Sunday 17 March 2013

16 to 31 march 2013 dakshinapath

          विकास पर भारी जातिगत समीकरण !

            यूपी, बिहार की सियासी हवा अब छत्तीसगढ़ की ओर

दक्षिणापथ डेस्क
 रायपुर । इस विधानसभा चुनाव में पहली दफा सामाजिक संक्रमण का समीकरण छत्तीसगढ़ की राजनीतिक $िफज़ा पर हावी हुआ है। इस किस्म के राजनीतिक प्रयोग उत्तरप्रदेश व बिहार की राजनीति में कई दशकों से होता आया है, मगर छत्तीसगढ़ में राज्य सत्ता के परिपेक्ष्य में सामाजिक ध्रुवीकरण की यह वृत्ति नयी है। 21 करोड़ जनसंख्या वाले यूपी व 18 करोड़ जनसंख्या वाले बिहार में भले ही अगड़े-पिछड़े की राजनीतिक बंदी सत्ता की डगर बनती हो, पर सिर्फ ढाई करोड़ की आबादी वाले छत्तीसगढ़ में जातिगत विभेदन की राजनीति कितनी कारगार होगी, यह समय ही बताएगा?
 छत्तीसगढ़ की आबादी में करीब 50 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग, 32 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति एवं 12 प्रतिशत अनुसूचित जाति वर्ग से हैं। राज्य के चुनावी इतिहास में यह पहला मौका है, जब राज्य सरकार के प्रति इन वर्गो की इतनी नाराजगी आरक्षण के मसले पर सामने आयी हो।
प्रदेश के 50 फीसद आबादी पिछड़ा वर्ग से हैं। राज्य में सरकार बनाने और बिगाडऩे के लिहाज से यह तबका बेहद महत्वपूर्ण है। पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को साधने के लिए चुनाव में अगड़ा-पिछड़ा का कार्ड कांग्रेस व भाजपा बखूबी ख्ेालती आयीे हैं, मगर उसकी प्रासंगिकता सिर्फ चुनाव जीतने तक सीमित रही। पिछड़ा वर्ग से वास्ता रखने वाले दर्जनों लोग बड़े राजनेता भी बन गए, मगर पिछड़े वर्ग के हितों पर ध्यान देने की जहमत इन्होंने नहीं उठायी। अभी पिछड़ा वर्ग को राज्य में 14 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है, जिसे 27 करने के लिए पिछड़े वर्ग सर्व समाज ने चरामा से राजधानी रायपुर तक वृहत पैदल यात्रा की। 30 हजार से अधिक महिला-पुरूष इसमें शामिल हुए। इन नेताओं ने राज्य का मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग से होने की मांग भी रखी है। दूसरी ओर पिछड़ा वर्ग आरक्षण पर चुनावी गेम खेलते हुए कांग्रेस ने विधानसभा में सरकार से बयान देने की मांग करते हुए जोरदार हंगामा भी किया। चुनाव के ऐन पहले प्रदेश में पिछड़ा वर्ग आरक्षण पर उठे घमासान को अपने पक्ष में करने के लिए मुख्यमंत्री डा रमन सिंह ने भी पिछड़े वर्गों के समग्र विकास को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बता रहे हैं।
हालांकि, इसके पूर्व राज्य सरकार ने पूरी कोशिश की कि पिछड़ा वर्ग की यह रैली राजधानी तक न पहुंचे। सरकार के दो मंत्री चंद्रशेखर साहू व केदार कश्यप कुरूद पहुंच कर रैली में शामिल लोगो को मनाने का प्रयास किये। मगर पिछड़ा वर्ग रैली की अगुवाई कर रहे सामाजिक नेताओं ने रायपुर पहुंच कर ही रैली थमने का फैसला सुना दिया। पिछड़ा वर्ग सर्व समाज के नेताओं का कहना है कि राज्य की कुल जनसंख्या में से 50 फीसदी हिस्सा होने के बावजूद पिछड़ा वर्ग से सिर्फ 7 फीसदी लोग सरकारी सेवाओं में हैं। ओबीसी नेताओं का यह भी कहना है कि बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद पर्याप्त राजनीतिक भागीदारी देने में राजनीतिक दलों द्वारा कोताही बरती जाती है। कांग्रेस हो चाहे भाजपा, उत्तर भारतीय नेताओं ने छत्तीसगढ़ में हमेशा सवर्ण समाज से जुड़े नेताओं को सामने लाया। पिछड़े वर्ग के नेताओं की जानबुझकर उपेक्षा की गई। नतीजतन् पिछड़ा वर्ग समाज को अपने अधिकारों के लिए सड़क पर उतरने मजबूर होना पड़ा।

अपने नेताओं से नाराजगी

आरक्षण में कटौती से अनुसूचित जाति सर्वाधिक नाराज हुआ है।  राज्य की राजनीति में अक्सर निर्णायक भूमिका अदा करते आया यह समाज रमन सरकार से इतना अधिक रूष्ट है कि गिरौदपुरी में सत्ता के किसी भी प्रतीक के आने पर पाबंदी लगा रखी है। दरअसल यह समाज अपने समाज एवं प्रदेश के सियासी खिलाडिय़ों से खुद को छला हुआ महसूस कर रहा है। जिन्हें चुनकर समाज ने सरकार में भागीदार बनाया, वे ही अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के फेर में समाज के हितों को परे रख दिये। इस समाज की पीड़ा है कि विधानसभा में पर्याप्त संख्या में प्रतिनिधित्व होने के बावजूद जब अनु.जाति के आरक्षण में कटौती का अंतिम फैसला हुआ, समाज से जुड़े किसी भी विधायक ने आपत्ति नहीं उठायी। अपने समाज के जनप्रतिनिधियों के रवैय्ये से छला हुआ महसूस कर रहे इस समाज का राजनीतिक कथानकों से विश्वास उठ गया है। गिरौदपुरी के मेले में यह समाज सबको बर्दाश्त करने को तैयार है, बशर्ते प्रदेश सरकार से जुड़ा कोई भी प्रतिनिधि यहंा न आए।

साधने का भी प्रयास

मुख्यमंत्री ने राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण मंच के प्रतिनिधि मंडल से मुलाकात मेें कहा कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों सहित पिछड़े वर्गों का समग्र विकास भी राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है।
पिछड़े वर्गों के विद्यार्थियों को विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग केन्द्रों में सीटों की संख्या बढ़ाने, जिला स्तर पर  सुसज्जित छात्रावास स्थापना कर उनमें पिछड़े वर्गों के बालक-बालिकाओं को पर्याप्त स्थान देने, बस्तर और सरगुजा आदिवासी विकास प्राधिकरणों के जिलों में पिछड़े वर्गों की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी वाले गांवों और नगरीय निकायों के वार्डों को राज्य ग्रामीण विकास प्राधिकरण में शामिल करने का निर्णय लिया गया है। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने पिछड़े वर्गों के परिवारों को वन अधिकार मान्यता पत्र देने के लिए 75 वर्ष के दस्तावेज की अनिवार्यता को शिथिल कर दस वर्ष निर्धारित करने के लिए केन्द्र सरकार को पत्र लिखने का निर्णय लिया गया है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का दुरूपयोग रोकने पुलिस को निर्देश दिए जाएंगे। मुख्यमंत्री ने पिछड़े वर्गों की अन्य मांगों पर उच्च स्तरीय समिति गठित करने का भी निर्णय लिया है।

पिछड़ों पर जाल, रमन की चाल

छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के प्रवक्ता राजकुमार गुप्ता के मुताबिक चारामा से राजधानी रायपुर तक 28 फरवरी से 4 मार्च तक पिछड़ा वर्ग द्वारा पदयात्रा और आमसभा का आयोजन स्वयं मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह के इशारे पर किया गया था। श्री गुप्त ने एक वक्तव्य में कहा है कि उक्त पदयात्रा पिछड़ा वर्ग कल्याण मंच चारामा द्वारा किया गया था, जिसके प्रधान संरक्षक स्वयं मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह और संरक्षक पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष सोमनाथ यादव हैं।
उन्होंने कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग जिनकी आबादी राज्य में 52 प्रतिशत है के मतदाताओं को रिझाने के लिये पिछड़ा वर्ग आयोग से ओबीसी के लिये शिक्षा और नौकरी में 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश कर, चुनावी ब्रम्हास्त्र के रूप में ओबीसी कार्ड का उपयोग किया  है। मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह अन्य पिछड़ा वर्ग को अपने चुनावी मोहरे के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, इसी लिये विधानसभा चुनाव के पूर्व आयोग से 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश कराई और यह भी अंदेशा है कि आचार संहिता लागू होने के पूर्व आरक्षण सहित छोटी-बड़ी उन सभी मांगों को पूरा कर देंगे, जो राज्य शासन के अधिकार क्षेत्र हैं।
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त्तीसगढ में विकास की रंगहीन धुंधली तस्वीर

                                                      हैट्रिक को लेकर भय व उत्साह
रायपुर। छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी दूजे किस्म के संक्रमण के दौर से गुजरते दिख रहा है। खासतौर पर गुजरात विजय और नरेंद्र मोदी को पीएम का दावेदार व्यक्त किए जाने का रमन सरकार के हैट्रिक पर  पडऩे वाले असर को लेकर यद्यपि भाजपाई उत्साहित हैं, मगर दूसरी ओर एक अंजाना सा भय भी नजर आ रहा है। इसकी पृष्टभूमि भाजपा के दिल्ली अधिवेशन में उन तस्वीरों के बीच बनी, जहंा छाए नमो मंत्र  के बीच मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भी पुख्ता प्रमाण पेश  करने में सफल रहे। लेकिन छत्तीसगढ़ के सीएम डा रमन सिंह के विकास की धुंधली तस्वीर उन $िफज़ाओं में पूरी तरह रंगहीन नजर आयी।
      इधर छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की अंदरूनी सियासत आगामी चुनाव की रणनीतियों पर के्रद्रित हो गई है। पिछले चुनाव में 18 विधायकों के टिकट कटे थे, इस बार वह आंकड़ा 28 तक जाने  का अंदेशा है। इसके बावजूद प्रदेश में भाजपा की स्थिति संशयपूर्ण मानी जा रही है। सारा खेल अब विपक्षी कांग्रेस पर टिक गया है। आशय है कि कांग्रेस यदि माद्दा दिखाती है तो रास्ते कठिन नहीं। भाजपा के हेट्रिक पर रोड़ा लगाने अथवा नहीं लगा पाने के पीछे कांग्रेस के आंतरिक गुण ही जिम्मेदार होंगे।
    गुजरात में नरेंद्र मोदी की सफलता की तुलना छत्त्तीसगढ़ से नहीं की जा सकती। दोनों ही राज्यों में भाजपा की सरकार होने के बावजूद दिशा व दशा में गुणात्मक अंतर है। नरेंद्र मोदी जहां युवा आबादी को कौशल व हुनरमंद बनाने की बात कहते हैं, वहीं छग में रमन सरकार उनके बेरोजगारी भत्ते में इजाफे की घोषणा करते हैं। गुजरात सरकार गरीबों को आर्थिक संबलता मुहैया कर राज्य के विकास में भागीदार बना रहा है, तो छग की भाजपा सरकार गरीबों को सस्ते दर पर अनाज और नमक देकर संतुष्ट कर रही है। 6 करोड़ लोगों के साथ गुजरात अपने संसाधनों के जरिये विश्व क्षितिज पर मुकाम बनाने के सपनों का साकार करने का प्रयास कर रहा है, तो छग में स्थानीय संसाधनों का दोहन सिंडीकेट बनाकर अन्यत्र राज्यों के उद्योगपति कर रहे हैं, राज्य के ढाई करोड़ लोग खामोश देखने विवश हैं।
    गुजरात से तुलना छोड़ दें, तो मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार को छत्तीसगढ़ के समचीन पूरा देश मानता है। केंद्रीय एवं क्षेत्रीय दोनों ही स्तर पर हुए सर्वे रिपोर्ट में शिवराज सिंह की स्थिति अच्छी बतायी गई है। भाजपा के लिए चिंता का सबब सिर्फ छत्तीसगढ़ है। ठोस विकास के बजाए प्रलोभनपूर्ण चुनावी योजनाओं के चलते विकास के मामले में राज्य कई बरस पीछे छूट गया है।
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      आदिम युग में जी रहे थुआपानी के आदिवासी



 


           ज्ञानेश तिवारी       
गरियाबंद । राज्य के अन्तिम छोर में बसे ग्राम थुआपानी के निवासी अपने लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ लघुवनों से प्राप्त करते हैं, आजादी के बाद भी यहां के रहवासियों को मूलभूत सुविधाओं के लिए भटकना पड़ रहा हैं। गोड़ आदिवासी व भुंजिया जिनकी आबादी 80 के लगभग है। यहंा दो मोहल्लों में बंटे हुए हैं, जिने लिए शासन ने एक प्रायमरी स्कूल, आंगनबाड़ी, दो हैन्डपम्प खोद कर गांव को भुल गए हैं।
 जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर ओडिसा सीमा से लगे  ग्राम पंचायत डुमरबाहरा के आश्रित गांव थुआपानी पगडंडी से नदी नालों व पहाड़ों को पार कर 3 घंटों मेें बड़ी मुश्किल से पहुंचा जा सकता हैं।
ग्रामवासियों ने बताया कि दो साल पहले राहत कार्य के अंतर्गत कुछ किसानों की भुमि सुधार कार्य हुआ था। उसके बाद इस गांव में कुछ भी नहीं हुआ। किसी बड़े अधिकारी का पहुंचना  तो दूर की बात है गांव का सचिव व महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी महीने में दो-तीन बार से ज्यादा आने की जरूरत नहीं समझते।
    थुआपानी के ग्रामीण प्रकृति के सहारे अपने आप को ढालकर जीवन गुजार रहे हैं। आसमानी वर्षा के सहारे यहां के किसान खेती करते हैं। चार माह की मेहनत से जितना पैदावार होता हैं, उसे बेचते नहीं, बल्कि अपने खाने के लिए रख लेते हैं। बाकि आठ माह वनों से प्राप्त होने वाले महुआ, तेन्दुपत्ता, सरई बीज, लाख आदि लघुवनों उपज के भरोसे निर्भर रहते हैं, जिसे बेचने के लिए 15 किमी दूर डुमरबाहरा, पिपरछेड़ी, लीटीपारा, रसेला या गरियाबंद आते हैं, और उससे प्राप्त पैसों से सप्ताह भर के लिए किराना व सब्जी तथा जरूरत की खरीदारी अपने परिवार के लिए करते हैं। आज भी इस गांव में किराने की एक दुकान नहीं। आज भी यहां के  लोग झरने के पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं, वैसे तो शासन की ओर से गांव में दो हेन्डपम्प लगाए गए हैं, पर उसमें एक खराब हैं। पानी की समस्या को देखते हुए, समाजसेवी संस्था एकता परिषद व गांव के लोगों के सहयोग एक कुअंा को खोदा गया था, जिसके पानी का उपयोग गांव के लोग करते हैं, वही ग्रामीण नाले के किनारे झरिया का सहारा लेते हंै। गांव में बच्चों के लिए मनोरंजन का किसी प्रकार का साधन नही हैं, बच्चों को जब मोबाईल से फिल्मी गीत का विडियो दिखाया तो वहां मौजुद सभी बच्चें उसे चकित होकर सवाल कर बैठे कि यह क्या हैं, और इसने छोटे इस वस्तु में इतने बड़े-बड़े लोग कैसे समॅा गए ?
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          चुनावी रंजिश ने किया हुक्का पानी बंद

                                  - रमन के सुराज में यह कैसा झोल

शिवकुमार साहू के परिवार का हुक्का-पानी बंद
ग्राम पंचायत कोडिय़ा
 दक्षिणापथ डेस्क
दुर्ग।  सार्वजनिक मंच पर हो रहे नाचा में फूहड़ता व अश्लील कार्यक्रम का विरोध करना एक परिवार को इतना भारी पड़ा कि पंचायत ने गांव में उनकी पौनी-पसारी बंद कर दी। गांव में न केवल उस परिवार से कोई बातचीत कर रहा है, बल्कि बात करने वालों पर भी हजारों रूपय का दंड घोषित कर रखा है। हरियाणा के खाप पंचायतों की तर्ज पर ग्राम सभा का उक्त तुगलकी फरमान बेटी की शादी में भी रोड़ा बन गया है। पीडि़त परिवार ने 22 फरवरी को पुलिस से न्याय की गुहार लगायी थी, किंतु आज तक उन्हें न्याय नहीं मिल पाया। गांवों में सुराज का दंभ भरने वाली डा रमन की भाजपा सरकार जिला मुख्यालय से चंद दूरी पर पंचायत प्रतिनिधियों के इन कारगुजारियों पर नियंत्रण नहीं रख पा रहा है, तो सुदूर बिहड़ अंचलों के गांव-खेड़ों के सामाजिक हालात् क्या होंगे, अंदाजा लगाया जा सकता है?
 दुर्ग जिला मुख्यालय से 22 किमी दूर स्थित ग्राम कोडिय़ा (धमधा तहसील) के पंचायत ने उसी गांव के शिवकुमार साहू के परिवार का हुक्का-पानी बंद कर तमाम कठिनाइयों में डाल दिया है। पीडि़त परिवार ने जिला पुलिस अधीक्षक को पत्र सौंपकर अपनी व्यथा सुनाते हुए न्याय की फरियाद लगायी है। पुलिस को लिखे पत्र में बीएसपी कर्मी शिवकुमार साहू ने बताया कि ग्राम पंचायत कोडिय़ा की महिला सरपंच परमिला साहू, झुमुकलाल साहू, ईश्वरलाल देशलहरे, मनोहर लाल साहू, पूनाराम यादव, देवलाल साहू, खेम बंधे, डेहर साहू समेत अन्य लोगों ने उनके परिवार का हुक्का पानी बंद कर दिया है। अप्रैल में निर्धारित उनकी भतीजी की शादी में भी अंड़ग़ा डालने का फरमान सुना दिया है। इतना ही नहीं, बल्कि गांव के स्कूल में पढऩे वाले परिवार के दो बच्चों को स्कूल से निकलवाने का भी प्रयास सरपंच पति द्वारा किया गया। शिवकुमार साहू के पुत्र वीरेंद्र साहू ने विगत पंचायत चुनाव में सरपंच के विरोध में काम किया था। बस तब से उक्त परिवार के प्रति महिला सरपंच परमिला साहू के पति झुमुकलाल साहू ने रंजिश रखना शुरू कर दिया है। मौके का इंतजार कर रहे सरपंच पति को आखिर उस समय मौका मिल गया, जब गांव में नाचा का सार्वजनिक आयोजन हुआ, नाच के दौरान कुछ महिला एवं असभ्य लोग मंच पर आकर अश£ील शब्दों का प्रयोग करते हुए नृत्य करने लगे, जो पीडि़त परिवार के पुत्र वीरेंद्र साहू को नागवार गुजरा और उसने वहीं उसका विरोध भी किया। इसके बाद से सरपंच पति को उक्त परिवार के प्रति गांव वालों को भड़काने का अवसर मिल गया। तब से यह परिवार ग्राम सभा के तुगलकी फरमान का दंश भोगने विवश है। पीडि़त परिवार ने किसी तरह समझौता करना चाहा तब भी सरपंच पति ने हालात् को जानबुझकर मुश्किल बना दिया। ताकि गांव में वह परिवार शांति से जीवन न गुजार सके। बताया गया कि सरपंच पति की पहल पर ग्राम सभा की बैठक में पुत्र वीरेंद्र साहू पर गलत आरोप लगाकर 26 हजार रू दंड अर्थदंड दिया गया, नहीं देने पर अगली बैठक में दंड की राशि दुगुना कर 52 हजार रू कर दिया। सरपंच एवं सभापति ने यह भी कहा है कि गांव का जो भी व्यक्ति उस परिवार से बात करेगा, उसे 10 हजार रू दंड भरना पड़ेगा। साथ ही इस संबंध में सूचना देने वाले को एक हजार रूपए ईनाम भी घोषित कर रखा है। बीते 18 फरवरी से यह परिवार गांव से अलग-थलग पड़ चुका है। नाई, धोबी से लेकर किराना स्टोर्स एवं चरवाहे भी न तो उनसे बातचीत करते हैं और न ही उनका काम कर रहे हैं। हैरत की बात यह है कि इसी पंचायत में पीडि़त परिवार शिवसाहू की पत्नी स्वयं भी पंच है। इसके बावजूद गांव में परिवार को अपमानित किया जा रहा है। परिवार के घर में आने वाले दैनिक समाचार पत्र को भी पंचायत ने बंद कर दिया है। दूसरी ओर इस संबंध में पूछे जाने पर सरपंच परमिला साहू का कहना है कि परिवार का हुक्का-पानी बंद नहीं किया गया है, यदि ग्राम सभा ने ऐसा कुछ किया भी होगा, तो उसकी मुझे जानकारी नहीं है।
                                                               नंदनी पुलिस भी नहीं सुनी
एक ओर साहू परिवार को ग्राम सभा ने बहिकष्कृत कर रखा है, तो दूसरी ओर नंदनी थाना पुलिस की भूमिका भी लचर है। सरपंच पति एवं ग्रामसभा अध्यक्ष की दबंगई गांव में ही नहीं, बल्कि पुलिस थाने में भी चलती है। उन्हीं के दबाव में नंदनी पुलिस न तो इस परिवार की फरियाद सुन रही है और न ही सुरक्षा का बंदोबस्त कर रही है। स्थानीय पुलिस की रवैय्ये से हताश परिवार ने जिला पुलिस अधीक्षक से गु़हार लगायी है।

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