छत्तीसगढ़ की साख को लगाया बट्टा
दक्षिणापथ डेस्कइंजीनियर बनाने की फैक्ट्री बने नामचीन कालेज
दुर्ग। बेहतर शैक्षणिक वातावरण के लिए विख्यात छत्तीसगढ़ की साख को निजी इंजीनियरिंग कालेजों के कुछ पूंजीपतियों ने जोर का झटका दिया है। प्रदेश के मुखिया से लेकर आलाधिकारी भी स्वीकार रहे हैं कि कालेज संचालकों की भर्राशाही, मनमानी, नियम-कायदों को दरकिनार करने, लेन-देन, कोर्ट-कचहरी के चक्कर और सीबीआई की दबिश जैसे मामलों ने राज्य के शैक्षणिक वातावरण को बुरी तरह प्रदूषित किया। शायद यही वजह है कि कुल 17 हजार सीटों वाले छत्तीसगढ़ राज्य में इस सत्र में 7 हजार सीटें खाली रह गईं। जबकि इससे पूर्व ऐसा कभी नहीं हुआ। मैनेजमेंट कोटे के नाम पर इन नामी गिरामी कालेजों ने जो खेल खेला उसी का नतीजा है कि छोटे और मंझोले कालेजों पर बंदी की नौबत आ गई। पिछले साल जहां 2 कालेज बंद हो गए, वहीं इस साल 4 कालेजों के अस्तित्व संकट में हैं। जाहिर है कि कालेजों के बंद होने का पूरा फायदा बड़े कालेजों को होगा।उद्योग और किराने की दुकान चलाने वाले लोग जब शिक्षा के ठेकेदार बन जाएं तो छात्रों के भविष्य का भगवान ही मालिक होता है। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद अचानक कुछ उद्योगपतियों ने शिक्षा की ठेकेदारी शुरू की और यहीं से एक बड़े खेल की शुरूआत भी हो गई। इस खेल में चंद रूपयों के लालच में अफसर से लेकर राजनेता तक मोहरे बनते रहे और शिक्षा के ठेकेदारों की दुकानदारी ऐसी चली कि वे प्रदेश का मुखिया बनाने का दम्भ भरने लगे। इस पूरे खेल का भंडाफोड़ कुछ समय पहले सीबीआई ने दुर्ग जिले के एक नामी गिरामी होटल में रूके कुछ अधिकारियों की धरपकड़ के साथ किया। उसी दौरान बहुत सी बातों के साथ यह भी सामने आया कि कालेजों की मान्यता से लेकर संबद्धता और सीटों के कोटे को लेकर किस तरह अफसरों के मुंह नोटों से बंद किए जाते हैं। इसी एक घटना से यह भी तथ्य सामने आया कि छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था के साथ कुछ कालेज संचालक कितनी बेरहमी से बलात्कार कर रहे हैं। इसका नतीजा भी सामने हैं। यहां के कालेजों से इंजीनियर बनकर निकलने वालों को दीगर राज्यों या बड़े औद्योगिक घरानों में जगह नहीं मिल पा रही है। इसके अभाव में उन्हें मनरेगा जैसी योजनाओं में काम करना पड़ रहा है।
वैसे तो इंजीनियरिंग कालेज प्रारम्भ करने की लम्बी प्रक्रिया होती है, लेकिन इंजीनियर बनाने की फैक्ट्री खोलकर बैठे शिक्षा के ठेकेदारों ने इस पूरी प्रक्रिया को रूपयों के बल पर इतना संक्षिप्त कर दिया कि आगे चलकर उन्हें अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, नई दिल्ली (एआईसीटीई) के साथ ही तकनीकी शिक्षा संचालनालय रायपुर और स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय तक की भी परवाह नहीं रही। इसका ताजा उदाहरण तो रूंगटा कालेज में की गई 500 छात्रों की भर्ती ही है, जिसके लिए अनुमति लेना भी जरूरी नहीं समझा गया। अब इन 500 छात्रों का भविष्य अधर में लटका हुआ है और इन छात्रों से भर्ती से नाम पर करोड़ों की कमाई करने वाले कालेज संचालकों के सिर पर जूं तक नहीं रेंग रही।
ऐसे लग रहा है चूना...
एक सोसासटी चला रही कई कालेज : गौरतलब है कि किसी भी कालेज संचालक को कालेज के नाम पर मान्यता नहीं मिलती। इसके लिए सोसायटी बनानी पड़ती है। छत्तीसगढ़ में तकनीकी शिक्षा के ठेकेदार बन बैठे रूंगटा ग्रुप ने जीडीआर एजुकेशन सोसायटी तो बनाई लेकिन इस सोसायटी की आड़ में कई अन्य कालेजों का संचालन किया जा रहा है। जबकि नियमानुसार एक सोसायटी एक ही कालेज चला सकती है। जानकार बताते हैं कि रूंगटा प्रबंधन एक ही नाम का उपयोग कर न केवल लोगों बल्कि सरकार को भी दिग्भ्रमित कर रहा हैं। सवाल यह है कि एक ही सोसायटी का उल्लेख करने के बाद क्या सभी कालेजों की इन्कमटैक्स बैलेंसशीट भी जमा की जा रही है? सूत्र बताते हैं कि ऐसा नहीं हो रहा है। कमोबेश यही स्थिति भारती इंजीनियरिंग कालेज को लेकर भी है। यह कालेज श्रीजुग महादेव के नाम पर सोसायटी चला रही है।उसने एक ओर रविशंकर विवि से मान्यता ले रखी है तो दूसरी तरफ स्वामी विवेकानंद तकनीकी विवि से भी उसे मान्यता मिली हुई है। यह सवाल यहां भी कायम है कि एक ही सोसायटी कई कालेजों से मान्यता कैसे ले सकती है? जानकारों के मुताबिक, यहां भी इन्कमटैक्स में एक ही बैलेंस शीट दिखाई जा रही है, इससे शासन को भी करोड़ों रूपयों के राजस्व का नुकसान हो रहा है।
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