Wednesday 17 October 2012

1500 रूपए में 10 समोसे!

1500 रूपए में 10 समोसे!

 तथाकथित आदर्श ग्राम पंचायत करसा घुघवा का कच्चा चिट्ठा

पाटन। जिले में एक ऐसी ग्राम पंचायत भी है, जो खुद ही आदर्श तो बन बैठी है, लेकिन यहां होने वाली बैठकों के लिए चाय और नाश्ता भिलाई-3 और रायपुर जैसी दूर-दराज की जगहों से मंगवाया जाता है। 2500 की आबादी वाली इस ग्राम पंचायत में वैसे तो महिला सरपंच है, लेकिन पूरा कामकाज उनके पति, सांसद समर्थक व भाजपा के दबंग नेता कर रहे हैं। हालात यह है कि जिस ग्राम पंचायत में मुख्यमंत्री और सांसद के कदम तक नहीं पड़े, वहां करीब सवा लाख रूपए का खर्च उनके आगमन और स्वागत सत्कार में दर्शाया गया है।
पाटन विकासखंड की ग्राम पंचायत करसा घुघवा दुर्ग जिले की संभवत: ऐसी इकलौती ग्राम पंचायत होगी, जहां मौजूदा सरपंच के दूसरे कार्यकाल में अजा-अजजा वर्ग के लिए किसी तरह की योजना का क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। पंचायत की सरपंच किरण तिवारी हैं। ग्रामवासियों का आरोप है कि सरपंच ने जानबूझकर आरक्षित वर्ग की योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं करवाया। सरपंच पर पहले भी कत्र्तव्य निर्वहन में लापरवाही, शासकीय योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं करने और पंचायत के कार्यों में पति के हस्तक्षेप के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारियां सामने आई हैं, वह बतातीं हैं कि सरपंच का परिवार किस तरह पूरी पंचायत को दुधारू गाय की तरह दुह रहा है और पंचों के साथ ही ग्रामीणों के विरोध के बावजूद सीईओ पाटन चुप्पी साधे बैठे हैं। उल्लेखनीय है कि किसी भी पंचायत को आदर्श घोषित करने की अपनी शासकीय प्रक्रिया होती है, लेकिन करसा घुघवा ग्राम पंचायत ने शासकीय मापदंडों को धत्ता बताते हुए खुद ही आदर्श ग्राम पंचायत का बोर्ड टंगवा दिया है।
बेहद चौंकाने वाली बात है कि भवन आदि निर्माण में उपयोग की जाने वाली सेंट्रिग लकड़ी भी यही पंचायत खरीद रही है, जबकि पूरे देश में ग्राम पंचायत से लेकर जिला स्तर तक होने वाले कार्य ठेके पर दिए जाते हैं। सवाल यह है कि आखिर ग्राम पंचायत करसा घुघवा को 42 हजार 800 रूपए की सेंट्रिंग लकड़ी खरीदने की जरूरत क्यों पड़ी? और यदि खरीदी भी गई तो उसका क्या और किस कदर उपयोग हुआ? यह खरीदी सरपंच ने अपने देवर से इस साल 15 मई को की और इसका भुगतान भी तत्काल कर दिया गया। कमोबेश यही स्थिति ग्राम पंचायत की होने वाली बैठकों में आने वाले चाय-नाश्ते को लेकर भी है। 9 अप्रैल 12 को जलाराम स्वीट्स भिलाई-3 से 350 रूपए का चाय-नाश्ता मंगवाया गया। जबकि भिलाई-3, करसा घुघवा से करीब 12 किमी की दूरी पर स्थित है। इसी तरह 25 मई को न्यू कलकत्ता स्वीट्स, महादेव रोड़ अश्वनी नगर रायपुर से 815 रूपए का दोसा, इटली आदि मंगवाए गए। ग्राम पंचायत से रायपुर की दूरी करीब 28 किमी पड़ती है। वहीं सेलूद के बजरंग चौंक स्थित यादव स्वीट्स से भी 27 अप्रैल को 1500 रूपए के 10 समोसा, 200 रूपए की 40 चाय और 27 सितम्बर 2011 को 200 रूपए में 10 समोसा का व्यय दर्शाया गया है। सेलूद की दूरी ग्राम पंचायत से करीब 13 किमी है। सवाल यह उठता है कि क्या गांव में चाय-नाश्ते तक की व्यवस्था नहीं थी? सूत्रों की मानें तो पंचायत की राशि का सरपंच और उसके पति ने जमकर दुरूपयोग किया। इसका एक और उदाहरण भी है कि ग्राम सभा में बिना अनुमोदन के विज्ञापन प्रकाशित करवाए गए। उपसरंपच ने बाकायदा पंजी बुक में रूपयों के इस दुरूपयोग का विरोध किया है।
जानकारी के मुताबिक, ग्राम पंचायत ने दीनदयाल उपाध्याय प्रतिमा स्थापना के नाम पर मुख्यमंत्री अनुदान कोष से 50 हजार रूपए अप्रैल महीने में आहरित किए, लेकिन पांच महीनों के बाद भी प्रतिमा का कहीं कोई अता-पता नहीं है। आहरित राशि का क्या हुआ, इस बारे में भी बताने वाला कोई नहीं है। यदि बात यहीं तक होती तब भी ठीक था, लेकिन ग्राम पंचायत में चल रहे भाई-भतीजावाद को लेकर भी काफी उंगलियां उठ रही है। बताया जाता है कि मध्यान्ह भोजन योजना के तहत सामग्री उपलब्ध कराने का ठेका भी सरपंच (या उनके पति) ने अपने एक रिश्तेदार को दिया हुआ है। यह रिश्तेदार योजना के लिए लकड़ी से लेकर सब्जी-भाजी तक की सप्लाई करता है और हर महीने उसे पंचायत से नगद भुगतान किया जा रहा है। शासन के नियमानुसार सरपंच आवश्यक कार्यों के लिए 2 हजार रूपए तक की राशि अपने पास रख सकतीं हैं, किन्तु पिछले करीब डेढ़ सालों से सरपंच के पास पंचायत के लाखों रूपए रखे हुए हैं। ग्राम पंचायत  का निजी सम्पत्ति की तरह उपयोग करने, फर्जी प्रस्ताव बनाकर धन का आहरण करने, रिश्तेदारों को बिना रसीद के भुगतान करने जैसे दर्जनों बेहद गम्भीर आरोप सरपंच पर लग चुके हैं। बावजूद इसके यदि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है तो इससे स्पष्ट रूप से जाहिर होता है कि कहीं न कहीं उच्च पदों पर बैठे लोग सरपंच और उसके परिवार को प्रश्रय दे रहे हैं। मजे की बात तो यह है कि जो ग्राम पंचायत स्वयं को आदर्श घोषित कर चुकी है, उसका पंचायत भवन कई-कई महीनों तक खुलता ही नहीं है।
सीईओ पाटन के पास शिकायतों कर-करके थक चुके ग्रामवासियों ने विगत 31 अगस्त को कलेक्टर से मुलाकात कर सरपंच की कारगुजारियों की लिखित शिकायत की थी। शिकायत के बाद तत्कालीन कलेक्टर ने इस पूरे मामले की जांच का आदेश उपसंचालक पंचायत एवं समाज कल्याण को दिया था। लेकिन जांच हुई भी या नहीं, इसकी जानकारी न शिकायतकत्र्ता को मिली और न ही ग्रामवासियों को दी गई। सूत्रों के मुताबिक, जांच की पूरी प्रक्रिया को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
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साजा से लाभ की प्रत्याशा में लाभचंद

5 हजार का गड्ढा पाटने लगा रहे जुगत

दक्षिणापथ डेस्क
साजा। पिछले विधानसभा चुनाव में साजा से भाजपा प्रत्याशी रहे लाभचंद बाफना 5 हजार मतों का गड्ढा पाटने की जुगत लगा रहे हैं। पिछले चुनाव में जिस फैक्टर का असर साजा में दिखा था और जिसकी वजह से कांग्रेस प्रत्याशी रविन्द्र चौबे जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे, बाफना उस फैक्टर को अपने पक्ष में करने की शिद्दत से कोशिश कर रहे हैं।
पिछले चुनाव से ठीक पहले हुए परिसीमन ने चौबे परिवार को उसके मुख्य वोट बैंक से महरूम कर दिया था। शायद यही वजह रही कि 25 हजार के अंतर से जीतने वाले चौबे 5 हजार की जीत पर सिमटकर रह गए। परिसीमन के बाद धमधा का एक हिस्सा साजा विधानसभा से जुड़ गया और अब यह क्षेत्र साजा-धमधा विधानसभा सीट के नाम पर पहचाना जाता है। राज्य निर्माण के बाद छत्तीसगढ़ ने यद्यपि बुनियादी विकास के कई सोपान तय किए  हो, पर बदलाव के उस खुशनुमा बयार का असर साजा क्षेत्र में कम ही दिखता है। सालों-साल चौबे परिवार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते आया, यहंा तक अविभाजित मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार में भी इन्हें बड़ी भूमिका मिलती रही, पर राजधानी से कोसों दूर साजा क्षेत्र के बाशिंदों को इसका लाभ नहीं मिला। बुनियादी विकास की अलख से अलहदा क्षेत्रीय मतदाताओं में वंशवादी राजनैतिक तिलस्म अब कोई पहेली नहीं रही है, बीते चुनाव में इसके इशारे मिल चुके हैँ। पर सही मायनों में कसौटी का आंकलन 2013 के चुनाव में ही होगा।
गौरतलब है कि साजा-धमधा विधानसभा क्षेत्र लोधी व साहू बाहुल्य क्षेत्र है। चौबे परिवार का राजनैतिक वजूद साहू एवं लोधी समाजों के व्यतिक्रम पर टिका है। 2008 के पहले तक कांग्रेस के खिलाफ साहू अथवा लोधी समाज से प्रत्याशी उतारा जाता रहा। विरोधी दल के इसी निर्णय ने चौबे परिवार को इस सीट से अजेय बना दिया था। जबकि, हकीकत यह है कि साहू एवं लोधी समाज ने राजनैतिक सतह पर एक-दूसरे को कभी स्वीकार नहीं किया। 2003 के चुनाव में पूर्व सांसद ताराचंद साहू ने अपने पुत्र दीपक साहू को भाजपा प्रत्याशी तो बना दिया, पर पर्दे के पीछे छिपी इस इबारत को समझ नहीं सके, लिहाजा दीपक साहू एकतरफा चुनाव हार गए।
पिछले चुनाव में उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन कर लाभचंद बाफना ने कांग्रेस प्रत्याशी रविंद चौबे को भी चौंकाया। बाफना के लिए थानखम्हरिया से 2800 मतों से पिछडऩा एक बड़ा पेंच बना। उस समय पूर्व सांसद ताराचंद साहू के कट्टर समर्थक आनंद सिंघानिया थान खम्हरिया नगर पंचायत के अध्यक्ष थे। राजनैतिक प्रेक्षक सीधे तौर पर उक्त मतों को भाजपा से तोड़ा हुआ मानते हैँ। अगर ताराचंद साहू के जरिये भाजपा वोटों में बिखराव नहीं होता, तो 2008 चुनाव का परिणाम कुछ और होता।  2008 का चुनाव हारने के बाद भाजपा प्रत्याशी लाभचंद बाफना लगातार इस क्षेत्र में सक्रिय हैँ। विलोपन के बाद धमधा-साजा मेें जोड़े गए क्षेत्र में लाभचंद बाफना की जमीनी पकड़ है। वहीं, गैर पिछड़ा वर्ग से बाफना का प्रत्याशी होने का सियासी समीकरण चौबे परिवार के वर्चस्व को बेशक कड़ी चुनौती देगा। बीते चुनाव में इसकी बानगी दिख भी चुकी है।
साजा-धमधा विस क्षेत्र के मौजूदा सियासी संरचना को देखें तो लाभचंद बाफना बदलाव के एक उम्दा प्रतीक के तौर पर उभरकर आते हैँ। इसके बावजूद भी 2013 के चुनाव में साजा से बाफना को भाजपा प्रत्याशी कहना जल्दबाजी होगी। क्योंकि प्रत्याशियों में परिवर्तन भारतीय जनता पार्टी की खास फितरत रही है। अक्सर वह पराजित प्रत्याशी को रिपीट नहीं करती। बाफना के अलावा भाजपा अन्य विकल्पों पर भी ध्यान देगी, यह तय है। इनमें एक विकल्प तो खैरागढ़ के विधायक और लोधी समाज के नेता कोमल जंघेल ही है। साजा क्योंकि लोधी बाहुल्य इलाका है, इसलिए भाजपा के कत्र्ता-धत्र्ता कोमल जंघेल के नाम पर गम्भीरता से विचार कर रहे हैं। वैसे भी साजा का किला फतह करने में अब तक नाकाम रही भाजपा के लिए जंघेल दमदार उम्मीदवार हो सकते हैं, बशर्तें लोधी समाज एकजुट हो। 

जब टेक ने लगाया टेका

कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान हुए जनसभा में धमधा क्षेत्र के युकां नेता टेंकसिंह चंदेल  तब अचानक सूर्खियों में आ गए थे, जब उन्होंने राहुल गांधी के समक्ष रविंद्र चौबे पर कई गंभीर आरोप जड़े। जोगी गुट से जुड़े टेकसिंह चंदेल ने तमाम आला नेताओं के समक्ष रविंद्र चौबे पर कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, प्रताडऩा एवं दूषित राजनीतिक हथकंडा अपनाने का सीधा आरोप लगाकर प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को सकते में डाल दिया। अजीत एवं अमित जोगी से जुड़े एवं लोधी समाज से वास्ता रखने वाले टेंकसिंह चंदेल भी साजा-धमधा विस क्षेत्र में एक मुखर युवा नेता की पहचान बना चुके हैँ। उल्लेखनीय है कि साजा क्षेत्र में कांग्रेसी धुरंधर अजीत जोगी की अच्छी पैठ है। जोगी एवं चौबे परिवार की राजनीतिक टशन सर्वविदित है।

जीवन वर्मा बने चौबे के पिट्ठू


जिला पंचायत दुर्ग के अध्यक्ष जीवनलाल वर्मा वैसे तो तीन जिलों (अविभाजित दुर्ग) के अध्यक्ष हैं, लेकिन उनका कामकाज प्रमुख रूप से साजा विधानसभा क्षेत्र तक ही सिमटकर रह गया है। साजा विधायक रविन्द्र चौबे का पिट्ठू बनकर काम कर रहे वर्मा, वास्तव में विधायक से ज्यादा पॉवर रखते हैं, लेकिन अपने आका की हाजिरी बजाने में वे इतने मशगूल हैं कि बाकी सब कुछ भूल बैठे हैं। दरअसल, नेता प्रतिपक्ष के प्रति इस वफादारी की प्रमुख वजह सांसद का टिकट भी है। जानकारों की मानें तो श्री चौबे की ड्योढ़ी पर बैठकर चौंकीदारी करने वाले वर्मा दुर्ग से सांसद बनने का ख्वाब पाले बैठे हैं। यही वजह है कि पिछले कुछ अरसे से उन्हें साजा-धमधा क्षेत्र के अलावा और कोई इलाका नजर नहीं आ रहा है। बेमेतरा की कलेक्टर बनने से पहले श्रुति सिंह जिला पंचायत दुर्ग की सीईओ रहीं हैं और इस दौरान जीवनलाल वर्मा और श्रुति सिंह के बीच अच्छी पटरी बैठती रही। साजा क्योंकि बेमेतरा जिले का अंश है, वहीं विधायक एवं नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे का प्रभावशील जिला भी है। शायद यही वजह है कि इस इलाके में उनका ध्यान ज्यादा है।

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