Tuesday 16 April 2013

दक्षिणापथ 15- 30 april 2013

विकास की डगर, परिवर्तन की तैयारी -चुनावी यात्रा का दौर शुरू - दक्षिणापथ डेस्क परिवर्तन और विकास, दो अलग-अलग ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर राज्य के मतदाताओं को निर्णय करना है। कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा और भाजपा की विकास यात्रा, दोनों को आम चुनाव में सत्ता की यात्रा की शुरूआती तैयारी के तौर पर देखा जा रहा हैं। जहंा कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के लिए कमर कस लिया है, वहीं सत्तारूढ़ भाजपा अपनी उपलब्धियों को राज्य के मतदाताओं तक पहुंचाकर हैट्रिक के लिए तैयार है। राज्य निर्माण के बाद छत्तीसगढ़ प्रदेश मे सिर्फ दो दफा विधानसभा के आम चुनाव हुए हंै। पहली और दूसरी बार मतदाताओं ने भाजपा पर भरोसा जताया। सत्तारूढ़ भाजपा उस भरोसे को तीसरी बार भी कायम रखना चाहता हैं, तो विपक्षी कांग्रेस एंटी इनकंबेशिंग फैक्टर के अंडर करंट को असरदार बनाने में जुटी है। दोनों ही पार्टियों के अपने-अपने दावें हैं। अलबत्ता, नवंबर 2013 में होने वाले राज्य के तीसरे विधानसभा चुनाव के नतीजें ही उनके दावों की कसौटी बनेगी। छत्तीसगढ़़ के मतदाताओं में परिवर्तन की ललक तो है, पर विकल्प पर अत्यधिक भरोसा भी नहीं। यद्यपि, छत्तीसगढ़ का हर आम आदमी भाजपा के 9 सालों में प्रसन्न व खुशहाल हो गया हो, ऐसी बात नहीं है। पर इसके बावजूद छत्तीसगढ़ के रमन सरकार के पास बताने के लिए कई उपलब्धियां है। देश के प्रमुख भाजपा शासित राज्य गुजरात के उदाहरणों को छत्तीसगढ़ की भाजपा अपने लिए सुखद संकेत मान रही है। इसी तरह मध्यप्रदेश में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की स्थिति भी राजनीतिक हलकों में सालिड मानी जा रही है। इन सबके चलते मुख्यमंत्री डा रमन सिंह व उनकी पार्टी पर आगामी चुनाव में बेहतर परिणाम देने का दबाव स्वाभाविक रूप से बन गया है। इधर छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी भी आम चुनाव में आर-पार का दांव खेलने तैयार हैं। अभी कांग्रेस में सर्वाधिक ध्यान खींचने वाली बात उनकी एकजुटता है। राजनीतिक प्रेक्षक लंबे समय बाद प्रदेश कांग्रेस को एकजुट होकर चुनावी रणनीति तय करते देख रहे हैं। कांग्रेस का यह प्रदर्शन आम मतदाताओं का ध्यान खींचने में भी सफल होता दिख रहा है। दोनों ही पार्टियों ने यात्राओं के बहाने चुनावी यात्रा की शुरूआत कर दी है। छ: महीने बाद होने वाले चुनाव में तय होगा, कि छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ भाजपा की विकास के दावों में ज्यादा दम है, या फिर कांग्रेस पार्टी के परिवर्तन की सुखद बयार के वादे पर भरोसा? भाजपा अपनी उपलब्धि बताएगी, तो कांग्रेसी उनकी नाकामी बताकर सत्ता की यात्रा तय करना चाहती है। चुनावी शतरंज बिछ चुका है। सियासी नेताओं ने मोहरे बिठाना शुरू कर दिया हैं। अलग-अलग मीडिया सर्वेक्षण में भाजपा के लिए जहां बस्तर, दुर्ग व सरगुजा जिलों में अपनी सीट बचाए रखने की चुनौती है तो वहीं कांग्रेस अपने इन परंपरागत सीटों को वापस पाकर सत्तासीन होने को बेकरार है। एक ओर जहंा भाजपा घर-घर जाकर अपनी उपलब्धियां गिना रही है तो दूसरी ओर कांग्रेसी उन उपलब्धियों की पोल खोलने हर घर जा रही है। बीते 2008 के चुनाव में भाजपा को अपनी विकास यात्राओं में जो सफलता मिली है, वह विगत पांच सालों से सत्तारूढ़ रमन सरकार की अहम उपलब्धियां थी, पहले पंचवर्षीय कार्यकाल के दम पर डा रमन उक्त चुनाव में एक प्रमुख चुनावी फैक्टर बन कर उभरे थे। जिसका लाभ 2008 के आम चुनाव में मिली, और वे दुबारा सत्तासीन हुए। पर बीते पांच सालों में राजनैतिक व जमीनी हालात् काफी बदल चुके है। रमन के पिछले कार्यकाल के इतर इस दूसरे कार्यकाल में जनता रूष्ट नजर आ रही है। चुनाव में विकास व परिर्वतन जैसे मुद्दो के बजाए सामाजिक राजनीति हावी हो रही है। राज्य का हर सामाजिक वर्ग किसी न किसीकारणों से सरकार से नाराज है। आरक्षण में कटौती के चलते सतनाम नाराज है, तो लाठीचार्ज के दर्द को आदिवासी भुला नहीं पाए हैं। 27 प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर सर्व पिछड़े समाज ने सरकार के खिलाफ चरामा से रायपुर तक एक लंबी यात्रा निकाली। सामाजिक समीकरणों के इतर स्वयं सरकार के अंग माने जाने वाले सरकारी कर्मचारी भी असंतुष्ट दिख रहे है। पिछले चुनाव में गरीबों को चावल बांटकर पुन: सत्ता की डगर करने वाले रमन सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना पर खाद्य सुरक्षा अधिनियम का परिपालन भारी पड़ सकता है। चुनाव के ठीक पहले प्रदेश में 42 लाख नए राशन कार्ड बनाने है। किंतु नए राशन कार्ड बनाने में हितग्राहियों को बेतरह परेशानी उठानी पड़ रही है। राशन कार्ड संबंधी हितग्राहियों की यह परेशानी रमन सरकार के लिए बड़ी कठिनाई का सबब बन सकता है। नए प्रावधान के तहत आधे से अधिक एपीएल हितग्राहियों को राशन कार्ड से वंचित होना पड़ेगा। राशन कार्ड नहीं बनने से व्यापक जन आक्रोश पनप रहा है। रमन सिंह को उन्हीं के मुद्दे पर घेरने की कांग्रेसी राजनीति को बकायदा केंद्र से सपोर्ट मिल रहा है। इन हालातों में भाजपा के लिए मिशन 2013 की डगर लोहे के चने चबाने जैसा होगा। एकजुटता व बगावत, चुनाव की असली सिरत छोटा राज्य होने की वजह से छत्तीगढ़ में 10-12 सीटों के अंतर से सरकार बनता बिगड़ता है। 90 सीटों में से लगभग 35-35 सीटें कांग्रेस व भाजपा के परंपरागत हैं। शेष सीटों में जीत-हार का फैसला प्रत्याशियों के चेहरे व सरकार का परफार्मेंस का प्रभाव पड़ता है। मौजूदा वक्त में कांग्रेस की एकजुटता दिख रही है। टिकट वितरण तक यह एका बरकरार रही तो बहुत हद तक कांग्रेस अपने परिवर्तन की यात्रा में मुकम्मल हो जाएगी। इसी तरह भाजपा को अपने विधायकों व मंत्रियों के प्रदर्शन के लिहाज से करीब दो दर्जन चेहरे बदलने होंगे। पिछले चुनाव की तरह भाजपा में प्रत्याशियों का चेहरा बदलना इस बार इतना आसान नहीं। यदि टिकट से वंचित लोग बगावत पर उतर आए, तो राह और भी कठिन हो जाएगी। आगजनी के बाद उखाड़ रहे गड़े मुर्दे ! - ग्रामीणों के खिलाफ प्रशासन व कंपनी एक साथ दुर्ग। जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी मलपुरी खुर्द में आगजनी की घटना के बाद ग्रामीणों के उस आक्रोश के गड़े मुर्दे बाहर निकल रहे हैं, जिन पर सरकारी मशीनरी ने पहले गंभीरता नहीं दिखायी। कम्पनी ने कानूनों का उल्लंघन करते हुये जितनी अनिमितताएं की है, सही मायनों में घटना के लिए वही प्रमुख दोषी है। साथ ही यदि प्रशासन ने कंपनी की गल्तियों पर पर्दा डालने के बजाए नियमपूर्वक कार्य किया होता तो इतनी बड़ी घटना सामने नही आती। कंपनी ने कदम-दर-कदम सरकार को धोखा देने का काम किया है, तो दूसरी ओर प्रशासन कदम मिला कर कंपनी के साथ चलता रहा है। कंपनी ने सस्ती जमीन के लिए सीमेंट प्लांट की जगह ही बदल दी। पहले यह प्लांट सेमरिया व नंदनी खुंदनी में लगना था। किंतु जमीन की कीमत अधिक होने के कारण मलपुरी में शिफ्ट कर दिया गया। इसी तरह प्लांट लगाने के लिए मलपुरी में कोई जनसुनवाई नहीं की गई। राज्य सरकार और कंपनी के बीच हुए एमओयू में हस्ताक्षर भी सेमरिया में प्लांट लगाने के नाम पर हुई थी। पर्यावरण मंत्रालय से कंपनी ने जो स्वीकृति हासिल की थी, उसमें भी मलपुरी का कहीं नाम ही नहीं था। प्रदेश की कृषि जमीनों को कंपनी ने इतने बेखौफगी से हथियायी, जैसे उसे किसी नियम कानून की कोई परवाह ही नही हो। जहां जमीन सस्ती मिली, कंपनी ने वहीं अपनी मर्जी से प्लांट लगा लिया। हादसे के बाद नक्सली टच देकर पुलिस ने मामले को दूसरा मोड़ दे दिया। नक्सली वारदात के नाम पर पुलिस प्रशासन व सरकार ने अपनी नाकामी भली-भांति छिपा ली। जिस वीरेंद्र कुर्रे को नक्सली बताकर जेल भेज दिया गया, वह ग्रामीणों के आंदोलन का अगुवा था। हाल के कुछ बरसों में जनहित के जुड़े कई जनआंदोलनों का उन्होंने अगुवाई की थी। यदि वह नक्सली था, तो अब तक खुला कैसे घूम रहा था। स्थिति ऐसे है कि औद्योगिक माफियाओं के खिलाफ लड़ाई लडऩे वाले को नक्सली ठहरा दिया जा रहा है। जानकारों के मुताबिक वीरेंद्र कुर्रे जुझारू ट्रेड लीडर हैं। बीएसपी में काम करते हुए कई बार श्रमिकों के हितों में अधिकारियों से वह उलझा है। मलपुरी के पीडि़त ग्रामीणों की जब सारे जनप्रतिनिधि, राजनेता व आला अधिकारियों ने नहीं सुनी, तब वीरेंद्र कुर्रे ईमानदारी से ग्रामीणों के साथ खड़े हुए और ग्रामीणों के दिल में जगह बनायी। कृषि भूमि का औद्योगिक डायवर्सन ? सीमेन्ट-पॉवर प्लाण्ट स्थापित करने वाली कम्पनी ने औद्योगिक प्रयोजन दर्शाकर जमीन खरीदने के बजाय कृषि प्रयोजन दर्शाकर जमीन खरीदी। पंजीयन शुल्क कम पटाकर राजस्व की क्षति पहुंचाई। जबकि प्रशासन का काम था कंपनी के कथनी व करनी पर नजर रखना तथा गलत होने पर शासन को उसकी सूचना देना। राज्य में कृषि जोत अधिकतम सीमा अधिनियम के प्रावधान प्रभावशील हैं, जिसके अनुसार कृषि भूमि धारण करने की अधिकतम सीलिंग निर्धारित है जो, 18, 36 एवं 54 एकड़ है, इसका उल्लंघन करते हुये, कम्पनी से सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि खरीदा, रजिस्ट्रार ने बयनामा का पंजीयन किया, पटवारी तथा तहसीलदार ने नामांतरण किया, किसी ने भी अधिनियम का पालन नहीं किया। कृषि जोत अधिकतम सीमा अधिनियम के अंतर्गत एक व्यक्ति/परिवार/संस्था द्वारा 54 एकड़ से अधिक भूमि धारित नहीं किया जा सकता। तब तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी क्यूए खान ने 405 एकड़ कृषि भूमि का औद्योगिक डायवर्सन कैसे कर दिया? .छ.ग. भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा-172 के अंतर्गत शासन द्वारा अधिसूचित सक्षम अधिकारी ही, कृषि भूमि का अन्य प्रयोजन हेतु डायवर्सन कर सकता है। सक्षम अधिकारी के लिये शासन द्वारा भूमि की अधिकतम सीमा भी निर्धारित की जाती है, अनुविभागीय अधिकारी को कृषि भूमि का डायवर्सन औद्योगिक प्रयोजन हेतु करने का अधिकार ही नहीं था। उनके द्वारा किया गया डायवर्सन अवैधानिक है। यह बात तत्कालीन कलेक्टर रीना कंगाले की जांच में प्रमाणित भी हुआ है। इसके बावजूद राज्य शासन ने अवैध डायवर्सन को डेढ़ वर्ष तक रद्द क्यों नहीं किया? फर्जी जनसुनवाई में ली स्वीकृति जेके लक्ष्मी सीमेन्ट-पॉवर प्लाण्ट ने ग्राम सेमरिया में उद्योग स्थापित करने के लिये पर्यावरण की स्वीकृति प्रदान करने का आवेदन किया था, केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के लिये राज्य प्रदूषण निवारण मण्डल ने जनसुनवाई का आयोजन किया। जनसुनवाई प्रस्तावित निर्माण स्थल पर ही होना था किन्तु मण्डल ने 7 जनवरी 2008 को निर्माण स्थल से 20 किमी.दूर धमधा में सुनवाई किया। जानबूझकर इसका प्रचार-प्रसार भी नहीं किया गया और फर्जी जनसुनवाई के आधार पर पर्यावरण मंत्रालय ने ग्राम सेमरिया में सीमेन्ट-पॉवर प्लांट के निर्माण के लिये 13 मई 2009 को स्वीकृति प्रदान किया। 13 मई 2009 को पर्यावरण स्वीकृति प्राप्त करने के मात्र 20 दिन बाद ही 5 जून 2009 को जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी ने ग्राम सेमरिया के स्थान पर ग्राम मलपुरी खुर्द में सीमेन्ट-पॉवर प्लांट के निर्माण की बात कहते हुये पर्यावरण स्वीकृति को तदानुसार संशोधित करने का आवेदन किया, जिसे स्वीकार करते हुये, केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने दुबारा पर्यावरण जनसुनवाई आयोजित किये बिना ही 27 फरवरी 2010 को स्वीकृति को संशोधित कर दिया। जबकि केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के परिपत्र 22 जनवरी 2010 के अनुसार जनसुनवाई के बाद उद्योग का स्थान परिवर्तन करने की स्थिति मेें पुन: जनसुनवाई आयोजित किया जाना था। लेकिन केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने स्वयं इसका पालन नहीं किया और13 मई 2009 के पर्यावरण स्वीकृति को ग्राम मलपुरी के ग्रामीणों को अपना पक्ष रखने का अवसर दिये बिना ही, संशोधित कर दिया। कम्पनी ने उद्योग का स्थान परिवर्तित करने की सूचना केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को 5 जून 2009 को दिया था और राज्य शासन के साथ 28 जुलाई 2010 के एमओयू. में हस्ताक्षर किया है, जिसमें उद्योग स्थापित करने का स्थान ग्राम सेमरिया में दर्शाया गया है, जबकि पर्यावरण मंत्रालय से संशोधित पर्यावरण स्वीकृति 27 फरवरी 2010 को जारी की गई है, फिर स्थान परिवर्तन की बात राज्य शासन से क्यो छिपाई गई? उद्योग के निर्माण का स्थान ग्राम सेमरिया से मलपुरी में स्थानांतरित करने की अनुमति किस अधिकारी ने कब दी? राज्य शासन के निर्देशानुसार, कृषि भूमि का औद्योगिक डायवर्सन करने पर निर्णय लेने के लिये जिलास्तरीय साधिकार कमेटी का गठन किया गया है, जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी द्वारा, कृषि भूमि का औद्योगिक डायवर्सन करने के लिये जिला साधिकार कमेटी के समक्ष आवेदन ही प्रस्तुत नहीं किया गया और जिला साधिकार कमेटी की मंजूरी के बिना ही, तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी द्वारा डायवर्सन कर दिया गया। ग्राम सभा का अनुमोदन नहीं ग्राम मलपुरी खुर्द में सीमेन्ट-पॉवर प्लांट के निर्माण की अनुमति ग्राम पंचायत से भ्रष्ट तरीका अपनाकर प्राप्त किया गया। पंचायती राज अधिनियम के प्रावधान के अनुसार, ग्राम पंचायत द्वारा प्रदत्त अनापत्ति प्रमाण-पत्र का अनुमोदन संबंधित ग्राम सभा में किया जाना आवश्यक है, किन्तु दो साल में भी ग्राम सभा का अनुमोदन नहीं लिया गया है। जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी द्वारा भवन निर्माण की अनुज्ञा किसी भी सक्षम अधिकारी से नहीं ली गई है, वैध अनुज्ञा के बिना ही, कम्पनी द्वारा पिछले तीन वर्ष से प्लांट का अवैध निर्माण किया जा रहा है।18 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले निर्माण के लिये हाई राईज कमेटी से अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य है। सीमेन्ट प्लांट की उंचाई 18 मीटर से अधिक होने के बावजूद इसकी अनुमति हाई राईज कमेटी से नहीं ली गई है। इस प्रकार निर्माण अवैध है। जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी ने मंदिर श्री रामचन्द्र जी के नाम की भूमि, खसरा नं. 36 रकबा 2.69 हेक्टेयर जिनके सर्वराकार राम प्रकाश माखन दास वैष्णव वगैरह और व्यवस्थापक कलेक्टर है, पर अवैध कब्जा कर लिया है। जिसे आज तक बेदखल नहीं किया गया है। आम रास्ते पर कब्जा जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी द्वारा निस्तार की भूमि ग्राम मलपुरी, गिरहोला, रास्ता जिसका खसरा नं. 1 रकबा 1.08 हेक्टेयर है पर अवैध कब्जा किया गया है और इसी भूमि पर प्लांट के एक भाग का निर्माण कर लिया है। वह भूमि राजस्व रिकार्ड और निस्तार पत्रक में वर्तमान में भी रास्ता के रूप में ही दर्ज है। ग्रामीणों के व्यापक विरोध के बावजूद, पटवारी एवं तहसीलदार ने, छ.ग. भूराजस्व संहिता 1959 की धारा-131 से 134 के अंतर्गत बेदखल करने, दण्डित करने की कार्यवाही करने के बजाय एक परिवर्तित रास्ते का निर्माण करा दिया। रास्ता अवरूद्ध करना दण्डनीय अपराध है। मलपुरी के ग्रामीणों ने 11 फरवरी 2012 एवं 2 मार्च 2013 को थाना नन्दनी नगर में लिखित में शिकायतें दर्ज कराया है, जिस पर पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही नहीं किया गया। जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी द्वारा अपने माईनिंग लीज क्षेत्र में ग्राम सेमरिया से ग्राम नन्दनी खुन्दनी, मार्ग पर भी अवैध कब्जा किया गया है। कम्पनी द्वारा माईनिंग लीज क्षेत्र और प्लांट क्षेत्र के ग्राम नन्दनी खुन्दनी, पिटौरा, धिकुरिया, सेमरिया, मलपुरी और खासाडीह में अनेक आदिवासियों की भूमि पर अवैध कब्जा कर लिया है। कम्पनी द्वारा जल शुल्क पटाये बिना ही भूजल का अवैध रूप से उपयोग किया गया है। कम्पनी द्वारा ग्राम मलपुरी खुर्द के खसरा नं. 1, 2, 5, 6, 9, 18, 19, 25, 26, 27, 30, 35, 40 रकबा 1.53 हे. शासकीय निस्तार/घास/रास्ता की भूमि पर अवैध कब्जा किया गया है। इसी प्रकार ग्राम खासाडीह के खसरा नं. 56/1, 56/2, 56/3, 76/1, 76/8, 84, 108, 109, 458/2, 12/1, रकबा 12.53 पर भी अवैध कब्जा किया गया है। शासन-प्रशासन द्वारा शासकीय भूमि को कब्जा मुक्त कराने का कोई प्रयास नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय एवं कानूनी अड़चनों के कारण, शासकीय निस्तार/घास/रास्ते की भूमि को लीज पर आबंटित नहीं किया जा सकता। अत: जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी को लाभांवित करने के लिये, कम्पनी के अवैध कब्जे वाली भूमि को, जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र को औद्योगिक प्रयोजन हेतु आबंटित करने के लिये, अर्जित किया जा रहा है। न्यायालय नायब तहसीलदार धमधा के समक्ष यह प्रकरण रा.प्र.क्र. 1-अ-19 वर्ष 2011-12 के रूप में दर्ज है। छीनी जमीन, लगी बद्दुआ फेक्ट्री एक्ट 1948 के प्रावधानों के अनुसार सुरक्षा की दृष्टि से यह आवश्यक है कि फेक्ट्री के ड्राईंग-डिजाईन का अनुमोदन सक्षम अधिकारियों से कराया जाये। कम्पनी द्वारा इसका पालन नहीं किया गया है। कम्पनी द्वारा ग्राम मलपुरी में शासन द्वारा 9 भूमि हीनों को आबंटित 5.17 हेक्टेयर भूमि पर और ग्राम खासाडीह में 25 भूमिहीनों को आबंटित 10.37 हेक्टेयर आबंटित भूमि और श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर की 19.44 हेक्टेयर भूमि पर अवैध कब्जा किया गया है। चूंकि आबंटित भूमि तथा मंदिर की भूमि का क्रय-विक्रय नहीं किया जा सकता है, अत: जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी को लाभांवित करने के लिये शासन ने अनिवार्य भूअर्जन अधिनियम 1894 के अंतर्गत भूअर्जन करने की कार्यवाही शुरू कर दिया है। कम्पनी द्वारा माईनिंग क्षेत्र के ग्राम सेमरिया में लगभग 65 एकड़ शासकीय घास/चारागाह की भूमि पर अवैध कब्जा किया गया है। जे.के.लक्ष्मी सीमेंट कम्पनी को लाभांवित करने के लिये राज्य शासन ने कृषि जोत अधिकतम सीमा अधिनियम को संशोधित करके सीलिंग की सीमा को ही समाप्त कर दिया है। प्रबंधन के इशारे पर चल रही पुलिस छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी मलपुरी खुर्द में आगजनी के लिए गिरफ्तार ग्रामीणों को निर्दोष ठहराते हुए रिहा करने की मांग की है। मंच ने कहा कि जमीन की खरीदी बिक्री में हुये धोखाधड़ी और कम्पनी में स्थाई नौकरी की मांग को लेकर आक्रोशित ग्रामीणों के आंदोलन की आड़ में कम्पनी के वाहनों मशीनरी और उपकरणों में आग प्रबंधन के इशारे पर उन्हीं के लोगों द्वारा लगाई गई है। आगजनी में कम्प्यूटर में दर्ज सभी रिकार्ड भी नष्ट हो गये हैं या नष्ट करा दिया गया है। आशंका है कि कम्पनी में करोड़ों की हेरा-फेरी और घोटाला हुआ है, जिनमें प्रबंधन के जिम्मेदार लोग लिप्त हो सकते हैं, जिनके सबूतों को मिटाने के लिये ही सारे रिकार्ड जलाये गये हैं। पुलिस ने जिन ग्रामीणों को अभियुक्त बनाया है, उनमें से कुछ आगजनी की घटना के चश्मदीद गवाह भी है, जिन्हें प्रबंधन के निर्देश पर पुलिस ने गिरफ्तार किया है। ताकि वे आगजनी की घटना के लिये दोषी के खिलाफ न्यायालय में गवाही न दे सकें। शासन-प्रशासन पर उक्त आरोप लगाते हुये छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने आगाह किया है कि यदि निर्दोष ग्रामीणों को शीघ्र ही रिहा नहीं किया गया तो मलपुरी एवं आस-पास के अन्य गांव के ग्रामीण सहित मंच के कार्यकर्ता जबरदस्त प्रदर्शन करेंगें। मंच के केन्द्रीय प्रवक्ता राजकुमार गुप्त ने कहा कि जे.के.लक्ष्मी सीमेन्ट कम्पनी प्रबंधन ने प्लांट में स्थानीय बेरोजगारों को नौकरी देने की जिम्मेदारी से स्पष्ट रूप से इंकार करके ग्रामीणों के आक्रोश को बढ़ाने का कार्य किया है। प्लांट के निर्माण कार्य के लिये 800 श्रमिक अन्य प्रांत से लाये गये हैं। इसे कम्पनी प्रबंधन ने स्वयं स्वीकार किया है। आगजनी की घटना स्थल का सर्वे करने के बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह ने अपने बयान में स्वयं कहा है कि छत्तीसगढ़ के लोग शांतिप्रिय हैं और घटना में बाहरी लोगों का हाथ है। पुलिस ने प्लांट परिसर के अंदर ही रहने वाले 800 बाहरी लोगों के घरों की तत्काल तलाशी क्यों नहीं लिया? महिला मंच की प्रदेश अध्यक्ष रीति देशलहरा एवं किसान मंच के हेमू साहू पीडि़त ग्रामीणों के सतत संपर्क में हैं और उन्हें ढाढस बंधाने का कार्य कर रहे हैं, ग्रामीणों ने उन्हें घटना की सच्चाई से भी अवगत कराया है। बाहरी हाथ तो स्थानीय अंदर क्यों? -कांग्रेस ने उठाए सवाल जे.के. लक्ष्मी सीमेन्ट मामले में स्थानीय लोगो के हितो की उपेक्षा, प्रशासन की लापरवाही और जमीन दलालों को सरकारी संरक्षण को घटना के लिये जिम्मेदार ठहराते हुये प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल और कांग्रेस विधायक दल के नेता रविन्द्र चौबे ने मांग की है कि जब मुख्यमंत्री रमनसिंह स्वयं बयान दे चुके है कि इस घटना में बाहरी लोगो का हाथ है इसलिये गिरफ्तार सारे स्थानीय लोगो को तत्काल रिहा किया जायें। राज्य सरकार के मुख्यमंत्री के बयान के बाद एक भी स्थानीय व्यक्ति को गिरफ्तार रखने का पुलिस को कोई अधिकार नहीं है। जब एडीजी स्तर के अधिकारी को जांच सौपी गयी है तो गिरफ्तारियां छोटे पुलिस अधिकारी कैसे कर रहे है? किसके कहने से कर रहे है? रात को तीन-तीन बजे घरो से गांव वालों को मारते हुये घसीट कर ले जाया गया। गांव वाले भाग गये है। दुध मुंहे बच्चों वाली मातायें और नव युवतियां तक पुलिस के दुव्र्यवहार का षिकार हुई है। अत्याचार, प्रताडऩा और बदजुबानी में भाजपा सरकार की पुलिस ने जनरल डायर को भी पीछे छोड़ दिया है। नेताद्वय ने कहा कि जे.के. लक्ष्मी सीमेन्ट के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर चौकसे द्वारा यह कहा जाना कि दलालों के माध्यम से खरीदी गयी जमीन के मालिक रहे किसानों को नौकरी नहीं दी जायेगी। जेके लक्ष्मी सीमेन्ट के डायरेक्टर चौकसे का यह बयान इस बात का जीता-जागता प्रमाण है कि भदौरा की तरह और छत्तीसगढ़ में स्थापित हो रहे अन्य उद्योगों की तरह जे.के. लक्ष्मी सीमेन्ट के प्लांट के लिये भाजपा सरकार का राजनैतिक संरक्षण प्राप्त दलालों ने किसानों की जमीन औने-पौने दामों मे हड़पी। मलपुरी की घटना के बाद जेके लक्ष्मी सीमेन्ट कंपनी द्वारा लगातार भड़काऊ वाले बयान दिये जा रहे है। डायवर्सन घोटाला जेके लक्ष्मी सीमेंट की जमीन को डायवर्सन के मामले में जमकर लेन-देन और भारी गड़बडिय़ों का आरोप लगाते हुए कांग्रेस ने कहा है कि जेके लक्ष्मी सीमेंट को जमीन का डायवर्सन गैर कानूनी है। जे.के लक्ष्मी सीमेंट की जमीन के डायवर्सन के मामले मे हर सरकारी कानून तोड़ा गया है। जेके लक्ष्मी सीमेन्ट मामले में जमीनों की खरीद में सीलिंग एक्ट का उल्लंघन खुलेआम हुआ है। प्लांट के गलत निर्माण के लिये जिम्मेदार कंपनी के मालिको, डायरेक्टरो और अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिये। छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा कानून राशन कार्ड न बन जाए जी का जंजाल - तीन रंग के बनेंगे कार्ड रायपुर/ दक्षिणापथ छत्तीसगढ़ सरकार अपनी जिस सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पूरे देश में रोल मॉडल होने का दंभ भर रही है, कहीं ऐसा न हो कि आगामी चुनाव में वही पीडीएस सरकार पर भारी पड़ जाए। क्योंकि वर्तमान जमीनी हालात में लोगों को कार्ड बनवाने के लिए कई तरह के पापड़ बेलने पड़ रहे हैं। विभाग द्वारा पिछले वर्ष कार्ड सत्यापन के नाम पर नया कार्ड बनाने और स्मार्ट कार्ड जारी करने को लेकर हितग्राही साल भर से परेशान हैं।... और अब खाद्य सुरक्षा कानून की रोशनी में राशन कार्ड के लिए सरकार ने नया फंडा तय कर दिया है, जिससे हितग्राहियों की परेशानी और भी बढ़ गई है। लिहाजा हितग्राहियों में नाराजगी बढ़ी हुई है। कार्ड बनाने के लिए तय किये गए नए मापदंड से एपीएल सहित ऐसे बहुसंख्य परिवार अलहदा रह जाएंगे, जो सही मायनों में राशन कार्ड के लिए पात्र हैं और जिन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। लेट-लतीफी और सरकार द्वारा निर्धारित क्राईटेरिया के चलते कार्ड से वंचित तबकों में सरकार के प्रति गुस्सा फूटना तय है। चुनाव के ठीक पहले विरोधी दल सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में राशन कार्ड के मसले का असरदार ढंग से इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि दुष्प्रचार की हवा बह पड़ी तो सरकार को लेने के देने पड़ जाएंगे। ज्ञातव्य है, छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा कानून के अंतर्गत जारी किए जाने वाले नए राशन कार्ड तीन रंग के होंगे। अंत्योदय परिवारों के लिए गुलाबी, प्राथमिकता वाले परिवारों के लिए नीला एवं सामान्य परिवारों को भूरे रंग का राशन कार्ड जारी किया जाएगा। नए राशनकार्ड बनाने के लिए नगरीय क्षेत्रों में वार्ड तथा ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों में आवेदन लिए जा रहे हैं। आवेदन पत्र 30 अप्रैल तक लिए जाएंगे। विभागीय सूत्रों के मुताबिक नए राशन कार्ड बनाने के लिए सभी जिलों में दल गठित कर शिविर लगाए जा रहे है। नगरीय संस्थाओं के हर वार्ड एवं ग्रामीण क्षेत्रों में सभी ग्राम पंचायतों में आवेदन लिए जा रहे हैं। अंत्योदय परिवारों को गुलाबी राशन कार्ड अंत्योदय परिवारों को गुलाबी रंग का राशन कार्ड जारी किया जाएगा। इस समूह में बैगा, पहाड़ी कोरबा, बिरहोर, कमार, अबुझमाडिय़ा जनजाति के समस्त परिवार। परिवार का मुखिया जो लाइलाज बिमारी जैसे कैंसर, एड्स, कुष्ठ रोग, सिकलसेल एनीमिया और टीबी से पीडित हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में इंदिरा आवास सर्वे सूची में या शहरी क्षेत्रों में शासकीय योजनाओं के आवासहीन के रूप में दर्ज परिवार। इसके साथ ही परिवार का मुखिया यदि नि:शक्त है, मुखिया की आयु 60 वर्ष या उससे अधिक तथा उसके पास आजिविका के साधन नहीं हैं, विमुक्त बंधुवा मजदूर ऐसे परिवार जिसकी मुखिया विधवा या एकांकी महिला है शामिल किया गया है। नीला व भूरा राशन कार्ड प्राथमिकता वाले समूह में भूमिहीन मजदूर, सीमांत 2.5 एकड तक के भू-स्वामी अथवा लघु कृषक परिवार (पांच एकड़ के भू-स्वामी परिवार), असंगठित कर्मकार समाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008 के रूप में पंजीकृत अथवा सन्निर्माण कर्मकार अधिनियम 1996 के तहत पंजीकृत श्रमिक होना चाहिए। इस समूह को नीला रंग का राशनकार्ड जारी किया जाएगा। सामान्य परिवारों को भूरे रंग का राशन कार्ड जारी किया जाएगा। सामान्य परिवार के लिए आवश्यक है कि ऐसे परिवार का मुखिया या परिवार का कोई सदस्य आयकरदाता न हो, ऐसे परिवार जिनके पास गैर अनुसूचित क्षेत्र में 4 हेक्टेयर से अधिक सिंचित भूमि या आठ हेक्टेयर से अधिक असिंचत भूमि न हो। ऐसे समस्त परिवार जो नगरीय क्षेत्रों में ऐसा पक्का मकान नहीं है जो एक हजार वर्ग फ ीट से अधिक क्षेत्रफल का हो। साथ ही दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी मानदेयी तथा चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को छोड़कर केन्द्र एवं राज्य सरकार के विभागों तथा सार्वजनिक उपक्रमों निगम मंडलों व स्वशासी संस्थाओं तथा स्थानीय निकायों में स्थायी अथवा संविदा कर्मचारी न हो। महिला मुखिया के नाम से बनेंगे कार्ड नए राशन कार्ड परिवार में 18 वर्ष या उससे अधिक आयु की महिला मुखिया के नाम से जारी किए जाएंगे। परिवार में महिला सदस्य नहीं होने या 18 वर्ष की कम आयु के महिला सदस्य होने पर पुरूष मुखिया द्वारा आवेदन पत्र भरा जाएगा। राशन कार्ड शिविर में आवेदकों को भरे हुए आवेदन पत्र, आवश्यक दस्तावेज और वर्तमान में यदि कोई राशनकार्ड जारी हुआ है तो उसे लेकर दल के समक्ष उपस्थित होना होगा। राशन कार्ड हेतु परिवार का अर्थ गृहस्थ है जिसमें पति पत्नि एवं अनके अविवाहित बच्चे (वयस्कों सहित) तथा जिनका घर एवं रसोई घर एक है। ०००००

1 comment:

  1. पवन भैया नमस्ते
    राशन कार्ड महिला मुखिया के नाम से बनना है पर आप ये बताइए की एक घर में एक ही राशन कार्ड बनना चाहिए लेकिन विधायक महोदय ये घोषणा किये है की सभी शादी शुदा महिला के नाम पर कार्ड बनेगा तो इसमें एक घर में एक से लेकर लेकर पांच कार्ड तक बन रहे है ये कहा तक सही है

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