Thursday 26 July 2012

किराए पर निगम का कारोबार



न भवन न ही कुर्सी-टेबल

दक्षिणापथ /दुर्ग
करोड़ों रूपयों की सलाना बजट वाला दुर्ग नगर निगम अपने खुद के भवन का मोहताज है। शहर विकास की नीति तय करने के लिए होने वाले निगम के सामान्य सभा की बैठकें भी अस्थाई व्यवस्थाओं के बीच होती है। हैरानी की बात है कि अस्थायी व्यवस्थाओं  के जुगाड़ से होने वाले नगर निगम की बैठक में शहर विकास की स्थायी नीतियां भला किस तरह बनती होंगी?
दुर्ग नगर निगम आज तक अपना स्वयं का भवन भी नहीं बना सका है। यहंा तक कि नगर निगम में होने वाले सामान्य सभा की बैठक के लिए टेबल-कुर्सी भी किराए पर लाना पड़ता है। पिछले बैठक के दौरान समय पर व्यवस्था नहीं बन सकने के कारण इतना बवाल हुआ कि निगम सचिव को निलंबित करना पड़ा।
नगर निगम का वर्तमान कार्यालय राज्य परिवहन डिपो का है। हिंदी भवन भी निगम का नहीं, बल्कि हिंदी साहित्य समिति का है।
शहर में करोड़ों रूपयों की लागत से सभागार, समृद्धि बाजार, आर्शीवाद भवन समेत अन्य भवन का स्ट्रक्चर खड़े कर चुके नगर निगम को संभवत: अपने खुद के भवन की इच्छाशक्ति नहीं। जबकि, निकटवर्ती शहर रायपुर में निगम का अपना आलीशान भवन देखने के काबिल है।
जानकारों के मुताबिक दुर्ग नगर निगम द्वारा कराया जाने वाले कमोबेश सभी निर्माण कार्यों के पीछे कमीशन का खेल होता है। निगम पदाधिकारी उन्हीं कार्यों में दिलचस्पी लेते हैं, जिनमेें कमीशन कमाने का अवसर मिलता है। यद्यपि कुछ साल पहले शनिचरी बाजार स्थित देशबंधु औषधालय में निगम कार्यालय बनाने की योजना जरूर बना था। पर समय के साथ वह ठंडे बस्ते में चला गया। इसके बाद निगम में कई बार कांग्रेस की सत्ता आयी और अब लगातार तीसरे मर्तबा निगम में भाजपा ने कब्जा जमाया। कांग्रेस हो चाहे भाजपा, किसी ने नगर निगम के अपने स्वामित्व वाले कार्यालय बनाने पर ध्यान नहीं दिया।
जबकि शहर विकास की ईबारत गढऩे वाले नगर निगम के पास कई सालों से मौका बना हुआ है कि वह अपना ऐसा कार्यालय भवन बनाए, जो उसकी पहचान बन सके। ऐसा भवन जो तेजी से महानगरीय संस्कृति की ओर अग्रसर दुर्ग शहर केे कस्बाई स्वरूप को सार्थक ढंग से बदल सके। पर विकास का यह अभिनव सोच स्वार्थपूर्ण राजनीतिक दलदल में धंसे जनप्रतिनिधियों के बूते संभव नहीं। वर्तमान नगर निगम में ऐसा कोई ईमानदार नेतृत्व नजर नहीं आता, जो शहर की बहुसंख्य जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतर सके। स्वायत्तशासी  होने के बावजूद जिस नगर निगम को अपनी न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने में कठिनाई हो रही हो, उससे किसी महत्वकांक्षी सपनों की पूर्ण होने की उम्मीद पर संशय तो हो सकती है, पर नाउम्मीदगी नहीं। क्योंकि हर शहरी अपने शहर का ऐसा विकास चाहता है, जो एक पहचान भी बन सके। अलबत्ता, इसके लिए ठोस व सकारात्मक नजरिये वाले अगुवा की दरकार है। चाहे सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा हो अथवा मुख्य विपक्षी कांग्रेस, दुर्ग नगर निगम के दोनों खेमों में प्रथम पंक्ति के नेतृत्व का अभाव दिखता है। इसका खामियाजा शहर की जनता को भुगतनी पड़ रही है। नगर विकास की दिशा में दुर्ग शहर अपने समकालीन निगम बिलासपुर व रायपुर से काफी पीछे छूट गया है। पर वर्तमान निगम पदाधिकारियों को इसके बरक्स छोटे-छोटे निर्माण कार्यों के एवज में कमीशनखोरी करने में ज्यादा दिलचस्पी रहता है।
पिछले कुछ सालों में शहर मेें विकास कार्य थम-सा गया है। अधिकांश सड़कें जर्जर हो चले हैँ। एक बार सीमेंटीकृत सड़क या गली बनाने के बाद निगम उसे पलट कर नहीं देखता। इसीलिए सींमेट से बने सड़क व गलियों का भी बुरा हाल हो गया है। लेकिन सुधार की जरूरत ही नहीं समझी जाती। शहर की जनता के खून-पसीने की कमाई से पलने वाले नगर निगम आज आम शहरियों को ही भारी पडऩे लगा है।
किराए की वाहन से उठ रही कचरा
शहर के 58 वार्डों का कचरा ढोने वाली नगर निगम दुर्ग के तीनों वाहन करीब पखवाड़े भर से खराब पड़े हुए हैं। नगर निगम रोजाना 6 हजार रुपए किराए देकर शहर का कचरा उठवा रही है। खराब वाहनों के मरम्मत में करीब 13 लाख रुपए का खर्च बताया जा रहा है। नगर निगम ने कंडम वाहनों के मरम्मत के बजाए नए वाहन खरीदी के लिए शासन को पत्र लिखा है।
नगर निगम दुर्ग की सफाई व्यवस्था वर्षा ऋतु से गड़बड़ाई हुई है। पोटिया, बघेरा, उरला, कातुलबोर्ड जैसे वार्डों से नियमित कचरा नही उठाए जाने की शिकायत लगातार मिल रही है। वहीं शहर के मध्य वार्डों में भी रोजाना कचरा नहीं उठाया जा रहा है। जानकारी के अनुसार नगर निगम के पास कचरा उठाने के लिए एक लोडर, एक डीएमएल व एक जेडडीटी को मिलाकर तीन वाहन हैं। इनमें से दो वाहन एक माह से खराब पड़ा हुआ है। एक वाहन 15 दिन पहले खराब हो गया। इन वाहनों के मरम्मत में क्रमश: 7 लाख रुपए, 4 लाख रुपए और 2 लाख रुपए का खर्च बताया जा रहा है। नगर निगम ने मरम्मत के लिए इतनी राशि खर्च करने के बजाए किराए का वाहन लेना मुनासिब समझा। वर्तमान में 6 हजार रुपए की किराए के दो वाहनों से शहर का कचरा उठाया जा रहा है। स्थिति को देखते हुए संबंधित विभाग द्वारा वाहनों की मरम्मत के लिए कई बार निगम आयुक्त को पत्र लिखा गया था। बावजूद समय पर वाहनों की मरम्मत नही कराई गई।

3 comments:

  1. bhaiya ji aapke baki edition kaha hai use publish kyo nahi kiya

    ReplyDelete
    Replies
    1. work is in processing, wait after some time

      Delete