंगा नहीं डालने से खेतों की सिंचाई नहीं हो पा रही है। रवि की फसल नहीं ले पा रहे है। ग्राम फुंडा में भी योगेंद्र चंद्राकर ने बताया कि जलाशय को पंचायत द्वारा पटवा देने व नहर नाली में पाईप नहीं लगाने से किसानों की 150 एकड़ खेतों की सिंचाई नहीं हो पा रही है। सरपंच श्यामा साहू ने बताया कि पाईप उन्होंने नहीं जल संसाधन विभाग ने निकाला है। सावनी में ग्रामवासियों को दूर से पीने का पानी लाना पड़ रहा है। गिरधर ने बताया अब तक नल कनेक्शन नहीं दिए जाने से ग्रामवासियों को पेयजल समस्या से जूझना पड़ रहा है। सरपंच मनहरण यादव ने बताया कि पाइप लाइन बिछ गई पर मोटर का काम छोड़कर ठेकेदार भाग गया है। पेयजल के अलावा ढाई हजार आबादी और 12 सौ मतदाता वाले इस गांव में सोसायटी नहीं होने से किसानों को खाद व बीज के लिए 10 किमी दूर झीट जाना पड़ता है। नारायण व कार्तिक राम ने बताया कि यहां सहकारी समिति का उपकेंद्र सिर्फ कागज पर है। इसके लिए चयनित जगह पर भवन नहीं बना है। हम गांव में ही सहकारी केंद्र की मांग कर रहे है किंतु कोई किसानों की सुनने वाला नहीं है। सोसायटी नहीं होने से गांव में धान खरीदी नहीं होती है। इलाज के अभाव में तोड़ देते है दम पाटन क्षेत्र के गांवों में एक बड़ी समस्या स्वास्थ्य की देखने को मिली जहां चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में ग्रामीणों को होने वाली परेशानियों की कल्पना की जा सकती है। कई गांवों में अस्पताल व डाक्टर नहीं है। इलाज के अभाव में कई लोग दम तोड़ देते है। क्षेत्र के 40 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार है और कई सिकलिंग से पीडि़त है। ग्राम अमेरी , फुंडा व सावनी आदि गांवों में चिकित्सा सुविधाओं का नितांत अभाव है। फुंडा की सरपंच श्यामा साहू ने बताया कि स्वास्थ्य केंद्र नाम मात्र है। यहां डाक्टर है और न ही नर्स। ग्रामीण महिलाओं को डिलवरी के लिए दुर्ग ले जाना पड़ता है। सावनी में भी अस्पताल बने 2 वर्ष हो गए है। मगर डाक्टर नहीं है। एक ही नर्स है। इलाज के लिए पाटन जाना पड़ता है। यहंीं स्थिति अमेरी की है। इन सभी गांवों की जनसंख्या 2 हजार से अधिक है। उतई के डाक्टर रत्नाकर मिश्रा ने बताया कि पाटन क्षेत्र में 40 प्रतिशत बच्चे कुपोषित है। नौनिहालों को स्कूल की दरकार क्षेत्र के कई गांवों में मिडिल व हाई स्कूल नहीं है। वहीं अनेक स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। बच्चें को दूर गांव के स्कूलों में पैदल जाना पड़ता है। अखरा व फुंडा जैसे पिछड़े गांवों में प्रायमरी स्कूल ही है। फुंडा में मात्र 2 शिक्षक 5 कक्षाओं के बच्चों को पढ़ा रहे है। ग्राम पंचायत द्वारा मिडिल स्कूल की मांग की गई है। इसी तरह अखरा के बच्चों को पढने पाटन जाना पड़ता है। गांव के दिनेश, नीरज ने बताया आसपास के कई गांवों में भी स्कूल भवन व शिक्षकों की समस्या बनी हुई है। शिक्षकों की लंबी हड़ताल से पालक बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित है। गांव-गांव में शराब और सिमटते खेत कभी सामाजिक समरसता के लिए पहचाने जाने वाले गांवों का माहौल अब बिगड़ा हुआ है। किसानों के चेहरे मुरझाए हुए दिखे। खेतिहर मजदूरों को मनरेगा में रोजगार मिलने और गरीबों को 2 रूपए किलो चावल मिलने से ग्राम्य अर्थव्यवस्था की रीढ खेती चौपट हो रही है। ग्रामवासियों ने बताया कि कृषि कार्य के लिए खेतिहर मजदूर नहीं मिलने से किसान अपने खेत सेठ-साहूकारों को औने-पौने दाम में बेच रहे है या रेग पर देकर दूसरे धंधे कर रहे है। पाटन क्षेत्र की हजारों एकड़ जमीन बिक चुकी है। जमीन का पैसा खत्म होने के बाद अपने बच्चों के भविष्य को लेकर किसान खासे चिंतित है। गांव-गांव में खुली शराब दुकानों में मेले जैसी भीड़ दिखी। मनरेगा व 2 रूपए किलो चावल का रिएक्शन शराब दुकानों की भीड़ के रूप में दिखा। कुरूदडीह के किसान नेता नंद कुमार बघेल ने बताया कि ग्रामीण युवक खेती नहीं कर रहे है। शराब पी रहे है। गांवों में 5 गुना ज्यादा शराब बिक रही है। उतई के प्रमोद तिवारी ने बताया कि कृषि का रकबा तेजी से सिमट रहा है। सामाजिक समरसता कम हो रही है। हरे-भरे पेड़ों पर कुल्हाड़ा ग्रामीण अंचल में कुछ पेशेवर लोग हरे भरे पेड़ों को निर्ममता से कटवा रहे है। ग्राम सावनी मार्ग पर पत्रकारों के दल को इसकी बानगी देखने को मिली। यहां भागवत साहू के खेत से लगे 10 बबूल के पेड़ों को ठेकेदार खोरबहरा बठेना द्वारा बिना अनुमति के आरे व कुल्हाड़ी से कटवा रहा था। पेड़ों को मेटाडोर में रस्सी बांधकर गिराया जा रहा था 6-7 पेड़ खेत में कटे पड़े थे। खोरबाहरा ने बताया कि वह पेड़ कटाई की ही धंधा करता है। प्रशासन व वन विभाग के बजाए खेत मालिक से सौदा कर लेता है। 10 पेड़ों का सौदा 3 हजार में किया है। अनूठा पर्यावरण मंदिर अंघोरेश्वर शिव आश्रम तारापीठ अमेरी में हरितिमा का संदेश देता अनूठा पर्यावरण मंदिर लोगों के श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यहां लाल भैरव, काल भैरव, अंघोरेश्वर, कामाख्या गणेश व तारा देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित कर चारों ओर बरगद, बेल, नीम व आम आदि के करीब सौ पेड़ लगाए गए है। मंदिर समिति के अध्यक्ष रमेंद्र मित्रा, सचिव आरएस ठाकुर, उपाध्यक्ष वासुदेव नेताम व बैगा पंचराम ध्रुव है। समिति के लोगों ने बताया कि मंदिर में नवरात्रि पूजा के साथ ग्रामीण अपनी समस्याओं को लेकर भी आते है। इसके अलावा ग्राम अखरा में भी सौ साल प्राचीन भगवान जगन्नाथ व देवी अखरा दाई का मंदिर है। मंदिर समिति के अध्यक्ष अमरचंद वर्मा ने बताया कि मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए शासन द्वारा 6 लाख की घोषणा की गई है। उम्मीद की किरण जगाता बुजुर्ग किसान नेता पाटन के ग्राम्य अंचल के इस भयावह वातावरण के बीच ग्राम कुरूदडीह में उम्मीद की किरण दिखाई दी, जहां 77 वर्षीय जागरूक किसान नेता नंदकुमार बघेल अपनी लाइलाज बीमारी से संघर्ष करते हुए जमीन और संस्कृति को बचाने नए-नए प्रयोग करने में तल्लीन है। कृषि, आयुर्वेद और ग्राम्य सुधार में उनका यह प्रयास इस संकट के दौर में प्रदेश के लिए श्रेयस्कर साबित हो सकता है। श्री बघेल ने अपने गौशाला में गोबर खाद से जैविक खेती व कृषि उपकरणों को अत्याधुनिक बनाने के साथ प्राकृतिक चिकित्सा में कई नए प्रयोग किए है। उन्होंने अपने तकनीकी कौशल से कल्वीनेटर रेजर, रोटोवेटर, लेवलर ट्राली आदि कृषि उपकरणों को माडिफाई कर पोताई, बुवाई, छिड़काव, कटाई, ढुलाई मेंं इनकी क्षमता बढ़ा दी है। इससे समय, धन व श्रम की काफी बचत होती है। श्री बघेल ने पत्रकारों को बताया कि धान की रोपाई बंद कर बोता पद्धति शुरू की है जो लाभदाई है। गौशाला में 20 गायों के गोबर और मूत्र को घोलकर स्पिं्रगलर के जरिए खाद के रूप में खेतों में छिड़काव से उत्पादन व गुणवत्ता बढ़ गई है। इसी तरह वे आयुर्वेद में भी प्रयोग कर रहे है। उन्होनें बताया कि उन्हें कैंसर व शुगर है जिसका उपचार वे गुड़ व पैदल चलकर कर रहे है। कभी भी अस्पताल नहीं गए है। हरी झंडी दिखाकर वरिष्ठ पत्रकारों ने किया रवाना ग्राम्य अध्ययन यात्रा दल को आकाशगंगा प्रेस परिवार से वरिष्ठ पत्रकार डा एमएस द्विवेदी, सुरेंद्र सिंह कैबो, शिव श्रीवास्तव व योगराज भाटिया ने रही झंडी दिखाकर रवाना किया। प्रेस क्लब के अध्यक्ष शिवनाथ शुक्ला के नेतृत्व में 20 सदस्यीय पत्रकारों के दल ने पाटन क्षेत्र के गांवों की समस्याओं को करीब से देखा। ----  
जगाने आए नेता खुद सोते रहे कांग्रेस के लिए आल इज नाट वेल,न जोगी दिखे न उनकी तस्वीर दक्षिणापथ डेस्क दुर्ग। मंथन शिविर के जरिये कार्यकर्ताओं को जगाने आए वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मंच पर खुद ही सोते रहे। फरवरी के आखरी दिन दुर्ग में आयोजित कांगे्रस के मंथन शिविर में कोई ऐसी नई बात नहीं दिखी, जिसे मिशन 2013 के मद्देनजर पार्टी की मजबूत तैयारियों के साथ जोड़कर देखा जा सके। पूर्व की भांति वही गुटबाजी, भाषणबाजी और कार्यकर्ताओं से संवादहीनता मंथन शिविर की असल तस्वीर रही। विगत डेढ़ दशक से कांग्रेस की बैठकों में दिखने वाले उन्हीं पुराने चेहरे और मोहरों के भरोसे सत्ता की डगर पर कांग्रेस कितनी दूर चल पाएगी, चिंतनीय है। लगातार तीन चुनावों में कांग्रेस से दूर रहे दुर्ग विधानसभा सीट पर फतह करना मंथन शिविर का आखरी लब्बोलुआब रहा। प्रदेश कांग्रेस के कमोबेश सभी बड़े नेता पूरे शिविर में सोनिया दरबार के कद्दावर नेता मोतीलाल वोरा से निकटता गांठने की कवायद करते रहेे, लेकिन कार्यकर्ताओं की सूध लेने की जरूरत किसी ने नहीं समझी। गुटबाजी को सिरे से नकारने आए कांग्रेस के इस मंथन शिविर में न जोगी दिखे, और न ही फ्लैक्स में उनकी तस्वीर दिखी। इसके चलते जोगी गुट के लोग काफी नाराज दिखे। बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओ के चिंतन शिविर में फिल्ड मैनेजमेंट, पिछली गल्तियों पर समीक्षा व पराजय को किस तरह जीत में बदला जा सकता है? इस पर किसी की भी चिंता दिखाई नहीं दी। अपितु समूचा कार्यक्रम नेताओं के भाषण तक सिमट कर रह गया। भाषण में नेताओं ने कार्यकर्ताओं की अहमयित तो स्वीकारी, मगर किसी भी नेता ने उनसे मैदानी स्तर पर आने वाली परेशानियों के संबंध में पूछना जरूरी नहीं समझा। पांच घंटे तक चले चिंतन शिविर में नेताओं का अधिकांश समय प्रदेश सरकार व भाजपा नेताओं को कोसने में बीत गया। मिशन 2013 के मद्देनजर वरिष्ठ नेताओं से मार्गदर्शन मिलने की उम्मीद में बड़ी संख्या में पहुंचे कार्यकर्ताओं को लग रहा था कि उनसे भी राय मशविरा ली जाएगी और उन्हें भी अपनी बात कहने का मौका मिलेगा। लेकिन कार्यकर्ताओं को मन मसोस कर वापस लौटना पड़ा। कार्यकर्ताओं को नसीहत देते हुए राज्य प्रभारी हरिप्रसाद ने इशारों में नेताओं को भी लताड़ लगायी। उन्होंने मंच पर नेताओं के पीछे खड़े समर्थकों की ओर इशारा करते हुए कहा कि वे मंच के नीचे की जिम्मेदारियों का भी निर्वहन करें। हरिप्रसाद ने यह भी खुलासा किया कि आदिवासियों का विश्वास अब भी कांग्रेस पार्टी पर बना हुआ है। बस्तर क्षेत्र में फर्जी वोटिंग कर शासन-प्रशासन ने मिलीभगत कर कांग्रेस को हराने का काम किया है। चुनाव में तीन महीना पहले टिकट वितरण के प्रस्ताव पर हरि प्रसाद ने कहा कि समर्पित व निष्ठावान लोगों को ही टिकट दी जाएगी। हरिप्रसाद ने भाजपा नेताओ की तुलना बारिश के मेंढक से करते हुए कहा कि जब भी चुनाव का समय आता है, तब भाजपाईयो को राम की याद आती है। पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने स्वीकार किया कि टिकट वितरण के बाद कार्यकर्ताओं में बिखराव पराजय का मुख्य कारण है। उन्होंने टिकट वितरण के उपरांत पार्टी में एका बनाए रखने पर बल देते हुए कहा कि चुनाव के समय बिखराव के कारण ही राज्य में दूसरी पार्टी की सरकार है। हालांकि टिकट वितरण के बाद कार्यकर्ताओं में होने वाले बिखराव को विद्याचरण शुक्ल व हरिप्रसाद ने नुकसानदायक माना है, किंतु इस पर रोक कैसे लगायी जा सकेगी, यह रणनीति मंत्र कार्यकर्ताओं को नहीं बता पाए। नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे ने कार्यकर्ताओं को नसीहत दी कि प्रत्येक कार्यकर्ता पांच-पांच घरों में जाकर लोगों को जोडऩे का प्रयास करे। कार्यकताओं को पूर्वविधायक धनेंद्र साहू, विधायक टीएस सिंहदेव, प्रतिमा चंद्राकर, भजन सिंह निरंकारी, अरूण वोरा, भूपेश बघेल, शैलेष नितिन त्रिवेदी, सुरेद्र शर्मा ने भी संबोधित किया। वोरा की तीसरी पीढ़ी का पदार्पण शिविर में राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के शिरकत करने की खबर थी, मगर दिल्ली में व्यस्तता के चलते वे नहीं पहुंच सके। अलबत्ता, वोरा परिवार की तीसरी पीढ़ी के राजनीति में पदार्पण की झलक जरूर दिखी। वोरा के पौत्र व अरूण वोरा के सुपुत्र संदीप वोरा पहली बार किसी राजनीतिक मंच पर नजर आए। विगत चार चुनाव में अरूण वोरा लगातार कांग्रेस के उम्मीदवार बनते आए हैं। वोरा की तीसरी पीढ़ी का कार्यक्रम में दिखायी देने के कई संकेत निकलते हैं। गुटबाजी से अलहदा नहीं रहा शिविर गुटबाजी को सिरे से खारिज करते आ रहे कांग्रेसियों के इस मंथन शिविर में स्पष्ट रूप से गुुटबाजी का नजारा दिखा। कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का शिविर में शामिल न होना ऐसा प्रतीत होता है कि शिविर के माध्यम से जोगी गुट को अलग-थलग रखने का प्रयास हुआ है। मंथन शिविर में अजीत जोगी को बुलाया नहीं गया, या वे खुद नहीं आए, ठीक से किसी ने जवाब नहीं दिया। हालांकि शिविर के पहले बतौर वक्ता अजीत जोगी के कार्यक्रम में आने की सूचना दी गई थी। जोगी की अनुपस्थिति पर कार्यकर्ताओं में अलग-अलग कयास लगाने का दौर भी चलता रहा। शिविर स्थल में लगे बैनर व पोस्टरों में भी जोगी का न नाम था और न ही तस्वीर लगायी गई थी। इस बात पर जोगी समर्थकों ने नाराजगी भी व्यक्त की। पूरे राज्य में अजीत जोगी के समर्थकों की लंबी फौज है और वे प्रदेश कांग्रेस के काफी प्रभावशाली चेहरे भी हैं। लिहाजा कांग्रेस के किसी आयोजन में उन्हें दरकिनार करना पार्टी के लिए नुकसान का सबब बन सकता है। शुक्ल व वोरा 'एन्टीक पीसÓ एक सौ पच्चीस वर्ष पुरानी कांग्रेस पार्टी बूढ़ी हो गई है और छत्तीसगढ़ में सत्ता की दौड़ में, थके-हारे वृद्ध धावको को दौड़ाकर, चुनावी रेस जीतने का सपना देख रही है। विद्याचरण शुक्ल और मोतीलाल वोरा जैसे लोग, ऐतिहासिक महत्व के 'एन्टीक पीसÓ हो गये हैं। कांग्रेस को चाहिये कि केन्द्रीय मंत्री चरणदास महंत की राय मानकर एक म्यूजियम का निर्माण करे और ऐतिहासिक धरोहर के रूप में राज्य के इन 'एन्टीक पीसोंÓ को वहां सुशोभित करे। पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल द्वारा राज्य में तीसरे मोर्चे में बिखराव संबंधी बयान पर छत्तीसगढ़ संयुक्त मोर्चा एवं छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के प्रवक्ता राजकुमार गुप्त ने उक्त प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि विद्याचरण शुक्ल मुगालते में न रहे कि मोर्चा में शामिल दलों को मतदाता नहीं जानते। उन्हें कांग्रेस की चिन्ता करनी चाहिये, जिसके बारे में लोग अच्छी तरह समझ चुके हंै कि महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्ट्राचार, घोटाला और काले धन की समस्याओं के लिये केन्द्र की कांग्रेस कितनी जिम्मेदार है। मतदाता आम चुनाव में कांग्रेस को इसका जवाब देगी। श्री गुप्ता ने कहा कि वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता का यह कहना भी सही है कि राज्य की जनता डॉ. रमनसिंह की भाजपा सरकार से त्रस्त हो गई है और इससे छुटकारा पाना चाहती है। इसके बावजूद राज्य सत्ता पर कब्जा करने का कांग्रेसी सपना कभी पूरा नहीं होगा। चुनाव के समय तीसरा मोर्चा में शामिल पार्टियों के लोगों द्वारा राष्ट्रीय पार्टियों का दामन थामने संबंधी विद्याचरण शुक्ल के दावे को खारिज करते हुये छत्तीसगढ़ संयुक्त मोर्चा के प्रवक्ता राजकुमार गुप्त ने कहा कि कांग्रेस और भाजपा के नेता व कार्यकर्ताओं में असंतोष है और वे छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के संपर्क में हैं । चुनाव के समय अपनी पार्टी छोड़कर मंच में शामिल होने के लिये तैयार बैठे हैं। विद्याचरण शुक्ल को पार्टी छोड़कर जाने वालों का भगदड़ रोकने की चिन्ता करनी चाहिये। उन्होने दावा किया है कि राज्य में भाजपा की सरकार को तीसरी बार सत्ता में वापस आने का कोई मौका नहीं है, राज्य में छत्तीसगढ़ संयुक्त मोर्चा मजबूत है और सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशी उतारकर भाजपा-कांग्रेस को कड़ी चुनौती देने की स्थिति में हैं।