Tuesday 6 November 2012

दक्षिणापथ 1-15 nov 2012

छग कांग्रेस को चाहिए मोतीलाल वोरा जैसे खेवनहार
-नहीं तो भगवान ही मालिक!

दक्षिणापथ डेस्क
कांग्रेस को एकजुट बनाने की मंशा से राज्य भर में घूम-घूमकर सम्मेलन कर रहे आला नेता सार्वजनिक मंचों में भी जिस तरह एक-दूसरे पर आंखें तरेर रहे हैं, वह मौजुदा सियासी लाईन की ज्वलंत तस्वीर है। दरअसल गुटीय राजनीति कांग्रेस की पुरातन परंपरा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी उस परंपरा के संवाहक भर हैं। प्रदेश कांग्रेस के नेताओं से लेकर जमीनी कार्यकर्ताओं तक, सभी इस तथ्य से अवगत है कि पिछले कई सालों से अजीत जोगी पार्टी के कमोबेश सभी कार्यक्रमों में खुलेआम शक्ति प्रदर्शन करते आ रहे हैँ। पार्टी के कार्यक्रमों के बीच में अजीत जोगी का अपने लाग-लश्कर के साथ अवतरण हर बार एक ही तरह से होता है। भाषण समाप्त कर उनके  लौटने के साथ उनके समर्थक भी लौट जाते हैं। जोगी तुफान की तरह आते हैं और उनके गुजरने के बाद कार्यक्रम स्थल पर तुफान के  बाद की अजीब सी खामोशी का अहसास भी होता है।  जोगी की राजनैतिक कार्यशैली देखकर महसूस होता है कि शायद कांग्रेस पार्टी में ऊंचे कद का नेता बने रहने के लिए इस तरह के सतही हथकंडे जरूरी होंगे।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कतिपय बड़े नेताओं से शुरू होने वाली गुटबाजी  का असर जिले एवं ब्लाक संगठन तक देखा जा सकता है। एक ही शहर में कांग्रेस सदैव कई गुटों में विभाजित रहा है। इसके बावजूद आज भी मोतीलाल वोरा जैसे कर्मठ नेताओं का उदाहरण पार्टी में मौजूद है, जो पार्टीगत गुटबंदी में कभी नहीं उलझे। पर अफसोस नई पीढ़ी के युवक कांग्रेसी पार्टी के अपने वरिष्ठ नेताओं से कुछ सीखने के बजाए आसानी से गुटीय राजनीति में फंसकर रह जाते हैँ।
 दुर्ग शहर से दिल्ली तक का सफर तय करने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा एक ऐसे स्वअनुशासित व सधे हुए नेता है, जो पार्टी के बाहर और भीतर सार्वजनिक रूप से कभी बखेड़ा खड़े नहीं करते। यही कारण है कि श्री वोरा के भावनाओं का ख्याल कांग्रेसी तो रखते ही है, अपितु भारतीय जनता पार्टी जैसे प्रमुख विपक्षी दल के नेता भी उनकी गरिमा का हनन नहीं करते। जब श्री वोरा के पैतृक निवास के एक छोटे से हिस्से को अतिक्रमण करार देकर रायपुर नगर निगम के अधिकारी-कर्मचारी तोड़ देते हैं, और उस पर श्री वोरा जैसे वरिष्ठ नेता जज्बाती पीड़ा बयां करते हैं, तो एक-एक कांग्रेसी उसका अहसास करते हैँ।
कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र के विश्वसनीय एवं स्व.राजीव गांधी के निकट सहयोगी रहे कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता और अविभाजित मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा की छबि तब भी निर्विवाद है  जब घपलों, घोटालों और भ्रष्टाचार से कांग्रेस की साख बुरी तरह से प्रभावित हुई है और मनमोहन की अर्थशास्त्री और उदारवादी छवि का कांग्रेस को लाभ होने के बजाए नुकसान ज्यादा उठाना पड़ रहा है। इस वक्त जब प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं में भी उथल-पुथल मचा हुआ है, तब भी मोतीलाल वोरा उन सब घटनाओं से अलहदा एवं निर्विवाद नजर आते है। यह वोरा के शांत और पर्दे के पीछे चाणक्य होने का ही तोहफा था कि सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस के नेशनल हेडक्वार्टर में अध्यक्ष न रहते भी उन्हें झंडा फ हराने का अवसर मिला। श्री वोरा के इस वर्तमान राजनीतिक ऊंचाई की तुलना दुर्ग लोकसभा के वर्तमान संासद अथवा अन्य किसी भी नेता से नहीं किया जा सकता। इसीलिए तो कांग्रेस के वयोवृद्ध राष्ट्रीय नेता मोतीलाल वोरा के अल्प छत्तीसगढ़ प्रवास सेे न सिर्फ कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति सरगर्म हो गई, बल्कि, प्रदेश भाजपा को भी चौकन्ना कर गए।


 राजीव के पदचिन्हों पर चल रहे हैं राहुल- मोतीलाल वोरा
वरिष्ठ कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा का कहना है कि युवा पीढ़ी राजीव गांधीजी से आकर्षित थी उनके व्यवहार, संबोधन, मिलनसार व अपनेपन से मिलने से युवा काफ ी प्रोत्साहित होते थे और मेरा मानना है कि हमारे आज के युवाओं को भी उनके बारे में अधिक जानकारी रखनी चाहिए और उनके सिद्धांतों का अनुसरण करना चाहिए। राजीव ने युवाओं को जो राजनीति में लाने की पहल की थी, आज राहुल उनके पदचिन्हों पर चल कर उसे पूरा कर रहे हैं। जितने अधिक युवा राजनीति में आयेंगे उतना ही हमारा लोकतंत्र मजबूत होगा। राजीव ने 18 वर्ष की आयु में मतदान का अधिकारा दिलाया। मतदान के अधिकार से युवाओं को आगे आने का काफ ी मौका मिला है। युवाओं को और आगे आने की जरूरत है।
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तीसरे मोर्चे को ईमानदार नीयत की दरकार
टी.ऋतेष

दक्षिणापथ डेस्क
प्रदेश में ऐसे मतदाताओं की कतई कमी नहीं जो राज्य सत्ता में परिवर्तन तो चाहता है, पर स्पष्ट राह नहीं मिलता। यद्यपि प्रदेश में आम चुनाव के पहले तीसरा मोर्चाे खड़ा करने की कोशिशों पर सत्तारूढ़ एवं अन्य दलों का नजर उठना शुरू हो गया है। पूर्व के बनिस्बत् तीसरा मोर्चा इस बार मतदाताओं के समक्ष भी गंभीरता से खड़ा नजर आएगा। हालांकि अभी इस नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। पर, आम चुनाव के एक साल पहले प्रदेश में तीसरे विकल्प की बुनियाद रखने के लिए यह मुफिद समय है। जनता की एक बड़ी तादात राष्ट्रीय दलों के बजाए क्षेत्रीय दलों को अवसर तो देना चाहती है,  पर वह किस पर भरोसा करे, यह समझ से परे हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बीते 12 सालों के दौरान तीसरा मोर्चा खड़े करने की कवायद में जुटे कमोबेश अधिकंाश चेहरे मूल पार्टियों से निकले हुए लोगों के हैं। एक जैसे हितों को लेकर कुछ लोगों की लामबंदी छत्तीसगढ़ की राजनीति में अब तक खास असर नहीं डाल सकी है। हालांकि, पूर्व के प्रयासों में छत्तीसगढिय़ा फैक्टर को उतना एक्सपोस नहीं किया जा सका था, जितना आज किया जा रहा है। अलबत्ता, अभी भी छत्तीसगढिय़ा के फैक्टर में सत्ता को निर्णायक मोड़ देने का दम नहीं दिखता। वैसे भी छत्तीसगढिय़ा फैक्टर के पैरोकारों के पास रमन सरकार के सस्ते चावल का तोड़ नहीं। गरीबों को मुफ्त में पेट भरने की आदि बना चुकी सरकार अपने इस कदम को यदि जनउदारवादी छबि का बेहतर नमूना करार देती हो, वहां नंगे पांव सत्याग्रह की बात बेमानी होगी। तीसरे मोर्चे की कवायद में जुटे लोगों को यह भली-भांति समझना जरूरी है।
भले ही महत्वाकांक्षी छत्तीसगढ़़ के सामाजिक स्तर पर व्यापक बदलाव के रूप में सामने आए नये चेहरे से इंकार नहीं किया जा सकता। पर आंकड़े कुछ और संकेत देते हैं और जमीनी सच्चाई कुछ और बयां करती है। प्रदेश के उभरते कस्बों, गांवों, पिछड़े समुदायों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को देखकर समझा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ राज्य की गिनती अभी भी उड़ीसा और झारखंड जैसे अल्पविकसित राज्यों के साथ क्यों होती है। आंकड़ों के खेल से विकास का दावा मात खा रहा है। आवाम की दशा जीडीपी या राष्ट्रीय संपत्ति से नहीं आंकी जा सकती। दर्द को तौलने वाली तुला कहीं नहीं बनी। वक्त के प्रवाह का यह एक दौर ही है जब बेबस आंखें राज्योत्सव की चौंधितयाती जगमग का सहन नहीं कर पाने के बावजूद खामोश पड़ गई है। जनता की भीतरी संघर्ष से राज्य का चेहरा नहीं बदल रहा, बल्कि थोपे गए राजशाही की रोशनाई राज्योत्सव में छटा बिखेर रही है।
इन हालातों में तीसरे मोर्चो की कवायद रंग जरूर ला सकती है। पर उसके लिए ईमानदारी नियत पहली अवश्यकता होगी।
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अफसर-नेताओं की काली कमाई रीयल स्टेट में!
फ्लैट्स खरीदने वालों पर खुफिया निगाहें

दुर्ग/भिलाई/रायपुर। पिछले कुछ सालों में ट्विनसिटी में दर्जनों कालोनियां उग आई हैं। इन कालोनियों के निर्माण या फ्लैट्स की खरीददारी कर भ्रष्ट अफसर व नेता अपने करोड़ों रूपयों की कालिख पर सफेदा लगा रहे हैं। शहर के साथ ही आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर बहुमंजिला इमारतें खड़ी कर फ्लैट्स तैयार हो रहे हैं। इनकी कीमत 25 से लेकर 80 लाख रूपए तक है। छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़़े राज्य के उससे भी ज्यादा पिछड़े दुर्ग जिले में इतनी मोटी रकम लगाना आम आदमी के बूते से बाहर है। शायद इसीलिए अब कालोनाइजर से लेकर फ्लैट्स खरीदने वालों पर इन्कमटैक्स विभाग खुफिया नजर रख रहा है कि आखिर इतने महंगे फ्लैट्स खरीद कौन रहा है?
छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनने के बाद रीयल स्टेट का कारोबार अचानक चमक उठा और देखते ही देखते यह कारोबार अवैध कमाई को इन्वेस्ट करने का बेहतर जरिया बन गया। राजधानी रायपुर से लेकर भिलाई और दुर्ग तक सैकड़ों कालोनियां विकसित की गईं और अब भी हो रही हैं। राज्य में न लोगों का जीवन स्तर सुधरा, न इस दिशा में शासन स्तर पर कोई पहल हुई। लोगों की आय का जरिया बढ़ गया हो, ऐसा भी नहीं है। इसलिए यह सवाल लाजिमी है कि आखिर इन सैकड़ों विकसित हुई कालोनियों में बनाए गए हजारों फ्लैट्स खरीद कौन रहा है? बेहद भरोसेमंद सूत्रों की मानें तो भाजपा के सत्ता में आने के बाद अफसरशाही बेलगाम हुई और शासन-सत्ता का लाभ उठाने वालों ने जमकर अवैध कमाई की। अवैध कमाई करने वाले ऐसे ही लोग या तो कालोनाइजर्स के जरिए रूपए लगा रहे हैं या फिर ऐसी कालोनियों में फ्लैट्स खरीद रहे हैं। कुछ सालों में छोटे कर्मचारी से लेकर बड़े अधिकारी तक अचानक करोड़पति हो गए। हर दूसरे-तीसरे दिन राज्य में ऐसे कर्मचारी और अफसर पकड़े जा रहे हैं और बेहद आश्चर्य की बात है कि सबके पास करोड़ों रूपए की बेनामी सम्पत्तियां मिल रही है। लेकिन सत्ता के मद में चूर सरकार ने कभी यह विचारने की जहमत नहीं उठाई कि आखिर अफसरों के पास करोड़ों रूपए आ कहां से रहे हैं?
ये हैं रीयल स्टेट के इन्वेस्टर
कुकरमुत्तों की तरह अचानक पैदा हो गया रीयल स्टेट का कारोबार वर्तमान में इतना ज्यादा फलीभूत हो चुका है कि हर साल एकाध दर्जन नए कालोनाइजर पैदा हो रहे हैं। आखिर इस कारोबार में करोड़ों-अरबों रूपयों का निवेश कौन कर रहा है? राजधानी रायपुर में सत्ता से जुड़े कुछ नेताओं का पैसा लगने की खबरें तो काफी समय से आ रही है। राजधानी से लगे भिलाई जैसे शहर में भी भाजपा के एक जिम्मेदार जनप्रतिनिधि का अरबों रूपया लगे होने की खबर है। कमोबेश यही स्थिति दुर्ग में भी है। खबर तो यह भी है कि कई बड़े अफसर भी इस कारोबार में लम्बा इन्वेस्ट कर रहे हैं। आने वाले अंकों में दक्षिणापथ ऐसे लोगों का विस्तार से खुलासा करेगा।
...और ये खरीद रहे हैं फ्लैट्स
छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े राज्य में आम आदमी की स्थिति किसी से छिपी हुई नहीं है। लगातार बढ़ रही महंगाई ने लोगों का जीना हराम करके रख दिया है। लोग दो जून रोटी और आवश्यक संसाधनों से इतर सोच भी नहीं पा रहे हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि लाखों रूपयों के फ्लैट्स और बंगले खरीद कौन रहा है? खुफिया सूत्रों की मानें तो छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण का सबसे ज्यादा फायदा उठाने वाला अफसरों का वर्ग अपनी दो नंबर की कमाई को फ्लैट्स खरीदने में लगा रहा है। इन्हीं सूत्रों के मुताबिक, शासन का गोपनीय अमला तो इसकी पड़ताल कर ही रहा है, साथ ही इन्कमटैक्स विभाग की नजरें भी फ्लैट्स के ख्ररीददारों पर लगी हुई है।
...तो नगर निगम बदहाल क्यों?
ट्विनसिटी में बड़े पैमाने पर कालोनियां विकसित हुई हैं और अब भी हो रही है। इन कालोनियों में सैकड़ों की संख्या में फ्लैट्स बनाए गए हैं। रीयल स्टेट कारोबारियों की मानें तो बन चुके अधिकांश फ्लैट्स बिक भी गए हैं। इन फ्लैट्स के बिकने का लाभ स्थानीय निकायों को क्यों नहीं मिला, यह अपने आपमें बड़ा सवाल है। या तो फ्लैट्स खरीदने वाले नामांतरण, सम्पत्ति कर आदि की औपचारिकताएं पूरी नहीं कर रहे हैं या फिर स्थानीय निकायों में इसकी अनदेखी की जा रही है। आम आदमी को छोटा सा मकान बनाने के लिए लम्बी जद्दोजहद करनी पड़ती है। लेकिन नए कालोनाइजर्स चंद दिनों में ही जमीन खरीदने से लेकर फ्लैट्स तैयार करने तक का काम शुरू कर देते हैं। प्रशासनिक स्तर पर इसे कभी गम्भीरता से नहीं लिया गया। प्रशासन यदि जांच करे तो कई सनसनीखेज खुलासे हो सकते हैं।
खरीदने-रहने वालों की जांच जरूरी
बहुमंजिला इमारतों में बिकने वाले फ्लैट्स की खरीदी संदेहास्पद है। ट्विनसिटी में ही चौथी से छठीं मंजिल के फ्लैट्स की कीमत 40 से 50 लाख रूपए तय की गई है। जाहिर है कि स्वच्छ और खुले माहौल में रहने का आदी आम छत्तीसगढिय़ा फ्लैट संस्कृति से इत्तेफाक नहीं रखता। इसलिए पूरी संभावना तो यही है कि इस तरह के फ्लैट की खरीदी में राज्य से बाहर के लोगों की भूमिका भी अहम् है। इन बाहरी लोगों में ऐसे तत्व में भी हो सकते हैं तो संगीन अपराध को अंजाम देकर यहां रह रहे हों या फिर यहां फ्लैट्स खरीदकर आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो। ट्विनसिटी में नक्सलियों की आमद की पुष्टि हो चुकी है। वैसे भी आपराधिक तत्व शहर से बाहरी इलाकों को ज्यादा पसंद करते हैं और लगभग सभी कालोनियां बाहरी इलाकों में ही बनीं हैं। इसलिए किराएदारों की सूची मांगने वाली पुलिस के लिए यह जरूरी हो जाती है कि वह इन कालोनियों में फ्लैट्स खरीदने और वहां रहने वालों की जांच करे।
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नर्सिंग होम में मनमानियों पर लगेगा अंकुश
भिलाई। कुकुरमुत्तों की तरह उग आए नर्सिंग होम में चल रही मनमानियों पर अंकुश लगने जा रहा है। सरकार इस महीने के अंत तक नया नर्सिंग होम एक्ट लागू करने जा रही है। स्वास्थ्य संचालक डॉ. कमलप्रीत सिंह के मुताबिक, निजी नर्सिंग होम के प्रतिनिधियों से बातचीत हो चुकी है। एक्ट लागू करने संबंधी बनने वाली कमेटी में नर्सिंग होम के दो प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाएगा।
जानकारियों के मुताबिक, नर्सिंग होम एक्ट लागू करने में अब कोई अड़चन नहीं है। शासन ने नर्सिंग होम के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा कर उनकी सभी शंकाओं का समाधान कर दिया है। गौरतलब है कि निजी नर्सिंग होम संचालक नर्सिंग होम एक्ट लागू करने का विरोध कर रहे हैं। वे इस संबंध में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से भी मिल चुके हैं। नर्सिग होम एक्ट लागू करने के संबंध में सबसे बड़ी दिक्कत नर्सिग और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी है। स्वास्थ्य विभाग की मंथन बैठक में अफसरों ने यह स्वीकार किया कि नर्सिग होम एक्ट तत्काल लागू करने पर अस्पताल प्रबंधन के सामने स्टाफ की कमी की व्यवहारिक दिक्कत सामने आएगी। मौजूदा स्थिति में छत्तीसगढ़ में नर्सिग और पैरामेडिकल का इतना स्टाफ नहीं है कि सभी नर्सिग होम ट्रेंड तकनीशियनों व नर्सो की नियुक्ति कर सकें। इस बिंदु को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे पर निर्धारित अवधि के लिए छूट दी जा सकती है। यानी नर्सिग होम एक्ट लागू होने के बाद नर्सिग होम प्रबंधन को छह माह से एक साल तक का समय ट्रेंड स्टाफ की भर्ती के लिए दिया जाएगा। इस अवधि में नर्सिग होम प्रबंधन को अपने अस्पताल में प्रशिक्षित स्टाफ की भर्ती करनी होगी।
विधानसभा में पारित हो चुका है एक्ट : नर्सिग होम एक्ट विधानसभा में पारित हो चुका है। अभी एक्ट के नियम नहीं बने हैं। इस वजह से एक्ट को लागू नहीं किया जा रहा है। नियमों को बनाने के लिए लंबे समय से कवायद चल रही है, लेकिन तकनीकी दिक्कत के कारण अब तक इसे पूरी तरह अमल में नहीं लाया जा सका है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल से लेकर स्वास्थ्य विभाग के तमाम आला अफसर नर्सिग होम एक्ट को लेकर बेहद गंभीर है। पिछले तीन महीने से इसे जल्दी लागू करने की कवायद चल रही है।
नर्सिग होम में क्या करना होगा
. प्रत्येक नर्सिग होम को प्रशिक्षित स्टाफ रखना होगा।
. मान्यता प्राप्त लैब से मरीजों की सभी जांच करवानी होगी।
. अस्पताल के बिस्तर के हिसाब से भवन व वार्ड की लंबाई-चौड़ाई तय की जाएगी। उसी आधार पर मरीजों के लिए बिस्तर रखने होंगे।
. मरीजों की जांच रिपोर्ट को नर्सिग होम संचालक अपने पास नहीं रख सकेंगे। उन्हें जांच रिपोर्ट मरीजों को लौटानी होगी।
. मरीजों की मर्जी से छुट्टी देनी होगी। तमाम दस्तावेज उपलब्ध कराने होंगे।
. मरीजों और उनके रिश्तेदारों की हर सुविधा का ख्याल रखना होगा।
. एक्ट लागू होने के बाद शिकायत होने की दशा में जांच होगी। जरूरत पडऩे पर डाक्टर व नर्सिग होम के खिलाफ कानूनी कार्रवाई एक्ट के मुताबिक की जा सकेगी।

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