Thursday 4 April 2013

दक्षिणापथ 1 से 15 april 2013

कहां जाए भाजपा-कांग्रेस से नाराज मतदाता? - दूर की कौड़ी तीसरा मोर्चा दक्षिणापथ डेस्क छत्तीसगढ़ के लोगों ने पिछले दस सालों से सत्ता बदल कर जो परिवर्तन किया था, दूसरे कार्यकाल के अंतिम बरस में वह कच्चा घड़ा साबित होने लगा है। अभी नहीं तो कभी नहीं की तर्ज पर प्रदेश के प्रमुख जाति वर्ग सरकार पर दबाव बनाने का उपक्रम शुरू कर दिए हैं। किंतु यूं लगता है कि सरकार को मतदाताओं के विभिन्न वर्ग तबकों से मिल रहे घुड़कियों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। चुनाव से आठ-दस महीने पहले से ही सरकार ने ऐसा चुनावी चश्मा पहन लिया है, जिसमें हर मूवमेंट उसे राजनीति प्रेरित प्रतीत होती है। 65 सालों के गणतंत्र ने भारतीय मतदाता वर्ग की राजनीति करने वाले लोगों को इतना होशियार बना दिया है कि चुनावी वर्ष में हर कोई बंदर घुड़की देने पर उतर आता है। लेकिन सरकार चलाने वाले उनसे भी अधिक चालाक हो गए, जो चुनावी बरस में आंख मूंद कर बैठ जाना ज्यादा मुनासिब समझते हैं। छत्तीसगढ़ में आरक्षण एवं सत्ता में भागीदारी के मसले पर चले रहे वर्ग विक्षोभन का आंदोलन बंटे हुए समाज की मुश्किल परिणति की बानगी है। चाहे वह राज्य के पिछड़े वर्ग हो, या आदिवासी या फिर अनुसूचित जाति,.. सभी समाजों में सरकार के खिलाफ नाराजगी का माहौल तो जरूर बन गया है मगर वह सरकारी निर्णयों के स्तर को छूने की स्थिति में अभी भी नहीं पहुंचा सका है। कारण सीधा है, बंटा हुआ समाज...। समाज चाहे किसी भी वर्ग का हो, मुश्किलें एक है। लब्बोलुआब यह है कि सारे वर्ग एक ओर, और स्टेट दूसरी ओर। समाज के विविध तबको में तालमेल दरअसल हमारे सिस्टम का डिस्कनेक्शन है। अक्सर सरकारों ने यही प्रयास भी किया है। सामाजिक वर्गों में तालमेल अब तक तो नहीं था, लेकिन एक जैसे हितों को लेकर उनमें सरकार के खिलाफ अनायास एका बनते दिख रहा है। हालांकि हर कोई एक-दूसरे के प्रति संदेहों से भरा हुआ है और आपसी भरोसा अभी दूर की कौड़ी है। इस राज्य में जहां मुख्यमंत्री और आला अफसरों के तरंगों से भरे निर्णय लिये जाते हैं, वहंा समाजवाद की कल्पना बेमानी है। असल समस्या से मुंह मोड़ती राजनीति के इस युग में समाज का भी राजनीतिकरण हो गया है। तरंग का मतलब, वक्त का ऐसा दौर, जहंा सिर्फ मनमानी सूझती है। एक ओर सामाजिक नेता हल्ला करते हुए मोर्चा निकालते हैं तो दूसरी ओर राज्य सरकार एक जिद्दी बच्चे की तरह ना-ना की करती रहती है। जनता सरकार को कोई सुधारवादी कदम उठाने मजबूर नहीं कर सकने की स्थिति में है। मजबूर हालात् इधर भी है, उधर भी है। घटना चाहे नक्सली हो, जाति आरक्षण का हो अथवा कुछ और हो, वोट की नजर से देखना सत्तानवीसों की मजबूरी है। जनता भी मजबूर है। यहंा नहीं तो वहंा वोट देना पड़ेगा। अन्य ठोस विकल्प ही नहीं है। जनता के सामने मुश्किल यह है कि किसे सत्ता सौपें। दोनों बड़ी पार्टियों से जनता नाराज है, और विकल्प कहीं नजर नहीं आता। चुनावी सरगर्मियों के साथ ही छत्तीसगढ़ में भी तीसरा मोर्चा की चर्चा चल निकली है। निश्चित तौर पर विकल्प की दरकार तो है, मगर तीसरे मोर्चाे के रूप में स्वार्थी, भ्रष्ट्र, धर्म व जाति को भुनाने वाले पिटे मोहरे और डरपोक नेताओं की खिचड़ी नहीं चाहिए। किंतु गंभीर और मजबूत तीसरा मोर्चा अभी भी प्रदेश में दूर की कौड़ी नजर आता है। विधायकों का वेतन और आम आदमी की तकलीफ दक्षिणापथ /भिलाई छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा विधायकों के वेतन आठवीं बार बढ़ाए जाने पर राज्य के आमलोगों में तल्ख प्रतिक्रिया है। आम लोगों का मानना है कि राज्य में शिक्षाकर्मी, मितानिन, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मध्यान्ह भोजन कर्मी, स्वास्थ्य कार्यकर्ता श्रमिक, कर्मचारी और किसान, उचित पारिश्रमिक एवं वेतन के लिये संघर्ष कर रहे हैं, उनकी जायज मांगों को पूरा करने के बजाय सरकार ने दमन का रूख अपनाया। इससे स्पष्ट होता है कि विधायक आम जनता के जीवन स्तर में सुधार करने का प्रयास न करके अपने सुख सुविधा की चिन्ता कर रहे हैं। वेतन बढ़ाने संबंधी सरकारी फैसले पर विपक्षी कांग्रेस के विधायकों ने भी कोई विरोध नहीं जताया, बल्कि टेबल बजाकर तुरंत हर्षित ध्वनि से इसकी सहमति दे दी। अपना वेतन एवं अन्य भत्ते बढ़ाने का फैसला लेने में विधायकों ने चंद मिनट का वक्त भी नहीं लिया। पांच साल विधायक रहने के उपरांत हजारों रूपए पेंशन का पात्र बना देने का नियम सविंदा में काम कर रहे राज्य के उन हजारों कर्मचारियों के मुंह पर तमाचा है, जो ताउम्र संविदा नौकरी करते रहेंगे और नौकरी के बाद पेंशन भी नसीब नहीं होगा। इस मुद्दे पर दक्षिणापथ ने जब समाज के विविध वर्गों से चर्चा कर उनकी प्रतिक्रिया पूछी, तो किसी ने भी सरकारी निर्णय का समर्थन नहीं किया। बल्कि अपनी ओर से कई ज्वलंब सवाल भी उठा दिये। 16 सालों से शिक्षाकर्मी की नौकरी कर रहे पाटन निवासी सुनील नायक का कहना है कि सरकार को सिर्फ अपनी चिंता है। सरकार के एक विधायक परेश बागबहरा ने विधायकों के वेतन वृद्धि को नाकाफी निरूपित करते हुए यह भी कहा कि उनके 50 हजार रू हर महीने लोगों को चाय पिलाने में ही खर्च हो जाते हैं। श्री नायक ने सवाल उठाया कि विधायक बन जाने के बाद उनकी चाय इतनी महंगी क्यों हो जाती है? आरक्षण कटौती के मसले पर अछोटी की महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता सुरेखा साहू कहती है कि सरकारी नौकरियों की धूमिल संभावनाओं के बीच सरकार आरक्षण का कार्ड खेल कर अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग को बेवजह उलझा रही है। निजीकरण और ठेकेदारी के इस युग में वैसे भी आरक्षण का वास्तविक लाभ किसी भी वर्ग को नहीं मिलेगा। जल, जंगल, जमीन और खनिज के बेतहाशा दोहन से आमजनता का ध्यान भटकाने के लिये आरक्षण का मुद्दा उछाला गया है। टीए का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद जब बीएसपी ने नौकरी नहीं दी, तब जीवन गुजारने के लिए मुरमुंदा (धमधा) में पान का दुकान लगा लेने वाले मोहन चंदेल इस बार भी खूद को छला हुुआ महसूस कर रहा है। उनका कहना है कि भिलाई इस्पात संयंत्र में श्रमिकों के सभी पदो पर स्थानीय रोजगार कार्यालयों के माध्यम से नियुक्ति देना चाहिए। इस बार भर्ती नियम को बदल कर बीएसपी ने स्थानीय लोगों से छल किया है। जगदलपुर में इलेक्ट्रिक दुकान चलाने वाले महेंद्र ठाकुर ने नगरनार बस्तर में एनएमडीसी के प्रस्तावित स्टील प्लांट की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी निजी क्षेत्र को बेचे जाने का विरोध करते हुए कहा कि निजीकरण से स्थानीयों की उपेक्षा तय है। सरगुजा निवासी दिनेश कुशवाहा ने कहा कि उत्तरप्रदेश के सोनभद्र जिला, झारखण्ड के बाराडीह में कनहर नदी में और बिहार के पलामू रोहतास जिलों के बीच सोन नदी में इन्द्रपुरी जलाशयों के निर्माण के कारण सरगुजा संभाग के सैकड़ों गावों के डूबान से प्रभावित होने हजारों आदिवासियों के विस्थापन होगा। यही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के आरक्षित वनों और कोलियारी में गंभीर नुकसान होगा। रायगढ़ के आरटीआई एक्टिविस्ट प्रदीप खंडेवाल कहते हैं कि दीर्घकालीन हितों के बजाए राज्य सरकार वोट के तत्कालिन लाभ-हानि पर ज्यादा गौर कर रही है। उनका कहना है कि राज्य सरकार को पड़ोसी राज्यों पर बांधों की उंचाई कम करने के लिये दबाव बनाना चाहिए। नहीं तो छग को भविष्य में भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। बहुत सारी खेती की जमीन डूबान में चली जाएगी, और उस पानी पर भी राज्य का अधिकार नहीं होगा। सरकारी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण का विरोध करते हुए गंडई(कवर्धा) निवासी रितेश अग्रवाल कहते हैं कि निजीकरण के बूते आम जनता का जीवन स्तर उपर नहीं उठा सकता। गंडई में मेडिकल स्टोर्स चलाने वाले रितेश अग्रवाल स्वयं एमकाम तक शिक्षित हैं। जीईसी, रायपुर में आठवें सेमेस्टर की छात्रा प्रणीति जैन ने स्थाई प्रकृति के सभी कार्यो में श्रमिकों-कर्मचारियों को स्थाई नियुक्ति पर बल देते हुए कहा कि इससे रोजगार बढ़ेगा। गिरौदपुरी ग्राम पंचायत में पंच विजय देशलहरे अनुसूचित जाति के आरक्षण कटौती को व्यर्थ निरूपित करते हुए कहते हैं कि वर्तमान समय में आरक्षण का लाभ कुछ लोगों को ही मिल पाता है। देखा गया है, अब तक जिन लोगों ने इसका लाभ लिया भी है, उन लोगों ने समाज के बजाए अपनी निजी स्वार्थों को तवज्जों दिया। कई लोगों ने आरक्षण के चलते नौकरी पाने के बाद समाज से नाता तोड़ लिया और अपने लिए पत्नी दीगर समाज से लाया। श्री देशलहरे का कहते हैं- लगभग 32 सालों से राजनीति से जुड़ा हूं। अपनी जाति के लिए हम लोगों ने संघर्ष किया, मगर जिन्हें फायदा मिला.. उन लोगों ने ही हमारे समाज को त्याग दिया। ऐसे में संघर्ष का क्या मतलब रहा। अपने एक निकटवर्ती रिश्तेदार का उदाहरण देते हुए श्री देशलहरे ने बताया कि दुर्ग से 32 किलोमीटर की दूरी पर जामगांव रोड पर स्थित छोटे से गांव गाड़ाडीह में ससुराल गई उनकी एक बहन ने बड़ी मुश्किल से अपने छोटे बेटे को पालीटेक्निक की शिक्षा दिलायी। छग विद्युत मंडल में जूनियर इंजीनियर के पद पर उसकी नौकरी भी लगी। मगर आज उस बेटे ने एक स्वर्ण युवती से शादी कर ली, और अपने परिवार को भूल गया। यहंा तक अपनी एकमात्र बहन की शादी में भी वहंा शामिल होने नहीं आया। आरक्षण का लाभ उठा कर बड़ा आदमी बन जाने वाले समाज के लोग ही समाज को भूल जाते हैं। फिर ऐसे आरक्षण का क्या लाभ... ? राज्य में तीसरे विकल्प की दरकार व्यक्त करते हुए ग्राम पंचायत मर्रा के सरपंच होरीलाल वर्मा कहते हैें अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये 27 प्रतिशत आरक्षण और राज्य में संविधान की 5वीं अनुसूची, पेसा कानून और वनाधिकार अधिनियम के प्रावधानों का पालन जरूरी है। रमन की हैट्रिक में सीएम सरोज ? दक्षिणापथ/रायपुर

सरोज पांडेय

  बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ की टीम में दुर्ग सांसद सरोज पांडेय को महिला मोर्चा अध्यक्ष बनाकर राष्ट्रीय राजनीति में उनके बढ़ते प्रभाव की झलक दिखा दी है। सरोज पांडेय छत्तीसगढ़ की एकमात्र भाजपा नेता हैं जिन्हेें भाजपा के राष्ट्रीय संगठन में अहम स्थान दिया गया है। छत्तीसगढ़ के सभी 11संसदीय सीटों में से दस सांसद भाजपा की झोली में जाने के बावजूद सिर्फ सरोज पांडेय को चुने जाने के खास मायने हैं। रायपुर सांसद रमेश बैस को पांच-पांच बार सांसद बनने के बाद भी राष्ट्रीय संगठन में वह स्थान नहीं मिल सका, जो सरोज पांडेय ने पहली दफा सांसद बनने के बाद हासिल कर लिया। राजनाथ सिंह के दुबारा भाजपा अध्यक्ष बनने के साथ ही सरोज पांडेय का कद बढऩा तय हो चुका था और उनकी टीम में विशेष स्थान मिलेगा। इन हालातों में यदि भाजपा प्रदेश की सत्ता में तीसरी बार भी आई तो सरोज पांडेय छत्तीसगढ़ की सत्ता की सर्वोच्च प्रतीक बन सकती हैं। दुर्ग सांसद सरोज पांडेय ने जब से राजनीति में कदम रखा है, पीछे मुड़ कर नहीं देखा। दुर्ग में लगातार दस साल महापौर रहकर उन्होंने लिमका बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में अपना नाम शामिल करवा लिया। एक ही समय में वे दुर्ग की महापौर, वैशाली नगर की विधायक एवं दुर्ग लोकसभा सांसद रहने का अनोखा रिकार्ड उनके नाम है। महापौर के उनके कार्यकाल को दुर्गवासी कभी नहीं भुल सकते। बुनियादी विकास के साथ शहर सौंदर्यीकरण का उन्होंने जो जज्बा जगाया, वह इस शहर के लिए अभिनव था। उनकी सक्रियता व विकास के लिए प्रतिबद्धता देखकर शहर की जनता लगातार उनके साथ जुड़ते गई, और दूसरी बार भी रिकार्ड मतों से उन्होंने जीत दर्ज की। दूसरे कार्यकाल खत्म होने तक सरोज पांडेय की ख्याति पूरे राज्य में एक ऐसी विकास वीरांगना के रूप में बन चुकी थी, लगातार विकास कार्य जिनका धर्म हो। एक औसत परिवार में जन्म लेकर राष्ट्रीय राजनीतिक क्षितिज में मुकाम बनाने का ऐसा उदाहरण छत्तीसगढ़ में बिरले ही मिलता है। अपने दम पर राजनीति की शीर्ष पायदान तक पहुंचने में इसके पहले कांग्रेस की मिनी माता ही सफल हुई थीं। अपनी कर्मठता, कार्यशैली व सेवाभाव के चलते सरोज पांडेय पूरे राज्य में अपने समर्थकों की अच्छी टीम बना चुकी हैं। इंटरनेट पर बाकायदा सरोज पांडेय प्रशंसक फोरम भी बना हुआ, जिसमें हर दिन सैकड़ों की संख्या में उनके प्रशंसक जुड़ रहे हैं। वर्तमान में सरोज पांडेय प्रदेश के शीर्ष भाजपा नेताओं में भी अग्रणी बन चुकी हैं। केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें महिला मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर स्पष्ट कर दिया है कि रमन की हैट्रिक में सरोज पांडेय सीएम की भूमिका निभाने में सक्षम विकल्प हैं। 

आखिर यह क्या हो रहा है रमन राज में! छत्तीसगढ़ राज्य के अलग-अलग तीन बाल आश्रमों में रहने वाले बालक-बालिकाओं से यौन शोषण की घटना सरकारी मशीनरी की वास्तविकता का द्योतक है। आमाडूला आश्रम में सात साल पहले ही यौन शोषण का भंडाफोड़ हो चुका था। आश्रम की जिस वार्डन अनिता ठाकुर ने पीडि़त छात्रा का हाथ पकड़ कर बलात्कारियों के हवाले कर दिया था, वह इसके पांच साल बाद तक भी सम्मान पाते रही। जिसे जेल में होना चाहिए था, वह मुख्यमंत्री के साथ मंच में खड़ी नजर आती थी। झलियामारी आश्रम की घटना भी लंबे समय से सतह पर आ चुकी थी, मगर आश्रम से जुड़़े लोगों व सरकारी मशीनरी ने अपनी झूठी इज्जत के खातिर उसे दबाए रखा। यौन शोषण की सभी घटनाओं के पीडि़त अधिकांशत: गरीब आदिवासी वर्ग से वास्ता रखने वाले बच्चे हैं। बिहड़ जंगल के गांव-खेड़ों में रहने वाले जिन आदिवासी परिवारों ने अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर नई जिंदगी देनी चाही थी, उनकी बस यही गलती थी कि उन्होंने रमन सरकार के आश्रमों पर भरोसा किया। घटना के बाद पीडि़त परिवार सोचते होंगे, इससे तो अच्छा उस बिहड़ जंगल में रहकर जीना ज्यादा बेहतर है। कम से कम वहंा पढ़े-लिखे और सरकार से जुड़े लोग उनकी अस्मत पर धावा बोलने तो नहीं जाते। अभी हाल ये कि पीडि़त छात्राओं की जिंदगी नर्क बनी हुई है और परिवार वाले उस वक्त को कोस रहे हैं, जब उन्होंने सरकार पर भरोसा कर अपनी बेटियों को जीते जी वहां भेज दिया। और अब राजधानी से महज 40 किलोमीटर के फासले पर अवस्थित दुर्ग के बेथेल चिल्ड्रन होम में बच्चों से दुष्कृत्य की घटना ने सरकारी तंत्र की चूलें हिला कर रखी दी है। बेथेल चिल्ड्रन होम में बच्चों से न केवल यौन शोषण किया जा रहा था, बल्कि धर्म परिवर्तन की सुगबुगाहट भी सुनाई पड़ रही थी। दुर्ग की घटना से जुड़े कई रसूखदारों के नाम आने अभी बाकी हैं। इतना सब होने के बाद भी यदि सरकार गरीब आदिवासियों के हितों की दंभ भरती हो, तो उसे जमीन पर उतर कर स्थिति देखनी चाहिए। छत्तीसगढ़ के आश्रमों में बच्चों से यौन शोषण की घटना ने पूरे देश में सूर्खियां हासिल कर ली है। यूं प्रतीत होता है कि राज्य की पहचान सरकारी संरक्षण में सर्वाधिक बाल यौन शोषण वाले राज्य की बन गई हो। छत्तीसगढ़ के छात्रावास बने यौन शोषण के अड्डे दक्षिणापथ । रमन राज में राज्य के छात्रावास व अनाथालय यौन शोषण के अड्डे बनते जा रहे हैं। पहले कांकेर फिर डौंडीलोहारा और अब दुर्ग। इन जगहों पर यौन शोषण के मामले उजागर होने के बाद राज्य में जीत की हैट्रिक बनाने का सपना संजो रही भाजपा सरकार के मंसूबों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। मुख्यमंत्री डा रमन सिंह को मिशन 2013 फतह करने के लिए जनता के बीच फिर से स्वच्छ छबि कैसे बनाएंगे, यह देखनी वाली बात होगी। पहले चुनाव में राज्य निर्माता अटल बिहारी के नाम पर भाजपा सत्तासीन हुई। 2008 का चुनाव बेशक चाउर वाले बाबा के विकास के नाम रहा। लेकिन इन 9 सालों में रमन राज में भाजपा की असलीयत जनता के सामने उजागर हो चुकी है। किंतु अब उक्त घटनाओं ने सरकारी कामकाज की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। इस बार जनता का विश्वास जीतना सरकार के लिए इतना आसान नहीं होगा। दुर्ग स्थित बेथेल चिल्ड्रन होम के आधा दर्जन बच्चों के साथ यौन शोषण का मामला राज्य की भाजपा सरकार की पुंगी बजाने के लिए काफी है। तितुरीडीह स्थित बेथेल चिल्ड्रन होम (अनाथालय) में बच्चों के साथ यौन शोषण तो किया ही जा रहा था, उसके अलावा बच्चों के साथ मारपीट कर उनका धर्म परिवर्तन करने दबाव भी बनाया जाता था। मामले की तफ्तीश के बाद मोहन नगर पुलिस ने बेथेल चिल्ड्रन होम के संचालक सहित तीन कर्मचारियों के खिलाफ धारा 377, 506 तथा 3, 4 धर्म स्थानांतरण अधिनियम के तहत अपराध दर्ज कर लिया है। तीनों आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। मामले का खुलासा होने के बाद जिला प्रशासन ने अनाथालय में ताला जड़कर बच्चों को महिला बाल विकास विभाग के सुपुर्द कर दिया है। सीएसपी राकेश भट्ट ने बताया कि तितुरीडीह स्थित ईसाइ मिशनरी द्वारा संचालित बेथेल चिल्ड्रन होम की संदिग्ध गतिविधियों के बारे में चाइल्ड लाईन के केन्द्र समन्यवक सुरेश कापसे से मिली जानकारी के बाद पुलिस की तफ्तीश में अनाथालय में पिछले दो साल से यहां रह रहे बच्चों के साथ यौन शोषण की घटनाएं होने का खुलासा हुआ है। यहां के एक 14 वर्षीय छात्र ने केयरटेकर दिलीप कुमार पर तीन-चार माह पूर्व उसके साथ यौन शोषण करने की बात का खुलासा किया। इसके अलावा बच्चों ने अनाथालय के संचालक रेवेन्द्रु पी स्वामी नाडलू तथा कर्मचारी बी इराफूक पर मारपीट और दबाव डालकर धर्म परिवर्तन करने का आरोप लगाया। पुलिस ने अनाथालय के केयरटेकर दिलीप कुमार के खिलाफ यौन शौषण तथा संचालक रेवेन्द्रु पी स्वामी नाडलू व बी इराफूक के खिलाफ 3, 4 धर्म स्थानांतरण अधिनियम के तहत अपराध दर्ज की है। गौरतलब है कि घटना का खुलासा उस वक्त हुआ जब 26 मार्च को अनाथालय की चार छात्राएं मारपीट से तंग आकर यहां से भाग गई थी। इन चारों छात्राओं को रायपुर नाका क्षेत्र में रात 11.30 बजे संदिग्ध हालत में घूमते हुए एसडीओपी पाटन निवेदिता पाल ने पकड़ा था। बाद में पुलिस ने छात्राओं को चाइल्ड लाईन के हवाले कर दिया था। चाइल्ड लाईन ने इन छात्राओं को बाल संरक्षण समिति से सहमति लेकर रायपुर स्थित महिला गृह भेज दिया था। इसके पश्चात चाइल्ड लाईन के केन्द्र समन्यवक सुरेश कापसे तथा महिला बाल विकास की टीम ने अनाथालय जाकर यहां चल रही गतिविधियों की तफ्तीश की थी। इसके बाद ही यहां बच्चों के साथ यौन शोषण व उनका धर्म परिवर्तन करने का खुलासा हुआ। --- आरोपी बख्शे नहीं जाएंगे: यशवंत जैन बेथेल चिल्ड्रन होम में चल रही संदिग्ध गतिविधियों का खुलासा होने के बाद बाल संरक्षण आयोग छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष यशवंत जैन ने पत्रकारों से कहा कि घटना के संबंध में कुछ शिकायतें मिली है। इसके आधार पर जांच जारी है। जांच के पश्चात पाए गए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। आरोपी बख्शे नहीं जाएंगे। यद्यपि उन्होंने आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की बात तो की है, लेकिन साथ में यह भी कहा कि नए कानून लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 के तहत फिलहाल कानून को समझने की जरुरत है। इसके लिए पृथक से वकील नियुक्त किया जाएगा। यशवंत जैन ने अधिकारियों की बैठक लेकर जिले में चल रहे समस्त बाल गृह की जांच करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि बच्चों से पूछताछ सिविल ड्रेस में की जाए। जिससे बच्चे सहज रह सके। बजरंग दल ने किया विरोध प्रदर्शन जैसे ही बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष यशवंत जैन, महिला बाल विकास विभाग परिसर पहुंचे वैसे ही बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने जोरदार नारेबाजी करते हुए उनका घेराव कर दिया। जिला मंत्री रतन यादव ने घटना पर तीव्र विरोध जाहिर करते हुए यशवंत जैन से पूछा कि मामले में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई कब होगी। जिस पर श्री जैन ने उन्हें आश्वस्त करते हुए आरोपियों के खिलाफ शीघ्र कार्रवाई का भरोसा दिलाया। इस अवसर पर रतन यादव ने कहा कि बेथेल चिल्ड्रन होम में रह रहे गरीब बच्चों को डरा-धमकाकर उनका धर्म बदलने मजबूर किया जा रहा है। बच्चों को गैस सिलेंडर के पाइप व छड़ीे से मारा जाता है। गर्भवती अर्पणा कहां गायब? करीब एक साल पहले अर्पणा नामक (परिवर्तित नाम) 14 वर्षीया नाबालिग छात्रा को बेथेल चिल्ड्रन होम में लाया गया था। उसे यहां वार्डन के पद पर रखा गया था। जानकारी के अनुसार उक्त छात्रा आश्रम में रहते हुए गर्भवती हो गई थी। बाद में उसने एक बच्चे को जन्म भी दिया था। आश्रम संचालक पी स्वामी नडालू द्वारा छात्रा को किसी से मिलने नहीं दिया जाता था। जानकारों की माने तो छात्रा की अनुमति के बगैर उसके बच्चे को बाहर ले जाकर बेच दिया गया। मामले के उजागार होने के डर से आश्रम संचालक नडालू ने छात्रा को आश्रम से निकाल कर ऐसे स्थान पर भेज दिया, जिसका पता आज तक किसी को नहीं लग सका है। --------

चौपट हो गए राज्य के आईटीआई - मेन्स पावर तैयार करने की योजना खटाई में दक्षिणापथ डेस्क रायपुर। एक वक्त था, जब आईटीआई उत्तीर्ण होने के उपरांत प्रशिक्षार्थी तकनीकी क्षेत्र का एक कामयाब चेहरा बन जाता था, बीएसपी समेत सरकारी एवं अन्य निजी उपक्रमों में अच्छी नौकरी मिलती थी। रेलवे व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में बेहतर प्रदर्शन करते थे। क्योंकि तब सरकारी आईटीआई में प्रशिक्षणार्थियों को कठोर प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता था। अनुभवी अनुदेशकों की देखरेख में प्रशिक्षणार्थी अपने ट्रेड में निष्णात होते थे। मगर आज राज्य की सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं में हालात् बिलकुल विपरीत हैं। प्रशिक्षण के नाम पर महज खानापूर्ती चल रहीं है। प्रशिक्षण पूरी तरह से खत्म हो गया है । राज्य के 118 आईटीआई में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले प्रशिक्षणार्थियों का भविष्य चौपट हो गया है । डीजीईटी ने राज्य के 118 आईटीआई के मान्यता को छिनने की चेतावनी दी है। किसी तरह इन संस्थाओं से उत्तीर्ण हो जाने वाले प्रशिक्षणार्थी खुली प्रतियोगी परीक्षाओं में टिक नहीं पा रहे हैं। लिहाजा रेलवे व अन्य उपक्रमों में नौकरी नहीं मिल रही है। इन सबके पीछे जवाबदार है प्रदेश का रोजगार एवं प्रशिक्षण संचालनालय। जो अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारी के बूते पर युवाओं में मेन्स पावर तैयार किया जा रहा है। कौशल विकास के अभाव में गुजरात की तरह छत्तीसगढ़ में युवा कौशल संवद्र्धन की योजना धूल फांकते रह जाएगी। अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारी सीधी भर्ती के तहत 723 पदों पर जब से संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण द्धारा अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारियों की भर्ती की गई हैं तभी से यह अव्यवस्था का आलम व्याप्त हो गया हैं । अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारियों को अपने ट्रेडों(व्यवसायों) का किसी तरह का अनुभव नहीं हैं जिसके चलते किसी भी तरह का प्रशिक्षण नहीं कराया जा रहा है। प्रेक्टिकल की जानकारी नहीं होने से प्रेक्टिकल व प्रशिक्षण महज खानापूर्ती बन गया हैं । मापदंडों की अवहेलना महानिदेशालय रोजगार एवं प्रशिक्षण (डीजीईटी) के प्रशिक्षण मापदंडों के अनुसार पूरे भारत में एक प्रशिक्षण व्यवस्था लागू हैं। जिसमें प्रशिक्षण मैनुअल का पालन अनिवार्य किया गया हैं । जिसके अनुसार थ्योरी व प्रायोगिक का मापदंड निर्धारित हैं। परंतु इन मापदंडों का संचालनालय रोजगार एंव प्रशिक्षण के अधिकारियों ने मजाक बना रखा हैं। इन संस्थानों में प्रेक्टिकल नहीं हो रहा हैं । क्योंकि संचालनालय द्धारा प्रशिक्षण अधिकारियों की भर्ती की गई हैं इन्हें प्रेक्टिकल का वृहद अनुभव ही नहीं हैं तो वे छात्रों को कहां और कैसे प्रेक्टिकल करायेंं । अनुदेशकों को अधीक्षकों का प्रभार डीजीईटी, नई दिल्ली ने प्रशिक्षण के सुचारु रुप से चलने व प्रशिक्षण की लगातार देखरेख के लिए प्रशिक्षण अधीक्षक पद का सृजन किया है । परंतु छत्तीसगढ़ राज्य में ऐसा नहीं हो रहा हैं संचालनालय द्धारा प्रशिक्षण अधीक्षकों को ही अधीक्षकों का प्रभार दे दिया गया हैं। साथ में तृतीय वर्ग कर्मचारियों को आहरण संवितरण(डीडीओ) का प्रभार दे दिया गया हैं लिहाजा उक्त कर्मचारी प्राचार्य की कुर्सी में बैठकर दिनभर बजट बराबर कर रहें हैं। कार्यालय में सहायक ग्रेड-3 के साथ बैठकर तथाकथित फर्जी बिल बनाने में सराबोर रहते हैं । सूत्रों ने इनके बारे में यहॉं तक बताया हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के समय यही प्रशिक्षण अधिकारियों ने विगत 12 सालों से अपने-अपने व्यवसायों में किसी भी तरह का प्रशिक्षण नहीं कराया हैं । इन पर छत्तीसगढ़ सरकार बड़ी मेहरबान हैेंं इन्हीं भ्रष्ट व प्रशिक्षण नहीं कराने वाले कर्मचारियों को प्रशिक्षण अधीक्षक पद नवाजा गया हैं। समझा जा सकता है कि कैसा प्रशिक्षण दिया जा रहा होगा। प्रशिक्षण अधीक्षक को मात्र प्रशिक्षण कार्य कराना है। सिविल सेवा अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार आहरण संवितरण का प्रभार मात्र राजपत्रित अधिकारी से ही कराने का प्रावधान हैं, अन्य दीगर कार्य नहीं। किनारे लग गये संविदा व मेहमान प्रवक्ता नवंबर 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन किया तब संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण तथा सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं का सेटअप तैयार नहीं था। तब छत्तीसगढ़ राज्य को मध्यप्रदेश से मात्र 45 सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं को संचालन की मान्यता मिली थी। वह भी बहुत कम व्यवसायों के साथ। तब संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण द्धारा संयुक्त संचालक(प्रशिक्षण) के माध्यम से प्रशिक्षण कार्य के लिए प्रशिक्षण अधिकारी के पदों पर तीन वर्षीय अनुभवी मेंहमान प्रवक्ताओं की भर्ती की गई व आईटीआई के प्रशिक्षण चलाया गया। सूत्रों ने बताया है। 2002 से 2005 के बीच में लगभग 400 मेंहमान प्रवक्ताओं की भर्ती संयुक्त संचालक(प्रशिक्षण) के माध्यम से की गई । परंतु जनवरी 2013 में 723 पदों पर अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारियों की भर्ती करके इनकी सेवाऐं समाप्त कर दी गई हैं । मेहमानों के भरोसा मान्यता राज्य निर्माण के समय सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती थी कि सरकारी आईटीआई की संख्या को कैसे बढ़ाया जाये व प्रत्येक जिला मुख्यालय व ब्लाकों में आईटीआई किस तरह खोला जाय, जो इतना आसान नहीं था। क्योंकि सभी जानते हैं कि सन् 2004-2005 में जब सरकार ने संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण के सेटअप को मंजूर किया, तब कहीं नये आईटीआई खोलने व ट्रेडों के मान्यता लेने का सिलसिला शुरू हुआ। तब संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण ने इन्ही 400 मेंहमान प्रवक्ताओं को नियमित प्रशिक्षण अधिकारी बताकर महानिदेशालय रोजगार एवं प्रशिक्षण (डीजीईटी) से ट्रेडों की मान्यता लिया था। । एनेक्सर-थ्री में भी गोलमाल ट्रेडों (व्यवसायों) की डीजीईटी नई दिल्ली से मान्यता लेने के लिए एनेक्सर-3 का निर्माण किया जाता हैं जिसमें आईटीआई में उपलब्ध संसाधनों के साथ-साथ संबंधित ट्रेडों की मान्यता के लिए संबंधित ट्रेड के प्रशिक्षण अधिकारी का नाम शैक्षणिक व तकनीकी योग्यता व अनुभव के मापदंडों का पूरा होना जरूरी हैं। चूकिं संयुक्त संचालक (प्रशिक्षण) द्धारा तीन वर्षीय अनुभव के मापदंडों को पूरा करने वाले अनुभवी मेंहमान प्रवक्ता प्रशिक्षण अधिकारियों की भर्ती की गई थी इसी को ध्यान में रखकर महानिदेशालय रोजगार एवं प्रशिक्षण डीजीईटी नई दिल्ली द्धारा राज्य के सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं में खुलने वाले नये ट्रेडों की मान्यता दी थी। किंतु आज वे अपने अस्तित्व की लड़ाई लडऩे मजबूर हैं । नेतागिरी व नुराकुश्ती का संस्थान सरकारी आईटीआई पावर हाउस भिलाई व दुर्ग पूरी तरह से नेतागिरी के संस्थान बन गये हंै। आईटीआई के विभागीय सूत्रों के अनुसार दुर्ग आईटीआई में प्रशिक्षण अधीक्षक स्तर के कर्मचारी ने तो बाकायदा अपने आप को तकनीकी संघ का प्रांताध्यक्ष घोषित कर रखा हैं दिनभर कर्मचारियों की नेतागिरी की क्लास ली जाती हैं । प्रशिक्षण देने में उनकी रूचि नहीं हैं । दुर्ग आईटीआई के सूत्रों ने यह भी बताया कि इन अधिकारियों के आने-जाने का कोई समय सीमा तय नहंी हैं। अपनी मर्जी से आते-जाते हैं । इसी तरह आईटीआई पावर हाउस भिलाई के प्रशिक्षण अधीक्षक ने तो अपने आप को संचालनालय में अटैच करा लिया है । उन्हें आईटीआई में रहकर प्रशिक्षण कार्यो के मानीटरिंग करने से तकलीफ होती हैं। अलबत्ता स्वास्थ्यगत कारण बताकर छुट्टी ले ली जाती हैं। जिससे प्रशिक्षणरत् छात्रों का लगातार नुकसान हो रहा हैं। सूत्रों ने बताया हैं दुर्ग आईटीआई के कुछ नांन ईंजीनियरिंग ट्रेडों(व्यवसायों) के प्रशिक्षण अधिकारी जो कि प्रशिक्षण अधीक्षक नहीं बन पा रहें हैं। प्रशिक्षणार्थियों को अपने घर में ट्यशन के लिए बाध्य करते हैं। इससे प्रतिभावान प्रशिक्षणार्थियों का भविष्य चौपट हो रहा हैं। 118 आईटीआई की मान्यता छिछने की चेतावनी स्ंाचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण के विभागीय सूत्रो से मिली जानकारी अनुसार 723 पदों पर अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारियों की भर्ती के संबंध में महानिदेशालय रोजगार एवं प्रशिक्षण(डीजीईटी) के महानिदेशक ने विभागीय सचिव जनशक्ति नियोजन व संचालक संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण को फटकार लगाई हैं व राज्य के जिन-जिन ट्रेडों में अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारी कार्यरत् हैं उन सभी ट्रेडों की एनसीव्हीटी की मान्यता रद्द करने की चेतावनी दी हैं । महानिदेशक बहुत जल्द एक टीम केंद्र से राज्य में भेजने की बात भी कहीं हैं । दर्जन भर पर गिर चुकी है गाज महानिदेशक रोजगार एवं प्रशिक्षण (डीजीईटी) के अनुसार 28 जून 2012 को छत्तीसगढ़ राज्य के 12 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं में अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारियों की भर्ती के कारण एनसीव्हीटी मान्यता नहीं दी हैं । किंतु अब नये नियमों के अनुरुप ही मान्यता लेनी होगी, वह भी क्यूसीआई (क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया) के शैक्षणिक,तकनीकी व अनुभव के मापदंडों व संसाधनों के आधार पर हीं ट्रेडों को एनसीव्हीटी की मान्यता प्राप्त हो सकेगी। प्रत्येक 5 साल बाद फिर क्यूसीआई से मान्यता लेनी होगी। नियम में यह भी शामिल हैं कि पूर्व से एनसीव्हीटी मान्यता प्राप्त ट्रेडो को दुबारा क्यूसीआई के मापदंडों में खरा उतरना होगा। छत्तीसगढ़ राज्य में तीन बार क्यूसीआई व एटीआई कानपुर की टीम ने 723 पदों पर प्रशिक्षण अधिकारियों की भर्ती को देखते हुए दौरा करने से इंकार कर दिया। एटीआई कानपुर के निदेशक का कहना हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य की सारी आईटीआई को तत्काल एनसीव्हीटी की संबद्वता रद्द कर डिएफिलेटेड़ कर दिया जाए, क्योकि प्रशिक्षण की गुणवत्ता दोयम दर्जे की हैं जो प्रशिक्षण व स्किल्ड मैन पावर के लिए खतरे की घंटी हैं । जिन प्रशिक्षण अधिकारियों के पास अनुभव नही हैं वे ट्रेडों में किस तरह का प्रशिक्षण कराएंगे? मशीन में फंसा हाथ नवगठित जिला बालोद मुख्यालय में अवस्थित सरकारी आईटीआई के वेल्डर ट्रेड(व्यवसाय) के अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारी ने प्रशिक्षण के दौरान अपना हाथ वेल्ंिडंग मशीन में फंसा लिया, जिसे मुश्किल से बचाया गया। जो अनुभवहीन प्रशिक्षण अधिकारियों के चलते ऐसी घटनाएं घटित हो रही हैं । परीक्षा करीब, पढ़ाते नहीं 20 जुलाई से अखिल भारतीय दस्तकारी परीक्षा (एनसीव्हीटी) हैं । प्रशिक्षणार्थियों ने बताया कि 723 पदों की भर्ती से आये प्रशिक्षण अधिकारी न क्लास लेते हैं और न हीं प्रशिक्षण देते हैं । किंतु आईएमसी के सर्पोटिंग स्टाफ व प्रशिक्षण अधीक्षकों पर उंगली उठाना वाला कोई नहीं। बेतुके बोल बताया जाता है कि संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण के अधिकारी अनुभवहीन प्रशिक्षकों की भर्ती पर कहते हैं कि दो-तीन वर्षों में ये लोग सीख जायेगें, अभी जैसा भी हो काम चलाना पड़ेगा। संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण में विभाग के संचालक कभी भी अपने कार्यालय में नहीं रहते हैं । पीए से पूछने पर बताया जाता हैं कि साहब अभी दिल्ली गये हैं । संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण के सूत्रों ने तो यहॉं तक बताया हैं कि संचालक हमेशा गायब रहते हैं । छत्तीसगढ़ सिविल सेवा अधिनियम के प्रावधानों व संचालनालय के सेटअप में संचालक के बाद अतिरिक्त संचालक का पद सृजन हैं । इसके बावजूद संयुक्त संचालक कैसे अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर उस पद पर काबिज हो गए। इससे तो यह साबित हो रहा हैं कि संचालनालय में अतिरिक्त संचालक का पद समाप्त हो गया हैं । जिनसे मिली मान्यता, वही हुए बेरोजगार इसे मेहमान प्रवक्ता व संविदा प्रशिक्षण अधिकारियो का दुर्भाय ही कहा जाये कि इनके अनुभव का कोई लाभ छत्तीसगढ़ सरकार व संचालनालय रोजगार एवं प्रशिक्षण नहीं ले रही । जिनके नामों का उपयोग करके डीजीईटी नई दिल्ली से एनसीव्हीटी की मान्यता ली गई हैं उन्हीं लेागों को आज सरकार बेरोजगार करने पर उतारु हो गई हैं । जनशक्ति नियोजन विभाग की सचिव ने मेंहमान प्रवक्ता संविदा प्रशिक्षण अधिकारियों को नियमतिकरण का आश्वासन दिया था । परंतु आज तक सचिव ने इनका नियमितीकरण नहीं किया । अलबत्ता इन संविदा कर्मियोंं को नौकरी से निकालने का इंतजाम जरुर कर दिया। -----------------------े

 
 

No comments:

Post a Comment