Monday 4 March 2013

1 march 2013

900 के कूपन में ओव्हरलोडिंग का लायसेंस  

-दाऊ और राजू बने आरटीओ के ....डान दक्षिणापथ टीम 

 दुर्ग। ओव्हर लोड के नाम पर वाहन चालकों से अवैध वसूली कर अधिकारी किस तरह करोड़ों रूपए की काली कमाई कर रहे हैं, इसका ज्वलंत उदाहरण आरटीओ के दुर्ग डिविजन में साक्षात् देखा जा सकता है। राजनांदगांव, कवर्धा, बालोद, बेमेतरा और दुर्ग जिले के हजारों वाहनों को चालानी कार्रवाई का डर दिखाकर इस गोरखधंधे को बदस्तूर अंजाम दिया जा रहा है। आरटीओ विभाग का यह कारनामा रमन सिंह के हैट्रिक के सपने पर भी पानी फेर सकता है। विभाग से पीडि़त हर शख्स इस लूूट खसोट के लिए सीधे-सीधे सरकार को जवाबदार मानता है। दरअसल, कथित विभागीय अधिकारी इसके पीछे चुनावी चंदा जुगाडऩे की वजह बता देते हैं। राज्य निर्माण के साथ ही छत्तीसगढ़ लिखी हुयी वाहन जब राज्य के साथ देश की सड़कों पर दौडऩे लगे तो प्रदेश की नयी पहचान मिलने लगी। किन्तु राज्य को पहचान दिलाने वाला परिवहन विभाग ही जब लुट-खसोट करने लगे, तो समझो जनता की शामत आ गयी। उच्च अधिकारियों के साथ छोटे-मोटे धंधा करने वाले भी आज आरटीओ की धौंस दिखाकर वाहन चालकों को लूटने लगे हैं। दुर्ग जिले से गुजरने वाली हर गाडिय़ों में आरटीओ का कमीशन बंधा हुआ है। अधिकारियों के सरंक्षण में हर महीने करोड़ों का गोलमाल किया जा रहा हैं और सरकार आँख पर पट्टी बांधे हुए हैं। ये सब हो रहा है दुर्ग स्थित आरटीओ कार्यालय में। कमोबेश सभी अधिकारियों ने अपने निजी एजेंट पाल रखे हैं, जो शहर में ओव्हर लोड के नाम पर चालान की गई वाहनों को छुड़ाने का ठेका लेते हैं। बड़े-बड़े वाहनों में नजर आने वाले ओव्हर लोडिंग का सीधा मतलब वाहन मालिक व आरटीओ का सांठगाँठ है। अब विभाग ने एक नया सिस्टम चालू कर रखा है, एंट्री पास के नाम पर 600 व 900 रू कीमत वाले विशेष कूपन चलाए जा रहे हैं, जिसके पास कूपन है उसे बिंदास ओव्हरलोडिंग करने की जैसे परमिशन मिल गई है। कूपन नहीं लेने वाले वाहन मालिक अनाप-शनाप चालानी कार्यवाही से बेमौत मारे जा रहे हैं । बताया जाता है कि चालानी कार्यवाही के तहत ओव्हर लोडिंग के नाम पर 25 हजार से एक लाख रू तक फाइन ठोंक दी जाती है। विडंबना यह है कि फाइन वसुलने वाले शख्स खुद आरटीओ के कर्मचारी नहीं होते हैं और चालानी शुल्क न्यायालय में जमा कराने के बजाए इनके निजी दफ्तर में तथाकथित फर्जी रसीद के जरिये जमा होता है। सवाल उठाना लाजि़मी होगा कि माइनिंग, आबकारी सहित अन्य विभागों में चालानी कार्यवाही और दंडित राशि की जानकारी अखबारों के दफ्तरों तक पहुंचायी जाती है, किंतु आज तक आरटीओ विभाग ने की गई कार्रवाई और वसूली गई राशि का विवरण किसी अखबार तक नहीं पहुंचायी है। क्योंकि पूरा खेल ही यहंा गोरखधंधे का चल रहा है। क्या है कूप कूपन का रंग और छाप हर माह बदलते रहता है, जिसे हर अधिकारी और कर्मचारी पहचानते हैं। एक कूपन की कीमत 6 सौ से 9 सौ है, जो प्रत्येक भारी वाहनों के लिए होता है। कूपन लेना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि फ्लाईंग स्क्वाड के कार्यक्षेत्र में दुर्ग के अलावा बेमेतरा , बालोद राजनांदगाव और कवर्धा जिले भी आते है। सभी जिलों को मिलाकर वाहनों की संख्या लाखों में है। हर महीने उडऩदस्ता की काली कमाई का आंकड़ा करोड़ों पार कर जाता है जिसका सरकारी रिकार्ड में नामों-निशान नहंी होता । अवैध वसूली की ये मलाई सब बांटकर खाते हैं और शासन को करोड़ों का चूना लगाया जा रहा है। दुर्ग से होकर गुजरने वाली वाहनों को भी इसकी बाध्यता है चाहे वो महीने में एक बार ही दुर्ग क्यो न गुजरे। कूपन दिखाओ, खुद जान जाओ वाहन मालिकों को शासकीय नियमानुसार निर्धारित वजन के साथ ही गाड़ी चलाने की अनुमति है किन्तु मुनाफे के चक्कर में मालिक और ऊपरी कमाई के लालच में अधिकारी खुलकर सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाते है। कूपन लगे वाहनों में चाहे जो भी हो और जितना भी ओव्हरलोडिंग हो, रोकने वाला कोई नही। वाहनों में चस्पा कूपन दर्शाता है कि मलाई दे दी गयी है। कौन है राजू और दाऊ उडऩदस्ता की टीम में राजू यादव और सर्वेश सिंह उर्फ दाऊ नामक दो बाहरी व्यक्ति, जो विभाग में न होकर भी विभाग के सरकारी दस्तावेज के साथ दिन भर खेलते रहते है ।् अधिकारी सिर्फ फाइलों में हस्ताक्षर करते हैं बाकी का काम दाऊ और राजू करते हैं। दाऊ नामक यह व्यक्ति उडऩदस्ता के आदर्श नगर स्थित कथित कार्यालय में चौबीसों घंटे बैठता है। गैर विभागीय व्यक्ति किस हैसियत से सरकारी दस्तावेज को मेंटनेंस करता है और कूपन देता है यह आरटीओ अधिकारी ही जाने। दाऊ ही वाहन मालिकों को कूपन बेचता है जो सरकारी रसीद या दस्तावेज नहीं, बल्कि आरटीओ की अवैध वसूली का सर्टिफिकेट माना जाता है। दाऊ द्वारा वसूला गया पैसा आरटीओ के अदने से लेकर बड़े अधिकारी तक पहुंचता है। दाऊ ऑफिस के अन्दर चालानी की फर्जी कार्रवाई करता है और राजू सड़क पर आरटीओ टीम के साथ वसूली करता है। ओव्हर लोडिंग वाहनों पर कार्रवाई की रसीद काटने के बाद आरटीओ के अधिकारी तयशुदा योजना के तहत ऐसे गायब हो जाते हैं, जैसे गधे के सिर से सिंग। वाहन संचालक जब चालान की राशि पटाने आदर्श नगर स्थित कार्यालय जाते हैं, तब वहंा राजू और दाऊ ही मिलते हैं। जबकि चालान कटने के बाद की सारी कार्यवाही अदालत में होना चाहिए। आरटीओ विभाग आदर्श नगर में किस तरह समानांतर अदालत चला रहा है, पूछने वाला कोई नहीं?
 राजू का खुलासा  
राजू आरटीओ में किस पद पर है, आरटीओ कार्यालय में निरीक्षक रहे विवेक शर्मा से पूछा गया तो उन्होंने राजू को ही आरटीओ बताया। राजू आरटीओ में नहीं है, बल्कि अपने आप में पूरा आरटीओ ही है। साहब का काम फ ाईलों में दस्तखत करना है और राजू ऊपरी वसूली देखता है । आरटीओ निरीक्षक विवेक शर्मा के अनुसार विभाग में चल रहे कूपन सरकारी रसीद या दस्तावेज नहीं है, पर विभाग में धड़ल्ले से दौड़ रहा है, जिसकी जानकारी विभागीय अधिकारी और मंत्रियों तक को है। इसके बावजूद भी ओव्हरलोड के नाम पर अवैध कमाई पर लगाम नहीं लगाना कई संदेहों को जन्म दे रहा है, इससे स्पष्ट होता है कि इस गोरखधंधे के हमाम में सभी नंगे होकर माल कूटने में लगे हैं। 
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 राऊत नाचा महोत्सव 
  योद्धा नर्तन के जरिये युद्ध नृत्य  
दुर्ग। यादव संघ मित्र कल्याण मंडल व छग शासन के संस्कृति विभाग के सहयोग से उरला में आयोजित राऊत नाचा महोत्सव में योद्धा नर्तन के जरिये युद्ध नृत्य का आयोजन किया गया। बांसुरी की माधुर्य और लाठियों का शौर्य अद्भूत दृश्य उपस्थित कर रहा था। हरेक हाथ में लाठी लहरा रहे थे और जुबान से दोहे की तान निकल रही थी। योद्धा नर्तन में आयोजित छत्तीसगढ़ के सामाजिक शुभंकर राऊताईन हाथा में 45 प्रतियोगी दलों ने शिकरत की। चित्रकला स्पर्धा में 55 महिलाओं प्रतियोगी शामिल हुए। आयोजन में सांसद सरोज पांडेय, केबिनेट मंत्री हेमचंद यादव, पूर्व विधायक अरूण वोरा, प्रकाश यादव, पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष सोमनाथ यादव, पार्षद खुमान साहू, ललिता यादव, रेखा यादव, स्वाभिमान मंच के नेता राजेंद्र साहू ने आयोजन में उपस्थिति दी। गोपिका दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति मर्या., दुर्ग की महिला सदस्यों ने सांसद सरोज पांडेय, सोमनाथ यादव व मंत्री हेमचंद यादव को तलवार भेंट किये। आयोजन को सफल बनाने में राजेश यादव, गोकुल यादव, कमलेश यादव, हर्षहिंद , राजदीप, ललित यादव, बृजेश यादव एवं ग्राम उरला के गोविंद यादव, पवन यादव, सुरेश यादव, विष्णु यादव समेत अन्य लोगों का अच्छा सहयोग रहा। 
कलात्मकता व पौराणिकता का प्रतीक है राऊताईन हाथा
 
 राऊताईन हाथा मनुष्य जाति की कलाप्रियताव पौराणिकता का प्रतीक है। यह कार्तिक मास में दीपावली के समय अमावस्या, दवऊठनी व पूर्णिमा के दिन बनाया जाता है। यह एक तरह का लोकचित्र शैली है जो दीवार पर बनायी जाती है। इसे राऊत जाति की महिलाओं द्वारा प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर बनाया जाता है। उसमें वे सेमी, तरोई पत्ता का रस, महूर, आलता, नील, टहर्रा आदि रंगों से चौकोर गोल, षष्टकोण, अष्टकोणीय या पहाडऩुमा हाथा बनाती है। हाथा का सीधा अर्थ हाथ से निर्माण है। राऊताईन महिलाएं दीपावली के समय सुबह से ही टोकरी में रंग, कुची व रूई लेकर अपने मालिक के घर में जाती है। रसोई घर, गौशाला, अन्न भंडार कोठिया में कई आकार व रंगों का उपयोग कर हाथा बनाती है। यों तो हाथ अन्य कई अवसरों पर भी बनाए जाते हैं, मगर नए निर्मित भवनों में बहन-बुआ, चावल आटे के घोल से हाथा बनाती है जो हथेलियों की छाप होती है। चूंकि इसे राऊताईन महिलाएं बनाती है इसलिए राऊताईन हाथा कहा जाता है। इसके पीछे रोचक कारण बताए जाते हैं। पहली यह कि हाथ बनाकर महिलाएं अपने-अपने मालिक के घरों की पहचान करती है। राकि राऊत लोग जब सोहई बांधने े लिए गांव की गलियों में निकले तो पहचान जाए कि यह उनके मालिक का घर है। दूसरी वजह पौराणिक है। हाथा को राऊताईन महिलाएं गोवद्र्धन पर्वत का प्रतीक मानती है। साजा ग्राम की 70 वर्षीया महेतरीन बाई व दीपक नगर दुर्ग की राधा बाई यादव का कहना है कि यह गोवद्धत्र्रन पर्वत का नमूना है। इसी पर्वत को भगवान श्री कृष्ण ने अपनी बायें हाथ की छिनी उंगली में उठाकर ग्वाल बाल गोधन व नगर वासयिों की इंद्र के कोप से रक्षा की थी। इसके बाद से लोगों ने गोवर्धन त्यौहार मनाना शुरू किया। इसी दिन राऊताईन हाथा बनाने की शुरूआत हुई थी। आज तक विभिन्न परिवर्तनों के बाद भी हाथा बनाने की परंपरा कायम है। इसे बनाना महिलाएं परंपरा से सीखती हैं। अपनी मांश् बहन, बुआ के साथ कुंवारी कन्याएं हाथा बनाना सीख जाती है। जब महिलाएं हाथा बनाकर वापस लौटती है तब मालकिन उन्हें शेर-सीधा, रूपया व नए कपड़े भेंट करती है। महलाएं कई महीने पहले अपने मस्तिष्क में हाथा गढऩे की कल्पना कर लेती है। फिर जिस दिन बनाना होता है उस दिन तो वे अपनी पूरी कलाधर्मिता का परिचय देती हैं। पूरे सौंदर्य बोध क ेसाथ रंगों का समायोजन देखते ही बनता है। पहले कूची के सहारे रेखाएं खिंचती है फिर मनचाहा रंगों से सजाती है। कई महिलाएं इसमें सुआ, पड़की व मोर का चित्र भी अंकित करती है। हाथ दरअसल अभिव्यक्ति की बेहद प्राचीन रेखाए हैं। गुफाकालीन शैल चित्रों से इनका निकटतम संबंध है। जिस प्रकार से भीमबेटका, कबरा पहाड़ी, रामगढ़ की गुफाओं में चित्र मिले हैं, उसमें संपूर्ण कला संस्कृति की झलक मिलती है। हाथ में महिलाएं अपने मन में विद्यमान कला सौदर्य का रेखओं के माध्यम से दीवारों पर उकेरती है। गोल, चौकार, त्रिकोण जैसे ज्योमितीय आकारों में समानांतर खीची जाने वाली रेखांए मन को सहज रूप से आकर्षित करती है। ये रेखाएं कहीं उलझती नहीं है। जिन महिलाओं का हाथा बनाने में महारत हासिल होती है, समाज में उनका सम्मान बढ़ जाता है। शाम होते-होते राऊत लोग गाजे-बाजे के साथ मालिक के घर सोहई बांधने निकलते हैँ। तब वे बड़े उत्साह के साथ गौशाला जाकर मालकीन द्वारा सूपे में दिए गए धान से गोबर की लोंदी लिटा कर हाथा पर थाप देते हैँ। इसे सुखधना कहा जाता है। यहंा पर राऊत निश्चल मन से मालिक के सुखी व दीर्घायु होने की कामना करता है। पान खाये सुपाड़ी मालिक, सुपाड़ी के होये दो कोर रंग महल में बैठो मालिक राम-राम लेव मोर आवत देव गारी गुटा, जावत देव अशिष देधे खांव पूत बिहाव, जूम जियो लाख बरिस अन्न धन्न भंडार भरे मालिक, जीयों लाख बरिसा जइसन जइसन दिहौ मालिक , तइसन लियो असीसा गौशाला में सुखधना देने के साथ ही राऊत गायों-भैसों को सोहई बांधते हैँ। फिर रसोई घर या कोठी पर बने हाथा में भी सुखधना दिया जाता है। घर मालकीन शेर-सीधा, रूपया व नई धोती देकर राऊत का सम्मान करती है। इस दिन राऊत का आर्शिवाद मालिक के लिए बड़ा अनमोल होता है। वह उचित भेंट पाकर गदगद हो जाता है। मनुष्य के भीतर का निष्छल प्रेम इस दिन परस्पर प्रकट होता है। इस तरह हाथा जहंा कलात्मकता का अनुपम प्रतीक है वहीं अनेक कथा-प्रसंगों को अपने में समेटा हुआ है। सदियों से इसकी निरंतरता ने इसके महत्व को और भी बढ़ा दिया है। वर्तमान में इसे पूरे समुदाय के बीच फिर से स्थापित करने की जरूरत है। इसे सिर्फ राऊत जाति विशेष की कला कहकर नकारा नहीं जा सकता, बल्कि संपूर्ण मानव जाति की कला कहना उचित होगा। इसमें पौराणिक कथा-प्रसंगों के साथ ही कई पीढिय़ों की कलाप्रियता व सौंदर्यबोध का अनूपम संगम है।
 संकलनकर्ता 
 श्रीमती करूणा राऊताई यादव
 सचिव महिला प्रकोष्ठ यादव संघ मित्र कल्याण मंडल
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ब्राउन शुगर के नाम पर चूहा मार दवाई !
 दक्षिणापथ डेस्क 
राजनांदगांव। हाल के दिनों में राजनांदगांव से रायपुर तक ब्राउनशुगर पकड़ाने का जो क्रम चल रहा है, दरअसल वह ब्राउनशुगर ही नहीं है। बल्कि ब्राउनशुगर का फ्लेवर मिला चूहे मारने की दवाई है। रेटाल, रैक्ट्स व रिट मार्पिंन जैसे चूहे मारने की साधारण दवाओं को बारिक पीस कर एसेंस तैयार किया जाता है, फिर उसी एसेंस में ब्राउन शुगर की थोड़ी मात्रा छिड़क कर नशेडिय़ों को बेचा जा रहा है। ब्राउन शुगर के नाम चलाए जा रहे गोरखधंधे में पुलिस भी चकमा खा गई है। ब्राउन शुगर तस्करी के नाम पर दर्जनों लोगों को पुलिस ने माल सहित दबोचा है और नारकोटिक्स एक्ट के तहत मुकदमा भी चलाया है, मगर जब जब्त समान ब्राउन शुगर ही नहीं है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कैसी तस्करी और कैसा मुकदमा। सूत्र बताते हैं कि आरोपी से बरामद ब्राउन शुगर लैब में बकायदा जांच कराया जाता है और उसी जांच की वह कापी न्यायालय में पेश होती है। हर साल दर्जनों मामले पुलिस में आने के बावजूद ब्राउन शुगर तस्करी के आरोप में फिलहाल किसी भी आरोपी को सजा नहीं हुई है। इन कथित ब्राउन शुगर तस्करों को पकड़कर प़ुलिस भले ही अपनी पीठ थपथपा लेती है और अखबारी सूर्खियां भी हासिल कर लेती है, मगर न्यायालय में ट्रायल के दौरान उस मामले का क्या नतीजा निकला, पुलिस यह नहीं बताती। ऐसा नहीं है कि पुलिस द्वारा बरामद सारे ब्राउन शुगर नकली हो, मगर जानकारों की माने तो 80 से ज्यादा प्रतिशत मामलों में नकली माल बरामद होते हैं। यह भी जानकारी मिली है कि असली और नकली दोनों तरह के ब्राउन शुगर के तार महाराष्ट्र से जुड़े हैं। लोकल धंधा करने वाले निचले स्तर के तस्करों को भी शायद यह $गुमान नहीं कि वे ब्राउन शुगर के नाम पर चूहे मारने का पाउडर बेच रहे हैं। वहीं दूसरी ओर जिस ब्राउन शुगर का नशा कर नशेड़ी लोक-परलोक की स्वर्गिक आनंद यात्रा करते हैं, सही मायनों में भी वह भी मन का वहम है। जब ब्राउन शुगर ही नकली है, तो उसका असर असली कैसे हो सकता है? मालूम हो कि ट्विनसिटी में एक ग्राम ब्राउन शुगर डेढ़ सौ से दो सौ रूपए की कीमत पर बेची जाती है। जबकि इतने रूपयों में पाव भर चूहे मारने की दवा बाजार में उपलब्ध है। चंूकि चूहा मार दवाई की मात्रा एसेंस के जरिये कई गुणा बढ़ा लिया जाता है, अत: अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस गोरखधंधे में लगे लोग कितना मुनाफा कमा रहे हैं। भिलाई के लाल बहादूर शास्त्री अस्पताल में संचालित ओप्यार्ड सब्टीट्यूशनल थरेपी (ओएसटी) सेंटर में भी ब्राउन शुगर के नशे का आदि हो चुके कुछ युवाओं के परीक्षण रिपोर्ट में चौकाने वाले रिपोर्ट ( अनौपचारिक) मिले हैं। वे युवा जो अब तक खूद को ब्राउन शुगर का एडिक्ट मानते थे, उनके परीक्षण में ब्राउन शुगर सेवन के लक्षण नहीं थे, अलबत्ता चूहा मारने की दवा जैसे घटिया किस्म के एलीमेंट ब्लड में पाए गए। जानकार बताते हैं कि पांच-सात दफे भी यदि किसी ने ब्राउन शुगर का सेवन किया है तो अंोट व दांत में उसके निशान बन जाते हैं। हालांकि नकली ब्राउन शुगर का इस्तेमाल करने का तरीका पीडि़त युवक वैसे ही बतलाते है जैसे असली का किया जाता है। समझना कठिन नहीं कि नशे के नाम पर मन को कमजोर बना चुके उक्त युवक चाहे तो थोड़े सीे डाक्टरी मदद के बाद फिर से नार्मल लाइफ जी सकते हैं।  ------
 चोरी-छिपे भू्रण परीक्षण!  
 
 
।। दक्षिणापथ डेस्क।। शहर में चोरी-छिपे भू्रण परीक्षण करने वालों पर शिकंजा कसने की पूरी तैयारी कर ली है। इसके तहत छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा नयी योजना बनायी गयी है। दरअसल, यह निर्णय प्रदेश के शहरों में चोरी छिपे भ्रूण परीक्षण होने की खबर आने की बाद लिया गया है। निर्णय में ध्यान रखा है कि इसमें बेटियों को परेशानी नहीं हो। कुछ दिनों पहले तिल्दा नेवरा, बिलासपुर और सरगुजा के कतिपय सोनोग्राफी सेंटरों में भ्रूण परीक्षण एवं कन्या भू्रण हत्या करने की अपुष्ट जानकारी सामने आ रही थी। इस अपराध में कुछ सफेदपोश चिकित्सकों के संलिप्त होने की बात भी कही जा रही थी। हर हाल में कन्या भ्रूूण हत्या पर रोक लगाने शासन ने सभी सोनोग्राफी केंद्रों को जांच के दायरे में लिया है। स्वास्थ्य विभाग ने गर्भ निर्धारण केंद्रों और सोनोग्राफी केंद्रों की नियमित जांच के निर्देश दिए हैं। जिलों में भी इसका पालन करने की हिदायत स्वास्थ्य अधिकारियों को दी गई है। साथ ही हर महीने 5 केस बनाने के आदेश जारी किए गए हैं। इस संबंध में राज्य स्तरीय कार्यशाला आयोजित करने पर भी विचार किया जा रहा है। फैसले की सराहना सामाजिक सरोकार संस्था की सदस्य कुमुद गुप्ता ने स्वास्थ्य विभाग के फैसले की सराहना करते हुए कहा कि इससे लोग चोरी-छिपे भू्रण परीक्षण नहीं करा सकेंगे। परीक्षण कराने वाले केंद्रों पर भी अब लगाम कसी जा सकेगी। यह बेटी बचाने का प्रशंसनीय कदम है। सोनोग्राफी मशीन शासन की अनुमति से रखना जरूरी है, लेकिन अब इन केंद्रों में शासन ने भू्रण परीक्षण कराने वालों पर कड़ी नजर रखी है। इससे निश्चित ही बेटियां बचाई जा सकेंगी। -- ----------- 
 डेढ़ दशक में टूट गए सात जन्मों के रिश्ते दक्षिणापथ डेस्क पति-पत्नी के बीच अनबन की समस्या कमोबेश सभी युगों में विद्यमान रही है। सात जन्म साथ रहने की कसमें खाने वाले लोग एक जन्म भी ईमानदारी से साथ नहीं रह पा रहे हैं। अधिकांश लोग शादी के 15 वर्ष बाद रिश्ता तोड़ रहे हैं। फैमिली कोर्ट में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ी है, जो आधा जीवन साथ बिताने के बाद तलाक की अर्जी दे रहे हैं। इनके ऐसा करने की मुख्य वजह पति या पत्नी का दूसरे से रिश्ता जोडऩा है। विवाह के बाद अवैध संबंध और दोस्ती के चलते अधिकांश लोग हंसता-खेलता परिवार तोड़ रहे हैं। प्रदेश के फैमिली कोर्ट में तलाक लेने वालों की तादात बढ़ी है। अर्जी लगाने वाले अधिकांश लोग 40 से 55 वर्ष की उम्र के हैं। कोर्ट में पहुंचने वाले प्रकरणों में से लगभग मामले इसी तरह के हैं। महीने में दर्जन भर से ज्यादा केस तीसरे की मौजूदगी के चलते तलाक लेने के आते हैं, जिसमें से करीब पांच प्रकरणों में तलाक हो रहा है। परामर्श दाताओं की मानें तो तलाक बढऩे की कई वजह हैं, जिसमें परिवार में पति को बराबर का सम्मान नहीं मिलना, बच्चों के चलते पति की उपेक्षा होना, टीनएजर्स बच्चों को पिता से बात नहीं करने देना और परिवार में पिता की भूमिका कम होना है। फैमिली कोर्ट में दर्ज प्रकरणों में समझाइश की गुंजाइश रखी जाती है। तलाक की अर्जी लगाने वालों की काउंसलिंग की जाती है। अदालत की कोशिश रहती है कि परिवार नहीं टूटे। इस तरह के प्रकरणों में एक-दो केस टूटने से बचा पाते हैं। अधिकतर लोग अलग होने पर निर्णय लेकर ही अदालत पहुंचते हैं। केस-1 : शादी के 14 वर्ष साथ बिताने के बाद संजीव गुप्ता (परिवर्तित नाम) ने फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी लगाई है। उनका आरोप है कि पत्नी के पास उनके लिए वक्त नहंीं है। वे बच्चों को बड़ा करने में उनकी ओर ध्यान नहीं दे रही हैं। वहीं पत्नी मंजु (परिवर्तित नाम) का कहना है कि पति का किसी दूसरी महिला से प्रेम संबंध है। इसलिए वे साथ नहीं रहना चाहते। केस-2 : 16 वर्ष का सफल वैवाहिक जीवन बिताने के बाद सुपेला , भिलाई निवासी आकाश (परिवर्तित नाम) पत्नी दीपा (परिवर्तित नाम)से अलग होना चाहते हैं। धमतरी से ब्याह कर आई दीपा का कहना है कि वह अपने दो बेटियों व परिवार पर पूरा ध्यान दे रही हैं। पर पति को और क्या चाहिए, वह जानना नहंी ही चाहतीं। वहीं पति आकाश के इन वजहों को बहाना बता रहे हैं। उनका कहना है कि पति किसी और से शादी करना चाहते हैं। इसलिए ऐसी बात कर रहे हैं। केस-3: बीएसपी कर्मचारी अशोक बिजौर की पत्नी शादी के 17 साल बाद पति से इसलिए तलाक ले ली, क्योंकि वह अपनी छोटी बहन के पति के साथ परिवार बसाना चाहती है। इस क्रम में उसने अपनी छोटी बहन को भी उसके पति से तलाक दिलवा दिया, अब वह अपनी 16 साल की बेटी के साथ रायपुर में सेटल हो गई हैं। उसने मायके से संबंध पूरी तरह खत्म कर लिया है। उम्र के आधे पड़ाव में आशिनाई की प्रवृत्ति ने दो परिवारों को भी बर्बाद कर दिया। 000 
जमीन बिकने का चेहरे पर झलकता दर्द  
गांवों की खुशहाली को निगलती महुए की गंध सुविधाओं को तरसते ग्रामीण भिलाई। सूरज के बादलों में लुका छिपी खेलते खुशनुमा मौसम के बीच कच्चे, पक्के, टेढे-मेढ़े रास्ते से गुजरती स्पेशल बस..... दोनों ओर विधवा की मांग की तरह सूने ज्यादातर खेत, तो कुछ में लहलहाती गेंहू, चने, मक्के की फसलें और बसंत के आगमन का संदेश देती सरसों..... इनसे लगे छानी, छप्पर और बाड़ी-बखरी वाले गांव... बस के रूकते ही उत्सुकता और खुशी से ग्राम्य बच्चों, युवाओं, बूढों और महिलाओं का लगता मजमा.... तरिया के पार खड़ा दिललगी कर बरदी चराते गाना गाता लड़का-ये छत्तीसगढ़ हे सुन ले भईया एखर राम कहानी...... पेट हे पिचके हाथ हा खाली कईसे बीत ही जिंदगानी...... गांव मा बहीथे मंद के नदिया पर पिए बर नई हे पानी.... इस गीत में एक आम ग्रामवासी का दर्द बयां हो रहा। यह दर्दनाक सच्चाई जिले के आधा दर्जन गांवों में बिखरी हुई थी। देश के दीगर गांवों की तरह ये वे गांव है जिनके दिन बहुरने का सपना बापू, विनोबा और चंदूलाल चंद्राकर ने देखा था। लेकिन वक्त के साथ सरकारें, नेता और अफसर बदलते रहे पर नहीं बदली तो इन अभागे गांवों की तस्वीर। सुविधाओं के लिए तरसते और विकास की बाटे जोहते इन गांवों को जब करीब से देखा तो सरकार के रहनुमाओं के खुशहाल, समृद्ध और विश्वसनीय छत्तीसगढ़ से जुदा एक अलग ही दृश्य दिखाई दिया। यह दृश्य जितना पीड़ादाई है उतना ही निराश कर देने वाला भी है। इन गांवों में छत्तीसगढिय़ां सबले बढिय़ा आज भी शोषित, पीडि़त और उपेक्षित है। हाड़तोड़ मेहनत कर जांघर चलाने वाले खेतिहर मजदूरों, छोटे किसानों, युवकों का पसीना और पैसा शराब दुकानों में शराब और आंसुओं के रूप में बह रहा है। खेतिहर मजदूर नहीं मिलने से बेबस किसान अपने खेत औने-पौने दाम पर सेठ-साहूकारों को बेच रहे है। किसी गांव में खाद बीज खरीदने सोसायटी नहीं है, तो किसी गांव में पेयजल निस्तार व सिंचाई का टोटा है। कहीं स्कूल व अस्पताल तथा डाक्टर व शिक्षक नहीं है तो कहीं गरीब कंडरा आदिवासी वर्षो से बांस नहीं मिलने से रोजी-रोटी के संकट से जूझ रहें है। इन भयावह दृश्यावलियों के बीच दूर किसी गांव में आयुर्वेद, गौशाला और उन्नत कृषि तकनीकों से अपनी जमीन, संस्कृति और जीवन को बचाने संघर्ष करता एक उम्रदराज अस्वस्थ्य व हौसलामंद किसान अंधेरो में उम्मीद की किरण दिखाई देता है। न्यू प्रेस क्लब आफ भिलाई द्वारा आयोजित ग्राम्य अध्ययन यात्रा के तहत पत्रकारों के दल ने दुर्ग जिला के पाटन विकासखंड के ग्रामों का दौरा कर वहां के जन जीवन और समस्याओं को करीब से देखा। जिला मुख्यालय दुर्ग से मध्य 30-35 किमी की दूरी पर स्थित पाटन, अखरा, अमेरी, सावनी, कुरूदडीह, फुंडा व उतई के गांवों से रूबरू होते हुए जो समस्याएं दिखाई दी उनके बारे में शहरों में बैठकर कल्पना करना भी मुश्किल है। आजादी के 67 वर्षो बाद भी विकास का सूरज इन गांवों तक नहीं पहुंचा है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद लोगों ने सोचा था कि यह राज्य तेजी से तरक्की करेगा और विकास की गंगा उनके गांवों तक भी पहुंचेगी। किंतु 12 वर्षो बाद भी उनका यह सपना पूरा नहीं हुआ। सियासी रहनुमाओं ने वोटों और वादों की फसल तो खूब लहलाई पर खेतों में फसल लहलहाने में रूचि नहीं दिखाई। खाद, बीच, ऋण, सिचाई की किल्लत और अब सिमटते खेतों से किसानों के चेहरे मुरझाए है। युवा खाली हाथ है। पानी, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी समस्याओं बहुतेरी दिक्कते ग्राम सुराज अभियान और जनदर्शनों की कलई खोल रही है। राजधानी और भिलाई-दुर्ग जैसी चमचमाती चिकनी-चौड़ी सड़के, सतरंगी फूलों और फौव्वारों के आकर्षक चाक-चौराहे तो इन गांवों के लिए जैसे सपना है। समस्याग्रस्त इस ग्राम्य अंचल में सुविधाओं के अभाव में नारकीय जीवन गुजार रहे हताश ग्रामीणों का जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों के प्रति गुस्सा पत्रकारों को देखते ही फूट पड़ता है। पाटन में आदिवासियों को रोजी रोटी के लाले पाटन कहने को तो ब्लाक और तहसील मुख्यालय है यहां दिया तले अंधेरा जैसी स्थिति है। सर्वाधिक उपेक्षित मोहल्ले कंडरापारा में समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। सबसे बड़ी समस्या आदिवासी कंडरा जाति के लोगों की है। जिन्हें बांस की किल्लत से जूझते हुए रोजी-रोटी के लाले पड़े हुए है। मोहल्लेवासियों ने तल्ख लहजे में बताया कि शासन से कंडरा जाति के एक परिवार को हर साल 15 सौ बांस प्रदान करने का नियम है। किंतु भाजपा के शासन में 9 वर्षो से 2 से 4 सौ बांस ही वन विभाग द्वारा दिया जा रहा है। आदिवासी कंडरा समाज मजदूर कल्याण समिति के अध्यक्ष राजकुमार ने बताया कि मुख्यमंत्री को भी ज्ञापन देकर नियमित व पर्याप्त बांस दिलाए जाने की गुहार की गई है, पर अब तक कोई ध्यान नहीं दिया गया। पार्षद रेखा मरकाम, मीना सोनवान, उषा व केजा बाई ने बताया कि सुपा, टोकनी व पर्रा आदि बनाकर गुजारा करते हंै किंतु 2-3 सौ बांस ही मिलने से एक जून खाकर जीना पड़ रहा है। संसदीय सचिव विजय बघेल व सांसद सरोज पांडे को समस्या बताने के बाद ही डीएफओ रेंजर ने कच्चा व पतला बांस भिजवा दिया जिससे सामान नहीं बनता। रामबती ने कहा कि का हमरे मोहल्ला बर बांस के दुकाल पड़े हे, गरीब मनके कोई सुनइया नइ हे। यादवराम ने बताया कि मोहल्ले में बिजली, पानी, नाली व गंदगी की समस्या को लेकर चक्काजाम करने के बाद भी नगर पंचायत निदान नहीं कर रहा है। बुद्धु तरिया में सिवरेज का पानी डालने से हम प्रदुषित पानी में नहाने मजबूर है। प्यासे खेत और सुखे कंठ ग्राम सावनी और फुंडा में सिंचाई और पेयजल समस्या को लेकर ग्रामवासियों में जनप्रतिनिधियों के प्रति भारी रोष देखा गया। सावनी के निवासियों ने बताया कि भूजल संरक्षण विभाग द्वारा ग्रामवासियों की मांग 33 लाख लागत से 3 वर्ष पूर्व बांध बनाया गया था पर अब तक पोंगा नहीं डालने से खेतों की सिंचाई नहीं हो पा रही है। रवि की फसल नहीं ले पा रहे है। ग्राम फुंडा में भी योगेंद्र चंद्राकर ने बताया कि जलाशय को पंचायत द्वारा पटवा देने व नहर नाली में पाईप नहीं लगाने से किसानों की 150 एकड़ खेतों की सिंचाई नहीं हो पा रही है। सरपंच श्यामा साहू ने बताया कि पाईप उन्होंने नहीं जल संसाधन विभाग ने निकाला है। सावनी में ग्रामवासियों को दूर से पीने का पानी लाना पड़ रहा है। गिरधर ने बताया अब तक नल कनेक्शन नहीं दिए जाने से ग्रामवासियों को पेयजल समस्या से जूझना पड़ रहा है। सरपंच मनहरण यादव ने बताया कि पाइप लाइन बिछ गई पर मोटर का काम छोड़कर ठेकेदार भाग गया है। पेयजल के अलावा ढाई हजार आबादी और 12 सौ मतदाता वाले इस गांव में सोसायटी नहीं होने से किसानों को खाद व बीज के लिए 10 किमी दूर झीट जाना पड़ता है। नारायण व कार्तिक राम ने बताया कि यहां सहकारी समिति का उपकेंद्र सिर्फ कागज पर है। इसके लिए चयनित जगह पर भवन नहीं बना है। हम गांव में ही सहकारी केंद्र की मांग कर रहे है किंतु कोई किसानों की सुनने वाला नहीं है। सोसायटी नहीं होने से गांव में धान खरीदी नहीं होती है। इलाज के अभाव में तोड़ देते है दम पाटन क्षेत्र के गांवों में एक बड़ी समस्या स्वास्थ्य की देखने को मिली जहां चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में ग्रामीणों को होने वाली परेशानियों की कल्पना की जा सकती है। कई गांवों में अस्पताल व डाक्टर नहीं है। इलाज के अभाव में कई लोग दम तोड़ देते है। क्षेत्र के 40 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार है और कई सिकलिंग से पीडि़त है। ग्राम अमेरी , फुंडा व सावनी आदि गांवों में चिकित्सा सुविधाओं का नितांत अभाव है। फुंडा की सरपंच श्यामा साहू ने बताया कि स्वास्थ्य केंद्र नाम मात्र है। यहां डाक्टर है और न ही नर्स। ग्रामीण महिलाओं को डिलवरी के लिए दुर्ग ले जाना पड़ता है। सावनी में भी अस्पताल बने 2 वर्ष हो गए है। मगर डाक्टर नहीं है। एक ही नर्स है। इलाज के लिए पाटन जाना पड़ता है। यहंीं स्थिति अमेरी की है। इन सभी गांवों की जनसंख्या 2 हजार से अधिक है। उतई के डाक्टर रत्नाकर मिश्रा ने बताया कि पाटन क्षेत्र में 40 प्रतिशत बच्चे कुपोषित है। नौनिहालों को स्कूल की दरकार क्षेत्र के कई गांवों में मिडिल व हाई स्कूल नहीं है। वहीं अनेक स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। बच्चें को दूर गांव के स्कूलों में पैदल जाना पड़ता है। अखरा व फुंडा जैसे पिछड़े गांवों में प्रायमरी स्कूल ही है। फुंडा में मात्र 2 शिक्षक 5 कक्षाओं के बच्चों को पढ़ा रहे है। ग्राम पंचायत द्वारा मिडिल स्कूल की मांग की गई है। इसी तरह अखरा के बच्चों को पढने पाटन जाना पड़ता है। गांव के दिनेश, नीरज ने बताया आसपास के कई गांवों में भी स्कूल भवन व शिक्षकों की समस्या बनी हुई है। शिक्षकों की लंबी हड़ताल से पालक बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित है। गांव-गांव में शराब और सिमटते खेत कभी सामाजिक समरसता के लिए पहचाने जाने वाले गांवों का माहौल अब बिगड़ा हुआ है। किसानों के चेहरे मुरझाए हुए दिखे। खेतिहर मजदूरों को मनरेगा में रोजगार मिलने और गरीबों को 2 रूपए किलो चावल मिलने से ग्राम्य अर्थव्यवस्था की रीढ खेती चौपट हो रही है। ग्रामवासियों ने बताया कि कृषि कार्य के लिए खेतिहर मजदूर नहीं मिलने से किसान अपने खेत सेठ-साहूकारों को औने-पौने दाम में बेच रहे है या रेग पर देकर दूसरे धंधे कर रहे है। पाटन क्षेत्र की हजारों एकड़ जमीन बिक चुकी है। जमीन का पैसा खत्म होने के बाद अपने बच्चों के भविष्य को लेकर किसान खासे चिंतित है। गांव-गांव में खुली शराब दुकानों में मेले जैसी भीड़ दिखी। मनरेगा व 2 रूपए किलो चावल का रिएक्शन शराब दुकानों की भीड़ के रूप में दिखा। कुरूदडीह के किसान नेता नंद कुमार बघेल ने बताया कि ग्रामीण युवक खेती नहीं कर रहे है। शराब पी रहे है। गांवों में 5 गुना ज्यादा शराब बिक रही है। उतई के प्रमोद तिवारी ने बताया कि कृषि का रकबा तेजी से सिमट रहा है। सामाजिक समरसता कम हो रही है। हरे-भरे पेड़ों पर कुल्हाड़ा ग्रामीण अंचल में कुछ पेशेवर लोग हरे भरे पेड़ों को निर्ममता से कटवा रहे है। ग्राम सावनी मार्ग पर पत्रकारों के दल को इसकी बानगी देखने को मिली। यहां भागवत साहू के खेत से लगे 10 बबूल के पेड़ों को ठेकेदार खोरबहरा बठेना द्वारा बिना अनुमति के आरे व कुल्हाड़ी से कटवा रहा था। पेड़ों को मेटाडोर में रस्सी बांधकर गिराया जा रहा था 6-7 पेड़ खेत में कटे पड़े थे। खोरबाहरा ने बताया कि वह पेड़ कटाई की ही धंधा करता है। प्रशासन व वन विभाग के बजाए खेत मालिक से सौदा कर लेता है। 10 पेड़ों का सौदा 3 हजार में किया है। अनूठा पर्यावरण मंदिर अंघोरेश्वर शिव आश्रम तारापीठ अमेरी में हरितिमा का संदेश देता अनूठा पर्यावरण मंदिर लोगों के श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यहां लाल भैरव, काल भैरव, अंघोरेश्वर, कामाख्या गणेश व तारा देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित कर चारों ओर बरगद, बेल, नीम व आम आदि के करीब सौ पेड़ लगाए गए है। मंदिर समिति के अध्यक्ष रमेंद्र मित्रा, सचिव आरएस ठाकुर, उपाध्यक्ष वासुदेव नेताम व बैगा पंचराम ध्रुव है। समिति के लोगों ने बताया कि मंदिर में नवरात्रि पूजा के साथ ग्रामीण अपनी समस्याओं को लेकर भी आते है। इसके अलावा ग्राम अखरा में भी सौ साल प्राचीन भगवान जगन्नाथ व देवी अखरा दाई का मंदिर है। मंदिर समिति के अध्यक्ष अमरचंद वर्मा ने बताया कि मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए शासन द्वारा 6 लाख की घोषणा की गई है। उम्मीद की किरण जगाता बुजुर्ग किसान नेता पाटन के ग्राम्य अंचल के इस भयावह वातावरण के बीच ग्राम कुरूदडीह में उम्मीद की किरण दिखाई दी, जहां 77 वर्षीय जागरूक किसान नेता नंदकुमार बघेल अपनी लाइलाज बीमारी से संघर्ष करते हुए जमीन और संस्कृति को बचाने नए-नए प्रयोग करने में तल्लीन है। कृषि, आयुर्वेद और ग्राम्य सुधार में उनका यह प्रयास इस संकट के दौर में प्रदेश के लिए श्रेयस्कर साबित हो सकता है। श्री बघेल ने अपने गौशाला में गोबर खाद से जैविक खेती व कृषि उपकरणों को अत्याधुनिक बनाने के साथ प्राकृतिक चिकित्सा में कई नए प्रयोग किए है। उन्होंने अपने तकनीकी कौशल से कल्वीनेटर रेजर, रोटोवेटर, लेवलर ट्राली आदि कृषि उपकरणों को माडिफाई कर पोताई, बुवाई, छिड़काव, कटाई, ढुलाई मेंं इनकी क्षमता बढ़ा दी है। इससे समय, धन व श्रम की काफी बचत होती है। श्री बघेल ने पत्रकारों को बताया कि धान की रोपाई बंद कर बोता पद्धति शुरू की है जो लाभदाई है। गौशाला में 20 गायों के गोबर और मूत्र को घोलकर स्पिं्रगलर के जरिए खाद के रूप में खेतों में छिड़काव से उत्पादन व गुणवत्ता बढ़ गई है। इसी तरह वे आयुर्वेद में भी प्रयोग कर रहे है। उन्होनें बताया कि उन्हें कैंसर व शुगर है जिसका उपचार वे गुड़ व पैदल चलकर कर रहे है। कभी भी अस्पताल नहीं गए है। हरी झंडी दिखाकर वरिष्ठ पत्रकारों ने किया रवाना ग्राम्य अध्ययन यात्रा दल को आकाशगंगा प्रेस परिवार से वरिष्ठ पत्रकार डा एमएस द्विवेदी, सुरेंद्र सिंह कैबो, शिव श्रीवास्तव व योगराज भाटिया ने रही झंडी दिखाकर रवाना किया। प्रेस क्लब के अध्यक्ष शिवनाथ शुक्ला के नेतृत्व में 20 सदस्यीय पत्रकारों के दल ने पाटन क्षेत्र के गांवों की समस्याओं को करीब से देखा। ----  
जगाने आए नेता खुद सोते रहे कांग्रेस के लिए आल इज नाट वेल,न जोगी दिखे न उनकी तस्वीर दक्षिणापथ डेस्क दुर्ग। मंथन शिविर के जरिये कार्यकर्ताओं को जगाने आए वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मंच पर खुद ही सोते रहे। फरवरी के आखरी दिन दुर्ग में आयोजित कांगे्रस के मंथन शिविर में कोई ऐसी नई बात नहीं दिखी, जिसे मिशन 2013 के मद्देनजर पार्टी की मजबूत तैयारियों के साथ जोड़कर देखा जा सके। पूर्व की भांति वही गुटबाजी, भाषणबाजी और कार्यकर्ताओं से संवादहीनता मंथन शिविर की असल तस्वीर रही। विगत डेढ़ दशक से कांग्रेस की बैठकों में दिखने वाले उन्हीं पुराने चेहरे और मोहरों के भरोसे सत्ता की डगर पर कांग्रेस कितनी दूर चल पाएगी, चिंतनीय है। लगातार तीन चुनावों में कांग्रेस से दूर रहे दुर्ग विधानसभा सीट पर फतह करना मंथन शिविर का आखरी लब्बोलुआब रहा। प्रदेश कांग्रेस के कमोबेश सभी बड़े नेता पूरे शिविर में सोनिया दरबार के कद्दावर नेता मोतीलाल वोरा से निकटता गांठने की कवायद करते रहेे, लेकिन कार्यकर्ताओं की सूध लेने की जरूरत किसी ने नहीं समझी। गुटबाजी को सिरे से नकारने आए कांग्रेस के इस मंथन शिविर में न जोगी दिखे, और न ही फ्लैक्स में उनकी तस्वीर दिखी। इसके चलते जोगी गुट के लोग काफी नाराज दिखे। बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओ के चिंतन शिविर में फिल्ड मैनेजमेंट, पिछली गल्तियों पर समीक्षा व पराजय को किस तरह जीत में बदला जा सकता है? इस पर किसी की भी चिंता दिखाई नहीं दी। अपितु समूचा कार्यक्रम नेताओं के भाषण तक सिमट कर रह गया। भाषण में नेताओं ने कार्यकर्ताओं की अहमयित तो स्वीकारी, मगर किसी भी नेता ने उनसे मैदानी स्तर पर आने वाली परेशानियों के संबंध में पूछना जरूरी नहीं समझा। पांच घंटे तक चले चिंतन शिविर में नेताओं का अधिकांश समय प्रदेश सरकार व भाजपा नेताओं को कोसने में बीत गया। मिशन 2013 के मद्देनजर वरिष्ठ नेताओं से मार्गदर्शन मिलने की उम्मीद में बड़ी संख्या में पहुंचे कार्यकर्ताओं को लग रहा था कि उनसे भी राय मशविरा ली जाएगी और उन्हें भी अपनी बात कहने का मौका मिलेगा। लेकिन कार्यकर्ताओं को मन मसोस कर वापस लौटना पड़ा। कार्यकर्ताओं को नसीहत देते हुए राज्य प्रभारी हरिप्रसाद ने इशारों में नेताओं को भी लताड़ लगायी। उन्होंने मंच पर नेताओं के पीछे खड़े समर्थकों की ओर इशारा करते हुए कहा कि वे मंच के नीचे की जिम्मेदारियों का भी निर्वहन करें। हरिप्रसाद ने यह भी खुलासा किया कि आदिवासियों का विश्वास अब भी कांग्रेस पार्टी पर बना हुआ है। बस्तर क्षेत्र में फर्जी वोटिंग कर शासन-प्रशासन ने मिलीभगत कर कांग्रेस को हराने का काम किया है। चुनाव में तीन महीना पहले टिकट वितरण के प्रस्ताव पर हरि प्रसाद ने कहा कि समर्पित व निष्ठावान लोगों को ही टिकट दी जाएगी। हरिप्रसाद ने भाजपा नेताओ की तुलना बारिश के मेंढक से करते हुए कहा कि जब भी चुनाव का समय आता है, तब भाजपाईयो को राम की याद आती है। पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने स्वीकार किया कि टिकट वितरण के बाद कार्यकर्ताओं में बिखराव पराजय का मुख्य कारण है। उन्होंने टिकट वितरण के उपरांत पार्टी में एका बनाए रखने पर बल देते हुए कहा कि चुनाव के समय बिखराव के कारण ही राज्य में दूसरी पार्टी की सरकार है। हालांकि टिकट वितरण के बाद कार्यकर्ताओं में होने वाले बिखराव को विद्याचरण शुक्ल व हरिप्रसाद ने नुकसानदायक माना है, किंतु इस पर रोक कैसे लगायी जा सकेगी, यह रणनीति मंत्र कार्यकर्ताओं को नहीं बता पाए। नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे ने कार्यकर्ताओं को नसीहत दी कि प्रत्येक कार्यकर्ता पांच-पांच घरों में जाकर लोगों को जोडऩे का प्रयास करे। कार्यकताओं को पूर्वविधायक धनेंद्र साहू, विधायक टीएस सिंहदेव, प्रतिमा चंद्राकर, भजन सिंह निरंकारी, अरूण वोरा, भूपेश बघेल, शैलेष नितिन त्रिवेदी, सुरेद्र शर्मा ने भी संबोधित किया। वोरा की तीसरी पीढ़ी का पदार्पण शिविर में राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के शिरकत करने की खबर थी, मगर दिल्ली में व्यस्तता के चलते वे नहीं पहुंच सके। अलबत्ता, वोरा परिवार की तीसरी पीढ़ी के राजनीति में पदार्पण की झलक जरूर दिखी। वोरा के पौत्र व अरूण वोरा के सुपुत्र संदीप वोरा पहली बार किसी राजनीतिक मंच पर नजर आए। विगत चार चुनाव में अरूण वोरा लगातार कांग्रेस के उम्मीदवार बनते आए हैं। वोरा की तीसरी पीढ़ी का कार्यक्रम में दिखायी देने के कई संकेत निकलते हैं। गुटबाजी से अलहदा नहीं रहा शिविर गुटबाजी को सिरे से खारिज करते आ रहे कांग्रेसियों के इस मंथन शिविर में स्पष्ट रूप से गुुटबाजी का नजारा दिखा। कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का शिविर में शामिल न होना ऐसा प्रतीत होता है कि शिविर के माध्यम से जोगी गुट को अलग-थलग रखने का प्रयास हुआ है। मंथन शिविर में अजीत जोगी को बुलाया नहीं गया, या वे खुद नहीं आए, ठीक से किसी ने जवाब नहीं दिया। हालांकि शिविर के पहले बतौर वक्ता अजीत जोगी के कार्यक्रम में आने की सूचना दी गई थी। जोगी की अनुपस्थिति पर कार्यकर्ताओं में अलग-अलग कयास लगाने का दौर भी चलता रहा। शिविर स्थल में लगे बैनर व पोस्टरों में भी जोगी का न नाम था और न ही तस्वीर लगायी गई थी। इस बात पर जोगी समर्थकों ने नाराजगी भी व्यक्त की। पूरे राज्य में अजीत जोगी के समर्थकों की लंबी फौज है और वे प्रदेश कांग्रेस के काफी प्रभावशाली चेहरे भी हैं। लिहाजा कांग्रेस के किसी आयोजन में उन्हें दरकिनार करना पार्टी के लिए नुकसान का सबब बन सकता है। शुक्ल व वोरा 'एन्टीक पीसÓ एक सौ पच्चीस वर्ष पुरानी कांग्रेस पार्टी बूढ़ी हो गई है और छत्तीसगढ़ में सत्ता की दौड़ में, थके-हारे वृद्ध धावको को दौड़ाकर, चुनावी रेस जीतने का सपना देख रही है। विद्याचरण शुक्ल और मोतीलाल वोरा जैसे लोग, ऐतिहासिक महत्व के 'एन्टीक पीसÓ हो गये हैं। कांग्रेस को चाहिये कि केन्द्रीय मंत्री चरणदास महंत की राय मानकर एक म्यूजियम का निर्माण करे और ऐतिहासिक धरोहर के रूप में राज्य के इन 'एन्टीक पीसोंÓ को वहां सुशोभित करे। पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल द्वारा राज्य में तीसरे मोर्चे में बिखराव संबंधी बयान पर छत्तीसगढ़ संयुक्त मोर्चा एवं छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के प्रवक्ता राजकुमार गुप्त ने उक्त प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि विद्याचरण शुक्ल मुगालते में न रहे कि मोर्चा में शामिल दलों को मतदाता नहीं जानते। उन्हें कांग्रेस की चिन्ता करनी चाहिये, जिसके बारे में लोग अच्छी तरह समझ चुके हंै कि महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्ट्राचार, घोटाला और काले धन की समस्याओं के लिये केन्द्र की कांग्रेस कितनी जिम्मेदार है। मतदाता आम चुनाव में कांग्रेस को इसका जवाब देगी। श्री गुप्ता ने कहा कि वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता का यह कहना भी सही है कि राज्य की जनता डॉ. रमनसिंह की भाजपा सरकार से त्रस्त हो गई है और इससे छुटकारा पाना चाहती है। इसके बावजूद राज्य सत्ता पर कब्जा करने का कांग्रेसी सपना कभी पूरा नहीं होगा। चुनाव के समय तीसरा मोर्चा में शामिल पार्टियों के लोगों द्वारा राष्ट्रीय पार्टियों का दामन थामने संबंधी विद्याचरण शुक्ल के दावे को खारिज करते हुये छत्तीसगढ़ संयुक्त मोर्चा के प्रवक्ता राजकुमार गुप्त ने कहा कि कांग्रेस और भाजपा के नेता व कार्यकर्ताओं में असंतोष है और वे छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के संपर्क में हैं । चुनाव के समय अपनी पार्टी छोड़कर मंच में शामिल होने के लिये तैयार बैठे हैं। विद्याचरण शुक्ल को पार्टी छोड़कर जाने वालों का भगदड़ रोकने की चिन्ता करनी चाहिये। उन्होने दावा किया है कि राज्य में भाजपा की सरकार को तीसरी बार सत्ता में वापस आने का कोई मौका नहीं है, राज्य में छत्तीसगढ़ संयुक्त मोर्चा मजबूत है और सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशी उतारकर भाजपा-कांग्रेस को कड़ी चुनौती देने की स्थिति में हैं।

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