Saturday 19 January 2013

1-15 january dakshinapath

हैट्रिक के मुगालते में डॉ रमन आंकड़ों की बाजीगरी से सरकारें नहीं बनती

raman sing chief minister- chhattisgarh

  गुजरात में नरेन्द्र मोदी की हैट्रिक ने छत्तीसगढ़ में भी भाजपा की बांछें खिला दी है। नतीजतन गुजरात फतह के बाद यहां भी जीत के बढ़-चढ़कर दावे किए जाने लगे हैं। लेकिन इन दावों के इतर, इस अंतर को जानना-समझना होगा कि गुजरात और छत्तीसगढ़ के हालात क्या हैं? गुजरात में जहां भाजपा नगण्य रही और मोदी ने अपने कद को ऊंचाइयों पर ले जाकर सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की, वहीं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह उन ऊंचाइयों से कोसों दूर हैं। तथाकथित आंकड़ों के आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार ले आना और मीडिया के मार्फत हीरो बन जाना जितना आसान है, मिशन-2013 प्रदेश के मुखिया के लिए उतना ही मुश्किल है।   रायपुर। गुजरात में जीत की तिकड़ी लगाने से काफी पहले से ही नरेन्द्र मोदी को पीएम इन वेटिंग के लिए प्रोजेक्ट किया जाता रहा। इसका परिणाम यह रहा कि गुजरात दंगों में खराब हुई छवि के बावजूद नरेन्द्र मोदी एक बड़ी शख्सियत के रूप में उभरे। भाजपा की जीत से गुजरात को भावी प्रधानमंत्री मिल जाएगा, इन बातों ने इतना असर डाला कि पूरे गुजरात में भाजपा नगण्य होकर रह गई। दरअसल, वहां चुनाव भाजपा नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी लड़ रहे थे। उन्होंने अपने मनमाफिक टिकटें बांटी और बगावत जैसी आशंकाओं-कुशंकाओं के बीच भी उन्होंने ऐसे लोगों की टिकट काटने से परहेज किया, जो बगावती तेवर अपनाने वालों के साथ मिलकर नुकसान पहुंचा जा सकते थे। नतीजतन काबीना के कई मंत्रियों को मिली पराजय के बाद भी मोदी चौथी बार शपथ ले पाए। उनकी जीत की एक वजह पिछले चुनाव का परिणाम भी रही। पिछली दफा जहां भाजपा ने 117 सीटें जीती, वहीं कांग्रेस को महज 58 सीटें मिलीं थी। इतना बड़ा गड्ढा पाटना कांग्रेस के लिए आसान नहीं था। ऐसे समय में तो और भी ज्यादा, जबकि वह लगातार चार बार यानी पिछले 20 सालों से सत्ता से दूर थी। इसलिए जब इस चुनाव के परिणाम आए तो अंतर 115-61 के बीच रहा। भाजपा को भले ही दो सीटों का नुकसान हुआ, लेकिन सरकार तो बन ही गई। इन तमाम परिस्थितियों को लेकर छत्तीसगढ़ की बात करें तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह लगातार दो चुनाव जीतने के बाद भी अपनी छवि को ऊंचाइयां नहीं दे पाए। पिछली पंचवर्षीय में मीडिया ने उन्हें चाउंर वाले बाबा की उपाधि से नवाजा तो यही छवि उनकी जीत का कारण भी बनीं। लेकिन तब विपक्षी दल कांग्रेस में आपसी खींचतान और सिर फुटौव्वल की वजह से हालात बेहद नाजुक थे। इधर, जीत के बाद भी 90 विधानसभाओं वाले छत्तीसगढ़ में भाजपा की जीत का अंतर इतना नहीं रहा कि कहा जा सके कि इस बार रमन सरकार जीत की हैट्रिक बना ही लेगी। गुजरात से दीगर छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्यों में स्थानीय परिस्थितियां ज्यादा मायने रखती है। इन परिस्थितियों को जिस भी पार्टी ने जान-समझ लिया, यह तय है कि चुनाव के परिणाम उसी के पक्ष में आएंगे। इन सबके अलावा भाजपा के भीतर कसमसा रही गुटबाजी और एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति भी पार्टी के लिए घातक साबित हो सकती है। पिछली बार बस्तर टाइगर बलिराम कश्यप की दहाड़ ने वहां से भाजपा को 12 में से 11 सीटें निकालकर दी थी, लेकिन बलि दादा के खामोश होने के बाद वहां भी स्थितियों में बदलाव आया है। सरकार में बृजमोहन अग्रवाल कभी नंबर 2 हुआ करते थे, लेकिन उन्हें काटने के लिए सीएम ने जिस तरह राजेश मूणत का उपयोग किया, उसके बाद रायपुर और आसपास के इलाकों में भाजपा के लिए स्थितियां सामान्य नहीं कही जा सकती। राज्य का सबसे महत्वपूर्ण विभाग गृह मंत्रालय संभालने वाले ननकीराम कंवर की विवादास्पद बयानबाजी हर दो-चार दिनों में सार्वजनिक होती रहती है। मतलब वे अपनी ही सरकार से खुश नहीं है। वहीं अविभाजित दुर्ग जिले में भाजपा के भीतर चल रहा खेल उसके लिए बेहद खतरनाक माहौल पैदा कर रहा है। बिलासपुर में पूंजीपतियों की लॉबी जितनी सशक्त हुई है, और उन्हें सरकार का पूरा-पूरा संरक्षण है, उसके बाद यह कहना कि बिलासपुर जैसे जिले में भाजपा कोई कमाल दिखा पाएगी, अतिशंयोक्ति ही होगी। सरगुजा से भी मिले-जुले हालातों की खबरें आ रही है। कुल मिलाकर रमन सरकार की तिकड़ी को लेकर जितनी बातें हो रही है, वास्तव में उन बातों में दम कहीं नजर नहीं आ रहा है। रमन काबीना के कई मंत्री पहले से ही नाराज हैं और इस पर दो दर्जन विधायकों के यदि टिकट काट दिए गए तो बागियों से निपटना और उन पर नकेल कसना मुश्किल हो गया। दरअसल, पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान जिन विधायकों के टिकट काटे गए थे, उन्हें यह कहकर चुप बिठा दिया गया था कि ऐसे लोगों को निगम-मंडल या आयोग में अडजस्ट कर दिया जाएगा। लेकिन ऐसा भी नहीं हो पाया। हालात यह हैं कि पहले जिनकी टिकट काटी गई थी, वे ठंडे बैठे हैं तो जिनकी टिकट अगले चुनाव में काटी जानी है, वे ठंडे बैठने को उतावले हैं। सरकार ने अखबारों को विज्ञापन के रूप में फायदा पहुंचाकर अपनी खराब होती छवि दुरूस्त करने की जुगत तो लगाई, लेकिन इसमें उसे कामयाबी नहीं मिल पा रही है। हर कुछ दिन में भ्रष्ट अफसर पकड़े जा रहे हैं और उनसे करोड़ों की बेनामी सम्पत्तियां मिल रही है। आम आदमी के बीच यह बात शिद्दत से असर डाल रही है कि सरकार की विकास रूपी गंगा में कुछ विशेष लोग ही डुबकी लगा रहे हैं। राज्य में भ्रष्टाचार इस कदर बढ़ चुका है कि बस त्राहि आना शेष है। लेकिन रमन सरकार ने इतनी भयावह हो चुकी समस्या से निपटने के लिए कोई प्रयास नहीं किए। इसका सीधा-सीधा मतलब तो यही है कि सरकार ने भ्रष्टाचारियों को प्रश्रय दिया। आप के निशाने पर 5 मंत्री आम आदमी पार्टी (आप) से जुड़े लोगों ने छत्तीसगढ़ के मंत्रियों का कच्चा चिट्ठा जुटा लिया है। खबर है कि कुल 12 में से 5 मंत्रियों के खिलाफ काफी दस्तावेज भी एकत्रित किए गए हैं। संभावना जताई जा रही है कि जल्द ही आप के शीर्षस्थ नेता छत्तीसगढ़ आकर इन मंत्रियों के नामों का खुलासा करेंगे। इन पांचों मंत्रियों में अधिकांश राजधानी और आसपास के जिलों से ही विधायक निर्वाचित हुए हैं। राजधानी में एक मंत्री और उसके भाइयों की दबंगई की चर्चा जोरों पर है तो राजधानी से लगते एक जिले के पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता की नामी-बेनामी सम्पत्तियों का पूरा रिकार्ड निकलवा लिया गया है। मुख्यमंत्री की वरदहस्ती में दबंग पार्ट-2 के मुख्य किरदार बने एक मंत्री पर भी निशाना साधने की जानकारी मिली है। यदि इन मंत्रियों और उनकी कारगुजारियों का खुलासा हो जाता है तो रमन सरकार का सत्ता की तिकड़ी बनाने का ख्वाब सिरे से धराशायी हो सकता है। गुरूजी को 'जैरामÓ करेगी भाजपा दुर्ग। गुरूजी के नाम से पहचाने जाने वाले अहिवारा के विधायक डोमनलाल कोर्सेवाडा को इस बार भाजपा 'जैरामÓ कर सकती है। क्षेत्र में उनकी निष्क्रियता, अपने समाज में क्षीण हो चुकी पकड़ और गोपनीय रिपोर्ट में उनकी बेहद खराब स्थिति के साथ ही कार्यकर्ताओं में गहरी नाराजगी ऐसी वजहें हैं, जो उनकी टिकट काटने की ओर इशारा कर रही हैं। खबर है कि पार्टी स्तर पर नए नामों का पैनल बनाने की भी तैयारी है। जानकारियों के मुताबिक, हाल ही में प्रदेश की डॉ. रमन सिंह सरकार ने लोकल इंटेलिजेंस ब्यूरो (एलआईबी) के जरिए विधानसभावार सर्वे करवाया था। इस सर्वे में अहिवारा सीट भाजपा के हाथ से फिसलती हुई बताई गई है। सर्वे के मुताबिक, यदि कोर्सेवाड़ा को टिकट दी जाती है, तो यह सीधे-सीधे कांग्रेस को वाकओवर देने जैसी स्थिति होगी। इस सर्वे से संबंधित विस्तृत ब्यौरा फिलहाल नहीं मिल पाया है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि पार्टी स्तर पर दुर्ग जिले से अहिवारा समेत कई सीटों के प्रत्याशी बदले जाने की चर्चाएं चल रही है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, श्री कोर्सेवाड़ा जेके लक्ष्मी सीमेंट मामले में पहले ही अपनी फजीहत करा चुके हैं। मुआवजा और नौकरी की मांग करते हुए हजारों ग्रामीणों ने जेके लक्ष्मी सीमेंट प्रबंधन के खिलाफ लम्बा आंदोलन चलाया था। लेकिन अपने विधानसभा का बेहद गम्भीर और जनता से जुड़ा हुआ मामला होने के बावजूद कोर्सेवाड़ा ने इससे दूरी बनाए रखी। इसके अलावा सतनामी समाज भी इस बात को लेकर बेहद नाराज है कि भाजपा की सरकार ने उनके आरक्षक का प्रतिशत घटा दिया और समाज का प्रतिनिधि होने के बावजूद विधायक कोर्सेवाड़ा ने मुंह नहीं खेला। नहीं ली कार्यकर्ताओँ की सुध क्षेत्र के भाजपाईयों का भी साफ आरोप है कि चुनाव जीतने के बाद से अब तक विधायक ने उनकी कभी सुध नहीं ली। कार्यकर्ताओं की मेहनत के बल पर जीतने के बाद भी उन्होंने उन जमीनी कार्यकर्ताओं का कोई काम करना मुनासिब नहीं समझा। जानकारों के मुताबिक, पार्टी का जमीनी कार्यकर्ता इस पक्ष में नहीं है कि ऐसे व्यक्ति को दोबारा टिकट दी जाए, जो उनके किसी काम का नहीं है। गौरतलब है कि जेके लक्ष्मी सीमेंट मामले में विधायक कोर्सेवाड़ा की चुप्पी को पार्टी के ही भीतर बेहद संदेहास्पद माना गया था। कार्यकर्ताओं का साफ आरोप था कि कंपनी प्रबंधन से गोपनीय समझौता करने के बाद उन्होंने स्थानीय जनता की आवाज को भी अनसुना कर दिया। निष्क्रियता बनेगी रोड़ा कोर्सेवाड़ा की टिकट कटने की सबसे बड़ी वजह उनकी निष्क्रियता बन सकती है। क्षेत्रीय समस्याओं से उन्मुख होने की वजह से उनकी प्रारम्भ से ही भद्द पिटती रही। डॉ. रमन सिंह सरकार ने उन्हें अजा आयोग का उपाध्यक्ष बनाकर मंत्री का भी दर्जा दिया। बावजूद इसके वे दमदारी दिखाने और प्रदर्शन सुधारने में नाकाम रहे। इतना ही नहीं, समाज का एक बड़ा तबका जब उनके खिलाफ हो गया, तब भी उन्होंने स्थितियों को स्पष्ट करने का प्रयास नहीं किया। जबकि निर्वाचित जनप्रतिनिधि होने की वजह से उन्हें पूरी दमदारी से काम करना था। तैयार हो रहा है विकल्प एक ओर जहां विधायक कोर्सेवाड़ा के खिलाफ क्षेत्र और उनकी ही अपनी पार्टी के भीतर जबरदस्त माहौल बन गया है, वहीं क्षेत्र में टिकट की आकांक्षा रखने वालों ने भी गुणा-भाग लगाना शुरू कर दिया है। बताते हैं कि पार्टी के ही एक युवा और जिम्मेदार कार्यकर्ता को आगे लाने की कोशिशें भी ते•ा कर दी गई है। उक्त कार्यकर्ता भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी से लेकर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तक से अच्छे संबंधों की वजह से जाना जाता है। उक्त युवा नेता क्षेत्र में पार्टी की खराब होती छवि को सुधारने के लिए भी कवायद प्रारम्भ कर चुका है। कार्यकर्ताओं से मुलाकात करने, बूथस्तर पर व्याप्त दिक्कतों को हल करने, शासन की जनकल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में आ रही दिक्कतों से रूबरू हो रहे उक्त युवा नेता को वर्तमान में भाजपा से दमदार प्रत्याशी माना जा रहा है।

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