Saturday 19 January 2013

छत्तीसगढ़ नहीं देखा तो क्या देखा....

आई चने की बहार... चना जोर गरम... शाह के चने की बात ही कुछ और है... भिलाई। शाह मोहम्मद के चने की बात ही कुछ और है। पिछले 47 सालों से मसालेदार चना बेचकर लोगों को चटखारे लेने पर मजदूर कर देने वाले शाह दिनभर में करीब 30 किलोमीटर का पैदल सफर करते हैं। इस दौरान जब वह किसी गली या मोहल्ले में सुरों की तान छेड़ते हुए अपने चने का महिमामंडन करते हैं तो लोग, खासकर बच्चे उनकी ओर बरबस ही दौड़ पड़ते हैं। महज 17 साल की उम्र में शाह मोहम्मद को उनके बड़े भाई ने चना और उसके मसालों से रूबरू कराया था और तब से लेकर आज उम्र के 65 बसंत देख चुके शाह के देसी और काबुली चनों का मिश्रण और मसालों का जादू इस कदर है कि उनकी आवाज सुनकर ही लोग जान जाते हैं कि चना जोर गरम वाले चचा आ गए। जो बच्चे कभी चचा के गानें सुनकर अपने माता-पिता से चना खाने की जिद किया करते थे, आज वे अपने बच्चों को चचा और उनके चना व मसाले से परिचित भी कराते हैं। चचा शाह भी खुशी से फूले नहीं समाते जब किसी बच्चे का पिता उनके पास आकर यह कहता है कि चचा, पहचाना मुझे....। पुराना खुर्सीपार स्थित लेबर कालोनी में रहने वाले शाह मोहम्मद आज भले ही तेजी से वृद्धावस्था की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन उनकी चुस्की, स्फूर्ति देखकर कोई नहीं कहता कि वे लोगों को पिछले 47 सालों से अपने चने से विभोर कर रहे हैं। चचा की रोजाना की दिनचर्या है। सुबह घर से निकलने के बाद न्यू खुर्सीपार, भिलाई-3 और फिर चरोदा....। और उसके बाद वहां से घर वापसी की राह। लेकिन इस पूरे क्रम में वे रोजाना करीब 30 किलोमीटर पैदल ही नाप जाते हैं। वही मुस्कुराता हुआ चेहरा.. जिस पर थकान का नामोंनिशान नहीं। यह संवाददाता भी अपने बचपन के दिनों में चचा के चने का दिवाना था। ...और जब वे आई चने की बहार, मेरा चना बना मसालेदार... इसमें नीबू की बहार... चना जोर गरम... गाते तो लोगों के मुंह में चने और मसालों का मिला-जुला चटपटा स्वाद अपने आप ही आ जाता। आज भी चचा शाह मोहम्मद की पहचान उनके चटपटे चनों के साथ ही उनकी सुरीली आवाज ही है। वे क्रांति फिल्म का मशहूर गीत चना जोर गरम बाबू मैं लाया मजेदार... चना जोर गरम... गाते हुए आज भी इस आधुनिक हो रहे शहर में निकलते हैं और पिज्जा और बर्गर की पिछलग्गु बन रही नई पीढ़ी तक अपने चने का स्वाद पहुंचाते हैं। पूछने पर वे ज्यादा कुछ नहीं कहते। पर इतना जरूर बताते हैं कि उनके चने देसी और काबुली चनों का मिश्रण हैं। मसाले वे घर पर ही बनाते हैं और इसमें हल्दी को छोड़कर बाकी सब मसालों को निश्चित अनुपात में मिलाया जाता है। कुछ ऐसा कि लोगों की जुबान पर चटखारे आ जाएं। ०००० छत्तीसगढ़ नहीं देखा तो क्या देखा.... शराब, शबाब, नंगा नाच... ये है मैनपाट महोत्सव - श्यामराव/दक्षिणापथ

 अम्बिकापुर। शराब, शबाब और रशियन बालाओं के नंगे नाच के बीच संस्कृति विभाग ने मैनपाट महोत्सव तो मना लिया, लेकिन इस आयोजन ने सरगुजिहा संस्कृति पर जोरदार चोंट की है। पूरी तरह फिजूलखर्ची से लबरेज इस आयोजन में शरीक हुए लोग इस चोंट को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। मजे की बात तो यह थी कि मैनपाट के नाम पर महोत्सव का आयोजन तो हुआ, लेकिन इस आयोजन में सरगुजा के कहीं दर्शन नहीं हुए। छत्तीसगढ़ का शिमला कहे जाने वाले मैनपाट की भव्यता व प्राकृतिक सुन्दरता को देश-विदेश में पहुंचाने के उद्देेश्य से मैनपाट महोत्सव का आगाज किया गया। जिला प्रशासन ने इस आयोजन को विशेष बनाने की भरपुर चेष्टा की लेकिन इस प्रयास में सरगुजा की संस्कृति आहत होकर रह गई। महोत्सव को देख मैनपाट के लोग संशय में पड़ गए कि क्या आधुनिकता के युग में यही हमारी संस्कृति होगी? मैनपाट कार्निवाल के पहले दिन ही फूहड़ता, नग्नता और शराब की बोतलों ने इस कार्निवाल के आयोजन के उद्देश्य पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया। उद्घाटन के अवसर पर रशियन बैले डंास नेे सरगुजा की संस्कृति पर जमकर कुठाराघात किया। गौरतलब है कि जो इस संस्कृति की रक्षा एवं संरक्षण की दुहाई देते नहीं थकते थे, वे इस संस्कृति को आहत होता देख ठहाके लगाते और तालियां पीटकर खुशी का इजहार करते नजर आये। अभिप्राय उन नेताओं एवं जनप्रतिनिधियों से है जो खुद ही इस संस्कृति के पैदाईश है जिनके कंधों पर इस सांस्कृतिक परंपरा को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है। महोत्सव के दूसरे दिन सरगुजा, जशपुर, कोरिया, कोरबा, रायगढ़ सहित आसपास के जिलों से उमड़े अथाह जन सैलाब से मैनपाट का चप्पा-चप्पा पट गया। कमलेश्वपुर, टाईगर प्वाईंट, जलजली जैसे सुप्रसिद्ध पयर्टन केंन्द्र दोपहर बाद आए जनसैलाब से पूरे दिन ठसाठस भरे रहे। मैनपाट के इतिहास में अब तक इतनी बड़ी भीड़ पहले कभी देखने को नहीं मिली। बोतल लिए झूमते रहे लोग 13 जनवरी की रात उद्घाटन समारोह के बाद मचे हुड़दंग को देखते हुए सरगुजा कलेक्टर आर. प्रसन्ना ने पुलिस व राजस्व अधिकारियों की बैठक लेकर हुड़दंगियों के खिलाफ सख्ती से कार्यवाही के निर्देश दिए थे। उन्होंने मंच के आसपास की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने और हुड़दंग करने वाले तत्वों की पहचान कर अपराधिक प्रकरण दर्ज कार्यवाही करने की बात कही। बावजूद इसके हुड़दंगी अपनी करतूत से बाज नहीं आए। अम्बिकापुर से मैनपाट जाने वाले रास्ते में जगह-जगह लोग गाड़ी खडी कर शराब की बोतल लिए झूमते दिखे। इतना ही नहीं यूक्रेन से आये रशियन बैले नृत्य की नग्नता पर आम जनता के साथ-साथ जिला प्रशासन और राज्य शासन के मंत्री भी रात भर झूमते रहे। पैरासेलिंग-पैराग्लाइडिंग भी मैनपाट उत्सव के तहत आयोजित एडवेंचर स्पोर्टस में पैरासेलिंग, पैराग्लाईडिंग भी दरिमा हवाई पट्टी में आयोजित किया गया। वहीं महंगे विदेशी नर्तकों पर सरगुजिहा कलाकार ही भारी पड़ते नजर आए। मैनपाट कार्निवाल के दूसरे दिन स्थानीय नर्तक एवं दल आकर्षण का केन्द्र बने रहे। पर्यटन विभाग द्वारा लाए गये महंगे डांसर और एंकरों की तुलना में सरगुजिहा कलाकार ज्यादा प्रभावी नजर आ रहे थे। विभिन्न शालाओं से आए स्कूली बच्चों ने भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शानदार प्रस्तुति की। मैनपाट कार्निवाल के दूसरे दिन आयोजन स्थल में स्कूली बच्चों की रंगोली और चित्रकला प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया जिसमें शहर से भी बड़ी संख्या में बच्चों को शामिल कराने ले जाया गया था। मंच पर चढ़े हुल्लड़बाज प्रशासनिक संरक्षण में पहुंचे चर्चित देह व्यापार से जुड़े और शराबी लोगों के समूह को मानो पहले दिन पूरे तरीके छूट मिली हुई थी। बड़े अधिकारियों को बार-बार मंच के आसपास रशियन डांसरों से पैसे का ऑफर करते इन मदहोश लोगों को रोकने मशक्कत करनी पड़ी। अधिकांश मैदानी अमला भी शराब के नशे में मदहोश था। वे भी पीछे से इन हुल्लड़बाजों के संगत में लग गये। कुछ हुल्लड़बाज तो मंच पर भी चढ़ गए और कुछ विकृत लोग और बेहतर पाने की उम्मीद में ग्रीन हाऊस तक घुसने की कोशिश में लगे रहे। समूचा माहौल देख कर लग रहा था मानो यह अश्लीलता और विकृति बड़े और आला अधिकारियों के संरक्षण में ही चल रही है। बैले नृत्य के आड़ में अश्लील नृत्य की सोच किसकी और किसके लिये थी यह जांच का विषय हैं। गुम रही सरगुजा की संस्कृति मैनपाट महोत्सव को बेहतर करने की प्रशासनिक सोच के साथ सभी लोग थे। लोगों की उम्मीद थी कि आधुनिकता और परंपरा के साथ मैनपाट कार्निवाल को वृहद उत्सव के रूप में स्थापित किया जायेगा, मगर सतही व्यवस्था ने सब कुछ मटियामेट कर दिया। यहां न तो हस्तशिल्प और कालीन जैसी परंपरा को कोई स्थान हासिल हुआ और न ही मैनपाट को व्यवस्थित करने की किसी भावी कोशिश को ही बल मिला है। मैनपाट कार्निवाल के दूसरे दिन कार रैली का आयोजन किया गया। संभागीय मुख्यालय अम्बिकापुर के कला केन्द्र मैदान से कमलेश्वपुर तक रैली का आयोजन किया गया जिसमें 22 प्रतिभागी शामिल हुये। संभागीय मुख्यालय अम्बिकापुर के शासकीय और अशासकीय विद्यालयों के बच्चों को भी प्रशासन द्वारा विशेष वाहन से संास्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुति के नाम पर मैनपाट ले जाया गया। मदहोशी और मस्ती का मेल मैनपाट के कमलेश्वपुर में प्रमुख आयोजन स्थल के सामने ही वृहद बार खोला गया था। वैसे भी प्रशासन के सरंक्षण में नर्मदापुर, कमलेश्वपुर व कुदारडीह में तीन अवैध अंग्रेजी शराब दुकान खुलेआम चल रही हैं और देह व्यापार से जुड़े लोगों को यहां पर्याप्त जगह भी मिल रही है। ऐसे में रशियन नृत्य और प्रशासन की छूट ने मनमौजी और विकृत लोगों के लिये चार चांद लगा दिए। कुछ ऐसे ही गर्म गोश्त और शराब पंसद लोग रंग में भंग डालते रहे। उन्होंनें यह भी एहसास कराया की जब सईयां भये थानेदार तो डर काहे का। सांस्कृतिक कुठाराघाट पर बिफरे लोग मैनपाट महोत्सव के रंगारंग आयोजन को लेकर मैनपाटवासियों में खासा उत्साह था। लेकिन जैसे ही समारोह की शुरूआत हुई तो पहली बार महोत्सव के रूप में नग्नता को देख मैनपाट के निवासी अंदर ही अंदर उबल पड़े। कार्यक्रमों का दौर तो चलता रहा पर इस महोत्सव का मजा लेने पहुंचे मैनपाट और उसके आसपास के रहवासीं काफी मायूस हुए। महोत्सव के दूसरे दिन भी आयोजन का मुख्य आकर्षण बैले नृत्य को होता देख रहवासियों की मायूसी आक्रोश में बदल गई। उनका यह आक्रोश जिला प्रशासन तक धीमे स्वर में पहुंचा जरूर किंतु कार्यक्रम की रंगबिरंगी छटा और शराब की मस्ती के बीच यह आक्रोश दबकर रह गया। अनेक स्थलों पर लोगों ने सरकार की इस फिजूलखर्ची और स्थानीय कलाकारों की उपेक्षा के साथ ही विदेशी संस्कृति को जबरन थोपे जाने का खुल्लम-खुल्ला विरोध किया। मैनपाट को पर्यटन की दृष्टि से उपयोगी बनाने शासन की पहल काबिले तारीफ थी पर उसका प्रारूप सरगुजा के चाल और चलन से बिल्कुल अलग था। जो चीज आप दिल्ली में देख सकते हैं उसे मैनपाट में दिखाने की जरूरत नहीं थी। हमारी सरगुजिहा संस्कृति अपने आप में ही पूर्ण है। विदेशी सैलानी हमारी संस्कृति में पाए जाने वाली महत्वपूर्ण चीजों को जानने और परखने यहां आते है न की वो देखने जो उनके देश में जगह-जगह विद्यमान है। इस महोत्सव में सरगुजा का कही भी दर्शन नहीं हुआ यह काफी शर्मनाम बात हैं। - टी.एस.सिंहदेव विधायक , अम्बिकापुर ०००

No comments:

Post a Comment