Wednesday 3 October 2012

नसीहतों और हिदायतों पर टली विदाई

होते-होते रह गया छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन
दक्षिणापथ डेस्क
रायपुर। कोल ब्लॉक आबंटन मामले में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की विदाई होते-होते रह गई। दिल्ली में यह लगभग तय कर लिया गया था कि अब छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन जरूरी हो गया है, किन्तु ऐसा करने से भाजपा की छवि को होने वाले भावी नुकसान के मद्देनजर रमन को कुछ हिदायतों और नसीहतों के साथ छत्तीसगढ़ तक सीमित कर दिया गया। इस दौरान आरएसएस से जुड़े एक मंत्री की दिल्ली दौड़ और नेतृत्व परिवर्तन की वकालत भी खासी चर्चा में रही।
छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग लम्बे समय से होती रही है। आदिवासी नेता इसके खिलाफ लामबंद होकर आदिवासी एक्सप्रेस चलाते रहे हैं। यह दीगर बात है कि भाजपा ने शीर्ष स्तर पर इस तरह की लामबंदी को बहुत ज्यादा तवज्जो कभी नहीं दी। लेकिन आदिवासी मुख्यमंत्री की यह मांग उस वक्त पूरी होते दिखने लगी, जब छत्तीसगढ़ सरकार के एक दमदार आदिवासी मंत्री कोल ब्लाक आबंटन मामले को भुनाने के लिए दिल्ली पहुंच गए। उन्होंने शीर्ष नेतृत्व को छत्तीसगढ़ के हालातों से अवगत कराया तो आलाकमान को यह बताने की कोशिश की कि छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन क्यों जरूरी है? कई वरिष्ठ नेता खराब होती भाजपा की छवि से बचने के लिए इस बात पर करीब-करीब सहमत हो गए थे कि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बदल दिया जाए। लेकिन एक शीर्षस्थ नेता की समझाईश के बाद रमन को एक और अवसर देने का फैसला किया गया। दिल्ली दौडऩे वाला आरएसएस से संबद्ध यह मंत्री पहले भी आदिवासी विधायकों को लामबंद करते रहे हैं। इससे पहले छत्तीसगढ़ में पिछड़ा कार्ड भी खेला जा चुका है। भाजपा के सांसद और सचेतक रमेश बैस इसके अगुवा रहे हैं।
सौदान के चर्चे
मजे की बात तो यह है कि कोल ब्लाक मामले में रमन के खिलाफ अचानक बन गए विस्फोटक हालातों को संभालने के लिए आलाकमान को राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सौदान सिंह को भेजना पड़ा।  यहां यह उल्लेखनीय है कि ये वही सौदान सिंह हैं जिनके ठाठ-बाठ और बंगले के चर्चे छत्तीसगढ़ के गलियारों में जोरों से गूंज रहे हैं और उनसे जुड़ी तथाकथित महत्वपूर्ण खबरों को मीडिया तक सरकार से जुड़े लोग ही पहुंचा रहे हैं। शायद यही वजह है कि सरकार को 9 साल में पहली बार अपने अलग प्रवक्ता बनाने पड़े।
लग ही गया दाग
हर छोटे-बड़े अवसरों को जोर-शोर से भुनाने में महारत रखने वाली रमन सरकार अपने 9 साल के कार्यकाल में पहली बार इतना बड़ा दाग लगवा बैठी कि अब छुड़ाना मुश्किल हो गया है। भले ही संचेती ब्रदर्स को कोल ब्लाक आबंटन में रमन सरकार तीसरी पार्टी हो, ...और दूसरी पार्टी ने इस सरकार को अभयदान दे दिया हो, लेकिन इस मामले ने आम लोगों के बीच सरकार की छवि को तो बट्टा लगा ही दिया है। आने वाले दिनों में इससे छुटकारा पाना पार्टी के लिए काफी मुश्किल होगा।
सरकार के प्रवक्ता मंत्री?
क्या किसी सरकार के प्रवक्ता, उसी के अपने मंत्री हो सकते है? छत्तीसगढ़ में सरकार ने अपने दो मंत्रियों बृजमोहन अग्रवाल और रामविचार नेताम को प्रवक्ता बनाया है। सवाल यह उठ रहा है कि पिछले 9 सालों में इसकी जरूरत क्यों महसूस नहीं की गई? मंत्री क्योंकि सरकार के ही अंग होते हैं, इसलिए उनके द्वारा कही गई बातों को सरकार की बातें ही माना जाता है। इसका मतलब तो यही निकलता है कि अब इन दोनों मंत्रियों के अलावा अन्य मंत्री यदि कुछ कहें तो उसे सरकार का बयान न माना जाए? सवाल यह भी है कि आखिर क्या वजह थी कि इन्हीं दो कद्दावर नेताओं को प्रवक्ता का दायित्व सौंपा गया? बृजमोहन को भाजपा का दमदार और कद्दावर नेता माना जाता है और नेतृत्व परिवर्तन की स्थिति में वे कुर्सी के अहम् दावेदारों में हैं। वहीं आदिवासियों की लामबंदी और आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग करने वालों में नेताम अग्रणी रहे हैं। क्या इसी वजह से इन दोनों मंत्रियों को सरकार का पक्ष रखने के लिए चुना गया? ताकि वे प्रवक्ता जैसे दायित्व निभाते हुए यह याद रखें कि उनके लिए सीएम की कुर्सी अभी दूर है?

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