Wednesday 3 October 2012

सीएसआईडीसी में चल रहा है पैसो का खेल

दक्षिणापथ डेस्क
बोरई/दुर्ग। छत्तीसगढ़ औद्योगिक विकास निगम (सीएसआईडीसी), बोरई में चल रहे विकास कार्यों में भारी भ्रष्ट्राचार किया जा रहा है। निगम द्वारा शिवनाथ नदी चौक से रसमड़ा चौक (जालबांधा रोड) पहुंच मार्ग का फिर से निर्माण कराया गया है।  किंतु काफी लंबा वक्त गुजर जाने के बावजूद नए बने सड़क के दोनों किनारों पर मुरमी डालने की औपचारिकता निभाते हुए निर्मात्री एजेंसी ने मुख मोड़ लिया है। जब करोड़ों रूपए खर्च कर एक अदद सड़क का निर्माण कराया जा सकता है तो फिर कुछ और राशि खर्च कर मुरम डालने में कोताही क्यों बरता जा रहा है, समझ से परे हैँ। इस रवैय्ये के चलते समूचे निर्माण कार्य के औचित्य पर सवाल उठने लगा है। आधे-अधूरे निर्माण कार्यों का खामियाजा आखिर सड़क पर चलने वाले आम इंसान को ही उठाना पड़ता है। निर्माण के महज चार महीनों के अंतराल में सड़क जगह-जगह उखड़ गया है। अलबत्ता, गुड््ढों को ढंकने की गरज से भी मुरम नहीं डाला जा रहा। उपादेयता की दृष्टि से सीएसआईडीसी अपने मूल लक्ष्य से भटक कर सफेद हाथी साबित हो रहा है।  पर्याप्त प्रशासनिक नियंत्रण के अभाव में सीएसआईडीसी, बोरई क्षेत्र के अफसर इतने निरंकु़श हो गए हैँ, कि उन्हें खुलेआम करप्शन करने में भी गुरेज नहीं रह गया है। औद्योगिक विकास के नाम पर शासन से सीएसआईडीसी को हर साल करोड़ों रूपए का बजट मिलता है, पर विकास के नाम पर सीएसआईडीसी सरकारी धन का कैसा बंदरबाट कर रहा है, बोरई औद्योगिक क्षेत्र में जाकर भली-भांति देखा समझा जा सकता है। यहंा तक उद्योग के नाम पर प्राप्त जमीनों को ऊंची कीमत में बेच देने का खेल से भी सीएसआईडीसी अछूता नहीं रहा है। अमूमन, बोरई औद्यो. क्षेत्र में महमरा के पास जो सिमेंट पाईप पूल बनाया गया है, उसके छेद को ढंकने के लिए सीएसआईडीसी ने मुरम डाल दिया है। सीएसआईडीसी की कार्यप्रणाली व चिंतन स्तर इतना दोयम दर्जे का है कि वह अपनी खामियों को छुपाने के लिए भी मुकम्मल प्रयास नहीं कर पाता। ऐसे में सीएसआईडीसी के औचित्य पर सवाल उठना लाजि़मी है?
शिवनाथ चौक में महमरा डायवर्सन के समीप अपने निर्माण के समय ही पाइप लाईन में लिकेज आ गया था, वह अब तक वैसा ही है। व्यर्थ पानी बहने से सड़क भी उखड़ चुका है। अब बस किसी न किसी दिन कोई बड़ी दुर्घटना जरूर सामने आएगा।  आएगी। छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड ने पिछले दिनों अच्छे भले जल रहे स्ट्रीट लाईट को सिर्फ बजट खर्च करने के लिए बदल डाला। एक जैसे हितों को लेकर सीएसआईडीसी के नुमांइदों व भ्रष्ट नौकरशाहों का गठजोड़ शासन को चूना लगाने की नई इबारत लिख रहे हैँ।
श्रमिक नेताओं के बेजा हस्ताक्षेप से परेशान उद्योगपति
 इंडस्ट्री एवं श्रमिक परस्पर एक-दूसरे के पूरक होते हैं। श्रमिक नवआंदोलन के वर्तमान युग में भी कर्मठ मजदूर अपनी मेहनत को उत्पादन के रूप में ढाल कर औद्योगिक लक्ष्यों की पूर्ति करता है। इन सारी प्रक्रिया में उद्योगपति न सिर्फ अग्रदूत की भूमिका निभाता है, बल्कि मजदूरों का पृष्टपोषण कर विकास की समन्वित आयाम तय करता है। किंतु श्रमिक अधिकारों के नाम पर आंदोलनों की राजनीति करने वाले कथित ट्रेड नेता भ्रामक दुष्प्रचार कर उद्योगों के कार्यों को बाधित करते हैँ। कुछ यही वाकया आजकल रसमड़ा क्षेत्र के औद्योगिक निकायों में देखने मिल रहा है।
 कुछ महीनों से रसमड़ा औद्योगिक क्षेत्र के उद्योगपति टे्रेड यूनियनों के कथित श्रमिक नेताओं की बेजा हस्ताक्षेप से परेशान हो चले हैँ। एक ओर जहंा ट्रेड यूनियन द्वारा न्यूनतम वेतन से अधिक वेतनमान को लेकर लगातार आंदोलन किया जा रहा है वहीं क्षेत्र के कुछ इकाइयों में हुए गंभीर दुर्घटनाओं के एवज में नियम के विपरीत मुआवजा के लिए पीडि़त पक्ष को उकसाया जा रहा है। इसके लिए सांसद, विधायक के अलावा अन्य जनप्रतिनिधियों को मोहरा बनाने का प्रयास भी किया जा रहा है। यहां तक श्रमिकों पर बेवजह आंदोलन के लिए दबाव डाला जा रहा है। इसके लिए मारपीट व प्रताडऩा का सहारा भी लिया जा रहा है। इससे एक ओर तो माहौल खराब कर दिया गया है तो दूसरी ओर उत्पादन भी बाधित हो रहा है।
विगत दिनों फैक्टरी के भीतर हुई दुर्घटनाओं में हुए जनक्षति पर प्रबंधन ने नियमत: देय मुआवजा से चार से पांच गुणा अधिक मुआवजा देने के लिए सिर्फ इसलिए उद्योगपतियों पर दबाव बनाया गया, ताकि यूनियन के प्रतिस्पर्धी नेताओं के बीच अपनी वर्चस्व को बढ़ा सके। किंतु इससे फायदा पीडि़त परिवारों के बजाए कथित ट्रेड लीडरों को ही हो रहा है। श्रमिकों के रूख से आहत उद्योगपति अब श्रमशक्ति की आपूर्ति के लिए अन्यत्र क्षेत्रों में संभावना तलाश रहे हैँ। उद्योगपति व श्रमिकों के बीच राजनीति करने वाले तत्वों के हावी होने से स्थानीय श्रमिकों का ही नुकसान हो रहा हैे। स्थानीय श्रमिकों से उद्योगपतियों के मोहभंग होने का खामियाजा प्रदेश की आगामी कर्मशील श्रमिक पीढ़ी को भी उठाना पड़ सकता है।

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