Wednesday 19 December 2012

टूट रहा है लाल बंगले का तिलस्म !

टूट रहा है लाल बंगले का तिलस्म ! - मुख्य धारा में चल पड़ी है भुंजिया जनजाति की नई पीढ़ी ज्ञानेश तिवारी/दक्षिणापथ गरियाबंद । आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र गरियाबंद के घने जंगलों में निवासरत् भुंजिया जनजाति एक ओर जहंा आज भी अपनी कबिलाई संस्कृति की जड़ों को महफूज रखना चाहता है, तो दूसरी ओर शिक्षा की रोशनी से जागृत नवीन पीढ़ी पूरी दूनिया के साथ कदम मिला कर अपनी काबिलियत दिखाने बेकरार है। पुरातन और आधुनिक समाज के बीच की रस्साकसी के बावजूद भुजिया समाज खुद को बदल कर मुख्यधारा में शामिल होते जा रहा है। विकास की गति में अपनी परंपराओं को सहेज कर चलने की प्रवृत्ति इस समाज की विशेषता बनते जा रही है। 12 साल पहले अविभाजित मध्यप्रदेश के तत्कालिन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने एक शिक्षित भुजिया युवक को शिक्षक की नौकरी क्या दी, कि वह समुचे समुदाय के लिए रोल माडल बन गया। आज भुजिया समुदाय की एक महिला भी शिक्षाकर्मी बन चुकी है। इसके अलावा स्वालंबन की दिशा में यह समाज मिलों सफर तय कर चुका है। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 90 किलोमीटर की फासले पर सघन वनों और ऊॅचे पहाड़ों से आच्छादित नवोदित जिला गरियाबंद अवस्थित है। गरियाबंद जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर निवासरत् आदिवासी समुदाय की भुंजिया जनजाति शहरी सभ्यता से कोषों दूर आज भी कठोर कबिलाई संस्कृति में जकड़ा हुआ है। भुजियाओं के सामाजिक कानून में मुखिया का आदेश ही सर्वोपरी है। इस पुरूष प्रधान कबिलाई समाज में नारियों पर कई बंदिशें है। जंगलों और पहाड़ी में अपने बिरादरी की बस्ती में मस्त रहने वाला यह समुदाय सामाजिक कट्टरता से ग्रस्त हैं। लाल बंगला इनका पवित्र व महत्वपूर्ण स्थल होता है। प्रत्येक भुंजिया परिवार के लोग अपने घर के आंगन में इस लाल बंगले को झोपड़ीनुमा रूप देकर लाल रंग की पोताई कर घास-फूस से सजा कर भोजन बनाने के उपयोग में लाते हैं। इस पवित्र लाल बंगले में घर के सदस्य ही प्रवेश कर सकते हैं। अन्य जाति के लोगो का यहॉ प्रवेश तो दूर की बात है, अगर इस पवित्र बंगले को कोई दूसरा स्पर्श भी कर दे, तो तत्काल उसे तोड़ कर नया बनाना पड़ता है। यहां तक शादी के बाद बेटी का भी लाल बंगले में प्रवेश निषेध होता है। इस समुदाय के पुरूष चप्पल नहीं पहनते। पेन्ट शर्ट पहनने पर कठोर दण्ड दिया जाता है। सीले हुए वस्त्र पहनना महिलाओं को भी मना है, सिर्फ साड़ी को लपेटने का रिवाज है। मासिक धर्म से पहले कन्याओं का कांड विवाह करना अनिवार्य है। कांड विवाह पूरे रीति-रिवाज के साथ किया जाता है। जिसमें विधिवत् दैवीय पूजा अर्चना एवं मंत्रोचार होता है। तदुपरांत पूरा समाज मिलकर सामुहिक भोज करतां है और गौरव भरा जोहार भेंट कर जश्न मनाते हैं। कांड विवाह के बाद होटल या अन्य जगह पर भोजन नहीं कर सकते, ऐसा करने पर उन्हें सामाजिक कार्यो में शामिल नहीं होने दिया जाता साथ ही लाल बंगले में प्रवेश पर प्रतिबंध लग जाता है। जब तक गांव के बड़े बुजुर्गो द्वारा सुबह बिना भोजन करे लड़की को नहलाकर उसका दूध व पानी से शुद्धीकरण किया जाता है तब उसे लाल बंगले में घूसने दिया जाता है। भूंजिया समाज की खुद अपनी बोली है, जिसे समझना आसान नही है। ऐसे ही भुंजिया जनजाति का एक बड़ा कस्बा गरियाबंद मुख्यालय से 30 किमी दूर सघन जंगल में स्थित ग्राम मौहाभाटा है, जहॉ सिर्फ भुंजिया समुदाय के लोग ही रहते है । उस गांव में किसी अन्य जाति के लोगो को रहने की ईजाजत नहीं है। कृषि से संबंधित या अन्य लोहे के औजार संबंधी कार्य हेतु तथा मवेशियों को चराने तथा दुध दोहन के लिए लोहार एवं राउत जाति के एक-एक परिवार को रहने की अनुमति शुरू से दिया गया है जो अब तक कायम है। किंतु परिवर्तन की बयार अब इस वन्य ग्राम्य कबिले में भी नमूदार होने लगा है। शिक्षा व संचार के प्रचार-प्रसर के साथ आज मौहाभाठा जैसे सुदुर कबिलाई ग्राम में परम्पराओं अंधविश्वासों, कठोर प्रथाओ एवं कबिलाई कानून का विरोध करने का साहस भुंजिया युवक-युवतियो में देखने को मिल रहा है। भुंजिया समुदाय के युवा आज शिक्षा प्राप्त कर शेष समाज को मुख्य धारा में जोडऩे संघर्षरत् है। लिहाजा भुजियां महिलाओं में भी शिक्षा का व्यापक प्रसार हुआ है। हाल में ग्राम मौहाभाटा में कृषि विभाग द्वारा संचालित राष्ट्रीय जल ग्रहण क्षेत्र विकास के अंतर्गत संचालित जल समिति के अध्यक्ष मधू सिंह भुंजिया के माध्यम से सिलाई-कढ़ाई का काम भुंजिया युवक-युवतियो को सिखाया गया है जिस समुदाय में कभी सिलाई का कपड़ा पहनने का अधिकार नहीं था, वही आज सिलाई मशीन से अपने लिए कपड़ा सिलाई का काम कर रही है। लगभग 40 भुिजया बालिकाएं सिलाई की प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी है। उनके सिले कपड़े ग्राम मौहाभाटा में ही बिक रहे है । शिक्षित भुंजिया बालिकाएं अब आधुनिक परिधान अपनाते जा रहे है। शिक्षित युवा वर्ग आधुनिकता की मुख्य धारा में शामिल हो रहे हंै। शासन द्वारा शिक्षित भुंजिया जाति के युवाओं को शिक्षाकर्मी की सीधी नौकरी दी जा रही है। इसका मुख्य श्रेय अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को जाता है जिन्होंने मौहाभाटा दौरा के दौरान सभा स्थल पर ही प्रथम स्नात्तकोत्तर भुंजिया छात्र मैनेजर सिंह चोटिया को उच्च श्रेणी शिक्षक की नौकरी देने का आदेश दिया था । वहीं सीधी भर्ती का नतीजा है कि आज इस कबिलाई समुदाय में बहुत से युवक युवक्ति शिक्षाकर्मी एवं अन्य नौकरी कर रहे है। महिलायें आंगनबाड़ी कार्यकर्ता तथा मितानीन जैसे कामों मे पूरे जोश के साथ रूचि ले रही है। गांव की चंदेश्वरी मरकाम भुंजिया शिक्षाकर्मी बन कर शिक्षा का अलख जगा रही हैं। --- नहीं रहा अब चप्पल का टोटका यद्यपि शिक्षा प्राप्त कर भुजियां समुदाय विकास के दरवाजे पर दस्तक दे चुका है, परन्तु मध्यान्ह भोजन अभी भी लाल बंगले में ही ठहर गया है, आधुनिक साजो समान एवं सभ्य समाज के करीब जरूर है। ये समुदाय पर चप्पल का टोटका भी अब नही रहा हैं। भुंजिया छात्र-छात्राएं शालेय परिधान के साथ चप्पल पहन कर स्कूल आने लगी है। भुंजिया शिक्षाकर्मी शिक्षिका बताती है कि अगर उन्हे शासकीय प्रशिक्षण हेतु बाहर जाना पड़ता है और बाहर लाल बंगले के गैर मौजूदगी में भोजन ग्रहण करना होता है, तब प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने गृहग्राम मौहाभाठा वापस आने पर उन्हे समाज के बड़े बुजुर्गो द्वारा शुद्धिकरण की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। ऐसा न करने पर उसे लाल बंगले में प्रवेश करने नहीं दिया जाता उसे सामाजिक कार्य मे भागीदार नही बनाया जायेगा। आगे कहती है कि अब तो पहले कि तुलना में काफी सकारात्मक सोच हमारे समाज में पनपती जा रही है वक्त के साथ धीरे-धीरे सब सामान्य होता जा रहा है। आज स्त्रियों को ब्लाउज पहनने लड़कीयो को सलवार सूट व पुरूषो को पेण्ट-शर्ट पहनने की आजादी मिल गयी है। जो कभी हमारे बड़े बुजुर्ग सपने में भी नही सोचा होगा आज हम अंधकार से रोशनी में आने के लिए भुंजिया समाज को सदियो का सफर तय करना पड़ा है जिसका मुख्य श्रेय शिक्षा ही है। -------------- शिक्षाकर्मी बन रहे हैं रेलवे कुली - प्रदेश में शिक्षाकर्मियों के हाल बेहाल दुर्ग। एक ओर प्रदेश भर के शिक्षाकर्मी कामबंद हड़ताल पर चले गए हैं तो दूसरी ओर सैकड़ा भर से अधिक शिक्षाकर्मी अपनी वर्तमान नौकरी छोड़कर रेलवे कुली (ग्रुप डी) बनना बेहतर समझ रहे हैँ। बिलासपुर रेलवे जोन में हजारों की संख्या में गु्रप डी कर्मियों की भर्ती प्रक्रिया डेढ़ महीने से चल रही है। रेलवे गु्रप डी की भर्ती के लिए आयोजित किए गए आरंभिक परीक्षा में सफल होने वाले अभ्यर्थियों की शारीरिक दक्षता व स्वास्थ्य जांच करने के उपरांत नियुक्ति आदेश मिलने लगे हैँ। रेलवे के गु्रप डी में सफल होने वाले अभ्यर्थियों में सैकड़ों की संख्या में शिक्षाकर्मी भी हैं। जो शिक्षा के पेशे को छोड़कर नवीन भविष्य तलाशने रेलवे का रूख कर रहे हैँ। ऐसे शिक्षाकर्मी जो पहले आर्मी में रहे चुके हैं, उनके लिए गु्रप डी की नौकरी की राह काफी आसान साबित हो रही है। पूर्व सैनिकों के लिए निर्धारित मापदंडों में छूट दी गई है। लिहाजा जो भी अभ्यर्थी पूर्व सैनिक रह चुका है, गु्रप डी की नौकरी उनके लिए तय जैसा हो गया है। शिक्षाकर्मी की नौकरी को छोड़कर रेलवे कुली की नौकरी ज्वाइन करने वाले पूर्व सैनिक संजय हजारे का कहना है कि शिक्षाकर्मी की नौकरी में थोड़ी भी सामाजिक सुरक्षा नहीं है। रिटायर के बाद पेंशन तो मिलना ही नहीं है, अमूमन वर्तमान में संतोषजनक वेतन भी नहीं मिलता। कई-कई महीनों का वेतन पेंडिग रहता है और सरकार और प्रशासन में बैठे अधिकारी ध्यान नहीं देते। वर्ग-3 शिक्षाकर्मी को दस हजार रू से अधिक तनख्वाह नहीं मिलता, जबकि रेलवे के गु्रप डी कुली के वेतन की शुरूआत ही साढ़े 15 हजार रू से होता है। इसके अलावा रेलवे में प्रमोशन एवं कई तरह की बेनिफिट्स भी मिलेगा। कारगिल की लड़ाई लड़ चुके पूर्व सैनिक श्री हजारे ने 2006 में शिक्षाकर्मी कमी नौकरी बेरला ब्लाक के एक गांव में ज्वाइन की थी। किंतु अब उसका मोहभंग हो चुका है। इसी तरह 2003 में शिक्षाकर्मी नियुक्त हुए गजराज वर्मा भी गु्रप डी में स्थान बनाने में सफल हुए हैँ। दस साल की नौकरी के बावजूद दस हजार रू की मामूली वेतन हाथ में आने से आहत गजराज वर्मा शिक्षाकर्मी की नौकरी से मायुस हो चुके हैं। अब उसे नई राह चुनने का अवसर मिला है। ओमकृष्ण साहू, युगल किशोर, ललित परगनिहा जैसे शिक्षाकर्मियों में कई और भी नाम शामिल हैं, जो शिक्षक की नौकरी को छोड़कर रेलवे कुली बनने की राह पर चल पड़े हैँ। जिस देश में स्कूली शिक्षक का स्थान रेलवे के एक कुली के समान भी नहीं हैं, उन्हीं शिक्षकों के बदौलत उस राज्य का भविष्य भला कैसे गढ़ा जा सकेगा, सोचनीय प्रश्र है? शिक्षाकर्मियों की जमात उच्च शिक्षित एवं प्रतिभावान होने के बावजूद जैसे एक दंश झेलने विवश है। जबकि वहीं सामने मात्र मेट्रिक पढ़े नियमित शिक्षक अभी 35 हजार रू मासिक की वेतन प्राप्त कर रहे है -----------

No comments:

Post a Comment