Saturday 19 January 2013

कराहते बस्तर पर उत्सव का अट्टहास ( दक्षिणापथ 16 से 31 जनवरी ))

कराहते बस्तर पर उत्सव का अट्टाहास कांकेर कांड ने कर दी रमन सरकार की मिट्टी पलीद रायपुर। दिल्ली में हुए एक गैंगरेप ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया, लेकिन यहां छत्तीसगढ़ में दो लोग मिलकर 14 मासूम बच्चियों का जिस्म दो सालों तक नोंचते और रौंदते रहे और सिवाय बंद जैसी नौटंकी के, कुछ नहीं हो पाया। यह विडंबना ही है कि 10 से 12 साल की इन मासूम बच्चियों की शिकायतों की लगातार अनदेखी की जाती रही। मामला सामने आया तो रमन सरकार के भी रोंगटे खड़े हो गए। सरकारी स्तर पर डैमेज कंट्रोल की कोशिशें ते•ा कर दी गई। इन पीडि़त बच्चियों को न्याय दिलाने के नाम पर जहां कांग्रेस राजनीतिक रोंटियां सेंकती नजर आई तो वहीं आदिवासी समाज को भी भाजपा की सरकार के खिलाफ लामबंद होने का मौका मिल गया। इधर, कांकेर की तरह कई अन्य जगहों से भी बच्चियों के दैहिक शोषण के मामले खुलने लगे। डौंडी के कन्या आश्रम में उजागर हुआ मामला उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है, जहां यदि गम्भीरता से जांच हो तो कई और बड़े मामले खुलने की संभावना है। एक ओर जहां बस्तर अपनी बच्चियों की पीड़ा से कराह रहा था, उसी दौरान छत्तीसगढ़ की सरकार 9 जिलों का उत्सव मना रही थी। यह एक तरह से आदिवासियों के चेहरे पर सरकार द्वारा मारे गए तमाचे के समान था। कांकेर जिले के नरहरपुर विकासखंड के जिस आदिवासी बालिका आश्रम में बच्चियों का लगातार दैहिक शोषण होता रहा, वहां प्रशासन ने पुलिस का पहरा लगा दिया है। आश्रम में पहली से पांचवीं कक्षाओं में पढऩे वाली कुल 43 छात्राएं हैं, जिनमें दहशत इस कदर है कि नए लोगों को देखकर ही वे डरकर काँपने लगतीं हैं। इसी आश्रम की बच्चियों को पढ़ाने के लिए दो साल पहले कुरूभाट निवासी शिक्षाकर्मी मन्नूराम गोटी की पदस्थापना हुई थी। प्रावधान नहीं होने के बावजूद शिक्षाकर्मी आश्रम में ही रहने लगा था जिसके खिलाफ आश्रम अधीक्षिका बबिता मरकाम ने कोई आपत्ति नहीं की। नतीजतन वहीं रहते हुए शिक्षाकर्मी तथा चौकीदार की नीयत डोली और वे रोजाना छात्राओं के साथ कुकर्म करने लगे। छात्राओं ने इसकी जानकारी आश्रम अधीक्षिका को दी, पर उन्होंने शिकायत को गम्भीरता से नहीं लिया। बात जब परिजनों तक पहुंची तो गांव में बैठक रखकर मामला वहीं दबा दिया गया। अब तक कुल 14 ऐसी बच्चियां सामने आई हैं, जिनकी देह को लगातार कुचला और रौंदा गया और वे सिसकने, सुबकने और दर्द से कराहने के अलावा कुछ नहीं कर पाईं। घटना सामने आने के बाद प्रशासन ने आश्रम की 26 छात्राओं को पड़ोस के गांव मरकाटोला के एक आश्रम में शिफ्ट कर दिया है। इस आश्रम में लड़के-लड़कियां दोनों रहते हैं। यहां गेट पर ताला जड़ दिया गया है और किसी को भी जाने नहीं दिया जा रहा। आश्रम के अंदर सिविल ड्रेस में पुलिस की तैनाती की गई है। इस बात को गोपनीय रखा गया है कि दुष्कर्म पीडि़त छात्राएं कहां है। प्रशासनिक स्तर पर बस यही कहा जा रहा है कि सभी बच्चियां सुरक्षित हैं। घटनास्थल और आसपास के गांवों का मुआयना करने पर यह बात सामने आई है कि आदिवासियों में एक किस्म का डर बैठा हुआ है। बहुत कुरेदने पर एकाध लोग यह स्वीकार कर रहे हैं कि अफसर से लेकर भाजपा से जुड़े कतिपय राजनीतिक लोगों का दबाव है। कांग्रेस के एक स्थानीय कार्यकर्ता के मुताबिक, इस पूरे मामले को रफा-दफा करने के लिए एक वरिष्ठ आदिवासी नेता को तैनात किया गया है। यह भी कोशिश की जा रही है कि मामला राष्ट्रीय मीडिया की पहुंच से दूर रहे। पहले ही हो चुकी थी शिकायत झलियामारी कन्या आश्रम में अव्यवस्थाओं और छात्राओं के साथ दुष्कर्म की शिकायत 24 नवंबर 2011 को ग्राम पंचायत मानिकपुर, झलियामारी ग्राम पंचायत मानिकपुर के आश्रित गांव के उपसरपंच सुकालूराम नेताम ने लिखित रूप से नरहरपुर खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय में की थी। शिकायत पत्र में स्पष्ट लिखा था कि आश्रम में अधीक्षिका नियमित नहीं रहती है। साथ ही वहां रहने वाली छात्राओं को घटिया भोजन दिया जाता है। शिक्षाकर्मी मन्नूराम गोटा अनधिकृत रूप से रहता है तथा चौकीदार के साथ मिलकर वहां रहने वाली छात्राओं का दैहिक शोषण करता है। अपनी लिखित शिकायत में नेताम ने एक घटना का स्पष्ट उल्लेख किया है कि अगस्त 2011 के अंतिम सप्ताह में एक दिन उक्त शिक्षाकर्मी तथा चौकीदार ने शराब के नशे में चूर होकर पहले आश्रम की बिजली गुल कर दी फिर छात्राओं के साथ अश्लील हरकतें की। इस लिखित शिकायत को नरहरपुर में पदस्थ खंड शिक्षा अधिकारी (बीईओ) एसएस नवरजी ने जांच कराने के बजाए दबा दिया। आरोप है कि मामला रफा-दफा करने के नाम पर बीईओ तथा आरोपी शिक्षाकर्मी के बीच सौदेबाजी हुई थी। इसी तरह 26 दिसंबर 2012 को खंड शिक्षा विभाग के एक कर्मचारी ने इस मामले पर अपने जांच प्रतिवेदन में विभाग को अवगत कराया गया था कि उक्त शिक्षाकर्मी को जल्द से जल्द कन्या आश्रम से अन्यत्र हटा दिया जाए। बीईओ नवरजी के साथ ही एबीईओ जितेन्द्र नायक को निलंबित करने के बाद गिरफ्तार किया गया है। वहीं आश्रम अधीक्षिका बबीता मरकाम व आरोपी मन्नुराम गोटी को बर्खास्त कर दिया गया है। चौंकीदार दीनानाथ नागेश को भी काम से हटा दिया गया। अब निगरानी होगी कांकेर की कलेक्टर अलरमेल मंगई डी के ने छात्रावासों पर निगरानी के लिए जांच दल बनाए है। वे बतातीं हैं, जिले में संचालित सभी कन्या आश्रम छात्रावासों की सुविधाओं और सुरक्षा की जांच किए जाने के लिए जांच दलों का गठन कर दिया गया है। प्रत्येक जांच दल में महिला एवं बाल विकास विभाग की सेक्टर सुपरवाइजर और दो आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सदस्य होंगी। यह जांच दल जिले के प्रत्येक जनपद पंचायत में आदिवासी विकास विभाग, शिक्षा विभाग, आईटीआई एवं अन्य विभागों द्वारा संचालित कन्या आश्रम-छात्रावासों का विस्तृत निरीक्षण करेंगे और जांच प्रतिवेदन कलेक्टर कार्यालय में प्रस्तुत करेंगे। आदिवासी होने लगे लामबंद बच्चियों के साथ दुष्कृत्य का मामला सुर्खियां बनी तो आदिवासी समाज की नाराजगी भी सामने आई, लेकिन सरकार ने आदिवासियों को कहीं प्रलोभन तो कहीं डरा-धमकाकर शांत कर दिया। आदिवासी समाज के एक प्रमुख नेता की मानें तो अब समाज लामबंद हो रहा है। इस नेता के मुताबिक, रमन सरकार ने जिस आदिवासी वोट बैंक के जरिए सत्ता की सीढ़ी तैयार की, अब उसे उखाड़ फेंकने का वक्त आ गया है। बहरहाल, सरकार की प्रशासनिक मशीनरी के फेल होने पर जिस महिला कलेक्टर ने पूरे साहस के साथ देश के इस सबसे बड़े और घृणित मामले का पर्दाफाश किया, अब उन्हें निपटाने की कोशिशें की जा रही है। कलेक्टर अलरमेल मंगई डी के तबादले की चर्चाएं हैं। दरअसल, सरकार इसे अपनी नाक से जोड़कर देख रही है। सरकार में बैठे लोगों की मानें तो यह पूरा मामला दबाया जा सकता था या आंशिक रूप से सामने लाया जा सकता था। लेकिन कलेक्टर ने अचानक ही ब्लास्ट कर दिया, जिससे सरकार की किरकिरी हुई। मंत्री-सचिव विदेश दौरे पर यह भी एक विडंबना ही है कि जिस वक्त इतने बड़े मामले का खुलासा हुआ, उस वक्त विभागीय मंत्री केदार कश्यप व सचिव मनोज पिंगुआ विदेश दौरे पर थे। उन्हें पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी गई दौरा रद्द करने की बजाए वे अपना दौरा पूरा कर वापस लौटे। लेकिन तब तक सरकार के साथ ही आजाक मंत्रालय की किरकरी हो चुकी थी। वापस लौटने के बाद केदार मीडिया से नजर बचाते हुए कांकेर रवाना हो गए। इतने बड़े मामले पर सरकार के मुखिया की चुप्पी तो संदेहास्पद रही है, वहीं विभागीय मंत्री का न्यूजीलैंड दौरा रद्द कर वापस न लौटना भी कई सवालों से घिरा रहा। खुद मुख्यमंत्री बच्चियों से अनाचार के इस मामले को लेकर कितना गम्भीर थे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने पीडि़त बच्चियों से मिलना भी जरूरी नहीं समझा। कांग्रेस ने की न्यायिक जांच की मांग कांग्रेस ने घटना को भयावह और शर्मनाक करार देते हुए न्यायिक जांच की मांग की है। प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चौबे ने पूछा है कि अगर हॉस्टल में रहने वाली बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं तो ऐसे शासन-प्रशासन से भला क्या उम्मीद की जाए? इस मुद्दे पर कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ बंद का भी आह्वान किया, जो काफी हद तक सफल रहा। जिस वक्त घटना का खुलासा हुआ, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांकेर में ही ब्लाक कमेटियों की बैठक ले रहे थे। यहीं से वे रात में ही नरहरपुर रवाना हो गए। पटेल के मुताबिक, कांकेर की घटना वीभत्स है। महिलाओं पर अत्याचार के मामले में छत्तीसगढ़ पहले ही अव्वल नंबर पर है। इस घटना ने पूरे तंत्र की पोल खोल दी है। उन्होंने कहा, इस घटना के आरोपियों के साथ उन अधिकारियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए, जो समय-समय पर हॉस्टल का निरीक्षण करने जाते थे। कन्या आश्रमों में पुरूष अधीक्षक आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा संचालित ज्यादातर कन्या आश्रमों में पुरुष अधीक्षक पदस्थ हैं। वहीं अधिकतर आश्रम छात्रावासों में चौकीदार व भृत्य जैसे पदों पर भी पुरुषकर्मी ही कार्यरत हैं। आदिवासी बहुल्य क्षेत्रों में संचालित कन्या आश्रम छात्रावासों में नियमत: महिला अधीक्षकों की ही नियुक्ति होनी चाहिए, लेकिन ज्यादातर कन्या छात्रावासों व आश्रम में पुरुष अधीक्षकों के होने से छात्राओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कांकेर जिले के झरियामारी कन्या आश्रम में 11 छात्राओं के साथ शिक्षाकर्मी व चौकीदार द्वारा दुष्कर्म करने का मामला उजागर होने के बाद दक्षिण बस्तर सहित पूरे बस्तर संभाग में संचालित कन्या आश्रम छात्रावासों में महिला अधीक्षक समेत अन्य पदों पर भी महिला कर्मचारियों को पदस्थ करने की मांग होने लगी है। आजाक विभाग द्वारा संचालित 43 संयुक्त आश्रम शालाओं में से कुछ को छोड़ दे तो सभी में पुरुष अधीक्षक ही पदस्थ हैं। इन 100 सीटर संयुक्त आश्रमों में पहली से पांचवी तक की कक्षाएं हैं जहां बालक और बालिका एक साथ रहकर पढ़ाई करते हैं। इनमें बालिकाओं की संख्या 2000 से अधिक है। इनकी सुरक्षा व देखरेख का दायित्व वहां पदस्थ अधीक्षक और चौकीदार पर है। इसमें से लगभग 38 आश्रमों में पुरुष अधीक्षक के तौर पर पदस्थ हैं। आलम यह है कि आधे से ज्यादा आश्रम भवन स्वयं का नहीं है जब भवन ही नहीं है तो अधीक्षक का आवास भी नहीं होगा जिसके चलते वहां पदस्थ अधीक्षक को या तो बाहर आना जाना करना पड़ता है या फिर वह गांव में ही मकान लेकर रहते हैं। आश्रम शालाओं में आवास और भोजन की व्यवस्था तो हो जाती है लेकिन दैनिक क्रिया के लिए वहां रहने वाले बच्चों को बाहर जाना पड़ता है। इससे आश्रम शालाओं का औचित्य ही समाप्त हो जाता है। आश्रम में बच्चों के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए डॉक्टरों से अनुबंध किया गया है। इसके अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के आसपास के आश्रमों के बच्चों के स्वास्थ्य परीक्षा का दायित्व इन्हें दिया गया है। जिसके तहत महीने में दो बार बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाना है, लेकिन यह जांच नियमित तौर पर नहीं होती। जिले में संचालित आश्रम छात्रावासों के निरीक्षण के लिए अधिकारी नियुक्त हैं, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा निरीक्षण के नाम पर खानापूर्ति ही की जाती है जिससे छात्रावासों में अव्यवस्था के हालात हैं। घटना के बाद सभी संयुक्त और बालिका आश्रमों में महिला अधीक्षक की नियुक्ति किये जाने के निर्देश दिये जा रहे हैं, साथ ही शाम 5 बजे के बाद इन आश्रमों में किसी भी पुरुष सदस्यों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया है। रो-रोकर बताई पीड़ा आश्रम की एक बालिका ने रोगटे खड़े कर देने वाली पीड़ा को पत्रकारों को रो रोकर बताया। इस बच्ची के मुताबिक, जुलाई 2012 से लेकर अब तक करीब 18-19 बालिकाओं से दुष्कर्म हुआ है। जबकि बीते साल आरोपियों ने पांचवी पास हो चुकी 15-16 बालिकाओं को लूटा है। रोने चीखने के बाद भी नशे में चूर आरोपी पहली दूसरी कक्षा में पढऩे वाली मासूम छात्राओं तक को भी नहीं बख्शते थे। इसके अलावा पीडित बालिकाओं की सहेलियों ने बताया कि दर्द के कारण वे टायलेट जाते समय छुपछुपकर रोती थी। परिजनों ने भी इस बात को स्वीकार किया कि उन्हें इस मामले के संकेत चार माह पहले मिले थे लेकिन उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया। झलियामारी में आदिम जाति कल्याण विभाग के अंतर्गत संचालित कन्या आश्रम में हुए दुष्कर्म मामले में मुआयना करने पत्रकारों की एक टीम जब मौके पर पहुंची तो चौकाने वाला तथ्य सामने आया। आश्रम में पढऩे वाली ग्राम देव की बालिका ने बताया कि वह दुष्कर्मियों का शिकार होते-होतेे रह गई। संयोग से मामला उजागर होने से ठीक पहले बालिका शीतकालीन छुटटी मनाने अपने घर चली गई। तब से लेकर अब तक वह घर पर ही है। उधर प्रशासन ने आश्रम की सभी बालिकाओ को गोपनीय स्थल पर शिफ्ट कर दिया है। झलियामारी आश्रम तीन-तीन कमरों के एक कच्चे मकान में संचालित है तथा आश्रम के समीप एक अन्य कमरा किराए पर लिए है। यह कमरे मवेशियों के कोठे से भी बदतर हैं। कमरों के दरवाजे बंद करने के लिए अंदर कुंडी भी नहीं है। जिससे बालिकाएं हमेशा असुरक्षित रहती थी। आसपास शौचालय, पेयजल और पर्याप्त रोशनी की भी सुविधा नहीं है। स्नान के लिए बालिकाओ को दो सौ मीटर दूर तालाब पर जाना पड़ता था। 1050 छात्रा हॉस्टल राज्य में ट्रायबल विभाग के 1050 आदिवासी छात्रा हॉस्टल हैं। मंत्रालय में न सिर्फ आदिम जाति कल्याण विभाग बल्कि उच्च शिक्षा विभाग, तकनीकी शिक्षा विभाग, महिला पॉलीटेक्निक समेत उन सभी विभागों के बारे में नीति बना रहा है, जिनके हॉस्टलों में छात्राएं रहती हैं। उनके लिए नए सिरे से नियम-शर्तें बनाने विचार-विमर्श शुरू हो गया है। इनमें छात्रा हॉस्टलों में केवल महिला स्टाफ की नियुक्ति सबसे अहम बदलाव होगा। कहीं भी पुरुष कर्मचारी नहीं रखा जाएगा। हॉस्टल में रात में कोई भी पुरुष किसी भी वजह से नहीं ठहर सकेगा। नए ड्राफ्ट को अनुमोदन के लिए मुख्य सचिव के जरिए मुख्यमंत्री तक भेजा जाएगा। अफसरों का मानना है कि सिस्टम में दोष की वजह से ही यह घटना घटी। हॉस्टलों की मॉनिटरिंग तक उच्च अधिकारी नहीं कर रहे थे। हालांकि उनका मानना है कि इस मामले में सीधे तौर पर दोषियों के खिलाफ नियमानुसार जो भी सख्त कार्रवाई की जा सकती थी वह कर दी गई है। आगे कानून को अपना काम करना है। अफसरों ने सरकार को इसी बिंदु पर भरोसा दिलाया है। यह भी बताने की कोशिश की है कि मामले में पीडि़त व आरोपी सभी एक ही वर्ग के हैं। उनके समाज को भी प्रकरण की जानकारी थी। मामला जैसे ही सरकार के सामने आया कड़ी कार्रवाई की गई है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस को घर बैठे भले ही बड़ा मुद्दा मिल गया है, लेकिन सरकार की तरफ से हुई त्वरित कार्रवाई से वह ज्यादा दिनों तक इसे गरम रखकर राजनीतिक लाभ नहीं उठा पाएगी। कांकेर जैसे कई मामले कांकेर में हुए घटनाक्रम के बाद बालाओं के दैहिक शोषण के और भी कई मामले उजागर हुए। इनमें बालोद जिले के डौंडी स्थित आदिवासी कन्या आश्रम आमाडुला का मामला इसलिए ज्यादा चर्चा में आया, क्योंकि यहां की आश्रम अधीक्षिका रह चुकी अनिता ठाकुर का, मामला खुलने से एक दिन पहले ही खुद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने सम्मान किया था। महिला उत्थान यात्रा में उल्लेखनीय कार्य के लिए सम्मानित अनिता ठाकुर को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। आमाडुला का यह मामला करीब 6 साल पुराना है। ग्राम चिहरो निवासी आदिवासी बालिका ने अगस्त-सितम्बर 2012 में इसकी शिकायत की थी। अपनी शिकायत में बालिका ने कहा था कि 2006 में जब वह कमला नेहरू आदिवासी कन्या छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रही थी, तब दल्लीराजहरा निवासी छोटू ने उसके साथ दुष्कर्म किया। तब आश्रम की अधीक्षिका अनिता ठाकुर थी। शिकायत हुई तो जांच का जिम्मा पाटन एसडीओपी निवेदिता पाल को सौंपा गया। पुलिस ने आरोपी छोटू को गिरफ्तार कर लिया है। इधर, यह संभावना भी जाहिर की जा रही है कि क्षेत्र में कांकेर की तर्ज पर ही कई और मामले सामने आ सकते हैं। स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, आश्रम अधीक्षिका के साथ ही मुख्य आरोपी छोटू की भूमिका लम्बे समय से इसी तरह के मामलों को लेकर संदिग्ध रही है। विश्वनीय सूत्र तो यहां तक दावा कर रहे हैं कि डौंडी व आसपास के इलाकों के कन्या आश्रमों में भी बड़े मामले पर दैहिक शोषण के मामले हुए हैं। इसकी यदि गम्भीरता से जांच हो तो कांकेर से भी बड़ा मामला उजागर हो सकता है।

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